र स्सी बडे़ काम की चीज़ है। जब इससे खींचने-लटकाने जैसे काम ले लिए जाते हैं तब इससे मुहावरे बन जाते हैं। मसलन सबक के बावजूद स्वभाव न बदलने वाले के लिए रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई मुहावरा खूब इस्तेमाल होता है। रस्सी पर चलना यानी कठिन काम को अंजाम देना। रस्सी तुड़ाना यानी पीछा छुड़ाना। खींचातानी के लिए रस्साकशी आदि कई मुहावरे रस्सी से जन्मे हैं। यह रस्सी कहां से जन्मी ?
रस्सी शब्द बना है संस्कृत शब्द रश्मिः से जिसका हिन्दी रूप रश्मि है। इस शब्द से हमारा परिचय प्रकाश किरण के रूप में ही है। दरअसल रश्मि शब्द बना है संस्कृत धातु अश् से जिसमें व्याप्ति, भराव, पहुंचना, उपस्थिति, प्रविष्ट होना जैसे भाव हैं। जाहिर है प्रकाश-रेख, अंशु या किरण में ये तमाम भाव मौजूद हैं। कोई भी प्रकाशपुंज अंधकार को आलोकित करते हुए स्वयं वहां प्रवेश नहीं करता बल्कि उसकी रश्मियां वहां प्रकाश को भरती हैं। सूर्योदय के समय देखते-ही देखते एक एक कर सहस्रों रश्मियां जल-थल में व्याप्त हो जाती हैं। ये किरणें ही ज्योतिपुंज से उत्सर्जित ऊर्जा की वाहक होती हैं। रश्मि में भाव है पुण्य का। आलोकित करना-प्रकाशित करना ये पुण्यकर्म हैं। जीव-जगत को, प्रकृति को कलुष से, तमस से, अंधकार से मुक्ति दिलाने से बड़ा पुण्य और क्या हो सकता है ? रश्मिरथी ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो पुण्यात्मा हो। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का प्रसिद्ध खंडकाव्य है रश्मिरथी जो कर्ण के महान चरित्र पर लिखा गया है। गौरतलब है कि कर्ण कौरवों के पक्ष में थे परंतु वे तेजस्वी, पुण्यात्मा थे।
दरअसल ये रश्मियां डोर हैं। माध्यम हैं प्रकाश को भूलोक पर पहुंचाने का। सूर्योदय या सूर्यास्त के समय ये रश्मियां नज़र भी आती हैं और सचमुच सूर्य और पृथ्वी के बीच तनी हुई डोर की तरह ही जान पड़ती हैं। रश्मि का ही अपभ्रंश रूप है रस्सी। इसका पुल्लिंग हुआ रस्सा जिसका आकार या मोटाई रस्सी से अधिक होती है। रस्सी एक माध्यम है। माध्यम की
रस्सी से ही बना है रास शब्द जिसका मतलब होता है लगाम। गौर करें लगाम के जरिये सारथी अपने अपना आदेश जुए में जुते पशु तक पहुंचाता है। लगाम ढीली छोड़ना और लगाम कसना जैसे मुहावरों में काम के संदर्भ में आदेश-निर्देश के नरम अथवा कठोर होने का पता चल रहा है। रास थामनामुहावरे का अर्थ है मार्गदर्शन करना, नेतृत्व करना। रास का एक अन्य अर्थ कमरबंद या करधनी भी होता है। तनातनी के अर्थ में रस्साकशी एक आम मुहावरा है। यह बना है रस्सा+कशी(कश-खींचना) अर्थात यह संकर शब्द है जो फारसी और संस्कृत के मेल से बना है। हालांकि कश शब्द मूलतः संस्कृत की कर्ष् धातु से जन्मा है जिसमें खींचने का भाव है।
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रस्सी शब्द बना है संस्कृत शब्द रश्मिः से जिसका हिन्दी रूप रश्मि है। इस शब्द से हमारा परिचय प्रकाश किरण के रूप में ही है। दरअसल रश्मि शब्द बना है संस्कृत धातु अश् से जिसमें व्याप्ति, भराव, पहुंचना, उपस्थिति, प्रविष्ट होना जैसे भाव हैं। जाहिर है प्रकाश-रेख, अंशु या किरण में ये तमाम भाव मौजूद हैं। कोई भी प्रकाशपुंज अंधकार को आलोकित करते हुए स्वयं वहां प्रवेश नहीं करता बल्कि उसकी रश्मियां वहां प्रकाश को भरती हैं। सूर्योदय के समय देखते-ही देखते एक एक कर सहस्रों रश्मियां जल-थल में व्याप्त हो जाती हैं। ये किरणें ही ज्योतिपुंज से उत्सर्जित ऊर्जा की वाहक होती हैं। रश्मि में भाव है पुण्य का। आलोकित करना-प्रकाशित करना ये पुण्यकर्म हैं। जीव-जगत को, प्रकृति को कलुष से, तमस से, अंधकार से मुक्ति दिलाने से बड़ा पुण्य और क्या हो सकता है ? रश्मिरथी ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो पुण्यात्मा हो। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का प्रसिद्ध खंडकाव्य है रश्मिरथी जो कर्ण के महान चरित्र पर लिखा गया है। गौरतलब है कि कर्ण कौरवों के पक्ष में थे परंतु वे तेजस्वी, पुण्यात्मा थे।
दरअसल ये रश्मियां डोर हैं। माध्यम हैं प्रकाश को भूलोक पर पहुंचाने का। सूर्योदय या सूर्यास्त के समय ये रश्मियां नज़र भी आती हैं और सचमुच सूर्य और पृथ्वी के बीच तनी हुई डोर की तरह ही जान पड़ती हैं। रश्मि का ही अपभ्रंश रूप है रस्सी। इसका पुल्लिंग हुआ रस्सा जिसका आकार या मोटाई रस्सी से अधिक होती है। रस्सी एक माध्यम है। माध्यम की
सूर्योदय के समय देखते-ही देखते एक एक कर सहस्रों रश्मियां जल-थल में व्याप्त हो जाती हैं।
रस्सी से ही बना है रास शब्द जिसका मतलब होता है लगाम। गौर करें लगाम के जरिये सारथी अपने अपना आदेश जुए में जुते पशु तक पहुंचाता है। लगाम ढीली छोड़ना और लगाम कसना जैसे मुहावरों में काम के संदर्भ में आदेश-निर्देश के नरम अथवा कठोर होने का पता चल रहा है। रास थामनामुहावरे का अर्थ है मार्गदर्शन करना, नेतृत्व करना। रास का एक अन्य अर्थ कमरबंद या करधनी भी होता है। तनातनी के अर्थ में रस्साकशी एक आम मुहावरा है। यह बना है रस्सा+कशी(कश-खींचना) अर्थात यह संकर शब्द है जो फारसी और संस्कृत के मेल से बना है। हालांकि कश शब्द मूलतः संस्कृत की कर्ष् धातु से जन्मा है जिसमें खींचने का भाव है।
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रस्सी और सूर्य का रिश्ता बखूबी समझाया आपने, आभार!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है।
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ReplyDeleteVery Informative ! Thanks !!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस मुबारक हो जी !
बहुत उम्दा जानकारी उपलब्ध करवाई. फिर धागा, सूत आदि इससे किस तरह आकर जुड़ते हैं? कोई संबंध?
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
दरअसल ये रश्मियां डोर हैं
ReplyDeleteडोर भी तो रस्सी ही हुई ना, तो डोर की और रस्सी की उत्पत्ति में क्या फर्क हो सकता है। बाकि जानकारी तो अच्छी ही देते हैं बार बार यही कहना ऐसा लगता है जैसे पिछले दफा किया अपना ही कमेंट कट-पेस्ट करके डाल रहा हूँ।
आप जैसे रश्मिरथी के द्वारा शब्दों के साथ जो रिश्ते बने है वह अमूल्य है मेरे लिए . शब्द का अर्थ तभी आसानी से समझ मे आता है जब उसकी उत्पति के बारे मे पता चल जाता है
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस पर आईए एक बेहतर लोकतंत्र की स्थापना में अपना योगदान दें...जय हो..
ReplyDeleteभारतीय दर्शन में सर्प और रज्जु के भ्रम से सत् और असत की व्याख्या की गई है.अगर इसके माने ये निकाले की संस्कृत में रस्सी के लिए रज्जु शब्द प्रयुक्त हुआ है तो ये रोचक है कि हिन्दी का रस्सी कम प्रचलित रश्मि से बना.
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ReplyDeleteहम भी नित्य शब्दों के रश्मि रथी की रास से बंधे यहाँ खिंचे चले आते हैं।
ReplyDeleteभाई साहिब , प्रणाम.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं.
इधर भारतीय राजनीति की बात करें तो यहाँ रस्सी का बड़ा महत्व है | 'रस्साकशी' बिना भारतीय राजनीति का चित्र अकल्पनीय है | पुस्तकों में वर्णन है कि लोकतंत्र में 'रास ' प्रजा के हाथ होती है लेकिन व्यवहार में सिद्ध हुआ है कि यह 'सर्प और रज्जु' जैसा भ्रम है | या तो रास कच्ची है या विषैली | कोई 'रश्मिरथी' रास थामे तो आस बंधे !
ReplyDeleteगाँव में तो रस्सी भांजना सामूहिक काम होता है | सुतली से रस्सी और रस्सी से रस्सा बनाने में जो सहकार्य भाव होता है , देखते ही बनता है | बिना गाँठ की रस्सी गाँठना हमारे राजनेता सीख लें तो हमारा गणतंत्र अभेद्य बन जाये |
गणतंत्र दिवस पर रस्सी से कुछ सीखें !
शुभकामनाएं !
मेरी बात को तो द्विवेदीजी ने पहले ही कह दी है, मुझसे बेहतर शब्दों में।
ReplyDeleteलाजवाब जानकारी.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं, और घणी रामराम.
बहुत सुंदर.... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...!
ReplyDeleteकंहा रश्मि और कंहा रस्सी.. क्या हाल कर दिया रश्मि का..
ReplyDeleteगणतंत्र की शुभकामनाऐं..
रस्सी से जुडी जानकारियां देने का बहुत बहुत शुक्रिया । आपको तथा आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeletebahut hi rochak aur gyanvardhak lekh
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
रश्मि रूप ही है शब्दों का सफ़र.
ReplyDelete========================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बड़ी पोयटिक बात है जी - सूरज सतत रस्सी बुनता है!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है आपका ब्लॉग...........रोचक और बेहतरीन सामिग्री उपलब्ध है इस ब्लॉग पर........इस सफर में आपके साथ रहे तो जिंदगी की रोचकता बनी रहेगी
ReplyDeleteरस्सी और रश्मि का अद्भुत रिश्ता,बहुत खूब.
ReplyDeleteरश्मि से रस्सी तक! अद्भुत सफर !
ReplyDeleteबसंत पंचमी की आप को हार्दिक शुभकामना
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