इ स्लामी दुनिया में अभिवादन या विनय प्रदर्शन करने के अन्य शिष्टाचार हैं। मगर शब्दों के सफर पर नज़र डालें तो इस्लामी परम्परा में भी यह नमस्कार एक दूसरे रूप में दिखाई पड़ता है उसकी वजह है इस शब्द की इंड़ो-ईरानी परिवार से रिश्तेदारी। नमस्कार बना है संस्कृत की नम् धातु से जिसका मतलब है झुकना, सम्मान दिखाना आदि। इससे ही बने हैं नम्र, विनम्र जैसे शब्द जिनमें विनय के साथ साथ झुकने का भाव निहित है। झुकने आदि के लिए हिन्दी में प्रचलित नमना या नवांना (शीश नवांना) जैसे शब्द भी नम् धातु से ही बने हैं। नमस्कार, नमन्, नमामि आदि प्रार्थना-मूलक, अभिवादन-सूचक शब्दों का निर्माण भी नम् धातु से ही हुआ है। झुकने के अर्थ में ही नत् या नत शब्द भी है जो इसी मूल से निकला है। इस श्रंखला में आते हैं विनत, विनती और बिनती जैसे देसी शब्द जो प्रार्थना के अर्थ में खूब प्रचलित हैं। प्रणत, प्रणति, प्रणिपात आदि शब्द भी इसी कड़ी में हैं। नमनि, नमनीय और यहां तक की नमस्कारना जैसे क्रिया रूप भी इससे बन गए।
इस्लाम में ईश्वर प्रार्थना की प्रक्रिया नमाज़ कहलाती है। यह पांच बार संपन्न होती है। गौर करें नम् मे निहित झुकने के भाव पर। नमाज़ में सिजदे के तहत झुकने या शीश नवांने की क्रिया संपन्न हो रही है। संस्कृत और पुरानी फारसी यानी अवेस्ता सगी बहनें थीं। इस रूप में जिस नम् से संस्कृत में नमस् जन्मा उसी का अवेस्ता रूप हुआ निमह, पहलवी में हुआ नमास जो बाद में फारसी में नमाज़ के रूप में ढल गया। अरबी में भी यह लफ्ज़ फारसी से ही गया है। अरबी, फारसी ,उर्दू और हिन्दी में आज इससे बने कई शब्द प्रचलित हैं जैसे नमाज़ी, निमाज़, नमाजे़ ईद, नमाज़े जनाज़ा, नमाज़गुज़ार वगैरह वगैरह। नमस्कार के अर्थ में ही हिन्दी-संस्कृत में प्रणाम शब्द बहुत प्रचलित है। यह भी इसी कड़ी का हिस्सा है और नम् धातु (प्र+नम्+घञ्) से ही बना है। प्रणाम से ही बना है प्रणिपतनम् या प्रणिपातः जैसे शब्द जिसमें दंडवत नमस्कार अथवा चरणों गिरने का भाव है। यही साष्टांग नमस्कार भी है। प्रणाम अथवा अभिवादन करने का एक तरीका है दण्डवत नमस्कार। यह भूमि के समानान्तर सरल रेखा में लेट कर किया जाता है। दण्डवत अथात डंडे के समान। जिस तरह डंडा भूमि पर पड़ा रहता है , आराध्य के सामने
अपने शरीर की वैसी ही मुद्रा बनाकर नमन करने को ही दण्डवत कहा जाता है। इस मुद्रा का एक अन्य नाम साष्टांग (स+अष्ट+अंग) नमस्कार भी है। गौरतलब है कि दण्डवत मुद्रा में शरीर के आठों अंग (अष्टांग) आराध्य अथवा गुरू के सम्मान में भूमि को स्पर्श करते हैं ये हैं-छाती, मस्तक, नेत्र,मन, वचन,पैर, जंघा और हाथ। इसी मुद्रा को साष्टांग प्रणिपात कहा जाता है जिसके तहत मन और वचन के अलावा सभी अंगों का स्पर्श भूमि से होता है। मन से आराध्य का स्मरण किया जाता है और मुंह नमस्कार या प्रणाम शब्द का उच्चार किया जाता है।
अरबी ज़बान का सज्दा (सज्दः) शब्द भी अभिवादन या आदरांजलि का ही एक रूप है जिसे हिन्दी में सिजदा भी कहा जाता है। सिजदा का अर्थ होता है झुक कर अभ्यर्थना करना। भारतीय संस्कृति में जिसे दंडवत कहते हैं दरअसल सिजदा में वही भाव है। यह उपासना की वही पद्धति है जिसमें माथा, नाक, घुटना, कुहनियां और पैरों की अंगुलियां ज़मीन को छूती हैं। यह बना है अरबी भाषा की धातु स-ज-द ( s-j-d) से जिसमें प्रार्थना करने, घुटनों के बल झुकने, नमने या दंडवत करने का भाव है। अरबी भाषा का एक प्रसिद्ध उपसर्ग है म जिसमें सहित या शामिल का भाव होता है। म लगने से सज्दा (सज्दः) बनता है मसजिद जिसका मतलब है प्रार्थना स्थल या इबादतगाह।
अभिवादन के और भी कई अन्य सम्बोधन-शिष्टाचार हैं जैसे ईश्वर के नाम के साथ एक-दूसरे की खैरियत पूछना। इसके मूल में भाव यही रहता है कि सब पर प्रभु की कृपा बनी रहे। उत्तर भारत में जय सियाराम!! कहने का खूब प्रचलन है। मूल रूप से यह होता है ‘जय सियाराम की’ मगर वर्णसंकोच को चलते अब सिर्फ जय सियाराम रह गया है। ग्रामीण अंचल में तो इसका रूप सिमट कर जैस्याराम हो गया है। सबसे लोकप्रिय अभिवादन “जै जै” करना है। सिर्फ “जै जै” में प्रणाम प्रेषित करनेवाले के प्रति आशीर्वचन-शुभेच्छा भी छिपी रहती है अर्थात “तुम्हारी विजय हो”। जय अम्बे, जय दुर्गे, जय भोलेनाथ भी ऐसे ही शिष्टाचारी शब्द हैं। दिलचस्प बात यह कि अंग्रेजी का संबोधनात्मक संकेत हैलो या हल्लों भी अब अभिवादन शिष्टाचार में शामिल हो चुका है। दुनियाभर में हैलो या हल्लो (hallo/hello) को शोहरत दिलाने का श्रेय टेलीफोन के साथ जुड़ा है। इसके जन्मदाता के तौर पर अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का नाम भी लिया जाता है और एडिसन का भी। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि बेल ने दरअसल टेलीफोन के पहले परीक्षण के दौरान दूसरे छोर पर बैठे अपने सहायक से हॉय (ahoy) कहा था और हैलो शब्द का इस्तेमाल टेलीफोनिक वार्ता के लिए अभिवादन-संकेत के तौर पर होना चाहिए यह सूझ मूल रूप से थामस अल्वा एडिसन की थी। जो भी हो, इन ध्वनि संकेतों के जनक ये दोनों भी नहीं थे।
सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य ने एक-दूसरे का ध्यानाकर्षण करने के लिए जिन ध्वनियों का
प्रयोग किया, दुनियाभर में उनमें आश्चर्यजनक समानता है। ज्यादातर कण्ठ्य ध्वनियां हैं जो सीधे गले से निकलती हैं। जिसके लिए जीभ, दांत अथवा तालु का कोई काम नहीं है जैसै अ-आ अथवा ह। एक अन्य दिलचस्प समानता यह भी है कि यह शब्दावली पूर्व में भी और पश्चिम में भी मल्लाहों द्वारा बनाई गई है। भारत के ज्यादातर मांझी या मल्लाह ओssssहैsया, हैय्या होsss जैसी ध्वनियों का प्रयोग करते हैं। सामान्यतौर पर ध्यानाकर्षण के लिए ऐ भाई, या ओ बाबू जैसे सम्बोधन ही इस्तेमाल होते हैं। अरबी, फारसी, उर्दू में शोर-गुल के लिए “हल्ला” शब्द प्रचलित है जिसका रिश्ता भी इन्हीं ध्वनियों से है। इसे ही “हो-हल्ला” या “हुल्लड़” कहते हैं। यूरोप में भी नाविकों के बीच ध्यानाकर्षण का प्रचलित ध्वनिसंकेत था ahoy यानी हॉय। इसके अलावा पुरानी जर्मन में भी hola/hala जैसे संकेत थे जो अंग्रेजी के hallo/hello में तब्दील हो गए। मूल रूप से इन ध्वनियों को किसी भाषा परिवार में नहीं बांटा जा सकता। ये आदिम ध्वनियां हैं और मनुष्य के कंठ में भाषा का संस्कार आने से पहले से पैठी हुई हैं और सहजता से उच्चारी जाती रही हैं। आप्टे के संस्कृत कोश में हंहो शब्द का उल्लेख है जिसका प्रयोग प्राचीनकाल में आवाज देने के लिए संबोधनात्मक अव्यय के रूप में होता था। वही आदिम ध्वनियां आज भी हाय और हैलो के रूप में समाज में धाक जमाए हुए हैं। भारत में नमस्कार-चमत्कार की तरह अभिवादन की औपचारिकता के लिए हाय-हलो मुहावरा भी प्रचलित हो गया है। पंजाबी में इसे हलो-शलो कह लिया जाता है। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव में अब गुड-मार्निग/गुड-इवनिंग कह कर भी अभिवादन सम्पन्न हो जाता है।
[सलाम, आदाब की चर्चा अगली कड़ी में]
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एक और बेहद उम्दा सफ़र |
ReplyDeleteधन्यवाद |
आपके ज्ञान को नमस्कार!
ReplyDeleteनमस्कार में कमाल की अभिव्यंजना है। जैसे
ReplyDeleteमैं तो आज अपनी नौकरी को नमस्कार कर आया हूँ।
सुंदर सफर!
नमन प्रभु ! आप की पोस्ट्स पे कोई क्या कहे ? इसी तरह ज्ञानवर्धन करते रहें ..... बेहतरीन पोस्ट हमेशा की तरह.
ReplyDeleteएक और उम्दा शब्दों का सफर
ReplyDeleteइतने सुन्दर लेख के लिए साष्टांग दण्डवत भाऊ ।
ReplyDeleteउपनिषद (सम्भवत: वृहदारण्यक) में 'हेSलव' अभिवादन का प्रयोग करने वाले मलेच्छों का उल्लेख है अर्थात यह काफी पुराना प्रयोग है।
नमस्ते जी नमस्ते !
ReplyDeleteशब्दों का ये अद्भुत सफ़र ..हिंदी के शब्दों की कहानी और उनके इतिहास से खूब परिचय करा रहा है..और अन्य कुछ विशिष्ट ब्लोग्स की तरह हिंदी ब्लॉग्गिंग का एक धरोहर है .
ReplyDeleteहैलो! हाय!! प्रणाम!!! नमस्ते!!!!
ReplyDeleteमतलब सबका एक है।
पथ पर आगे बढ़ते जाओ,
सफर आपका नेक है।।
बहुत नायाब जानकारी. धन्यवाद.
ReplyDeleteरामराम.
नमस्ते नमामि नमस्कार तुमको
ReplyDeleteज्ञान वर्धन के लिए सजदा
हमेशा की तरह हमारी जानकारी बढ़ानेवाला आलेख। आपकी मेधा और लेखनी को प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार।
ReplyDeleteबहुत बडिया रहा आपके शब्दों का सफर तो अब हमारा नमस्का्रना भी सवीकार करे आभार्
ReplyDeleteबहुत परिश्रम के साथ आपने समुन्दर को लौटे में प्रस्तुत किया, दिल खुश होगया, उपयोगी जानकारी से परिपूर्ण होते हैं आपके लेख,
ReplyDeleteबधाई
बहुत रोचक,उपयोगी और सार्थक आलेख लगा.और कितने धर्म और देशों के की कितनी दीवारें सिमट कर शब्दों के सफर से पास आ खड़ी हुई है.वक्त का कितना फासला कम हो गया.शब्द को शक्ति मानता हूँ मैं,पर आपने उसको महसूस करवाया है....सोच कर अभिभूत हुआ जाता हूँ....
ReplyDeleteशब्द शक्ति पर महाकाली का स्वरूप याद आता है.महाकाली अर्थात काल(समय)की अधिष्ठात्री!उसके गले में बावन नर मुंडों की माला बावन स्वर और व्यंजनों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है....और बाहर निकली जिव्हा शब्द की प्रतीक है....
आलेख के शब्दों की व्याख्या से गुजरने पर कुछ ऐसा प्रभाव महसूस होता है....
प्रकाश पाखी
दण्डवत करित आहो मी तुम्हाला साष्टांग दण्डवत।
ReplyDeleteअजित वडनेरकर गजब हैं.
ReplyDeleteहम सब उनके लिखे के दीवाने हैं
सफर के सभी साथियों का खूब खूब शुक्रिया...
ReplyDeleteएक और बेहतरीन सफ़र, मुझे ख़ुशी है की हम भी इस सफ़र के मुसाफिर हैं.
ReplyDeleteविशिष्ट आलेख । सारगर्भित विवेचना । इन महत्वपूर्ण शब्दों की चर्चा का आभार ।
ReplyDeleteओsssssहैsया, हैय्या होsss। या ओऽऽऽऽऽहैऽया। नागरी के अवग्रह की जगह अंग्रेज़ी का ऐस लगा रहे हैं।
ReplyDeleteइंस्क्रिप्ट कीबोर्ड के दो संस्करण है--हिंदी ट्रैडिशनल और देवनागरी - इंस्क्रिप्ट। देवनागरी - इंस्क्रिप्ट में अवग्रह है।
देखें:http://u.nu/55jx
बड़ा अच्छा विविचन किया है | बढिया लगा |
ReplyDelete- Safer too bahut say hotay hai, parantu 'sabdoo ka safer' too bahut naayab hai , dilkash hai, aur itihas mai pahuchata hai. Bahut accha safer hai, laykin YAah itna chota hai aur adhura lagta hai.
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार हो ....
ReplyDeleteआपके तप - तुल्य परिश्रम के लिए कोटिशः नमन
ReplyDeleteमहानुभाव प्रणिपात शब्द में प्र तथा नि उपसर्ग तथा पत् = गिरना धातु का समायोजन है | आपने शब्द- विवेचना सारगर्भित शैली में की है !