![]() | शुक्रवार को मसिजीवी ने दीवान पर एक चर्चासूत्र (थ्रेड) देखा तो उस पर सार्थक पोस्ट लिखी मगर साथ ही साथ चर्चासूत्र का एक सिरा हमारी और तैरा दिया जो देर शाम हमें अपनी नेटझोली में मिला और संदर्भित पोस्ट हम देर रात घर पहुंचने पर ही पढ़ पाए। भाषा पर ऐसे विमर्श चलते रहना चाहिए, इसीलिए विजेन्द्रभाई के आग्रह पर हम भी कुछ गप-शप कर लेते हैं। |
नि श्चित ही अच्छा की विशेषण अवस्थाओं को अगर देखें तो विशेषण की मूलावस्था, उत्तरावस्था और उत्तमावस्था के जो रूप बनेंगे वे अच्छा-बहुत अच्छा-सबसे अच्छा होंगे। श्रेष्ठ शब्द पर इसकी आजमाइश करें तो श्रेष्ठ > श्रेष्ठतर > श्रेष्ठतम जैसे रूप बनेगे। इनकी तुलना में हिन्दी में अच्छाई के विशेषण रूपों में बेहतर और बेहतरीन शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा होता है। सवाल है कि बेहतर और बेहतरीन तो दो ही रूप हुए। इसका पहला रूप क्या है ? अच्छा शब्द की विशेषण अवस्थाएं बताने के लिए उसके आगे बहुत (अच्छा) और सबसे (अच्छा) जैसे उपसर्ग-विशेषण लगाने पड़ते हैं जबकि व्याकरण सम्मत प्रत्ययों की सहायता से बनें विशेषणों का प्रयोग करने से न सिर्फ भाषा में लालित्य बढ़ता है बल्कि उसमें प्रवाह भी आता है।
बेह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है और हिन्दी में इसकी आमद फारसी से हुई है। बेह का मतलब होता है बढ़िया, भला, अच्छा आदि। बेह की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द भद्र bhadra से मानी जाती है जिसका मतलब, शालीन, भला, मंगलकारी आदि होता है। फारसी में इसका रूप बेह हुआ। अंग्रेजी में गुड good के सुपरलेटिव ग्रेड(second) वाला बेटर better अक्सर हिन्दी-फारसी के बेहतर का ध्वन्यात्मक और अर्थात्मक प्रतिरूप लगता है। इसी तरह बेस्ट best को भी फारसी बेहस्त beh ast पर आधारित माना जाता है। अंग्रेज विद्वानों का मानना है कि ये अंग्रेजी पर फारसी, प्रकारांतर से इंडो-ईरानी प्रभाव की वजह से ही है। यूं बैटर-बेस्ट को प्राचीन जर्मन लोकशैली ट्यूटानिक का असर माना जाता है जिसमें इन शब्दों के क्रमशः बेट bat (better) और battist (best) रूप मिलते हैं।
ट्यूटानिक में भद्र का रूप भट bhat होते हुए bat में बदला। यह प्रभाव कब अंग्रेजी में सर्वप्रिय हुआ, कहना मुश्किल है मगर यह इंडो-ईरानी असर ही है। किसी ज़माने में सुपरलेटिव ग्रेड के लिए अंग्रेजी में गुड > गुडर > गुडेस्ट (good, gooder, goodest) चलता होगा इसका प्रमाण अमेरिकी अंग्रेजी की लोक शैली में मिलता है जहां ये रूप इस्तेमाल होते हैं। जाहिर है कि मूल यूरोप से आई अंग्रेजी ने यह प्रभाव अमेरिकी धरती पर तो ग्रहण नहीं किया होगा क्योंकि अगर ऐसा होता, तो प्रचलित अंग्रेजी में ये प्रयोग आम होते। निश्चित ही ट्यूटानिक प्रभाव से अछूते रहे चंद यूरोपीय भाषाभाषियों के जत्थे भी अमेरिका पहुंचे होंगे जो गुड > गुडर > गुडेस्ट कहते होंगे। बेह से विशेषण की तीनों अवस्थाएं यूं बनती हैः बेह > बेहतर > बेहतरीन।
गौरतलब है कि विशेषण अपनी मूलावस्था में अपरिवर्तनीय होता है। उसकी शेष दो अवस्थाओं के लिए ही प्रत्ययों का प्रयोग होता है। बेहतर में जो तर प्रत्यय है उसे कई लोग फारसी का समझते हैं जो मूलतः संस्कृत का ही है, मगर उत्तमावस्था के लिए वहां एक अलग प्रत्यय ईन (तरीन) बना लिया गया। यह प्रक्रिया अन्य विशेषणों के साथ भी चलती है जैसे बद > बदतर > बदतरीन , खूब > खूबतर > खूबतरीन, बुजुर्ग > बुजुर्गतर > बुजुर्गतरीन वगैरह। तर और तम दोनो प्रत्यय संस्कृत के हैं और विशेषण के सुपरलेटिव ग्रेड superlative grade में इस्तेमाल होते हैं, जिन्हें हिन्दी में उत्तरअवस्था और उत्तमअवस्था कहा जाता है। गौर करें कि उत्तर से ही बना है तर् प्रत्यय और उत्तम से बना है तम् प्रत्यय। यह हिन्दी की वैज्ञानिकता है कि किसी भी विशेषण की उत्तरावस्था/उत्तमावस्था बनाने के लिए उसके साथ तर/तम लगाना इस तरह याद रहता है। ज़रा देखें- उच्च > उच्चतर > उच्चतम। गुरु > गुरुतर > गुरुतम। महान > महत्तर > महत्तम। लघु > लघुतर > लघुत्तम आदि।
रविकांतजी द्वारा तरतम या तरतमता के संदर्भ में कही गई बात गले नहीं उतरती। स्वतंत्र रूप से तर् और तम् प्रत्ययों का कोई अर्थ नहीं है। यूं भी मूल शब्द में प्रत्यय लगने से नई शब्दावली बनती है, दो प्रत्ययों के मेल से कभी शब्द नहीं बनता। तब इनके मेल से बने तरतम और ता प्रत्यय लगने से इसके विशेषणरूप तरतमता का भी कोई अर्थ कैसे निकल सकता है, जबकि वे इसका अर्थ हायरार्की बता रहे हैं। जाहिर है गड़बड़ हो रही है। तरतम बेशक हिन्दी की मैथिली और मराठी भाषाओं में उपयोग होता है मगर यह तद्भव रूप में ही होता है जो कि लोकशैली का खास गुण है। सीधे-सीधे हिन्दी क्षेत्रों से जुड़े लोगों को मैने विरले ही इस शब्द का प्रयोग करते सुना है। खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, हरियाणा और राजस्थान में जहां मैं रहा हूं और इसका प्रयोग नहीं सुना। अलबत्ता इसके तत्सम रूप तारतम्यम् पर गौर करें तो पाएंगे कि इसका हिन्दी रूप तारतम्य खूब बोला जाता है और वहां इसका उच्चारण इंच मात्र भी तरतम की ओर खिसकता सुनाई नहीं पड़ता। आप्टेकोश के मुताबिक तारतम्यम् शब्द तरतम+ष्यञ्च के मेल से बना है। स्पष्ट है कि संस्कृत में तरतम धातुरूप में पहले से मौजूद है जिसमें क्रमांकन, अनुपात, सापेक्ष महत्व, अन्तर-भेद जैसे भाव हैं जो हिन्दी के पदानुक्रम जैसे सीमित भाव की तुलना में कहीं व्यापक अर्थवत्ता रखता है। अपन को व्याकरण का ज्यादा ज्ञान नहीं है। शायद अपनी बात कुछ कह पाया हूं, कुछ नहीं।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
बेह > बेहतर > बेहतरीन कह सकते है आपके प्रयास को . कितना श्रम साध्य कार्य है शब्दों का डी.एन .ऐ खोजना
ReplyDeleteहम भी तारतम्य ही जानते है,थे।
ReplyDeleteकमाल की जानकारी है.
ReplyDeleteरामराम.
वाह इतनी त्वरित प्रतिक्रिया... बहुत खूब ब्लॉग मसिजीवी पर जो शंकाए मन में रह गयी थी उन्हे आपने समुचित रूप से दूर किया.. क्या कहना जी आपका..
ReplyDeleteबहुत शोधपरक जानकारी !वाकई काफी कुछ बेहतर हुआ !
ReplyDeleteशब्द पुराने लेकर उनका,
ReplyDeleteअन्वेषण श्रेयस्कर है।
गहराई में इतना जाना,
सरल नही है, दुष्कर है।
बेहतर के बारे में इस प्रश्न ने मुझे भी काफी परेशान किया था. आज उत्तर मिल गया है.
ReplyDeleteइस चिट्ठे पर तो आप ने अपना एक गजब का छायाचित्र लगा रखा है. फेसबुक पर भी ऐसा ही कुछ लगा दें. हां, हल्की सी मुस्कराहट फिट कर दें तो सोने में सुहागा (बेहतर) हो जायगा!!
सस्नेह -- शास्त्री
क्या बात है अब इससे बेहतर तो भला क्या होगा।
ReplyDeleteस्पष्ट है कि संस्कृत में तरतम धातुरूप में पहले से मौजूद है जिसमें क्रमांकन, अनुपात, सापेक्ष महत्व, अन्तर-भेद जैसे भाव हैं जो हिन्दी के पदानुक्रम जैसे सीमित भाव की तुलना में कहीं व्यापक अर्थवत्ता रखता है।
यदि क्रमांकन, सापेक्ष महत्व जैसे अर्थ इसमें हैं तो अपने भाव में हायरार्की यहॉं मौजूद है। रविकांत का जो विमर्शवृत्त मुझे ज्ञात है वहॉं भी हायरार्की का अर्थ इन्हीं सदर्भों के लिए अधिक अभिप्रेत होता है।
इस विवेचनात्मक पोस्ट के लिए हार्दिक आभार
वाह... मज़ा आ गया आपके अन्वेषण में तो, वाह...
ReplyDeleteअरे वाह !!
ReplyDeleteये भी अच्छी रही नहीं तो मैं खुद से ही नाराज़ होती रहती....
आपका बहुत बहुत शुक्रिया ..
आप तो शब्दों का पोस्टमार्टम ही कर देते हैं...और यकीन जानिये इतनी गहन जानकारी देते हैं कि हम जैसों का साथ शब्दों के सफ़र में शब्द ही छोड़ कर चले जाते हैं...जितनी भी आपकी तारीफ करुँगी...मुझे पता है कम होगी...फिर भी कर रही हूँ...जितनी मेरी हैसियत है :)