Monday, February 2, 2009

निष्क से बना तनिष्क [सिक्का-17]

सिक्का श्रंखला की आठवी कड़ी मोहर की मुखमुद्रा पर टिप्पणी करते हुए सुमंत मिश्र कात्यायन  ने कहा था- कभी कार्षापण और निष्क के उद्भव और विकास से भी अवगत कराएं। कार्षापण के बारे में तो हमने  कैश की कशिश, रूप का आकर्षण [सिक्का-9] में ही चर्चा की थी। निष्क रह गया था सो उसके बारे में जितना जान पाया हूं , पेश है-
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टाटा के ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क tanishq की निष्क से गहरी रिश्तेदारी है.
प्रा चीन भारत में निष्क नाम की स्वर्णमुद्रा भी प्रचलित थी। वैदिक संदर्भों में इसका उल्लेख मुद्रा के रूप में भी है और स्वर्णाभूषण के तौर पर भी है। निष्क का प्रयोग नियमित मुद्रा के तौर पर होता था या नहीं इस पर विद्वान एकमत नहीं है मगर यह मौद्रिक लेन-देन का सहज जरिया थी यह तय है। आज के दौर में निष्क शब्द चलन में नहीं है मगर भला हो बहुराष्ट्रीय स्वदेशी कंपनी टाटासंस का कि वह ज्वैलरी के कारोबार में उतरी और अपने आभूषणों के लिए निष्क शब्द को ब्रांडनेम बनाया। चौंकिये नहीं, अब कारोबारी अक्ल तो टाटा को लगानी ही थी सो उन्होंने निष्क अर्थात nishk से पूर्व टाटा का ta भी लगादिया और निष्क के अंग्रेजी हिज्जे में बदलाव कर दिया और बन गया तनिष्क tanishq जो महिलाओ का पसंदीदा ब्रांड है।

निष्क के बारे में प्रख्यात आलोचक, भाषाशास्त्री डॉ रामविलास शर्मा ऋग्वेदः श्रम और संस्कृति में लिखते हैं कि निश्चित तौर पर वैदिककालीन भारत में निष्क संपत्ति का ऐसा रूप था जिसे लेकर मनुष्य आसानी से इधर-उधर चल सकता था। वैदिक इंडेक्स में भी कहा गया है कि निष्क स्त्रियों के आभूषण का नाम था मगर उसे विनिमय के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता था अर्थात उसका मुद्रा के रूप में प्रयोग समाज को स्वीकार्य था। सदियों बाद मौर्य और गुप्तकाल के संदर्भों में निष्क का उल्लेख सिक्के के रूप में ही मिलता है जिससे पता चलता है कि निष्क नाम के स्वर्ण आभूषण या धातु पिंड का बतौर मुद्रा चलन शुरू हो गया था।

डॉ शर्मा निष्क के बारे में ऋग्वेद के हवाले से तर्क देते हैं। वैदिक देव रुद्र गले में निष्क धारण करते हैं जिसे विश्वरूप की संज्ञा दी गई है। अब रुद्र ही विश्वरूप हों तब तो ठीक अन्यथा निष्क का विश्वरूप होना मुद्रा के तौर पर ही संभव है। क्योंकि मुद्रा की खासियत है उसे किसी भी रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। यानी वह सचमुच विश्वरूप है। निष्क की व्युत्पत्ति स्पष्ट नहीं है। इसका अर्थ आप्टे कोश में सोना, मुद्रा, आभूषण, आदि दिया हुआ है। यही नहीं निष्क को तौल और माप भी बताया गया है। आपटेकोश में  जानकारी मिलती है कि निष्क किसी एक तौल की मुद्रा नहीं थी बल्कि अलग-अलग तौल की मुद्रा  थी। निष्क की व्युत्पत्ति के संदर्भ में मेरा मत धातु शोधन की प्रक्रिया से संबंधित है। स्वर्ण धातु के शोधन की तकनीक प्राचीन भारतीयों को ज्ञात थी। आज भी कच्चे अयस्क से धातु शोधन को निष्कर्षण

nisk वैदिक इंडेक्स में भी कहा गया है कि निष्क स्त्रियों के आभूषण का नाम था मगर उसे विनिमय के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता था

कहते हैं। धातुएं शुद्ध रूप में धरती में नहीं होती बल्कि खनिज रूप में होती हैं जिन्हें तपाकर-पिघला कर प्राप्त किया जाता है। दरअसल ये खनिज का सार होती हैं, निष्कर्ष होती हैं।  गोष्ठियों, बहस-मुबाहसों के जरिये किसी नतीजे पर पहुंचा जाता है जो पूरी चर्चा का सार-तत्व होता है। दरअसल इसे चर्चा की माप या तौल कह सकते हैं। यही निष्कर्ष है।

निष्कर्षण शब्द निस्+कर्ष से बना है। कर्ष बना है कृ धातु से जिसमें उकेरना, खींचना, लकीर खींचना, निकालना आदि भाव शामिल हैं। कार्षापण नामक स्वर्णमुद्रा के नामकरण में भी कर्ष ही है। वैदिक भारत में पण नामक मुद्रा का भी उल्लेख हैजो अनघड़ धातु पिंड होता था। कर्ष के साथ पण शब्द जुड़ने से बना कार्षापण । पण के कार्षापण में तब्दील होने के पीछे प्राचीन भारतीय समाज की तकनीकी प्रगति उजागर हो रही है। पण को कार्षापण नाम इसलिए मिला क्योंकि धातु के अनघड़ पिंड पर राज्यमुद्रा उत्कीर्ण करने की तकनीक का उसमें इस्तेमाल किया गया था। यहां कर्ष के लकीर खींचने, खोदने के भाव पर गौर करें। निस् उपसर्ग में अलग करने का भाव है। इस प्रकार शोधन के अर्थ में निष्कर्षण का मतलब हुआ खनिज अयस्क से मूल तत्व को खींचना। खनिज के मूलतत्व को ही धातु कहते हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि निष्कर्षण प्रक्रिया के परिणाम स्परूप प्राप्त स्वर्ण धातु को निष्क नाम दिया गया होगा। निष्क के आभूषण वाले अर्थ से तो इस शब्द की कर्ष से व्युत्पत्ति स्पष्ट हो रही है। धातु पिंड आभूषण इसीलिए कहलाता है क्योंकि उस पर मनोहर रेखाएं उत्कीर्ण की जाती है। उसे काट छांट कर आकर्षक रूप दिया जाता है।  यही भाव तो कर्ष के मूल में है।

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24 comments:

  1. बहुत सुंदर | तनिष्क के बारे में रोचक जानकारी मिली | आपको इसके लिए धन्यवाद |

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  2. ये बात तो कहो हमारे जबलपुर के तनिष्क शोरुम के मालिक को भी न मालूम होगी. आज जरा उसे ज्ञान देकर अपनी धाक जमाता हूँ. शायद अगली खरीददारी में प्रभावित सा बेहतर डिस्काऊन्ट दे दे. तब आज की तरह फिर से आपका आभार करने आऊँगा.

    बेहतरीन जानकारी. आभार.

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  3. शानदार जानकारी...तनिष्क यानि टा और निष्क...कंपनी का नाम बड़े दिमाग के साथ रखा गया है। इस जानकारी के लिए शुक्रिया

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  4. बेहतरीन जानकारी. आपकी प्रविष्टियों को केवल सजग पढ़ते जाइये, बाकी सारा काम प्रविष्टियों का वैभव ही किये डालता है.
    मैं मोहित हूं, इस चिट्ठे पर.
    यदि निरंतर टिप्पणी न दूं, तो इसका मतलब है कि इन प्रविष्टियों को पढ़्ने के बाद - "spell-bound tongue gets bound the tone".

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  5. आप जो लेख का निष्कर्षण करते है . उसका निष्कर्ष यह निकलता है की हमें बिना मांगे वह जानकारी विस्त्रत रूप से मिल जाती है जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते है .

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  6. हमारा निष्कर्ष यह है कि
    ये पोस्ट भी निष्क की मानिंद है.
    ==========================
    आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  7. आपकी दाद देनी पड़ेगी, एक सी एक बातें ढूँढ के इकट्ठे करते हैं और फिर एक लेख की शक्ल दे हमारा काम आसान कर देते हैं।

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  8. निष्कर्ष, आकर्षक लगा शब्दों के सफ़र में
    सीपो से मोती लाए, बड़े गहरे बहर से
    शब्दो के मोती गूँथ के माला जो बनेगी
    सीनो पे हसीनो के या कंठो पे सजेगी। [या …'साहित्य का भण्डार परिष्क्र्त ही करेगी']

    -मंसूर अली हाशमी

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  9. निष्क के बारे में पढ़ अच्छा लगा//

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  10. रोचक सफर है आपका ब्लॉग...........अच्छी जानकारी का शुक्रिया

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  11. राधिका बुधकर बेंगलूर से लिखती हैं-
    Wah dada ye to socha bhi nahi tha ki nishk se tanishk bna hoga ,wah tanishk me to bda intrest hain mujhe,wah sona Aur hire:-)waha ke aabhushn bhi kalatmk Aur sachche ,par itna achcha aapne tanishk ka arth samjhaya ,padhkar mja aa gya .

    dada Aapke pas koi khajana hain n in sab jankariyo ka?

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  12. सोच रहा हूँ आपके ब्लॉग पर एक कविता लिख दूँ !

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  13. कुषाण वंश के प्रमुख सम्राट् कनिष्क का नाम भी यही से आया होगा?

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  14. @अभिषेक ओझा
    कनिष्क का संदर्भ मुझे ध्यान था अभिषेक। मगर इस पर मुझे पुस्तकों में और नेट पर कोई ऐसा संकेत-संदर्भ नहीं मिला जो इसकी निष्क शब्द से सुसंगति साबित करता हो। मैने भी इस पर सोचा, मगर ध्वनिसाम्य के अलावा अर्थसाम्य की व्याख्या नहीं सूझी। आगे देखते हैं...

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  15. @विवेक सिंह
    शब्दों के सफर पर कविता!!!
    आपकी इच्छा का हम सम्मान करते हैं विवेक भाई:)

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  16. @विवेक,समीरलाल,हिमांशु,रंजन, दिगंबर नासवा,आशीष,धीरूसिंह,राधिका बुधकर,डॉ चंद्रकुमार जैन,मंसूर अली, तरुण, रंजन.

    -आप सबका शुक्रिया इस आलेख को पसंद करने के लिए। शब्दों के सफर के आप सब नियमित साथी हैं। आपके होने से सफर की रौनक है। बने रहें इस राह के सहयात्री...

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  17. मेरे लिए यह एकदम नई और अभूतपूर्व जानकारी है.....
    आपका बहुत बहुत आभार.....

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  18. निष्क के बारे में शोधपरक जानकारी. क्या हिरण्य भी इसी प्रकार की मुद्रा थी?

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  19. गजब की जानकारी है साहब . बहुत आभार आपका. पहले कभी ऐसी जानकारी नही थी.बहुत सुन्दर शब्दों मे उपयोगी जानकारी देते हैं आप.

    रामराम.

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  20. "निष्क" के बारे में पढ़ अच्छा लगा.......
    शत निष्को धनाढ़यश्च, शत ग्रामीण भूपतिः !
    शताश्व: क्षत्रियो राजा, शत श्लोकेन पण्डितः!!
    यहाँ 'निष्क' का प्रयोग बतलाता है कि यह कितना प्रचलित था; अपनें टीचर से 'सुभाषितानि' का यह श्लोक पढ़ते समय जब इसका मान पूंछा पूँछा था तो उन्होंने इसका मान सत्रह आने का बताया था !

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  21. कर्ष, निष्क, पण, कार्षापण आदि शब्दों से सफर प्रारम्भ करते हुए अब हम अपभ्रंश का सुख भोग रहे हैं | यदि आदिशब्द इतने सार्थक और सटीक थे तो निस्संदेह उस काल की शिक्षा / सभ्यता अत्यंत उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय रही होगी | इस देश की प्राचीन संस्कृति पर जो भारतीय गर्व न करे वह कृतध्न है |

    आपके लेखों में अक्सर पाठ्य मिलता है कि संस्कृत और अवेस्ता दो सगी बहनें हैं | इसका क्या तात्पर्य है ? उदघाटन करेंगे ?

    - आर डी सक्सेना

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  22. बढ़िया है... ज्यदातर लोगों की तरह मैंने भी सोचा नही था तनिष्क की उत्पत्ति निष्क से हुई. तनिष्क से तो लगभग रोजाना का ताल्लुक है, कमबख्तों से एक बार कुछ खरीदा था, आज तक मेसेज करते हैं. सोने के दाम १४००० के पार होने के बावजूद. पोस्ट के लिए शुक्रिया... हर बार की तरह
    मुंबई से सौमित्र

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  23. अजित भाई,कई दिनों से प्रवास पर रहनें के कारण ब्लाग देख नहीं पाया। आज देखा और वाँक्षित शब्द पर आपके लेख से संतुष्टि और आनंद से अभिभूत हूँ। निष्क की व्युत्पत्ति मैं भी नहीं ढ़ूढ़ पाया। एक श्ब्द है निकष, निचोड़-निष्कर्ष या सत्व के अर्थ में प्रयुक्त होता है, क्या उससे कोई सम्बन्ध बनता है?

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  24. आपका भी जवाब नहीँ! गम्भीर शोध और इससे ऊपर यह कि उसका मनोरंजक, ज्ञानवर्धक व रुचिकर सन्दर्भ युक्त प्रस्तुतीकरण। यह प्रतिक्रिया केवल इस प्रस्तुति की ही नहीँ अपितु अनेक - यह कहेँ कि लगभग सभी प्रस्तुतियों के लिये, मेरे विचार से उपयुक्त है!

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