Monday, September 14, 2009

शरद कोकास की आत्मा का पुनर्कायाप्रवेश

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वि और ब्लागर शरद कोकास से रविवार को मिलना हुआ। शरद जी बीते तीन दिनों से भोपाल में ही थे। वे दुर्ग से यहां ख्यात हिन्दी कवि भगवत रावत के सम्मान में हुए एक आयोजन में शिरकत करने आए थे। शरद जी ने अपने भोपाल आने की सूचना हमें पहले ही दे दी थी और रविवार को हमने उन्हें अपने घर आने का न्योता दिया। दोपहर को उन्हें लेने जाने वाले थे, पर कुछ अड़चन आ गई। रात को शरद भाई अपने संबंधी श्री पांचाल के साथ आए। किसी भी ब्लागर साथी से मिलकर कभी यह नहीं लगता कि पहली बार मिलना हो रहा है। यही शरद जी के साथ भी अनुभव रहा।

मन लागो मेरो ब्लॉग-फकीरी में DSC01206DSC01213 DSC01214 

रद इन दिनों मगन हैं। उनकी मान्यता है- “ज़िन्दगी से हटकर कविता और कविता से हटकर ज़िन्दगी हो ऐसा नहीं हो सकता यही मेरा यथार्थ है यही मेरा स्वप्न और यही आकांक्षा है।” घर-दफ्तर के बीच “मैं कहां और ये बवाल कहां”  के अंदाज में ढ़ाई दशक से भटक रही उनकी आत्मा का पुनर्कायाप्रवेश हो चुका है। बीते करीब पच्चीस-छब्बीस बरस से वे भारतीय स्टेट बैंक की सेवा कर रहे थे। अब बैंक वालों को शरदजी की कवि-आत्मा से कोई मतलब नहीं था, सो काया ही दिन-रात बैंक की सेवा में खट रही थी और उधर दुखी होती थी आत्मा कि साहित्य-समाज के लिए वक्त नहीं है। बस, उन्होंने तय कर लिया कि अब और नहीं। पिछले दिनों नौकरी को अलविदा कह दिया। वीआरएस की परिपाटी के मुताबिक बैंक प्रबंधन ने उनकी काऊंसलिंग भी की। इंटरव्यू लिया और जानना चाहा कि यह सही मनोदशा में उठाया गया क़दम है या नहीं। उनके परिजनों से पूछा गया कि क्या वे जानते हैं कि साहब  क्या करने चले हैं? अब चूंकि घरवाले तो शरदजी के ही थे, सो कहना ही था कि वे सब जानते हैं। बड़े जिम्मेदार इनसान हैं शरदजी, आप तो जल्दी से इन्हें मुक्त करिये।
 म तो उनकी इस मुक्ति और खुद को फिर पाने की इच्छा के फलीभूत होने की गाथा सुनकर बहुत प्रभावित हुए। अपनी ऐसी क़िस्मत कहां कि चाकरी से मुक्ति पाएं। ठंडी सांस भरते हुए हमने मित्र की खुशी में खुशी जताई। शरद जी अब लगातार अपने मन की दुनिया में रमें हैं। कुछ पुस्तकों पर काम चल रहा है। खूब किताबें पढ़ रहे हैं। उनके संग्रह में इतनी पुस्तकें हैं कि बकौल उनके “उन्हें पढ़ने में दो जन्म भी कम पड़ेंगे” अब यह पुनर्कायाप्रवेश वाला मामला भी पुनर्जन्म जैसा ही है। जाहिर है दो जन्म तो उनके हो चुके हैं।… लगता है मैं कहीं गलती कर रहा हूं…शरदजी ब्राह्मण देवता है सो द्विज हुए। यानी दो जन्म तो उनके हो चुके हैं। यह तीसरा जन्म माना जाना चाहिए। खैर, शरदजी हमारे घर आए और इतना बतियाना हुआ कि समय का ध्यान नहीं रहा। श्री पांचाल ने जब याद दिलाया कि पौने ग्यारह रहे हैं तब बेमन से गोष्ठी समाप्त करनी पड़ी। कुछ तस्वीरें इस मौके पर ली गईं जो यहां पेश हैं। शरदजी तीन दिनों से ब्लागजगत से दूर थे सो यहां वे वही कसर पूरी करते नज़र आ रहे हैं।

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21 comments:

  1. कभी मैंने कहा था ,एक सहेली से ...' जो गुनगुनाता नही,वो इंसान नही...'...सहमत हूँ, शरद जी से...'कविता और जीवन अलग, अलग नही चल सकते..'...गद्य लिखा हुआ भी, काव्यमय होता है..कई बार...

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  2. शरद जी के ब्लॉग देखे। बहुआयामी लखन है। बहुआयामी प्रतिभा!

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  3. वाह.....बड़ी ही सुखद अनुभूति हुई....इसका मतलब है शरद जी अतिसंवेदनशील होने के साथ साथ अतुलनीय आत्मबल के स्वामी हैं....

    सतत सुन्दर लेखन के लिए मैं उन्हें हार्दिक शुभकामनाये देती हूँ...माता सरस्वती सदा उनपर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखें...

    अजित भाई,आपका भी बहुत बहुत आभार...

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  4. तो शरद जी यहाँ है ..तभी इ मेल का जवाब नही मिला :-)

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  5. शरद जी को 'अत्यंत व्यस्त तीसरे जन्म' की शुभकामनाएं.यहाँ उनसे मिलना अच्छा लगा.

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  6. उन्हें पढता आया हूँ ओर उनकी चुनी हुई चीजो को भी संवेदना की एक बड़ी सी जगह अभी उनके दिल में स्टोर है ...अच्छा हुआ आप लोग मिल लेते है

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  7. शरद कोकास अपनी मिजारिटी के लगते हैं -अच्छा किया वी आर एस ले लिया ,अब रोज की चिक चिक से मुक्ति मिलेगी और कुछ समाज सेवा हो सकेगी! शुभकामनाएं !

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  8. नमस्ते मित्रों !
    बहुत बढ़िया , मैं मई मास / वर्ष २००९ में शरद कोकास जी से भिलाई में मिल चुका हूँ. याद ताजा हो गई. वे जितने अच्छे कवि हैं उतने अच्छॆ इंसान !
    -सिद्ध

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  9. जय हो शरद भाई और अजित जी की। मुक्ति हमेशा ही श्रेयस्‍कर होती है।

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  10. किताबें तो नीचे वाली तस्वीर में भी कुछ कम नहीं दिख रही :)

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  11. बहोत खूब --
    ब्लॉग मित्रता असल जीवन में प्रवेश कर गयी :)
    आप की भेंट वार्ता वृन्तांत पढ़ खुशी हुई
    हिन्दी हर भारतीय का गौरव है
    उज्जवल भविष्य के लिए प्रयास जारी रहें
    इसी तरह लिखते रहें
    - लावण्या

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  12. शरद जी को 'पुनर्जन्म' मुबारक हो.
    आशा है, इस नए जनम में उनकी सभी अधूरी अभिलाषाएं पूरी होंगी.[:D}
    शुभकामनायें.

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  13. ब्लोग दुनिया में नया और फ़िर ज्यादा पढ़ता भी नहीं हूँ इसलिये शरद जी के बारे में मालूम न था. पोस्ट ने एक नया परिचय करवाया है. शब्दों के सफ़र में कुछ और भी सफ़र चल रहे है.

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  14. कल दुपहर की इस पोस्ट का पता अब चला है। जब कि शरद जी ने मेरी टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी करते हुए बताया कि वे भोपाल में थे। शरद जी को त्रिज होने की बधाई।

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  15. पढ़कर बहुत अच्छा लगा । शुभकामनायें ।

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  16. शरद बाबू आपके पास हैं यह हमें ज्ञात हो गया था.

    चलो, किसी को तो मुक्ति का मार्ग मिला.

    यहाँ तो हमारी बैंक काउन्सलिंग करे कि काहे नहीं छोड़ देते नौकरी जब ब्लॉगिंग में इतना मन रमा है. घर वालों को बुला कर कहें कि इनको ले जाओ मगर घर वाले माने जब न!!

    अच्छा लगा तस्वीरों में वीरों को देखकर.

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  17. अजित भाई ,आज ही दुर्ग वापस लौटा हूँ । भोपाल के रीजनल कॉलेज में पढाई के बाद कई बार भोपाल गया लेकिन आपसे मुलाकात इस बार के सफर की विशेष उपलब्धि रही । आदरणीया भाभीजी जब हम लोगों की तस्वीरें खींच रही थीं ,मुझे नहीं पता था इनका ऐसा बेहतरीन उपयोग होगा । चलिये अब तो सारा गोपनीय ,ओपनीय हो गया है घरवाले भी इस बात से प्रसन्न हैं कि भोपाल में मै आवारागर्दी नहीं कर रहा था बल्कि सभ्य एवं सुसंस्कृत मित्रों के साथ ब्लॉगिंग जैसा सत्कर्म कर रहा था । आपके सुन्दर और सुसज्जित घर के साथ वह खीर की कटोरी भी दिख जाती तो सोने मे सुहागा हो जाता,आपके प्रेम मे सम्मिलित जिसकी मिठास लिये मैं वापस लौटा हूँ । साथ ही इस सफर के साक्षी और मुक्ति की बधाई देने वाले सभी मित्रों को धन्यवाद इस आशा के साथ कि हम सब इसी तरह मिलते रहें और ब्लॉगिंग से उपजे इन रिश्तों का सफर यूँ ही जारी रहे । -आप सब का शरद कोकास

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  18. आप की पोस्ट से शरद जी के बारे में जानना अच्छा लगा। आप की तरह हम भी एक ठंडी सांस भर कर शरद जी से रश्क कर रहे हैं कि अंतत: नौकरी की बेढ़ियों को तोड़ सके और वो कर रहे हैं जो करना चाहते थे।

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  19. शरद भाई से बात हुई थी और हरिओम के साथ हमें भी भगवत रावत जी वाले कार्यक्रम में आना था पर यहां एक कार्यशाला का आयोजन था और यारों की अनुमति नहीं मिली।

    ये न थी हमारी क़िस्मत…

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  20. quite interesting,humourous and sweet.reading your articles i feel i have along way to go

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