Saturday, March 14, 2009

मुफ्ती के फ़तवे…[संत-11]

पिछली कड़ियां:   glad_071508_chisti2_thumb[41] ख्वाजा मेरे ख्वाजा[संत-9] Colours-of-Holi-Festival-India-Print-C10100509[1] ये मतवाला,वो मस्ताना[संत-10]
मुफ्तियों को शरीयत के आईने में लोगों को राह दिखाने की जो जिम्मेदारी मिली थी उसमें धीरे-धीरे राजनीति प्रमुख होती चली गई। चिन्तन(क़ियास) का स्थान रूढिवादी सोच ने ले लिया।Gérôme_-_Mufti_Reading_in_His_Prayer_Stool
स्लामी संतों की आध्यात्मिक श्रंखला में ही आते हैं मुफ्ती। हालांकि मुफ्ती शब्द सूफी परंपरा के आध्यात्मिक गुरुओं की श्रेणी का नहीं है। आमतौर पर दरवेश, सूफी, कलंदर, फकीर आदि साधुपुरुष जहां इस्लाम के दायरे से कभी बंधे नहीं रहे और इस्लामी धर्मपद्धति शरीयत के हिसाब से नहीं चले इसीलिए इनमें से कई संतों को बेशरा भी कहा गया। इन्होंने जहां एकात्म ब्रह्मज्ञान का प्रचार-प्रसार धर्म की पारम्परिक प्रचलित व्यवस्था से हटकर किया वहीं मुफ्ती इस्लाम की धार्मिक व्यवस्था का प्रमुख हिस्सा रहे है। मुफ्ती वह धर्मशास्त्री है जो कट्टर मुस्लिम धर्मप्राण लोगों की सामाजिक समस्याओं का निराकरण इस्लामी कानून के मद्देनजर प्रश्नोत्तर शैली में करता है और अंत में उसके आधार पर काग़ज़ के पुर्जे पर एक फ़तवा जारी करता है जो उस विवाद, मुद्दे या समस्या के संदर्भ में आइंदा भी मिसाल के तौर पर देखा जाता है। फ़तवा fatwa और मुफ्ती mufti में गहरी रिश्तेदारी है।
मुफ्ती शब्द बना है अरबी के अफ्ता afta से जिसमें वर्णन करना या जानकारी देना जैसे भाव हैं। इसका मतलब सामान्य कानूनी (शरई) सलाह भी है। इसके मूल में है सेमिटिक धातु प-त-व जिसका अरबी रूप होता है फ-त-व यानी सलाह, मश्वरा, राय देना। फतवा शब्द के मूल में भी यही धातु है। फतवा का मतलब है धार्मिक सलाह, व्यवस्था अथवा निराकरण। फतवा के बहुवचन रूप फतावी या फतावा हैं। मुफ्ती के पास किसी मामले में राय मांगने और फ़तवा जारी करने की पहल इस्तफ्ता कहलाती है। आमतौर पर लोग फतवा का मतलब निर्णय से लगाते हैं मगर ऐसा नहीं है। फतवा महज सलाह या राय है जिस पर अमल करना ज़रूरी नहीं है। मुफ्ती से अभिप्राय एक ऐसे प्रमुख धार्मिक व्यक्ति से है जो शरीयत के दायरे में विभिन्न मुद्दों पर लोगों को धर्मसम्मत सलाह देता है।
स्लाम के सुन्नी पंथ के तहत मुफ्ती का पद बहुत महत्वपूर्ण है। इस्लामी कानून शरीयत shariat के तहत इस्लाम का कोई भी अनुयायी मुफ्ती से सलाह ले सकता है। मुफ्ती इस्लामी कानून अर्थात शरीयत की व्याख्या चार प्रमुख दृष्टियों से करते हैं- कुरान, हदीस, इज्मा और क़ियास। शरीयत का अर्थ होता है मार्ग, रास्ता। इसकी व्युत्पत्ति शर् से बताई जाती है जिसमें आत्मज्ञान, इल्हाम अथवा दिव्यबोध का भाव है। शरीयत के चार प्रमुख स्रोतों में कुरान koran हदीस hadith , इज्मा ijma और कियास qiyas आते हैं। शरीयत में कुरान और हदीस को ही सर्वोपरि माना गया है। कुरान तो पैगंबर के वचनों का संग्रह है और उसे खुदाई माना जाता है जबकि हदीस में उनके हवाले से कही गई बातें लिखी हैं। विद्वानों का मानना है कि इसमें समय समय पर मिलावट होती रही है। ऐसा हर धर्म में, हर काल में होता रहा है। जब कुरान और हदीस की रोशनी में किसी मसले का हल या मार्गदर्शन नहीं मिलता है तब
fatwa_060108-1 ...प्रगतिशील उलेमा कियास के मार्ग में इस्लाम के उदारवादी भविष्य की राह देखते हैं...
इज्मा ऐ उम्मत अर्थात विद्वानों की मजलिस में बहुमत के आधार पर आम सहमति बनाई जाती है। अगर कोई पेचीदा मामला हो या ऐसी परिस्थिति पर फैसला लेना हो जिसका कुरान और हदीस की रोशनी में भी कोई हल न निकल रहा हो तब कियास (क़यास) के जरिये अर्थात आत्मज्ञान, अनुमान, स्वविवेक  से मुफ्ती अपनी राय कायम करता है और फ़तवा सुनाता है। प्रगतिशील नज़रियेवाले इस्लामी विद्वान शरीयत के इसी स्रोत में इस्लाम के नवोत्थान और उदारवादी भविष्य का मार्ग देखते हैं।
मुस्लिम आबादी वाले मुल्कों में मुफ्ती के अलग अलग रूप हैं मसलन अल्बानिया में इसे मिफ्ती, क्रोएशिया में मुफ्तिजा, रोमानिया में मुफ्त्यू, तुर्किक में मुफ्तू कहा जाता है। कई इस्लामी राष्ट्रों में मुफ्ती न्यायाधीश की तरह एक सरकारी पद होता है फर्क यही है कि उसके दिए गए फतवों को मानने के लिए कोई बाध्य नहीं होता। बीते कुछ वर्षों से भारत में भी मुफ्तियों के फ़तवे बहुत चर्चित हो रहे हैं। इन पर अमल कोई करे न करे मगर अपनी अनोखी सोच और प्रचारप्रियता के चलते थोक के भाव फ़तवे जारी करनेवाले मुफ्तियों की वजह से उनके पंथ के प्रति अन्य धर्मों के लोगों में गंभीरता का भाव कम हुआ है। सूफियों ने तौहिद अर्थात एकेश्वरवाद को अनलहक़ की रोशनी में देखा। निरंतर आत्मज्ञान की राह पकड़ी और ईश्वर, आत्मा, जीव,संसार के बारे में चिंतन करते रहे इसलिए एक ऐसा आध्यात्मिक साम्राज्य खड़ा कर पाए जिसकी बादशाहत किसी के पास नहीं थी। वहीं मुफ्तियों को शरीयत के आईने में लोगों को राह दिखाने की जो जिम्मेदारी मिली थी उसमें धीरे-धीरे राजनीति प्रमुख होती चली गई। चिन्तन (क़ियास) का स्थान रूढिवादी सोच ने ले लिया।

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10 comments:

  1. अत्यंत ज्ञानवर्धक एवं शोधपरक। किन्तु सावधानी रखें। आशा है आगे भी जारी रहेगा यह विश्लेषण।

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  2. अच्छी जानकारी। फ़तवा का मतलब सलाह देना होता है और आजकल वो इस रूप में हो गया कि डराता ही है!

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  3. बहुत...बहुत उपयोगी
    सार्थक जानकारी.
    मुफ्ती और फ़तवा का
    ये रिश्ता और कियास यानी क़यास
    के संदर्भित अर्थ की चर्चा आपकी इस
    पोस्ट की अनुपम विशेषता है......खैर
    आप तो हर दिन हमें क़यास का मौका
    देते हैं जिससे निरंतर भीतर के अँधेरे कोने
    जगमगा उठते हैं...सच मैं रोमांचित हूँ पढ़कर
    और नत मस्तक भी आपके योगदान के प्रति.
    आज के दौर में ऐसी साफ-सुथरी सधी हुई, समर्पित,
    समावेशी व सहभागी शब्द / ज्ञान आराधना दुर्लभ है.
    =======================================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  4. अच्छी जानकारी। फतवा आज कल राजनीति और आत्मप्रचार का शिकार हो चला है।

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  5. इतनी सारी जानकारी मिली. मुफ्ती, फतवा, हदीस और कियास के बारे में मिली जानकारी बहुत उपयोगी है. ऐसी जानकारियाँ तमाम तरह के पूर्वग्रह दूर करने में सहायक होंगी.

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  6. मैं तो मुफ्तखोर को मुफ्ती समझता था ,जैसे मुफ्ती मोहम्मद सईद

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  7. ्फतवा तो सलाह ही है जो नहीं सुनी गई तो छडी से समझाई जाती है:) शायद इस लिए कि उसका रिश्ता फतह से भी हो!

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  8. यानि एक अच्छे भले शब्द को डरावना बना दिया धर्म के ठेकेदारों ने.

    रामराम.

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  9. फतवियत चाहे जो हो - सलाह या फाइयाट (fiat)। बड़ी वाहियात लगती है।

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  10. जिस पन्थ की नींव ही बहु ईश्वरवाद,पण्डे पुरोहितवाद और आडम्बरवाद के चंगुल से धर्म को मुक्त कर धर्म के उद्दात स्वरुप में इसके सरलीकरण के लिए हुआ...वही आज कट्टरता का पर्याय बनकर रह गया है...फतवा अब सलाह और सुझाव नहीं बल्कि एक धमकी भर रह गया है.

    इस्लाम में मुझे जो सबसे अच्छी बात लगती है वह यह कि इसमें समूह को संगठित करने और रखने की अद्भुद क्षमता है....इस क्षमता का प्रयोग यदि सकात्मक रचनात्मक दिशा में किया जाय तो क्या से क्या हो सकता है....
    पर लोग यह विस्मृत कर जाते हैं कि संकीर्णता पंथ को छोटा करती है,जहाँ से आहात हो टूटकर यह शाख निकली थी,इसे सकारात्मक उर्जा और पोषण न मिला तो यह शाख मुरझाकर नष्ट भी हो सकती है...

    कहना न होगा.....अद्भुद विवेचना की है आपने....बहुत बहुत सुन्दर....

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