चु नाव की ऋतु में विभिन्न प्रकार के वचन सुनने को मिलते हैं। इन वचनों में याचना, संदेह, आरोप, भय, संताप, प्रायश्चित, प्रतिज्ञा, प्रार्थना आदि कई तरह के भाव होते हैं जिनका लक्ष्य आम आदमी होता है जो लगातार मौन रहता है। वह बोलता नहीं, अपना मत देता है जिसे वोट कहते हैं। वोट ही उसका वचन है, उस वचन के जवाब में, जो उसने नेताओं के मुंह से सुने हैं। वोट एक प्रार्थना भी है, जिसे मतपत्र के जरिये वह मतपेटी में काल के हवाले करता है, इस आशा में की उसकी वांछा पूरी होगी।
प्रजातंत्र में वोट vote का बड़ा महत्व है। कोई भी निर्वाचित सरकार वोट अर्थात मत के जरिये चुनी जाती है। यह शब्द अंग्रेजी का है जो बीते कई दशकों से इतनी बार इस देश की जनता ने सुना है कि अब यह हिन्दी में रच-बस चुका है जिसका मतलब है मतपत्र के जरिये अपनी पसंद या इच्छा जताना। चुनाव के संदर्भ में मत और मतदान शब्दों का प्रयोग सिर्फ संचार माध्यमों में ही पढ़ने-सुनने को मिलता है वर्ना आम बोलचाल में लोग मतदान के लिए वोटिंग और मत के लिए वोट शब्द का प्रयोग सहजता से करते हैं। वोटर के लिए मतदाता शब्द हिन्दी में प्रचलित है। वोट यूं लैटिन मूल का शब्द है मगर हिन्दुस्तान में इसकी आमद अंग्रेजी के जरिये हुई। लैटिन में वोट का रूप है वोटम votum जिसका अर्थ है प्रार्थना, इच्छा, निष्ठा, वचन, समर्पण आदि। भाषा विज्ञानी इसे प्रोटो इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का शब्द मानते हैं। अंग्रेजी का वाऊ vow इसी श्रंखला का शब्द है जिसका मतलब होता है प्रार्थना, समर्पण और निष्ठा के साथ अपनी बात कहना। वोटिंग करने में दरअसल यही भाव प्रमुखता से उभरता है।
जब आप सरकार बनाने की प्रक्रिया के तहत अपने जनप्रतिनिधि के पक्ष में मत डालते हैं तब निष्ठा और समर्पण के साथ ही अपना मंतव्य प्रकट कर रहे होते हैं। इसी श्रंखला में वैदिक वाङमय में भी वघत जैसा शब्द मिलता है जिसका मतलब होता है किसी मन्तव्य की आकाक्षा में खुद को समर्पित करनेवाला। लैटिन के वोटम से ही बने डिवोटी devotee शब्द पर ध्यान दें। इसमें वहीं भाव है जो वैदिक शब्द वघत में आ रहा है अर्थात समर्पित, निष्ठावान आदि। डिवोशन इसी सिलसिले की कड़ी है। ये तमाम शब्द प्राचीन समाज की धार्मिक आचार संहिताओं से निकले हैं और अपनी आकांक्षाओं, इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर के प्रति समर्पण व निष्ठा की ओर संकेत करते हैं। यह शब्दावली प्राचीनकाल के धर्मों, पंथों के प्रति उसके अनुयायियों के समर्पण व त्याग की अभिव्यक्ति के लिए थी। आधुनिक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के संदर्भ में देखे तो ये बातें सीधे सीधे पार्टी या दल
... प्रत्याशियों के चरित्र को देख कर वोटर से समर्पण की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो वोटिंग का मूलभूत उद्धेश्य है।...
विशेष से जुड़ रही हैं क्योंकि अधिकांश प्रत्याशियों की छवि या तो ठीक नहीं होती या आम लोग उससे सीधे सीधे परिचित नहीं होते। प्रत्याशियों के चरित्र को देख कर वोटर से समर्पण की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो वोटिंग का मूलभूत उद्धेश्य है। शायद राजनीतिक दलों को इन शब्दों के शास्त्रीय अर्थ पहले से पता होंगे इसीलिए वे हमेशा वोटर से निष्ठा की उम्मीद करते हैं।संस्कृत-हिन्दी के मत शब्द का मतलब होता है सोचा हुआ, सुचिंतित, समझा हुआ, अभिप्रेत, अनुमोदित, इच्छित, राय, विचार, सम्मति, सलाह आदि। यह संस्कृत धातु मन् से निकला है जिसका अर्थ होता है जिसमें चिन्तन, विचार, समझ, कामना, अभिलाषा जैसे भाव हैं। आदि। वोटिंग के लिए मतदान शब्द इससे ही बनाया गया है। प्राचीन भारत में भी गणराज्य थे। वोटिंग से मिलती जुलती प्रणाली तब भी थी अलबत्ता शासन व्यवस्था के लिए वोटिंग नहीं होती थी बल्कि किन्ही मुद्दों पर निर्णय के लिए मतगणना होती थी। मतपत्र के स्थान पर तब शलाकाएं अर्थात लकड़ी की छोटी छड़ियां होती थीं। गण की विद्वत मंडली जिसे हम कैबिनेट कह सकते हैं, मुद्दे के पक्ष, विपक्ष के लिए दो अलग अलग रंगों की शलाकाएं सभा में पदर्शित करती थीं। उनकी गणना की जाती थी। जिस रंग की शलाकाओं की संख्य़ा अधिक होती वही फैसले का आधार होता। मतपत्र, मतदान, मतदानकेंद्र, मतगणना, मताधिकार, सहमत, असहमत जैसे शब्द इसी मूल से बने हैं। बुद्धि-विवेक के लिए मति शब्द भी इसी श्रंखला की कड़ी है जिसका अभिप्राय समझ, ज्ञान, जानकारी,। मत अर्थात राय में सोच-विचार, चिन्तन-मनन का भाव समाया हुआ है। मगर यह चिन्तन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हर चरण से तिरोहित हो चुका है। पार्टियों में आंतरिक स्तर पर प्रत्याशियों के चयन में चिन्तन का आधार जीत-हार होता है, न कि प्रत्याशी की छवि, विकास के जनकल्याण के लिए संघर्ष करने का माद्दा।
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अंग्रेजी का वाऊ vow इसी श्रंखला का शब्द है जिसका मतलब होता है प्रार्थना, समर्पण और निष्ठा के साथ अपनी बात कहना।"
ReplyDeleteइतना सारगर्भित शब्द है वाऊ vow ? मंद-मति बहुत से शब्दों को अर्थ-च्युत कर देता हूँ अपनी चेतना में । धारणा बन जाती है, यह शब्द निरर्थक होगा ।
भाई वडनेकर जी!
ReplyDeleteमतपत्र, मतदान, मतदानकेंद्र, मतगणना, मताधिकार, सहमत, असहमत सभी मेरी मति में निष्ठा के साथ समा गये हैं।
लोकतन्त्र में निष्ठावान नेता बचे ही कितने हैं, ऐसे में वोटर निष्ठावान
कैसे हो सकता है?
वह मुँह से बोलता नहीं, अपना मत देता है ।
मत हा वोटर की जबान है।
शब्दों का सफर अच्छा चल रहा है।
शब्द से अधिक अर्थ को महत्ता देता आलेख ! प्रारम्भिक शब्द जो भूमिका बतौर लिखे है सूक्ति समान हो गए हैं.
ReplyDelete" चुनाव की ऋतु में विभिन्न प्रकार के वचन सुनने को मिलते हैं। इन वचनों में याचना, संदेह, आरोप, भय, संताप, प्रायश्चित, प्रतिज्ञा, प्रार्थना आदि कई तरह के भाव होते हैं जिनका लक्ष्य आम आदमी होता है जो लगातार मौन रहता है।"
कमाल का दृष्य रचा है | मंतव्य भी और व्यंग्य भी |
इस मत से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि वर्तमान दशाओं और लोलुपता के युग में प्रत्याशियों के चरित्र को देख कर वोटर से समर्पण की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जो वोटिंग का मूलभूत उद्धेश्य है। अब जन प्रतिनिधियों में देश के प्रति वह डिवोशन कहाँ जो उन्हें चरित्रवान बनाए रखे !
एकदम समीचीन आलेख अभिभूत कर देने वाला | अनंत साधुवाद |
- RDS
आपका लेखन बहुत पसंद है, मैं समय मिलते ही इसे पढ़ती हूँ कभी कभी एक साथ तीन चार पोस्ट भी देखनी पड़ जाती है. सुन्दर लेखन की बधाई.
ReplyDeleteअपनी मति के अनुसार ये मत प्रकट कर रहा हूं कि आप शब्दों के ज़ादुगर हैं।
ReplyDeleteभाई अजीत जी ,आपके शब्दों का सफर बुद्धि को परीमार्जित करता है .आपने सही लिखा है ... वोट एक प्रार्थना भी है, जिसे मतपत्र के जरिये वह मतपेटी में काल के हवाले करता है, इस आशा में की उसकी वांछा पूरी होगी। ...सामयिक शब्दों ,मत वोट, का खूब विश्लेषण किया है आपने ...साथ ही निष्ठा ,समर्पण जैसे शब्दों और वैदिक कालीन शब्दों की व्युत्पत्ति -व्याख्या -समानता तो लगातार पिछली पोस्ट से देखती आरही हूँ ...बधाई..आपका सफर निर्बाध गति से चलता रहे यही कामना है
ReplyDeleteमत का दान क्यों किया जाए क्योकि दान करने के बाद हम उस पर अपना अधिकार छोड़ देते है इसलिए मत ऋण दे और बीच बीच मे व्याज भी वसूले और पांच साल के बाद हिसाब साफ़ करे .
ReplyDeleteहमारा अभिमत है कि
ReplyDeleteइसमें दो मत नहीं कि
आपने हमें
'मतदान-मंथन' का अनोखा अवसर दिया.
वैसे हम पहले भी कहते आये हैं कि
सफ़र की कड़ियाँ मति-सन्मति दायक हैं,
इसके प्रस्तोता सचमुच 'अक्षर-विधायक' हैं.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शब्दों का सफर अपनी गरिमा के मुताबिक है। पर मोदी एक ही काफी नहीं है क्या?
ReplyDeleteवोटम और के vow बारे में जाना रोचक रहा !
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