... किस तरह देखते ही देखते एक स्वाद-लोलुप रसना स्वादिष्ट गोलगप्पों को ‘गुप्त’ कर देती है...
चा टवाले खोमचों पर सबसे ज्यादा खपत पानीपूरी की होती है जिसे गोलगप्पा भी कहते हैं। मैदे की लोई को जब छोटे आकार में बेला जाता है तो तलने पर ये फूल कर कुप्पा हो जाती हैं इसीलिए इन्हें गोलगप्पा भी कहते हैं। इन्हें पानी पताशा, पानी पतासा भी कहते हैं जो शुद्ध रूप में पानी बताशा है मगर मुख-सुख के सिद्धांत पर पानी के साथ पताशा शब्द चल पड़ा। मुंबई की चौपाटी पर भेलपुरी प्रसिद्ध है। मज़े की बात यह कि भेलपूरी में खस्ता पूरी को कुचल कर परोसा जाता है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में इन्हें फुलकियां भी कहा जाता है।
पूरने की क्रिया से बनी कचौरी और पूरी ही पानीपूरी में भी समायी है, अलबत्ता पानीपूरी का आकार काफी छोटा होता है। कचौरी और पूरी बने हैं संस्कृत के पूरिका से। यह शब्द बना है पूर् धातु से जिसमें कुछ भरने, समाने और संतुष्टि का भाव है। कचौरी और पूरी दोनों में ही दाल भरी जाती है। यहां पानीपूरी के साथ थोड़ा उलटा मामला है। पानी पूरी को भी पूरा जाता है अर्थात इसमें भी स्टफिंग होती है मगर पकाने से पहले नहीं बल्कि इसे खाने के वक्त। इसकी खास स्टफिंग है पानी। इसे फोड़ कर इसमें पानी भरा जाता है। कुछ उबले आलू-बूंदी का नाम मात्र का मसाला भी साथ में होता है। असल भरावन पानी की होती है जो खट्टा-तीखा, खट्ठा-मीठा या सिर्फ मीठा हो सकता है। इसीलिए इसे पानीपूरी कहा जाता है। पानी पूरी के लिए सबसे मुफीद नाम गोलगप्पा ही है और काफी मशहूर भी।
पानीपूरी, फुलकी या पानी पताशा जैसे नाम इलाकाई पहचान रखते हैं मगर इस स्वादिष्ट खोमचा पक्वान्न के गोलगप्पा नाम को अखिल भारतीय सर्वस्वीकार्यता मिली हुई है। इसकी छोटी छोटी पूरियों के गोल-मटोल आकार की वजह से गोल शब्द तो एकदम सार्थक है। संस्कृत की गुडः धातु का अर्थ होता है पिंड। गोलः शब्द इससे ही बना है जिसका अर्थ होता है गोल, मंडलाकार वस्तु। मगर गप्पा का क्या अर्थ हुआ? आमतौर पर मुंह के रास्ते किसी चीज़ को निगलने के लिए गप् शब्द का प्रयोग होता है। इसे देशज शब्द बता कर इसकी व्युत्पत्ति को अज्ञात खाते में डाला जाता रहा है। मगर ऐसा नहीं है।
गप् शब्द पर गौर करें तो किसी स्वादिष्ट पदार्थ को समूचा या
मीठे बताशेऔर ये पानी बताशे
…पानी पूरी की छोटी छोटी फुलकियों को हवा से भरी पूरी के अर्थ में बताशा कहना तार्किक है…
अब आते हैं पानी पताशा पर। यह बना है बताशा शब्द से जिससे सब परिचित है। बताशा एक ऐसी खुश्क मिठाई है जो शकर से बनती है। जॉन प्लैट्स के कोश में बताशा की व्युत्पत्ति वात+आस+कः बताई गई है। स्पष्ट है कि वाताशकः>वाताशअ>वाताशा होते हुए बताशा शब्द बन गया। इसका अर्थ हुआ ऐसा पदार्थ जिसके अंदर वात यानी हवा भरी गई हो। इसे बनाने की प्रक्रिया के तहत इसमें हवा रखी जाती है। बताशा अंदर से खोखला होता है और चारों और शकर की गोल पतली परत होती है। बताशा मुंह में रखते ही घुल जाता है इसलिए बताशा सा घुलना एक मुहावरा भी बन गया है। सबमें जल्दी घुलने-मिलने के अर्थ में इसका प्रयोग होता है। प्रायः हर भारतीय तीज-त्योहार-पर्व पर भोग सामग्री का महत्वपूर्ण अंग है इसीलिए रोज उत्सवी ठाठ दिखाने वाले लोगों के लिए बताशे फोड़ना जैसा मुहावरा भी चल पड़ा है। इस तरह से पानी पूरी की छोटी छोटी फुलकियों को हवा से भरी पूरी के अर्थ में बताशा कहना तार्किक है। इसके लिए फुलकी शब्द इसीलिए प्रचलित हुआ क्योंकि ये फूली रहती हैं। गोलमटोल फूली हुई रोटी फुलका कहलाती है तो उसका छोटा रूप हुआ फुलकी।
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ReplyDeleteनेता जी अन्दर से पोले, ऊपर से होते फूले,
ReplyDeleteजो मक्कारी में, अपने ही लोकतन्त्र को भूले।
पानी-पूरी जैसे, अन्दर से खाली होते हैं,
चौराहों गलियारों में, ये सजे हुए होतें हैं।
सही समय पर वडनेकर ने इनकी खोली पोल,
बिन पानी के कुप्पे जैसे नेता होते गोल मटोल।
सफर ने सुबह सुबह मुहँ में पानी ला दिया!
ReplyDeleteभाई हमने कल ही इनका आनंद लिया है और इस बारे में जानकर और अच्छा लगा.
ReplyDeleteरामराम.
इन बंगाल, तिस इस कॉल्ड'फुचका'!
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteआजकल अपना सुबह का नाश्ता
इधर ही हो जाता है...लेकिन
'पकाने के पहले के भराव' और
'खाते वक्त के भराव' का फ़र्क
किस तरह 'कच + पूरिया' यानी कचौरी और
'पानीपुरी' को अलगाता है, यह हम आज ही समझे. सच...!
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सालों से गपागप गुपचुप खाते आ रहे हैं पर आज पता चल रहा है कि गुपचुप,गुपचुप क्यों कहलाता है।मज़ा आ गया ऐसा लगा शाम को किसी ठेले पर खड़े होकर गुपचुप गडप कर रहे हो।
ReplyDeleteकृपया खान पान के बारे मे शाम को ही लिखा करे सुबह -सुबह पढ़ कर मुँह मे पानी आता है . और आज तो गोलगप्पों की तो बात ही क्या करे . मय फोटो के चर्चा तो और जीभ को लपलपाती है .
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ReplyDeleteलड़कियों की तो कमजोरी होती है गुपचुप यानि पानी बतासे ..जानकारी का धन्यवाद.
ReplyDeleteआज शाम ४:३० बजे इस पोस्ट का प्रायोगिक परिक्षण किया जायेगा :-)
ReplyDeleteअजी ये तो हमारी भी पसंदीदा चीज है इसीलिए लपक के आ गए।
ReplyDeleteबात गुपचुप से शुरु कर कहां से कहां तक पहुंच गई, बहुत कुछ समझ में आ गया।
शुक्रिया।
haridwar ki chat wali gali yaad aa gayi. Chaat se yaad aaya. Iska kya arth hai? aajkal bore aadmi ko chaat kehne ka prachalan bhi hai.
ReplyDelete@मुनीश
ReplyDeleteबंगाली फुचका की जानकारी के लिए शुक्रिया मुनीश भाई...
कानपुर का चौक बाजार इसी पानी पुरी के लिए प्रसिद्ध है .... पहले तो हर दूसरी शाम को जाते थे पानी पूरी खाने सब पीछे छुट गया ..आज आपने पुराने दिन याद दिला दिए जब हम दोनों पानी पूरी खाने की शर्त लगाते थे और जाने कितनी पानी पूरी खा जाते थे ...पुराने दिनों की याद ताज़ा करने के लिए शुक्रिया ..
ReplyDeleteपानी बताशा का नाम सुनकर मुँह में पानी आ गया तो आपके यहाँ आ गए और ढेर सारी जानकारी लेकर जा रहे है। सच इस पानी बताशा का स्वाद ही कुछ और है।
ReplyDeleteबहुत मुंह में पानी लाने का इंतजाम है पोस्ट में! :-)
ReplyDeleteजी इस पोस्ट को पढ़ कर किसी कवि के कहे कि इतनी नाज़ुक है कि बच्चे के हाथ में भी दे सकते हैं लगा , गप्प के बारे में एक और अर्थ प्रचलित है ढींगे हांकना के सन्दर्भ में . कुछ प्रकाश डालें
ReplyDeleteहम्म बचपन में हमने भी खूब खाए है और अब भी पसंद है.
ReplyDeleteइसे जयपुर में पताशी, भोपाल में पानी पूरी और बंगाल में फुचका कहते भी सुना है.
बम्बई के एल्को आर्केड बान्द्रा माकेट के बाहर बर्फीले तीखे पानी से भरे ये गोलगप्पे तो करीना भी खाती है ऐसा सुना है बहुत स्वादिष्ट पोस्ट !
ReplyDeleteस स्नेह,
- लावण्या
अजित भाई! दो महीने पहले बिजनौर के एक गाँव में दो रुपये के पांच खाए थे. वहां इन्हें "पानी पटाखा" बताया जा रहा था. पानी बताशा भी कहाँ जाता हैं मगर शायद केवल बिजनौर शहर में. दिल्ली को छोड़ एक दूसरे महानगर में रहना हुआ तो खिलाने वाले ने इसे "पानी पूरी" कह दिया था. अपने इतने सालों के प्यारे "गोल गप्पे" को "पानी पूरी( चाहे पूरा)" कहने में शर्म और दर्द का अद्भुत मेल महसूस हुआ.
ReplyDeleteआज भी जितने गोल गप्पे खाते हैं, उस से दुगुना पानी पी जाते हैं.
इस अद्भुत खोमचा पकवान का बनाव (आटा, सूजी, हरद मिला इत्यादि), इसे खिलाने का तरीका (साथ के साथ या प्लेट में परोस के) , इसकी भरावट (उबले आलू, चना, गरमअ-गरम छोले इत्यादि) और इस के ख़ास तत्त्व "पानी" की प्रकृति (सोंठ के साथ, पुदीने का प्रयोग, ठंडा इत्यादि) भी स्थानानुसार बदलती रहती है. पर ये अलग पोस्ट/ब्लॉग का विषय है.
गोलगप्पे खिलाने का बहुत बहुत शुक्रिया.
Atyant swadist raha yah safar.
ReplyDeleteयहाँ-वहां के गोलगप्पे अक्सर बीमार कर देते हैं...बेहतर है कि ये घर पर बनाये जाएँ और जलजीरे के साथ पेट भर खाए जाएँ.
ReplyDeletekhatti mithi post se hamara to pet bhar jata hai lekin patidev khane ka intjar kar rahe hai.
ReplyDeletegolgappe hamare yaha suji me sare masale or meetha soda milakar gol sancho wale tave par tal kar bhi banae jate hai. pani puri se kafi bhinn hai par nam wahi kam aata hai
अति उत्तम , शब्दों का क्या खूब प्रयोग किया हे
ReplyDeleteभई आपकी पोस्ट पढ़कर तो मैंने आज ही श्रीमती जी से गोलगप्पे की फरमाइश कर दिया है।
ReplyDeleteआगरा की चाट मशहूर है।आगरा और आसपास के क्षेत्र में गोल गप्पे को पड़ाके के नाम से भी जाना जाता है।
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