Monday, May 11, 2009

आईने में तोताचश्मी

WaterFall
नक शब्द लिए आमफहम शब्द है चश्मा। अगर पूछा जाए कि हिन्दी मे स्पैक्टेकल के लिए क्या शब्द है तो तपाक से ऐनक और चश्मा का नाम गिना दिया जाएगा। मगर ये दोनों ही शब्द हिन्दी के नहीं है बल्कि क्रमश अरबी और फारसी के हैं। शुद्धतावादी भी इन शब्दों का प्रयोग करते हैं क्योंकि शुद्ध हिन्दी के लिए उनके पास भी कोई फार्मूला नहीं है। किसी भी भाषा में विदेशी शब्दों को आधार बनाकर शुद्धता का राग अलापना इनका शग़ल होता है। दरअसल विभिन्न भाषाओं के शब्दों को समाहित कर ही कोई भाषा समृद्ध और व्यापक भावाभिव्यक्ति की क्षमता अर्जित करती है। शुद्धतावादियों ने चश्मा के लिए हिन्दी को उपनेत्र जैसे शब्द की सौगात दी मगर जो होना था, वही हुआ और हिन्दी वालों ने इसे स्मृतिकोश में रखने तक की ज़रूरत महसूस नहीं की और भूल गए।
नेत्र के लिए संस्कृत शब्द अक्ष के मूल में अश् धातु है जिसमें व्याप्त होना, संचित होना जैसे भाव है। दृश्यमान जगत की छवि नेत्रों में संचित होती है इसीलिए इन्हें अक्ष कहा गया। अश् की तर्ज पर ही संस्कृत में कभी चश् या चष् धातु रही होगी जिससे चक्ष, चक्षु शब्द  बना। इसका अर्थ भी नेत्र ही है। जिस तरह अक्षि से आक्खि और फिर आंख शब्द बना उसी तरह नेत्र के अर्थ में चक्ष या चक्षु से कोई शब्द नहीं बना है पर अश् या चष् में संचित होने, समाने या व्याप्त होने का जो भाव है उससे चषक जैसा शब्द ज़रूर बनता है जिसका अर्थ है प्याला, पात्र क्योंकि उसमें सामग्री व्याप्त रहती है-खासतौर पर तरल पेय। स्वाद लेने के अर्थ में चखना शब्द इसी चष् से आ रहा है। चूसना भी इसी मूल से निकला है। व्याप्त होना के अर्थ में देखें तो इंडो-ईरानी परिवार की फारसी भाषा में चष् धातु ने नेत्र के अर्थ में भी शब्द रचे गए और जलकुण्ड के अर्थ में भी।। फारसी के चश्म शब्द की इसी चष् धातु से रिश्तेदारी है। यहां नेत्र कोटर में नेत्र के समाने से भी अभिप्राय है और प्रकाश की उपस्थिति में दृश्य के समाने से भी।
लस्रोत के रूप में भी फारसी में चश्मा शब्द है जो हिन्दुस्तानी में भी बोला-समझा जाता है। फारसी उर्दू में चश्मः चश्मा ऐसे जलस्रोत के रूप मे उल्लेखित होता है जो लगातार बह रहा है। हिन्दी का झरना इसके निकटतम है। मगर झरने पहाड़ी भी होते हैं और भूगर्भीय भी। ज़मीन के भीतर से जिस मुख्य कुंड में पानी सबसे पहले आता है दरअसल वही चश्मा है। बाद में किसी भी झरने के लिए चश्मा शब्द रूढ हो गया। चश्मा लगानेवाले को यूं तो चश्मीश कहते हैं मगर आमतौर पर चश्मुद्दीन कहा जाता है।  हिन्दी में इससे बने कुछ मुहावरे चलते हैं जैसे चश्मे बद्दूर यानी बुरी नज़र न लगना। घरों के बाहर एक मुखौटा लगाया जाता है उसे भी चश्मेबद्दूर ही कहते हैं। पुत्र को चश्मे चिराग़ कहा जाता है। आंखे चार होना मूलतः फारसी के चार-चश्म मुहावरे का अनुवाद है जिसका मतलब होता है दो लोगों में खास मेल-मुलाकात। आंखों देखी के लिए चश्मदीद शब्द तो हिन्दी में खूब इस्तेमाल होता है। छोटी आंखों मगर तेज़ नज़र वालों के बुलबुल-चश्म कहा जाता है। कहे से मुकरना, उपेक्षा करने, बेवफाई दिखाने के अर्थ में तोता-चश्म या तोताचश्मी मुहावरा भी फारसी से हिन्दी में आया है। तोते की तरह आंख फेरना इसे ही कहते हैं। इस सिलसिले में एक नया शब्द हमें मिला। खेत में फसल की रखवाली के लिए घास-फूस का बिजूका बनाया जाता है उसे फारसी में चश्मारू कहते हैं।   
आईना शब्द का मतलब होता है शीशा, कांच, दर्पण। 4126060यह अरबी शब्द आईनः से बना है और इसकी मूल धातु है ऐन जो एक अरबी वर्ण भी है और इसकी व्यापक अर्थवत्ता है जिसमें दृष्टि, बिम्ब, जैसे भाव भी हैं तो व्यवस्था, प्रबंध और कानून संबंधी भी। आईन का मतलब होता है कानून, विधान, नियम, प्रणाली आदि। अरबी फारसी में एक शब्द है आईनी ayni का अर्थ गवाह भी होता है और विधानसम्मत, कानूनी भी। इसे आंखो देखी के अर्थ में चश्मदीद गवाह के तौर पर समझें।  आईनासाज के मायने दर्पण बनानेवाला भी होता है और कानून बनानेवाला भी अर्थात विधायक, सांसद। मगर स्वार्थ के चश्मे से दुनिया को देखनेवाले सियासतदानों की बजाय यहां सृष्टि का विधान रचनेवाले विधाता अर्थात ईश्वर को ही आईनासाज़ मानना चाहिए। हमारे नुमाईंदे ही असली तोताचश्म हैं।  देखने के भाव के साथ ही ऐनक aynak शब्द भी इससे ही बना है जो अरबी, फारसी, उर्दू समेत एशिया की कई भाषाओं में लोकप्रिय है।

ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

12 comments:

  1. बहुत सुंदर सफर था आज का। बहुत से शब्दों को समेट लाया। आखिर आप हमारे चश्मेनूर जो हैं।

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन आलेख.

    एक बात समझाते हो, एक नई अटका जाते हो...अब ’आमफहम’ इस्तेमाल करने की कौन जरुरत आ गई थी: अब इसे समझाओ कि कहाँ से आया. :)

    आभार.

    ReplyDelete
  3. इस लेख के लिए तो कहा जा सकता है
    तेरे प्‍यारे प्‍यारे जानकारीपूर्ण लेख को किसी की नजर न लगें
    चश्‍मेबद्दूर ........

    ReplyDelete
  4. इस लेख के लिए तो कहा जा सकता है
    तेरे प्‍यारे प्‍यारे जानकारीपूर्ण लेख को किसी की नजर न लगें
    चश्‍मेबद्दूर ........

    ReplyDelete
  5. हर आलेख की तरह जानकारी से भरा । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  6. बहुत बढिया कितने सारे नये शब्द भी सीखे मसलन बुलबुल-चश्म तोता-चश्म और चश्मारू । अरबी फारसी के कितने शब्द हमारी भाषाओं मे बेमालूम मिल गये हैं । मराठी और बंगला में भी, जैसे कानून को बंगला में आइन कहते है और दरकार (जरूरत ) शब्द तो दिन में पचीसों बार प्रयोग होता है । मराठी में आशिर्वाद स्वरूप कहा जाने वाला शब्द खुशाल रहा शायद खुश-हाल ही है ।

    ReplyDelete
  7. सुन्दर जानकारी...........
    कई नए शब्दों की जानकारी ............

    ReplyDelete
  8. शब्दों के सफ़र में हिन्दी के साथ साथ अरबी फारसी को चलते चलते देखकर...कभी कभी मन में ख्याल आता है कि काश यही जुबान बोलने वाले लोग भी एक दूसरे से इतना ही प्रभावित हो कर एक दूसरे से प्रेम भाव रख पाएँ...

    ReplyDelete
  9. उपनेत्र चश्मे ऐनक का हिंदी वर्जन क्या बात है . बधाई एक शुद्ध हिंदी के शब्द की जानकारी देने पर

    ReplyDelete
  10. ढेर सारी जानकारी मिली इस पोस्ट में... चश्मेबद्दूर !

    ReplyDelete
  11. किसी ने ऐनक में ऐनक देखने के लिए ऐनक लगाया तो ऐनक ही पाया पहुत सराहनीय लेख

    ReplyDelete