आ म बोलचाल में परिपाटी, प्रणाली या मार्ग के संदर्भ में लीक शब्द का प्रयोग होता है। एक ही लीक पर चलना। लीक बनाना और लीक मिटाना जैसे मुहावरेदार प्रयोग भी होते हैं। लीक की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। कहीं यह मार्ग, पंथ या पगडण्डी है तो कहीं यह परिपाटी, रीति या परम्परा तो कहीं सिर्फ रेखा। इस संदर्भ में प्रसिद्ध दोहा है-लीक-लीक गाड़ी चलै, लीकां चलै कपूत। लीक छोड़ तीनौं चलै, सायर-सिंघ-सपूत।।
लीक शब्द दरअसल लकीर से आ रहा है। लकीर यानी रेखा, सूचक चिह्न, लाइन आदि। दिलचस्प बात यह कि लकीर, रेखा और लीक की आपस में रिश्तेदारी है और ये तीनों शब्द एक ही मूल से जन्में हैं। इसके अलावा लेखक और राईटर जैसे शब्द भी इसी मूल से उद्भूत हैं। यूं तो लकीर शब्द का रिश्ता संस्कृत धातु लिख से है जिसमें लकीर खींचना, रेखा बनाना, घसीटना और छीलना, खुरचना जैसे भाव हैं। गौर करें प्राचीन मानव ने लिखने का काम पत्थरों-चट्टानों पर ही शुरू किया था। कठोर सतह पर प्रतीक चिह्न बनाने के लिए उसे सतह को खुरचना पड़ा। इसीलिए लिख में खुरचने, घसीटने का भाव प्रमुख है। प्रचलित अर्थों में जिसे लिखना कहते हैं वह भाव इसमें बाद में विकसित हुआ। लिख का ही अपभ्रंश है लकीर या लीक जिसमें रेखा, प्रणाली, परिपाटी या मार्ग आदि भाव हैं। लिख का प्राचीन रूप था रिष् या ऋष्। देवनागरी का ऋ अक्षर दरअसल संस्कृत भाषा का एक मूल शब्द भी है जिसका अर्थ है जाना, पाना। जाहिर है किसी मार्ग पर चलकर कुछ पाने का भाव इसमें समाहित है। जाने-पाने में कर्म या प्रयास का भाव निहित है जो इसके एक अन्य अर्थ खरोचने, लकीर खींचने, चोट पहुंचाने जैसे अर्थ से स्पष्ट है। ऋ की महिमा से कई इंडो यूरोपीय भाषाओं जैसे हिन्दी, उर्दू, फारसी अंग्रेजी, जर्मन वगैरह में दर्जनों ऐसे शब्दों का निर्माण हुआ जिन्हें बोलचाल की भाषा में रोजाना इस्तेमाल किया जाता है। हिन्दी का रीति या रीत शब्द इससे ही निकला है। ऋ का जाना और पाना अर्थ इसके ऋत् यानी रीति रूप में और भी साफ हो जाता है अर्थात् उचित राह जाना और सही रीति से कुछ पाना। ऋ का प्रतिरूप नजर आता है अंग्रेजी के राइट ( सही-उचित) और जर्मन राख्त (राईट)में।
हिन्दी के लेखक और अंग्रेजी के राइटर शब्दों के अर्थ न सिर्फ एक हैं बल्कि दोनों शब्दों का उद्गम भी एक ही है। लेखक शब्द लेख् से बना है वहीं राइटर शब्द राइट से बना है। इन दोनों शब्दों के मूल में संस्कृत की धातु रिष् है जिसका मतलब होता है क्षति पहुंचाना, ठेस पहंचाना, चोट पहुंचाना ऋष् शब्द का अर्थ भी चोट पहुंचाना ही होता है। इसीलिए तलवार या भाला जैसी वस्तु के लिए ऋष्टि शब्द भी है। रिष् का अगला रूप बना रिख् जिसमें आघात करना, खरोचना, खींचना, जैसी क्रियाएं शामिल हैं।
खुरचने-खरोचने की क्रिया से ही लकीर बनाने की क्रिया के लिए लिख शब्द चल पड़ा जिसके तहत आलेखन, उत्कीर्णन और चित्रण की क्रियाएं भी शामिल हो गईं। लिख से ही निर्माण हुआ रेखा का जिसका अर्थ हुआ लकीर , धारी, पंक्ति , आलेखन आदि। भाषाविज्ञानी डॉ रामविलास शर्मा का मानना है कि द्रविड़ भाषा परिवार की तमिल में लेखन के लिए वरि शब्द मिलता हैं जिस का अर्थ है लिखना , चित्र बनाना। थोड़े बदलाव के साथ तेलुगू में व्रायु, रायु जैसे रूप मौजूद हैं। व्रात का मतलब भी लेखन होता है। व्रात (vrat ) की तुलना अंग्रेजी के write से करें तो समानता साफ नज़र आती है। अंग्रेजी में इस शब्द के विकास क्रम में भी खुरचना जैसे अर्थ शामिल रहे हैं।
जाहिर है लीक शब्द भी बहुत पुरानी लीक पर चलकर विकसित हुआ है। लोक परम्परा भी लीक है और सचमुच देहात का कच्चा रास्ता भी लीक है जिस पर बैल गाड़ियां चलती थीं। पुराने ज़माने में भूमि पर लकीर खींचने से जुड़े हुए बहुत से लोकाचार थे जो कभी अनुष्ठान थे तो कभी सांस्कृतिक कर्म जैसे जमीन की नाप-जोख के लिए लीक खींचना या हवन-यज्ञादि अवसरों पर भूमि पर मांगलिक चिह्न उकेरना। प्राचीन काल से चली आ रही किन्ही परम्पराओं को भी लीक कहा जाता है। उनके प्रति निष्ठा व्यक्त करने के लिए भी भूमि पर लकीर खींची जाती थी जिसे लीक कहा जाता था। इसमें और अर्थविस्तार हुआ मार्ग और राह के संदर्भ में। पुरानी लीक पर चलना या नई लीक बनाना में रास्ते का भाव ही है। राह, रास्ता जैसे शब्द भी ऋ धातु से ही निकले हैं। बंधी-बंधाई राह चलने को ही लीक पीटना कहा जाता है जो किसी के लिए मर्यादा में रहना है तो किसी के लिए पिछड़ेपन की निशानी।
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ReplyDeleteजय हो, राइट के सँदर्भ और vrat / write की समानता वाकई एक नयी जानकारी रही, जिनके लिये मैंनें परेशान हो अँततः आस ही त्याग दिया था ।
उपर के भूदृश्य चित्र ने निहाल कर दिया। क्या ऐसे भूदृश्य भारत भू पर भी कहीं हैं?
ReplyDeleteकलेवर में किए गए बदलाव भी जँचे। फॉण्ट पहले वाला ही ठीक था।
लेख अत्युत्तम रहा। बहुत सी नई बातें पता चलीं। एक जगह अटक गया। वैदिक काल की अवधारणा 'ऋत' क्या इतनी सरल है? इसके गूढ़ार्थ क्या हैं ?
"हिन्दी के लेखक और अंग्रेजी के राइटर शब्दों के अर्थ न सिर्फ एक हैं बल्कि दोनों शब्दों का उद्गम भी एक ही है।"
ReplyDeleteयह तो अदभुत है । इतनी विश्लेषणात्मक सामर्थ्य कहाँ से आ जाती है आपमें ! अदभुत !
गांधी के जन्मदिन पर इससे अधिक सुहावना सफ़र क्या हो सकता था ?
ReplyDeleteयह दोहा किस का है? याद नहीं आ रहा। पर बहुत जानदार है।
ReplyDeleteशब्दों में भूली हुई रिश्तेदारियां आज फिर आपसे ज्ञात हुईं.
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट! आनन्दित भये बांचकर!
ReplyDeleteअब कलम से कागज़ पर लिखते हुये ये याद रहा करेगा कि हम कागज़ को चोट पहुँचा रहे हैं और मुझे एक कविता भी सूझ गयी शायद लिखूँ बहुत बहुत धन्यवाद बहुत बदिया है ये शब्दों का सफर
ReplyDeleteलीक पे चल के लेख पढ़ा है शब्दों का,
ReplyDeleteखींच, घसीट के छीला अर्थ है शब्दों का.
रेखा का किस-किस से रिश्ता जुड़ता है,
'ताब' नही कि सहले बोझ सब शब्दों का.
आज का सफ़र तो बहुत सुहाना रहा.
ReplyDeleteरामराम.
"बंधी-बंधाई राह चलने को ही लीक पीटना कहा जाता है जो किसी के लिए मर्यादा में रहना है तो किसी के लिए पिछड़ेपन की निशानी।"
ReplyDeleteलीक-लीक गाड़ी चलै, लीकां चलै कपूत।
लीक छोड़ तीनौं चलै, सायर-सिंघ-सपूत।।
बहुत बढ़िया विश्लेषण।
बधाई!
सपूत होने का प्रमाण देने के लिए लीक लांघना क्या उचित रहेगा ?
ReplyDeleteलीक पर चले सो लेखक। लीक छोड़े सो ब्लॉगर! :-)
ReplyDeleteआप अब बहुत ज्यादा बंधते जा रहे हैं और मैं चिंतित हूँ कि इतना परिश्रम आपके स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल ना हो जाये, इस ब्लॉग से आचार्य मम्मट के अनुसार लेखन के छ प्रयोजनों में से सिर्फ दूसरा प्रयोजन अर्थोपार्जन ही सिद्ध नहीं होता बाकि सब होते हैं जैसे यश, शिक्षा, जड़ शासन को सद्ज्ञान, व्यक्ति का विकास और स्वांत सुख... फिर आपको अर्थ के लिए भी कार्य करना होता है, परिवार भी है, परिवार है तो सामाजिक दायित्व भी है अतः दिनों के दायरे बाँध कर अपने ऊपर दवाब न बढायें. पहले से ही आप बहुत परिश्रम कर रहे हैं कृपया मेरे इस वक्तिगत विचार पर ध्यान दें. मैं चाहता हूँ की आप साधू स्वभाव अपना लें जब मौज आये अपनी खुशबू बिखेरते चलें...
ReplyDeleteबहुत खूब, "लीक" को गहराई से समझकर वाक़ई बहुत अच्छा लगा। बाक़ियों की लीक पर चलकर मैं भी टिप्पणी कर ही देता हूँ। :)
ReplyDeleteleek par ve chalen jinke charan durbal aur chinha haare hain.
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ReplyDeleteअजित भाई, जो कल रात न कह पाया, उसे किशोर चौधरी जी ने शब्द दे दिये ।
मैं उनकी बातों का अनुमोदन करता हूँ, यदि आपमें सुधार नहीं दिखता तो मैं एक अभियान चला दूँगा ।
Please go slow, Please go steady, but not in such a haste !
सादर - मैं एक सिरफिरा
@डॉ अमर कुमार
ReplyDeleteआदरणीय डाक्टसाब,
प्रिय किशोर के आत्मीय आग्रह और सुझाव
और आपकी चेतावनी, दोनों ही सिरमाथे। आपने देखा होगा कि
किशोर की समझाईश के बाद मैने उस सूचना को हटा लिया है।
अब आपकी भी आत्मीय मगर गंभीर चेतावनी मुझ जैसे सिरफिरे को
पटरी पर लीक पर, लाईन पर लाने के लिए पर्याप्त है।
निश्चिंत रहें। भलाई की बातें मुझे समझ में आती हैं।
आत्मीयता, अपनत्व के लिए शुक्रिया
साभार
अजित
@किशोर चौधरी
ReplyDeleteआपका आत्मीय सुझाव सिर-माथे किशोर भाई। हमने उस बंधन को त्याग दिया है।
चाहे तो "लीक छोड़ तीनौं चलै, सायर-सिंघ-सपूत": यहां देख लें।
आपके आत्मीय बंधन से तो बंधा ही हूं
आदरणीय वडनेरकर साहब, मन प्रफुल्लित है, आप मेरे लिए गहरी छाँव की तरह है फिर मैं आपसे निवेदन ही कर सकता हूँ, इसे समझाईश कह कर शर्मिंदा कर रहे हैं.
ReplyDeleteडॉ. अमर कुमार साब का भी आभार , अधिकार पूर्वक अपनी बात कहने के लिए. शब्दों का सफ़र अजस्र शब्द स्रोत बना रहे.
सुना है की अगर गन्ना मीठा है तो जड़ से ही काट डालते है और मीठा लगेगा |कुछ वैसे ही आज किशोरजी और अमरजी ने आपको समझाइश दी है |उससे मै भी सहमत हूँ |हमे सरलता से ज्ञान मिल रहा है तो हम तो आपका पीछा ही नहीं छोड़ते |
ReplyDeleteआप तो स्वयम ही लीक से हटकर कम कर रहे है |
बधाई और शुभकामनाये |
शुभकामनाएं। आपकी यह पोस्ट आज (14 अक्टूबर 2009) दैनिक जनसत्ता में शायर सिंघ सपूत शीर्षक से समांतर स्तंभ में संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुई है।
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