व योवृद्ध व्यक्ति के लिए हिन्दी में बुजुर्ग शब्द बड़ा आम है। बुजर्ग में कई प्रत्यय लगने से बुजुर्गवार, बुजुर्गीयत, बुजुर्गतर, बुजुर्गतरीन, बुजर्गाना जैसे कई और भी शब्द बने हैं जिनसे बुजुर्ग शब्द की वरिष्ठता, महत्ता और वरीयता ही पता चलती है। तुर्की, फारसी में इसके बोजोर्ग bozorg जैसे रूप भी प्रचलित हैं।
बुजुर्ग शब्द हिन्दी-उर्दू में फारसी से आया है मगर यह मूलतः इंडो-ईरानी भाषा परिवार से ताल्लुक रखता है और इसकी रिश्तेदारी संस्कृत से है। संस्कृत में एक शब्द है वज्र वज्रम्। ईरानी के प्राचीन रूप अवेस्ता में भी इसका वज्र रूप ही मिलता है जिसका अर्थ है महान, शक्तिशाली, कठोर, चमक, बिजली होता है फिर वज्रका, वजारका होते हुए अवेस्ता से मध्यकालीन फारसी में इसने वुजुर्ग रूप धारण किया जो बोजुर्ग
या बुजुर्ग बन कर प्रचलित है। बुजुर्ग में भी मूलतः आदरणीय, महान, प्रभुतासम्पन्न जैसे भाव ही हैं। मगर कालांतर में इसके साथ वरिष्ठता के विभिन्न भाव जुडते चले गए जिनका अर्थ विस्तार रसूख, प्रभाव में हुआ और बाद में आयु के उत्कर्ष के तौर पर ये सब बुजुर्ग में सिमट गए। पहले बड़ी आबादियों के साथ भी बुजुर्ग शब्द लगता था जैसे रामपुरबुजुर्ग। हिन्दी में भी वज्र के विविध रूप हैं जैसे बज्जर, बजर आदि। जहां बज्जर का मतलब कठोर, मुस्टण्ड होता है वहीं बजर का मतलब तड़ित या विद्युत होता है।
रामभक्त हनुमान के बजरंगबली नाम के पीछे भी वज्र शब्द का योगदान है। संस्कृत में वज्रः या वज्रम् का अर्थ है बिजली, इन्द्र का शस्त्र, हीरा अथवा इस्पात। इससे ही हिन्दी का वज्र शब्द बना है। इन्द्र के पास जो वज्र था वह महर्षि दधीचि की हडि्डयों से बना था। हनुमान वानरराज केसरी और अंजनी के पुत्र थे। केसरी को ऋषि-मुनियों ने अत्यंत बलशाली और सेवाभावी संतान होने का आशीर्वाद दिया। इसीलिए हनुमान का शरीर लोहे के समान कठोर था। इसीलिए उन्हें वज्रांग कहा जाने लगा। अत्यंत शक्तिशाली होने से वज्रांग के साथ बली शब्द जुड़कर उनका नाम हो गया वज्रांगबली जो बोलचाल की भाषा में बना बजरंगबली। वज्रांग का स्वतंत्र तद्भवरूप बजरंगी या बजरंग भी बना। इन्हें मरूत यानी वायु देवता का पुत्र भी कहा जाता है इसलिए इनका एक नाम मारूति यानी
वायु के समान वेगवान भी कहा जाता है। संस्कृत में मरुत का अर्थ होता है वायु, हवा, पवन। मरुतः पवनदेव का विशेषण था। इसका एक रूप मारुत भी है जिससे मारुति शब्द बना जो कि पवनसुत अथवा मरुतसुत के तौर पर ही हनुमान का एक विशेषण है।
अंग्रेजी का एक शब्द है चिन chin जिसका मतलब होता है चिबुक, ठुड्डी या ठोड़ी। यानी होठों के नीचे की हड्डी का उभार। यह इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का शब्द है। संस्कृत में इसके लिए हनुः शब्द है जिसका अर्थ भी ठोड़ी या जबड़ा होता है। इसकी मूल धातु है घनु जिसका मतलब कठोर है। ग्रीक में ठोड़ी या चिबुक को गेनुस और जर्मन में किन/किनुस कहते हैं। किन का ही विकसित रूप अंग्रेजी का चिन है। यूरोपीय भाषाओं के ये सभी शब्द मूल भारोपीय धातु genw या गेनु से बने हैं जिसका अर्थ भी यही है। संस्कृत की मूल धातु घनु से परवर्ती संस्कृत में ग ध्वनि का लोप हो गया और इसका रूप बना हनुः । गौरतलब है कि भक्तशिरोमणि हनुमान hanuman के नामकरण में भी इसी चिन या हनुः का योग रहा है। पुराणकथा के अनुसार जन्म लेते ही महाबली फल समझकर सूर्य को खाने लपके। सूर्य को इनकी पकड़ से छुड़ाने के लिए इन्द्र ने अपने वज्र से इन पर प्रहार किया जिससे इनका जबड़ा यानी हनु टेढ़ी हो गई। तभी से इन्हें हनुमान कहने लगे। –सम्पूर्ण संशोधित पुनर्प्रस्तुति
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जय बजरंगबली, श्रेष्ठ
ReplyDeleteअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर औरत/महिला के मायने बताएँगे क्या ?
जो अवश्य ही प्रेरक होगा
"रामपुरबुजुर्ग"!अब आई बात समझ में! लगे रहें! साधुवाद!
ReplyDeleteबुर्ज में तो शीर्ष का भाव है। परा नहीं बुजुर्ग में बुर्ज निहित है या नहीं।
ReplyDeleteफ़ारसी में बुज़ुर्ग मायने बड़ा। बड़ी आकार की कार के लिए भी बुज़ुर्ग इस्तेमाल किया जाएगा.. आन कार बुज़ुर्ग अस्त। बाद में इसका अर्थ उर्दू में वृद्ध के लिए किया जाने लगा जबकि फ़ारसी में वृद्ध के लिए पीर शब्द है।
ReplyDelete@अभय तिवारी
ReplyDeleteभाषा में अर्थविस्तार और अर्थसंकोच होता रहता है। फारसी के बुजुर्ग में बड़ा के अर्थ में विशाल वाले भाव के साथ वह बोध भी है जो संस्कृत के मह् में निहित है। इसी तरह पीर में सिर्फ वृद्ध का भाव नहीं है बल्कि प्रमुख का भाव है जिसमें गुरू, मार्गदर्शक और सर्वोच्च जैसे अर्थ भी निहित है। पीर का जन्म भी वैदिक परम् से ही हुआ है। सर्वोच्च यानी वृद्ध, सर्वोच्च यानी प्रमुख, सर्वोच्च यानी गुरू आदि...
सफर में साझेदारी का शुक्रिया ...आपका साथ हमेशा अच्छा लगता है।
बुजुर्ग और वज्र का रिश्ता किसी जमाने में तो एकदम ठीक और सटीक था, लेकिन अब के माहौल में बुजुर्ग तो बेचारे हो गये हैं कहाँ का वज्र, वे तो लकडी भी नही रहे ।
ReplyDeleteबजरंग की उत्पत्ति आज आपसे ही ज्ञात हो पाई। अब तक उलझन बनी हुई थी।
ReplyDeleteबुजुर्ग और बजरंगवली .धन्य है आप इनका अर्थ बताया .हम तो बजुर्ग को कमजोर मानते है
ReplyDeleteसचमुच मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला
ReplyDeleteबजरंग और हनुमान दोनों की सुन्दर जानकारी, उतम व्याख्या है...............
ReplyDeleteआपका ब्लॉग असकी हर पोस्ट सजा कर रखने वाली होती है,
अजित जी मैं बस इतना कहूँगा कि इस पोस्ट से बहुत जानकारी मिली । धन्यवाद
ReplyDeleteबजर का मतलब तड़ित या विद्युत होता है --
ReplyDeleteतभी इन्द्र के हाथ का आयुध वज्र " तड़ित या विद्युत " आकार जैसा दीखाया जाता है -
हनु से हनुमान की उत्पत्ति तो किसी संस्कृत श्लोक आदि की व्याख्या में पढ़ी थी, हाँ विस्मृत ज़रूर हो गयी थी परंतु आपकी व्यख्या में इसके अतिरिक्त बजरंगबली की भी व्याख्या और सम्बन्धित शब्दों की आपसी रिश्तेदारी भी खूब अच्छी लगी!
ReplyDeleteये ब्लॉग,जिसका नाम शब्दों का सफ़र है,इसे मैं एक अद्भुत ब्लॉग मानता हूँ.....मैंने इसे मेल से सबस्क्राईब किया हुआ है.....बेशक मैं इसपर आज तक कोई टिप्पणी नहीं दे पाया हूँ....उसका कारण महज इतना ही है कि शब्दों की खोज के पीछे उनके गहन अर्थ हैं.....उसे समझ पाना ही अत्यंत कठिन कार्य है....और अपनी मौलिकता के साथ तटस्थ रहते हुए उनका अर्थ पकड़ना और उनका मूल्याकन करना तो जैसे असंभव प्रायः......!! और इस नाते अपनी टिप्पणियों को मैं एकदम बौना समझता हूँ....सुन्दर....बहुत अच्छे....बहुत बढिया आदि भर कहना मेरी फितरत में नहीं है.....सच इस कार्य के आगे हमारा योगदान तो हिंदी जगत में बिलकुल बौना ही तो है.....इस ब्लॉग के मालिक को मेरा सैल्यूट.....इस रस का आस्वादन करते हुए मैं कभी नहीं अघाया......और ना ही कभी अघाऊंगा......भाईजी को बहुत....बहुत....बहुत आभार.....साधुवाद....प्रेम......और सलाम.......!!
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