Friday, July 17, 2009

कैसे कैसे वंशज! बांस, बांसुरी और बंबू

बां सों का झुरमुट
सन्ध्या का झुटपुट
है चहक रही चिड़िया
ट्वि ट्वि टुट टुट
बांस का जब कभी भी सन्दर्भ आता है तो कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां मुझे अक्सर याद आ जाती हैं। बांस बना है संस्कृत के वंश से। आमतौर पर कुटुम्ब, कुल, और खानदान के अर्थ में वंश शब्द इस्तेमाल मे लाया जाता है। ये तमाम अर्थ जुड़ते हैं घनत्व, संग्रह या समुच्चय से । अब बांस की प्रकृति पर गौर करें तो पाएंगे कि इसे जहां भी लगाया जाए, इकाई से दहाई और सैंकड़े की प्रगति नज़र आती है। वंशावली शब्द पर ध्यान देना चाहिए। प्राचीन अर्थों में तो इसका अर्थ बांसों की पंक्ति ही होगा मगर आज इसका रूढ़ अर्थ कुल परंपरा या एनसेस्ट्री ही है।
पूर्ववैदिक युग में वंश शब्द का अर्थ बांस ही रहा होगा। प्राचीन समाज में लक्षणों के आधार पर ही भाषा में अर्थवत्ता विकसित होती चली गई। स्वतः फलने फूलने के बांस के नैसर्गिक गुणों ने वंश शब्द को और भी प्रभावी बना दिया और एक वनस्पति की वंश परंपरा ने मनुश्यों के कुल, कुटुंब से रिश्तेदारी स्थापित कर ली। इस नाते वंशज शब्द का मतलब सिर्फ संतान या रिश्तेदार ही नहीं मान लेना चाहिये बल्कि इसका मतलब बांस का बीज भी हुआ। बांस की यह रिश्तेदारी यहीं खत्म नहीं हो जाती । बांसुरी के रूप में भी यह नज़र आती है। संस्कृत के वंशिका से बनी बांसुरी ने भगवान श्रीकृष्ण से संबंध जोड़ा इसी लिए वे बंसीधर भी कहलाए। यही नहीं वेणु का मतलब भी बांस ही होता है और प्रकारांतर से इसका एक अन्य अर्थ मुरली हो जाता है इसीलिए श्रीकृष्ण का एक नाम वेणुगोपाल भी है। वंश से जुड़े कुछ अन्य शब्द है बंसकार, बंसोड़ या बंसौर जो बांस से जुड़ी अर्थव्यवस्था वाले समूदाय हैं। बांस की टोकरियां , चटाई या सूप बनानेवाले लोग।
अंग्रेजी में बांस के लिए बैम्बू शब्द प्रचलित है। देसी बोलियों और फिल्मी गीतों संवादों में बम्बू का प्रयोग साबित करता हैं कि बांस का यह अंग्रेजी विकल्प भी हिन्दी का घरबारी बन चुका है। दरअसल कुछ लोग बैम्बू का रिश्ता वंश से ही जोड़ते हैं। यह शब्द अंग्रेजी में आया डच भाषा के bamboe से जहां इसकी आमद पुर्तगाली जबान के mambu से हुई। पुर्तगाली ज़बान में यह मलय या दक्षिण भारत की किसी बोली से शामिल हुआ होगा। वंश की मूल धातु पर गौर करें तो यह पहेली कुछ सुलझती नज़र आती है। वंश का धातु मूल है वम् जिसके मायने हैं बाहर निकालना, वमन करना, बाहर भेजना, उडेलना, उत्सर्जन करना आदि। इससे ही बना है वंश जिसके कुलवृद्धि के भावार्थ में उक्त तमाम अर्थों की व्याख्या सहज ही खोजी जा सकती है। निश्चित ही वंशवृद्धि सृष्टि की सभी रचनाओं में चाहे जीव हों या वनस्पति, उत्सर्जन से ही जुड़ी हैं। कोई भी जीव-रचना अपने सृजन के गोपनीय क्षणों के बाद ही बाहर आती है। इस वम् की मलय भाषा के मैम्बू से समानता काबिलेगौर है।
वंशवृक्ष शब्द का मतलब यूं तो आज कुलपुरूषों, कुटुम्बियों के नामों की उस तालिका से लगाया जाता है जो वृक्ष की शाखाओ–प्रशाखाओं की तरह तरह अलग-अलग कालखंडों में विभाजित कर बनाई गई हो। मगर प्राचीनकाल में तो वंशवृक्ष का मतलब सिर्फ बांस का पेड़ ही था। एक और शब्द है वंशवृद्धि यानी परिवार का बढ़ना या कुटुम्ब में इजाफा होना। प्रायः सभी संस्कृतियों में वंशवृद्धि को मनुष्य का मुख्य नैतिक कर्तव्य माना गया है। इसे धार्मिक जामा भी पहनाया जाता रहा है। वंशवृद्धि को हमें आदिम ज़माने से जोड़ कर देखना चाहिए। तब मनुष्य के लिए सुरक्षा ही प्रमुख समस्या थी। समूह में रहना उसकी विवशता। लगातार अपने प्रतिद्वन्द्वी समूहों से हिंसक टकराव और हिंस्र पशुओं का शिकार होते जाने के दोहरे खतरे से जूझते आदिमानव के लिए ज़रूरी था कि उसका कुनबा बढ़ता रहे ताकि समूह की ताकत बनी रहे। सभ्य होने के बाद समूह की यही ताकत राज्य सत्ता पर काबिज रहने का नुस्खा बनी। ताक़त के एहसास ने मनुष्य को आत्मगौरव से भरा और विशिष्ट समूहों में रक्त-शुद्धता का भाव उजागर हुआ। इसी मुकाम पर आकर वैवाहिक संस्था का जन्म हुआ और वंशवृद्धि अब कुटुम्ब विशेष के अदृष्ट भविष्य तक चलनेवाले काल्पनिक महिमागान का निमित्त बनी।
कृष्ण हमेशा हाथ में बांसुरी लिए रहते थे सो बंशीधर कहलाए। इसका ही तत्सम रूप वंशीधर भी प्रचलित है। जिस पेड़ की नीचे उनका वंशीरव गूंजा करता था वह कहलाया वंशीवट। यानी बरगद का पेड़। नाम श्रंखला में एक नाम खूब चलता है वह है हरबंस। इस नाम में भी बांस या वंश की महिमा छुपी है। हरबंस यानी हरिवंश अर्थात् भगवान विष्णु का वंश। यह नाम श्रीकृष्ण से भी जुड़ता है क्योंकि उन्हें विष्णु का अवतार ही माना जाता है। इस नाम से एक पुराण भी है जिसे महाभारत का उपांश कहा जा सकता है अर्थात हरिवंश-पुराण। कुछ लोग इसे उपपुराण भी मानते हैं मगर अठारह पुराणों और उपपुराणों मे इसका शुमार नहीं है। महाभारत में मुख्यतः युद्ध का पूरा वृत्तांत है मगर कृष्ण व यादवों के बारे में विस्तार से सब कुछ नहीं है। इसी के लिए महाभारत के परिशिष्ट के तौर पर सौति ने हरिवंश की रचना की जिसमें वैवस्वत मनु से सृष्टि की कथा शुरू करते हुए भगवान विष्णु के अवतारों की महिमा बताई गई है जिसमें द्वापर में विष्णु के कृष्णावतार का ही बखान है। सौति ने ही नैमिषारण्य मे ऋषियों को महाभारत कथा सुनाई थी। [नए संदर्भों के साथ संशोधित पुनर्प्रस्तुति]

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20 comments:

  1. हरिवंश-पुराण के विषय में जानकर अच्छा लगा, आभार!!

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  2. मुरली वाले कृष्ण कन्हैया की जै-जै!

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  3. बढियां जानकारी !

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  4. सुंदर आलेख। बहुत सी नई जानकारियाँ देता हुआ।

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  5. जय श्री कृष्ण ! इस प्रकार प्रभु चित्रों का यदा -कदा प्रकाशन किया करें ताकि मुझ जैसे हलकट , कमीनों द्वारा ब्लॉग मंडल में हुए वाचिक पापों का शमन होता रहे !

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  6. वंश व्याख्या विशिष्ट रही | वैसे वमन से बम्बू का वृतांत विचित्र लगा थोड़ा असहज भी |

    बंसी, बांस का रत्ती सा टुकडा .. आत्मा की लघुता का आभास सा देता हुआ .. लेकिन सम्पूर्ण इतना कि जैसे ब्रहमांड के सारे सुर , सारे रस इसमें समाएं हों |

    जो सुर को बाँध सके, करीने से सजा सके वो ही सुख पाए और कलावंत कहलाए ! कामना और कोशिश तो यही कि जीवन सुरों से सज जाए | यह रद्दी बांस के टुकडे सा जीवन एक मोहक वाद्य बन जाए और बजता रहे सुरीला, सदा-सर्वदा, निरंतर, अविरल ...

    शुभ कामनाएं !!

    - RDS

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  7. अनिल जी जय राधे -श्याम !

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  8. अगर मै अपने वंशवृक्ष पर चडू तो बहुत ऊपर जा कर श्री राम से सम्बन्ध स्थापित होता है क्योकि में भी रघुवंशी हूँ . आपके द्वारा पता चला वंशवृक्ष शब्द आया कहाँ से .

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  9. और एक जानकारी के लिए धन्यवाद|
    श्रीकृष्ण :शरणम् मम् |

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  10. @RDS
    रमेश भाई-वंशी के चरित् सा हो जीवन...आपकी व्याख्या अच्छी लगी।
    वमन् से बम्बू या वंश का वृत्तांत नहीं है वह। वम् धातु से वंश की व्युत्पत्ति की बात है। वम् में अंतर्निहित जो भाव हैं उन्हें वमन् भी उद्घाटित करता है और वंश भी। वम् में मूलतः बाहर भेजने, उत्सर्जन करने का भाव है। चूंकी उत्सर्जन का एक प्रकार वमन् भी है इसलिए उसका उल्लेख करना भी ज़रूरी था। आप वंश की व्युत्पत्ति के संदर्भ में वम् धातु के उपरोक्त उत्सर्जन के भाव पर ही विचार करें और वमन शब्द को भूल जाएं तब वंश का धातु-अर्थ समझने में कोई दुविधा नहीं रहेगी।

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  11. भाउ, बाँस और बंबू का बोलचाल की लक्षणा में एक और प्रयोग होता है। उसे काहें छोड़ दिए ? ;)

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  12. यथा --' भारत काहे नहीं पाकिस्तान के बम्बू कियेला '

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  13. @गिरजेश राव
    बंधुवर, आपकी जिज्ञासा और मेरी भूल - दोनों का ही समाधान प्रियवर मुनीशभाई ने कर दिया है। कृपया इसे आलेख में ही दर्ज मानें:)

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  14. इसीलिए हमारी लोकचेतना में बांस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. वैसे एक बात का जिक्र करना आप भूल गए. वह यह कि इसी बांस की बनी लाठियों से आज भी पूरी दुनिया हांकी जाती है. :)

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  15. harivansh puraan padhne ka suyog abhi tak nahi bana hai....aapke is aalekh ne fir se dhyaan dila diya ki ise padhna hai....hamesha ki tarah bahut hi sundar shabd vivechan...

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  16. आज का आपका लेख एक एसा निबंध है जिसमे साहित्य, पत्रकारिता, भाषा विज्ञानं, समाज शास्त्र, इतिहास और anthropology सब एक साथ जमा हो गए है, यही विशेषता आप को ब्लोगेर्स में एक अलग स्थान दिलवाती है.

    उदघृत अंश मुझे विशेष अच्छे लगे. तथ्यात्मक विश्लेषण आपके लेखन का महत्वपूर्ण भाग है. शैली रोचक है, इसीलिए सफ़र रोमांचक बन पड़ा है.

    # अब बांस की प्रकृति पर गौर करें तो पाएंगे कि इसे जहां भी लगाया जाए, इकाई से दहाई और सैंकड़े की प्रगति नज़र आती है।

    # वंश का धातु मूल है वम् जिसके मायने हैं बाहर निकालना, वमन करना, बाहर भेजना, उडेलना, उत्सर्जन करना आदि। इससे ही बना है
    # वंश जिसके कुलवृद्धि के भावार्थ में उक्त तमाम अर्थों की व्याख्या सहज ही खोजी जा सकती है। निश्चित ही वंशवृद्धि सृष्टि की सभी रचनाओं में चाहे जीव हों या वनस्पति, उत्सर्जन से ही जुड़ी हैं। कोई भी जीव-रचना अपने सृजन के गोपनीय क्षणों के बाद ही बाहर आती है।इस वम् की मलय भाषा के मैम्बू से समानता काबिलेगौर है।

    # प्रायः सभी संस्कृतियों में वंशवृद्धि को मनुष्य का मुख्य नैतिक कर्तव्य माना गया है। इसे धार्मिक जामा भी पहनाया जाता रहा है।
    वंशवृद्धि को हमें आदिम ज़माने से जोड़ कर देखना चाहिए। तब मनुष्य के लिए सुरक्षा ही प्रमुख समस्या थी। समूह में रहना
    उसकी विवशता। लगातार अपने प्रतिद्वन्द्वी समूहों से हिंसक टकराव और हिंस्र पशुओं का शिकार होते जाने के दोहरे खतरे से जूझते
    आदिमानव के लिए ज़रूरी था कि उसका कुनबा बढ़ता रहे ताकि समूह की ताकत बनी रहे। सभ्य होने के बाद समूह की यही ताकत
    राज्य सत्ता पर काबिज रहने का नुस्खा बनी। ताक़त के एहसास ने मनुष्य को आत्मगौरव से भरा और विशिष्ट समूहों में रक्त-शुद्धता का
    भाव उजागर हुआ। इसी मुकाम पर आकर वैवाहिक संस्था का जन्म हुआ और वंशवृद्धि अब कुटुम्ब विशेष के अदृष्ट भविष्य तक
    चलनेवाले काल्पनिक महिमागान का निमित्त बनी।

    # हरिवंश-पुराण। कुछ लोग इसे उपपुराण भी मानते हैं मगर अठारह पुराणों और उपपुराणों मे इसका शुमार नहीं है।
    महाभारत में मुख्यतः युद्ध का पूरा वृत्तांत है मगर कृष्ण व यादवों के बारे में विस्तार से सब कुछ नहीं है। इसी के लिए
    महाभारत के परिशिष्ट के तौर पर सौति ने हरिवंश की रचना की जिसमें वैवस्वत मनु से सृष्टि की कथा शुरू करते हुए
    भगवान विष्णु के अवतारों की महिमा बताई गई है जिसमें द्वापर में विष्णु के कृष्णावतार का ही बखान है। सौति ने ही
    नैमिषारण्य मे ऋषियों को महाभारत कथा सुनाई थी।

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  17. @Mansoor Ali
    आपको ये सफर का ये पड़ाव पसंद आया, इसके लिए शुक्रिया हाश्मी साहब।

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  18. aap ke pas to sabdo ka pitara hai
    nayi jankari ke dhanyavad

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  19. वाह दादा बंसी का यह सफ़र अच्छा लगा,कहते हैं भगवान् श्री कृष्ण ने बास को यह वरदान भी दिया था की तुम्हे कोई जलाएगा नहीं इसलिए अधिकतर संगीतकार जिन्हें इस बात का पता हैं ,बांस की बनी अगरबत्ती नहीं जलाते

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