आ म बोलचाल में भाग्य के अर्थ में तक़दीर शब्द का इस्तेमाल भी होता है। यह सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द है और अरबी से हिन्दी में आया है। तक़दीर इस्लामी धर्मशास्त्र के एक प्रमुख पारिभाषिक शब्द कद्र (क़दर) से आया है जिसका अर्थ होता है ईश्वरीय न्याय, कृपा अथवा विधान।
मुस्लिमों में रमज़ान से पहले एक पर्व आता है जिसे शबे-कद्र कहते हैं जिसका अर्थ हुआ क़द्र की रात अर्थात ऐसी रात जब ईश्वर अपने बंदों पर कृपालु होता है। मान्यता है कि इस मौके पर रात भर जाग कर इबादत करने से खुदा अपनी नेमतें देता है। क़द्र बना है अरबी धातु क़दारा से जिसका अर्थ होता है मूल्यांकन करना, जांचना, परखना। इसके बारे में कहा जाता है कि खुदा क़द्र की रात यह जांचता-परखता है कि उसकी बनाई सृष्टि में सब कुछ उसके विधान के अनुसार चल रहा है, इसी वजह से क़द्र में परख का भाव जुड़ा। हिन्दी में भी क़द्र या क़दर शब्द का प्रयोग आमतौर पर इज्ज़त, आदर, परख, सम्मान सत्कार, आवभगत के रूप में होता है। जाहिर है यह भाग्य है। जो क़द्र करता है वह क़द्रदां अर्थात पारखी है। स्पष्ट है कि जिसकी क़द्र हो वह भी भाग्यशाली है और जो पारखी है वह भी क़िस्मतवाला है। क़द्रदां अरबी का नहीं बल्की फारसी का शब्द है और अरबी क़द्र में दाँ प्रत्यय लगने से बना है। फारसी का बे उपसर्ग लगने से बेक़द्री शब्द भी इससे बना जिसका मतलब असम्मान या अवमानना माना जाता है।
क़द्र का ही एक रूप है क़ुद्र जिससे बना है कुद्रत। हिन्दी में यह कुदरत के तौर पर इस्तेमाल होता है। कुदरत का अर्थ सृष्टि, प्रकृति, संसार होता है। इसमें सामर्थ्य, शक्ति, माया, समृद्धि सब शामिल है। जाहिर है जो कुछ भी प्रकृति में शामिल है सब कुदरत है। भाव यही है कि ईश्वर के द्वारा रचा गया सृजन ही कुद्रत(क़ुदरत) कहलाता है। हर धर्म में प्रकृति को ईश्वर का रूप बताया गया है, क्योंकि इसकी रचना उसी सर्वशक्तिमान ने की है। ईश्वर द्वारा जो कुछ भी हमें दिया गया है, वही हमारा भाग्य है। हमारे भाग यानी हिस्सा ही हमारा भाग्य होता है। इस तरह देखें तो कुदरत यानी प्रकृति ही हमारा भाग्य है…तक़दीर है। खुदा की बनाई क़ुदरत की क़द्र अगर इनसान नहीं करेंगे तो खुदा अपने बंदों की क़द्र कैसे करेगा? कुदरत के मायने यह भी हैं कि प्रभु ने मनुष्य को सोचने-समझनेवाला बनाया, उसे भावनाएं दीं, उसे दिमाग़ दिया, दया दी, ममता दी। क्या इन क़ुदरती गुणों कों
...खुदा की क़ुदरत की क़द्र अगर इनसान नहीं करेंगे तो खुदा अपने बंदों की क़द्र कैसे करेगा...
हम सहेज पा रहे हैं? अगर हां, तो यह हमारा भाग्य है और नहीं तो दुर्भाग्य!!!! शबे-क़द्र पर अल्लाह खै़रात बांटने तो नहीं निकलते होंगे। यक़ीनन उनके पास हर चीज़ का हिसाब रहता होगा। हिन्दी में क़ुदरत का प्रयोग भी भाग्य की तर्ज पर ही होता है जैसे खुदा की कुदरत। यहां अभिप्राय ईश्वर के विधान या इच्छा से है। इसी शब्द श्रंखला से बने हैं अरबी के क़दीर या क़ादिर जैसे शब्द जो मुस्लिम समाज में पुरुषों के लोकप्रिय नाम हैं। क़दीर/क़ादिर का मतलब होता है समर्थ, सामर्थ्यवान, योग्य, लायक, शक्तिमान, प्रभावशाली अर्थात ईश्वर। इसी क़दर के साथ अरबी का ता उपसर्ग लगने से बनता है तक़दीर जिसका स्पष्ट रूप से मतलब निकलता है भाग्य अथवा क़िस्मत। मुसलमानों में एक उपनाम या पंथ होता है क़ादरिया जो सूफ़ी होते हैं। भारत में भी क़ादरी (क़ादिरी) या क़ादरिया होते हैं। इस सम्प्रदाय की शुरुआत ईरान के जीलान में करीब एक हजार साल पहले जन्में शेख़ अब्दुल कादिर जिलानी बग़दादी (1078ई -1166ई) से मानी जाती है जो सूफियों में सर्वाधिक आदरणीय माने जाते हैं और उन्हें पीराने-पीर, गौसुल-आज़म और पीर-दस्तगीर जैसी पदवियां दी गई हैं। भारत में क़ादरिया सम्प्रदाय की शुरुआत मौहम्मद गौ़स से मानी जाती है जो चौदहवीं सदी में यहां आए।
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सुन्दर व्याख्या।
ReplyDeleteधन्यवाद!
बेहतरीन विश्लेषण!!!
ReplyDeleteसुन्दर विश्लेषण.आभार .
ReplyDeleteहम कुदरत से बनाते हैं कुदरती, अर्थात खुद-ब-खुद। जिस का अर्थ खुदा भी है। इस तरह कुदरत और खुदा में कोई भिन्नता नहीं रह जाती। ये अर्थ स्वयं लोगों के व्यवहार ने ही उत्पन्न किए हैं। जो अवचेतन में उन का अपना दर्शन भी है।
ReplyDeletebahut hi sundar post .........................prakriti me hi sabkuchh samahit hai
ReplyDeleteशबे-कद्र को बचपने से देखते-सुनते आ रहे हैं उसका अर्थ पहली बार समझ मे आ रहा है।
ReplyDeleteबहुत ही महत्वपूर्ण व्याख्या । बहुत कुछ स्पष्ट हो गया । आभार ।
ReplyDeleteउम्दा विश्लेषण है. हम भी इसकी क़द्र करते हैं.
ReplyDeleteshabe -kadra ke vishay me pahli baat vistaar me janne ka awsar mila....
ReplyDeletesadaiv ki bhanti atisundar yatra...aabhar.
...खुदा की क़ुदरत की क़द्र अगर इनसान नहीं करेंगे तो खुदा अपने बंदों की क़द्र कैसे करेगा...
ReplyDeleteमनमाफिक बात कही तो तालियाँ बजाने से न रहा गया, यह भी तकदीर का ही खेल है की विचार में समानता मिले.
सुन्दर शोध परक और ज्ञानवर्धक लेख प्रस्तुति का हार्दिक शुक्रिया.
चन्द्र मोहन गुप्त
कदारा धातु से बने शब्दों और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक झांकी सी हमारे सामने धीरे धीरे गुज़रती रही. आभार.
ReplyDeleteतक़दीर में लिखा होगा तभी तो कद्र होगी .
ReplyDeleteशबे-कद्र के बारे में पहले कभी सुना नहीं था -- कुदरत तो हज़ार तोहफे देती है हम इंसानों को
ReplyDeletetoday i opened this site first time it is wonderful
ReplyDeleteवाह बहुत अछे. अद्भुत जानकारी .
ReplyDeleteप्रेम सिंह