बाइस-तेईस जनवरी की रात दो से ढाई बजे के बीच मेरे लैपटाप स्क्रीन पर एक चैट-खिड़की खुलती है।
-“जै जै”, मैने कहा।
-“एक बात कहूं” -“कहो”
-“डांटेंगे तो नहीं ?”
-“सुने बगैर आश्वासन नहीं दे सकता...”
–“तो फिर जाने दीजिए”
-“अबे तुम हमेशा पहेलियां क्यों बुझाते हो ?” मैं हत्थे से उखड़ गया।
-“मैं कल भोपाल आ रहा हूं। ग्यारह बजे पहुंच जाऊंगा”
-“क्या sssss” मैं चीखा, “...और अब बताने का होश आ रहा है तुम्हें”
-“देखिये, मुझे पहले ही पता था आप नाराज होगे। मैने कल ही फोन किया था। आपने नहीं उठाया था, किसी ने उठाया था। मैने उन्हें मैसेज दिया था। नाम भी बताया था-अंकित”
-“अबे तुम गलती....डांट क्या क्या बोले जा रहे हो? सीधे घर आ जाना ...”
-“मैने बताया था,आप ही नहीं थे।:)” गलती मेरी नहीं...”
-“ओहो...तो यह हुआ। खैर, तुम पहुंचते ही सीधे घर आ जाओ...”
यहां बात अंकित की हो रही है जो प्रथम नाम से एक टेक ब्लाग चलाते हैं। बहुत कम समय में इस ब्लाग ने अपनी उपयोगिता साबित की है। अंकित इंदौर में रह कर कम्प्यूटर इंजीनियरिंग पढ़ रहे हैं, शायद अभी पहला साल ही है । ब्लॉलिंग में उनकी जबर्दस्त दिलचस्पी है। हमसे उनका परिचय कैसे हुआ, नहीं पता। भाई चैटिंग के दौरान अचानक टपक पड़ते हैं। यूं ही बातचीत शुरू हुई। ये भी हमारी तरह देर रात तक नेट से चिपके रहनेवालों में हैं। अंकित हमसे बहुत डरता है। ऐसा वो कहता है। हर चैटिंग में एक-दो बार तो यह कहने का मौका आता ही है, “नाराज न हों तो एक बात पूछूं...” अब हमें सौजन्य-शिष्टाचार ज्यादा पसंद नहीं आता, सो चिढ़ जाता हूं...जिसे वो नाराजी कहता है।
खैर, अंकित का भोपाल आगमन हुआ, मगर उसी दिन मुझे किसी आयोजन में जाना था, जिसकी हमें खबर नहीं थी। भोपाल पहुंचते ही अंकित का फोन आया, हमने उसे घर की बजाय दफ्तर पहुंचने को कहा। वो निराश हुआ, बुरा हमें भी लगा मगर मजबूरी थी। अंकित सही वक्त पर दफ्तर पहुंच गया। हम उसे लिवाने दफ्तर के बाहर आए। बाबू साहब बड़े संस्कारी हैं। हमारे पैर की तरफ उनके हाथ बढ़ते देख हमने उन्हें रोकना चाहा पर ....यह तो पता चला कि संस्कारी बालक है। तभी अचानक हमारा ध्यान उनके सीने तक खुली शर्ट की तरफ गया। “इतने सारे बटन खुले रखते हो, रैगिंग का डर नहीं है क्या ?” “अरे सर... ” कहकर शर्माया हुआ बालक अबाऊट टर्न हुआ और गले तक सारे बटन बंद कर लिए। अंकित छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ का रहनेवाला है। उसके माता-पिता वहीं रहते है। पिता का निजी व्यवसाय है। दफ्तर में अंकित के साथ कॉफी पीते हुए गपशप होती रही। वो बहुत जल्दी-जल्दी मगर धीमें सुर में बोलता है। फोन पर तो मैं अक्सर “हें-हैं ?” ही करता रहता हूं....देबाशीष की ही तरह अंकित ने भी मुझे डोमेन नेम के फायदे बताए और ले डालने की सलाह दी। पर हमेशा की तरह मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा। अंकित ने कहा कि आपका ब्लाग देखकर नहीं लगता कि आप तकनीकी अनपढ़ हैं। हमने कहा कि सज्जा हमारी रुचि का विषय है तो उसमें थोड़े बहुत हाथ-पैर मार लेते हैं, बाकी कुछ पल्ले नहीं पड़ता। ये डोमेन क्या होता है?
-अगली कड़ी में दिनेशराय द्विवेदी जी के साथ कुछ पल…
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अंकित के साथ मुलाकात अच्छी और भली लगी।
ReplyDeleteअमित के बारे में जानकर अच्छा लगा. आपने तो डांटकर बच्चे को डरा ही दिया था.
ReplyDeleteशब्दों के ये सफर, अचानक बहुत याद आते हैं।
ReplyDeleteअपनी छवि मन के दर्पण में अंकित कर जाते हैं।।
अरे ये तो हमारे प्रदेश का है।भाऊ अच्छी लगी अंकित से मुलाकात्।
ReplyDeleteकभी इसी तरह हमारी मुलाक़ात भी होगी अचानक , अगर सब ठीक रहा तो
ReplyDeleteअच्छा लगा...बहुत अच्छा.
ReplyDelete=======================
अंकित को हमारी शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
आपके ब्लाग पर बहुत दिनों से नजर थी, आज लग ही गयी। यादों को समेटने का अच्छा सिलसिला है। आज के युवा वास्तव में बहुत कुछ सजृनात्मक कर रहे हैं बस आवश्यकता है उन्हें समझने की।
ReplyDeleteहमने कहा कि सज्जा हमारी रुचि का विषय है तो उसमें थोड़े बहुत हाथ-पैर मार लेते हैं, बाकी कुछ पल्ले नहीं पड़ता। ये डोमेन क्या होता है? ....ye baat achchi lagi---ankit ke saath pal do pal...dekhten hain unkaa blog...use hamaari bhi shubh kaamnaa
ReplyDeleteअंकित से भेंट का विवरण अच्छा लगा।
ReplyDeleteतकनीकी ज्ञान में शून्यवत हूं। आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं? अंकित का सम्पर्क-सूत्र मुझे दीजिएगा। यह मत कहिएगा कि अंकित के ब्लाग से ले लूं।
मेरा तो नेट भतीजा है
ReplyDeleteपर मुझसे अभी तक मिला ही नहीं
और आपने बाजी मार ली
शब्दों के सफर में भी शहंशाह है
यहां भी बादशाह बन गए
और बादशाह से तो सभी डरते हैं
सिर्फ बादशाह के सिवाय
तो अंकित क्यों नहीं डरेगा
पर मुझे है इंतजार कि
अंकित मुझसे कब मिलेगा
या मुझे ही उससे मिलने के लिए
कोई उपाय करना पड़ेगा।
एक नेट भतीजी भी है मेरी
उससे तो मैं मिल चुका हूं
कोटा रेलवे स्टेशन पर मिली थी
जब मैं गोवा जा रहा था
पर मुझे भी फोटो खींचना
नहीं रहा याद
ये भूलना भी क्यों नहीं
आता है याद
।
डॉक्टर है वो
जानते हैं आप
डॉक्टर गरिमा तिवारी है उसका नाम
।
ये नेट रिश्ते हैं
बहुत प्यारे लगते हैं
शब्दों के सफर में जैसे
अपने सारे लगते हैं
जैसे शब्द अपने
वैसे सब अपने।
तीनों एक नाम राशि के हैं
मैं, अजित और अंकित
।
अच्छी रही मुलाक़ात.
ReplyDeleteआजकल आप बहुत सारे ब्लोग साथियोँ से मिल रहे हैँ -
ReplyDeleteअँकित को सफलता मिले -
- लावण्या
बहुत अच्छी लगी यह मुलाकात.
ReplyDeleteरामराम
आपने तो पढ़वा दिया जी.. पर अब अंकित से बाकलम ख़ुद भी लिखवा लीजिये.. हमारी तो हेल्प भी की है कई बार अंकित ने..
ReplyDeleteअंकित काफी मददगार बंदा है.. नेट पर अक्सर चेट हो जाती है.. पुछता है.. कैसे है आप.. मेरा जबाब होता है "ठीक" और दुसरा सवाल "और आदि"..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगता है.. अभी फोन पर भी बात हुई.. उसके लिये बहुत शुभकामनाऐं..
हम लोग बच्चों की बात पर कभी यकीन नहीं करते। बाद में जब बच्चा बिल गेट्स बन जाता है तो उसका श्रेय लेने से भी नहीं चूकते।
ReplyDeleteवाकई सच कहा। अंकित के सुंदर भविष्य के लिए हमारी तरफ से ढेरों शुभकामनाएं।
कुल मिलाकर हम समझ गए आपके शहर में उतर कर किसे फोन करना है ....
ReplyDeleteअंकित को शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअंकित से अपनी चैट में ऐसे ही मुलाकात हुई थी. न जाने कब बस बातचीत शुरू हो गयी . नेक बन्दा है . अंकित के रहते ये भरोसा रहता है कि तकनीकी के मामले में कोई भी परेशानी हुई तो कोई तो है जिससे चर्चा की जा सकती है .
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा जी यह बालक! बाकी, तकनीक शून्य हम जैसों के लिये तो बालक नहीं, आचार्य है।
ReplyDeleteशुक्रिया अंकित से मिलवाने के लिए।
ReplyDeleteतो अंकित भैया कभी अपने घर आओ और रायपुर तरफ आना हो तो हमसे भी टकरा जाना जी।
वैसे ब्लॉग अब और भी ज्यादा आकर्षक हो उठा है।
अंकित थोड़ा तेज़ है लेकिन इतना बुरा भी नहीं है!
ReplyDeleteअंकित की हंसी के कूटार्थ तो अपनी चैटिंग के शुरुआती दिनों में समझ ही नही पाते थे हम. मैं कुछ कहूं(लिखूं) तो अंकित शुरु - हा, हा, हा, हा.
ReplyDeleteअंकित की सहायता ने हमें भी बहुत कुछ महसूस करने लायक ब्लोगर बना दिया है. जब तब सहायता लेता रहता हूं उसकी.
हां, ये फोटो जो आपने लगाये हैं इतने सुन्दर-सुन्दर, खास कर दूसरा वाला जिसमें कितने गम्भीर दिख रहे हैं यह हा, हा, ही, ही, साहब.
मैंने तो बस वही चश्मे वाली या सदा टेढ़े हो कर खड़े अंकित की फोटो देखी थी- हर प्रोफाइल में.
अरे भई, इतनी अच्छी पोस्ट पढकर कोई भी तारीफ ही करेगा, डांटने की बात कहां से आती है।
ReplyDeleteअंकित से हुई आपकी मुलाकात दिलचस्प लगी .. शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है भाउ, अंकित से मिलवाने का शु्क्रिया… ये डोमेन नेम की जानकारी विस्तार से लेना पड़ेगा… कितना नगदऊ खर्चा होगा ये भी पूछना पड़ेगा… कमाई हो ना हो, खर्चा करते रहना चाहिये… :) :)
ReplyDeleteबहुत खुशमिजाज लड़का है..अभी बहुत दिनों से उससे बात नहीं हुई,अंतिम बार २ जनवरी को हुई थी .
ReplyDeleteअनुभव में हम भले कुछ धनी हों पर आज के इन बच्चों के तकनीकी ज्ञान के आगे तो हम निरे गंवार टाईप ही हैं. इनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.
ReplyDeleteआपका आभार.अब हम भी देखा और सीखा करेंगे इनके ब्लॉग पर जाकर...
अंकित के बारे में अब क्या कहूँ एक साथ १० लोगो के साथ चैट कर लेता है सबकी मदद के लिए हमेशा से तैयार मिलता है | मेरा तो बहुत अच्छा मित्र है आपका धन्यवाद की आपने इसे यहाँ पोस्ट में जगह दी है |
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