Wednesday, July 29, 2009

नैहर और मायके की बातें

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नैहर जैसा शब्द अब सुनने को कम ही मिलता है। पहले लोकगीतों से लेकर फिल्मी गीतों तक इस शब्द का खूब प्रयोग होता था। देहात में यह अब भी बोला जाता है मगर भाषा के शहरी संस्कार से यह दूर हो चुका है क्योंकि अब फिल्मी गीतों में भी इसका प्रयोग बंद सा हो गया है। नैहर का मतलब होता है पिता का घर या मायका। किसी ज़माने में पति से अपनी बातें मनवाने के लिए महिलाएं मायके जाने की धमकी का प्रयोग एक कारगर हथियार की तरह करती थीं मगर अब ऐसा नहीं है। मानें या न मानें, बदलती मान्यताओं और संचार क्रांति की बदौलत अब विवाहिता के लिए मायका पड़ोस ही हो गया है सो मायके की धमकी का उपयोग शायद ही होता है।
नैहर शब्द संस्कृत के ज्ञातिगृह से बना है। ज्ञातिगृह बना है ज्ञाति+गृह से। संस्कृत में ज्ञाति का अर्थ होता है संबंधी, पितृपक्ष, अपने, नाते-रिश्तेदार आदि। ज्ञाति बना है ज्ञा धातु में क्तिन प्रत्यय लगने से। गौरतलब है कि ज्ञा धातु में जान, पहचान, परिचय, अनुभव, समझ आदि भाव समाहित हैं। इससे ही बना है ज्ञान शब्द। जानना और जान जैसे शब्दों के मूल में ज्ञान ही है। जिसे सब चीज़ो का ज्ञान होता है उसे ही जानकार कहते हैं। विज्ञान भी इससे ही बना है। स्पष्ट है कि ज्ञा में निहित जानने के भाव से ही ज्ञात शब्द भी बना है जिसका अर्थ है जिसे जाना जा चुका है। इसमें वस्तु से लेकर अनुभूति और स्थान से लेकर व्यक्ति तक आ जाते हैं। इसी तरह ज्ञाति में भी जिसे जाना जा चुका है का ही भाव है, मगर इसमें विशेषकर व्यक्ति प्रमुख हैं, इसीलिए इसका मतलब संबंधी, रिश्तेदार आदि होता है। नाता, नातेदार, नातेदारी जैसे शब्दों के मूल में ही ज्ञाति झांक रहा है। ज्ञातिगृह में यह भाव पितृपक्ष यानी पिता के घर, उनके संबंधियों-नातेदारों से जुड़ता है। रिश्तेदार वही है जिसे आप भली भांति जानते हैं। इस तरह ज्ञातिगृह का अर्थ हुआ पिता का घर या मायका। गौरतलब है कि आज ज्ञ वर्ण का प्रयोग करते समय ग्य ध्वनि का उच्चार होता है जबकि इसके मूल में ज+न+य अथवा ग+न+य ध्वनियां हैं जिनका उच्चारण ग्न्य अथवा द्न्य या फिर ज्न्य की तरह होता है। मूल बात अनुनासिकता की है जो ग्य् में कहीं भी नहीं
...नैहर के लिए संस्कृत में ज्ञातिगृह जैसा शब्द है। यह बना है ज्ञा धातु से...
झलकती है।  ज्ञातिगृह के नैहर में बदलने का क्रम कुछ यूं रहा ज्ञातिगृह > णातिघर > णाईहर > नाईहर > नैहर। अवध के नवाब वाजिद अली शाह  ने बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय... गीत में नैहर शब्द को साहित्य में अमर कर दिया।
ब मायके की बात। नैहर में अगर पिता के घर की बात है तो मायका शब्द में मां के घर की बात उभर रही है। यह शब्द बना है मातृका+कः से। संस्कृत में मातृका का अर्थ होता है लक्ष्मी, दुर्गा, देवी, माता आदि। इसके अलावा इसमें धन, ऐश्वर्य आदि भाव भी समाहित हैं। मातृका शब्द में जन्म स्थान या मूलस्थान का भाव भी निहित है। मां को जननि इसीलिए कहते हैं। मातृका में पोषण का भाव भी है। कन्या का पालन पोषण उसकी मां ही करती है। वहीं उसे जन्म देती है और बड़ा करती है। मातृका से ही बना है माइया जिसके प्रचलित रूप है मइया, माई या मैया। इस तरह मातृका+कः से बना मायका जिसके मायरा, माइका, मैका, माहेर जैसे रूप भी प्रचलित हैं।
विवाहोपरांत पति का घर ही स्त्री का घर होता है मगर इसके लिए कोई विशेष शब्द नहीं है। थोड़ा सा रूमानी होकर इसे पिया का घर वगैरह कह दिया जाता है। माता-पिता की तरह ही पति के पिता का घर ही स्त्री का असली घर कहलाता है जिसे ससुराल कहते है। हिन्दी का ससुर शब्द संस्कृत के श्वसुर से बना है। श्वसुर+आलय मिलकर हुआ श्वसुरालय यानी ससुर का घर। गौरतलब है कि आलय का अर्थ होता है निवास, आश्रय, बसेरा आदि। इस तरह श्वसुरालय से ही बन गया ससुराल जिसे कई जगह सुसराल भी कहते हैं।

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28 comments:

  1. जबरदस्त लिखा...आनंद आया. कुमार गन्धर्व का नैहरवा हमका ना भावे...याद आ गया.

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  2. maine mere jeevan me bahut kuchh padhaa hai ajit ji,
    lekin aap jo padhvaa rahe hain
    ___________voh adbhut hai
    ______________anootha hai
    _____________adwiteeya hai

    meri saari duaayen aapke liye...
    itnaa khush kar diya

    jai ho...............aapki !

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  3. बहुत ही साधारण पर महत्वपूर्ण शब्द मायका से परिचित कराके आपने तो हमें मायके की याद दिला दी पर यहां मायके की धमकी वाली
    बात काम ही नही आती क्यों कि इतनी दूर जो है! आपका ये आलेख कुछ नैहर की यादों की तरह सुखकर लगा आभार!

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  4. आभार इस तरह से इन शब्दों से परिचय करवाने का. आने वाले समय में यह शब्द सिर्फ किताबों में दिखेंगे. आपने दस्तावेजीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है.

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  5. नैहर और मायके के बहाने बहुत सी संवेदनाओं को छू लिया गया है । ज्ञातिगृह से नैहर की विकास यात्रा के बारे में अनुमान नहीं हो सकता था ।
    ’बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाय’ - किसी ने कहा था मुझसे कि वाजिद अली शाह की लिखी रचना है । यहाँ अमीर खुसरो द्वारा लिखे जाने की बात है । एक बार पुनः जाँच लें कि मैं अपनी जानकारी सुधार लूँ ।

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  6. @हिमांशु
    बिल्कुल ठीक कह रहे हैं हिमांशु। ग़लती ठीक कराने का शुक्रिया।
    मैं एक पोस्ट को कई बार संपादित करता चलता हूं, जब जैसा वक्त मिले। उपसर्ग में निहित रहित जैसे भाव अक्सर यही सब करने के लिए प्रेरित करते हैं। आप जैसे पाठकों की सूचनाओं ने अक्सर ही सफर के आलेखों को मूल्यवान बनाया है। शुक्रिया भाई। संशोधन कर दिया है।नैहर पर खुसरो का नहीं, वाजिदअली शाह का हक़ है।

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  7. अजित वडनेरकर जी!
    आपने अच्छी जानकारी दी।
    कही नहर और नैहर का भी तो कोई सम्बन्ध नही है।

    25 जुलाई की आपकी पोस्ट में उक्त टिप्पणी की थी। उसका उत्तर इस पोस्ट से मिल गया है। धन्यवाद!

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  8. बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय..
    वैसे भोजपुरी में नैहर का प्रयोग अभी भी धड़ल्ले से होता है . सदैव की तरह उम्दा पोस्ट

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  9. @सिद्धेश्वर
    सिद्धू भैया,
    इतनी विलम्ब से हाजिरी को क्या आप खुद भी झेल जाते हैं ?
    मज़ाक किया था, बुरा न माने। शब्दों का सफर तो सलोना साथ है। अच्छा लगता है। जब चाहें हाजिरी बोलें...:)

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  10. हमेशा की ही तरह बेहतरीन..

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  11. नैहर शब्द का अपना रोमांच है, लेकिन सच में अब यह हिन्दी में पराया सा लगने लगा है।

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  12. @अलबेला खत्री
    बहुत बहुत शुक्रिया दुआओं के लिए अलबेलाजी। शब्दों का सफर बी अलबेला-निराला है। आपकी उपस्थिति ने हमें प्रेरित किया है कि इसे और चलाया जाए।
    साभार ...

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  13. अब समझ में आया ...बाबा रामदेव ज्ञान को ज्यान क्यों कहते हैं..
    सुंदर व ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ..!!

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  14. यहां ऐसे लगता है जैसे शब्द हमारे साथ खुद बातें कर रहे हों?

    रामराम.

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  15. बहुत आभार अजित जी.
    जीवन का हर रंग आपके
    और अपने इस सफ़र की पहचान है.
    =============================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  16. ग्यान के साथ साथ मायका और ससुराल दोनो याद करवा दिये बहुत बडिया आलेख शायद आब से ये लगा करेगा कि ससुराल मेरा घर नहीं था वो भी पिता के घर की तरह ससुर जी का ही था हा हा हा वसे औरत का घर कौन सा है उस शब्द के बारे मे जरूर जानकारी दें आभार्

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  17. बहुत बढ़िया लेख !

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  18. bahut badhiya aalekh .yu to aapke shbdo ka safar jeevan se jude huye hi shbdo ki phchan karata hai .kitu naihar shbd ki vivechna savan ke mahine me adhik sarthak rhi .savan me naihar ,mayka shbd bhle hi aaj ki pidhi ke liye pdos ho ya mayka ghar me hi hi(mobail ki karpa )ho par ham jaise purane logo ki to naihr aur mayke shabd se abhi bhi aankhe bheeg jati hai .
    beete re jug koi chithiya na pati na koi naihar se aaye re ............
    abhar

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  19. लोग पूछते है - ऐसा क्या है शब्दावली में?
    मेरा, कहना है अगर आप पढोगे तो जानोगे
    मेरा शब्दों के प्रति ज्ञान बढाने में आपके इस ब्लॉग का बहुत बड़ा हाथ
    शुक्रिया -

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  20. इतनी बार सुना है,ह्रदय के इतने निकट है.....पर आज तक नहीं जानती थी की " नैहर छूटो री जाय " के रचयिता वाजिद अली शाह हैं.....

    शब्द " नैहर " में ऐसा प्रभाव निहित है की स्मरण मात्र से अंखियों की कोर पनिया जाती है.....
    सो अब क्या कहूँ की आपकी यह यात्रा कैसी अनुभूति दे गयी......

    ज्ञान के साथ साथ भावों का भी संवर्धन हुआ....

    बहुत बहुत आभार....

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  21. माइके से ससुराल तलक पहुंचाया है,
    शब्दों की बारात में रंग बरसाया है.
    ज्ञातिगृह संवर्धित होते होते अब,
    प्यारा-प्यारा सा नैहर बन आया है.

    नैहर जैसा सुगन्धित, ससुराल जैसा गेंदा फूल ...आलेख.

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  22. प्रोफाइल में फोटो बहुत झकास लगाए हो भाउ ! कौन स्टूडियो में खिंचवाए?

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  23. बहुत सुन्दर विश्लेषण। वैसे हम पूरब वाले अपनी मेहरारू के नइहर-ससुरा आवागमन के झमेले में बहुत खर्च में पड़ जाते हैं। साथ में विदाई का सामान बहुत लगता है। काफी झमेलोत्पादक होता है यह। लेकिन अगर बीबी न‍इहर न जाय तो मिंया जी को कई प्रकार के आनन्द से वन्चित रहना पड़ता है। ससुराल जाकर आवभगत कराना भी उसमें एक है। :)

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  24. मायका माँ का होता है पता था नैहर के बारे में आज ही पता चला

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  25. औरत का भी कोई अपना घर होता है? शायद, आजकल बदलाव आया हो..वरना तो 'बेटी पराया धन' होती है,यही सुनते आये हैं..चाहे जिस हाल में जिए, उसकी अर्थी तो 'पती के' घरसे उठनी है..!
    'माहेर वाशीन''' नाही तर "सासुर वाशीन"...हो ना?

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  26. नैहर शब्द के बारे में आपने बहुत जानकारी दी . , बहुत धन्यवाद . नैहर तो यूँ भी बहुत याद आता है . आपके शब्द सफ़र ने हमें नैहर तक पहुंचा दिया ! धन्यवाद

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  27. एक जगह बैठे-बैठे कितनी सैर करा देते हैं आप,दुनिया कितनी भी बदल जाए नैहर या मायका दोनों ही शब्द मन को कहाँ -कहां घुमा लाते हैं !सुन्दर अनुभूतियाँ जगाने के लिए धन्यवाद.

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