Monday, July 13, 2009

लीला, लयकारी और प्रलय….

... सृष्टि में प्रतिक्षण होता परिवर्तन ही लीला है। जब हम इसे विराट रूप में देख रहे होते हैं तब उसकी अनुभूति होती है।...DSC_8694-KrishnaLeela-Big

सं सार की प्रायः सभी संस्कृतियों में महाविनाश की कथा है। इसे अतीत और भविष्य से जोड़ कर देखा जाता है। एक प्रलय जो अतीत में घटित हुआ था जिसे जल-प्रलय कहा जाता है। कबीरदास भी इससे सचेत करते हुए कहते हैं-काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।। प्रलय शब्द का अर्थ होता है विश्व विनाश, व्यापक संहार, तबाही, बरबादी आदि। इन सभी शब्दों में एक बात स्पष्ट है कि विनाश में ईश्वर रचित अथवा मानव निर्मित किसी भी किस्म की वास्तु, शिल्प, निर्माण अथवा संरचना की बरबादी निहित है। दार्शनिक अर्थों में देखें तो प्रकृति के नियमों में सबसे खास-बात ही यह है कि यहां निर्माण-विध्वंस जारी रहता है और इसमें एक तारतम्य होता है जिसे लय कह सकते हैं। जब भी कभी विनाश हो जाता है अथवा कोई चमत्कारिक मगर मांगलिक घटना घटती है तब उसे प्रकृति की या ईश्वर की लीला कहा जाता है। सृष्टि में प्रतिक्षण होता परिवर्तन ही लीला है। जब हम इसे विराट रूप में देख रहे होते हैं तब उसकी अनुभूति होती है।  प्रलय में लय भी है और लीला भी क्योंकि ये शब्द एक ही मूल से जन्मे हैं।

प्रलय बना है प्र+ली+अच् से। ली धातु में विघटित होना अर्थात टूटना, पिघलना, जुड़ना, बांधना, एक हो जाना, छिपाना जैसे भाव हैं। किन्ही दो वस्तुओं का आपस में जुड़ना क्या है? जाहिर है दोनों का अस्तित्व एक हो जाता है। अर्थात दोनों वस्तुएं एक-दूसरे से मिलकर एक हो जाती हैं। इसे ही कहते हैं लीन होना। लीन शब्द इससे ही बना है जिसका अर्थ होता है मग्न होना। ध्यान के संदर्भ में खोना, खो जाना शब्द भी इस्तेमाल किया जाता है। साधक जब अपना मन परमात्मा से जोड़ लेता है तब सिर्फ उसका शरीर उजागर रहता है, बाकी सम्पूर्ण चेतना ईश्वर से एकाकार हो जाती है। उसे ही ध्यानमग्न होना, खोना या लीन होना कहते हैं। तल्लीन शब्द भी इसी कड़ी में आता है। गायब होने, घुलने के अर्थ में विलीन शब्द का निर्माण भी इसी धातुमूल से हुआ है। लीला शब्द भी इसी कड़ी में आता है। मनोरंजन का अर्थ होता है मन का रमना। ली शब्द में निहित ध्यान लगने या खो जाने का भाव यहां क्रीड़ा के अर्थ में उद्घाटित हो रहा है। छद्मवेश धारण करना, बच्चों का खेलना, मनोविनोद करना, किसी भी किस्म की आंगिक चेष्टा जो रुचिकर लगे अथवा नृत्य-गान आदि क्रियाएं लीला कहलाती हैं क्योंकि इससे मनोरंजन होता है। मनोरंजन का उद्धेश्य भी यही होता है कि यथार्थ की अनुभूति से कुछ पलों के लिए अन्यत्र लीन हो जाना। प्रलय-लीला और विनाश-लीला जैसे शब्दों से आशय प्रकृति की ऐसी हलचल अथवा गतिविधियों से है जिसके बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं रह जाता है। लीला शब्द की महिमा अलग ही है। इससे बने शब्दों में रासलीला जैसा शब्द भी है। कृष्ण चरित इतना वैविध्यपूर्ण और उसकी व्याख्या इतनी निराली है कि उसे कृष्णलीला शब्द ही व्यक्त कर सकता है। गोकुल-वृदावन को कृष्ण की लीलाभूमि कहा जाता है। रामचरित के लिए रामलीला शब्द प्रचलित है।  

संगीत का प्रमुख अंग है लयकारी अर्थात स्वरसंगति, स्वरआवृत्ति जिसका एक निश्चित क्रम होता है। संगीत की खूबसूरती लयकारी से ही उभरती है। यह लय भी इसी ली धातु
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से उपजा शब्द है क्योंकि लय में ही वह शक्ति होती है जिससे ध्यान लगता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में किए जानेवाले कर्म में अगर लयकारी न रहे तो सफलता संदिग्ध रहती है। लयकारी में न सिर्फ कलाकार डूब जाता है, बल्कि श्रोता भी अपनी सुध-बुध खो देते हैं। ली में निहत जुड़ने, संप्रक्त होने या गायब होने का भाव बेहद रोचक तरीके से आश्रय से भी जुड़ता है। मनुष्य ने खुद को सुरक्षित करने के लिए जब वृक्षों की कोटरों, शिलाखंडों की दरारों अथवा पर्वत कंदराओं में रहना शुरु किया तो इसमें भाव यही था कि उसने अपने अस्तित्व को इन संरचनाओं से एकाकार कर लिया। उसने खुद को इनमें छुपा लिया। प्राचीनकाल में निवास या आश्रय को भी लय ही कहते थे। लय में पुरुषवाची और स्त्रीवाची दोनो भाव हैं । संगीतलहरी के अर्थ में लय स्त्रीवाची है मगर आश्रय, लीन, प्रवेश, एक दूसरे में समाने के अर्थ में लय पुरुषवाची है । लय अर्थात आराम करने की जगह। आराम क्या है? शरीर को सुस्ताने देने का जरिया जब हम अपनी इन्द्रिय-चेतना को भूलने का प्रयास करते हैं। प्राचीनकाल में मनुष्य आराम भी उसी स्थल पर करता होगा जहां वह प्रकृति और हिंस्र जंतुओं से सुरक्षित रहे। इसीलिए आरामस्थल के लिए संस्कृत में य शब्द है। बाद में लय ही आश्रय हुआ। लय में आ उपसर्ग लगाने से बना आलय जिसका स्पष्ट अर्थ होता है निवास, मकान, भवन आदि। आज देवालय, विद्यालय, ओषधालय, हिमालय जैसे शब्दों में घर, निवास जैसे अर्थ साफ नजर आ रहे हैं। देहात में कमरों की दीवार में बने छोटे कोटरों को आला कहा जाता है। यह आला भी इसी आलय से आ रहा है। नि उपसर्ग लगने से निलय अथवा निलयम् जैसे शब्द भी बनते हैं जिनका अभिप्राय भी निवास अथवा भवन से है। एक दूसरे में समाने के लिए विलय शब्द भी इसी कड़ी में आता है।

य में प्र उपसर्ग लगने से बनता है प्रलय जिसमें विनाश और व्यापक संहार के भाव हैं। यह पुरुषवाची संज्ञारूप है । प्रलय का अर्थ सृष्टि का अंतकाल भी होता है। गौर करें कि प्रलय अर्थात अग्निकांड, बाढ़, भूकम्प आदि विभीषिकाओं में सब कुछ बरबाद-तबाह हो जाता है। इमारतें गिर जाती हैं, जो कुछ जहां था, वहां पर उसकी शक्ल बदल जाती है। सब कुछ समाप्त हो जाता है। यहां लीन होने अर्थात गायब होने का ही भाव है। जाहिर है विनाश में किसी भी चीज़ का स्वरूप पहले जैसा नहीं रहता है। प्रलय में संरचनाएं एक-दूसरे में समा जाती हैं, बस्तियां या तो पानी में गुम हो जाती हैं या धरती में समा जाती हैं। इमारतें आग में विलीन हो जाती हैं। यही प्रलय है।
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8 comments:

  1. ज्ञानवर्धन का आभार.

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  2. विद्यालय में तो कभी लय नहीं मिला . लेकिन प्रलय में तो सबको लय (आराम गाह ) मिल ही जायेगा

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  3. "प्रलय बना है प्र+ली+अच् से। ली धातु में विघटित होना अर्थात टूटना, पिघलना, जुड़ना, बांधना, एक हो जाना, छिपाना जैसे भाव हैं। किन्ही दो वस्तुओं का आपस में जुड़ना क्या है? जाहिर है दोनों का अस्तित्व एक हो जाता है। अर्थात दोनों वस्तुएं एक-दूसरे से मिलकर एक हो जाती हैं। इसे ही कहते हैं लीन होना। लीन शब्द इससे ही बना है"

    प्रलय और लीला की सुन्दर ढंग से व्याख्या की है।
    धन्यवाद!

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  4. आपकी पोस्ट सदैव ही रोचक होती है
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    श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग

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  5. बहुत अच्छी व्याख्या है. साधुवाद.

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