Tuesday, December 1, 2009

गंदगी और गन्धर्व-विवाह

gandh
मैला, बुरा के अर्थ में हिन्दी में गंदा शब्द प्रचलित है। इसके विभिन्न रूप बोलचाल में इस्तेमाल होते हैं। गंदा, गंदी, गंदला, गंदगी जैसे शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित हैं। यह लफ्ज़ फारसी से हिन्दी में आया मगर मूलतः यह इंडो-ईरानी भाषा परिवार का है और अवेस्ता से फारसी में आया। गंद का हिन्दी रूप गन्ध है जिसका अर्थ है बू, वास आदि। सुवासित पदार्थ  भी गन्ध  ही हैं जैसे चंदन का लेप  भी गन्धः ही कहते हैं। दिलचस्प बात यह कि गंद शब्द का प्रयोग हिन्दी में मैला, मलिन या बुरे के अर्थ में होता है जबकि मूलतः फारसी में इसका रूप है दुर्गंध या बदबू। संस्कृत में गंध का रूप गन्धः है जिसका अर्थ वास या बू है। इसमें अच्छा या बुरा विशेषण नहीं लगा है। मगर यही गंध फारसी में गंद के रूप में दुर्गन्ध की अर्थवत्ता धारण करती है। फारसी में सामान्य गंध के लिए बू शब्द है जिसके खुशबू और बदबू जैसे रूप प्रचलित हैं। किंतु हिन्दी में सिर्फ बू के मायने भी खराब गंध होता है। ठीक इसी तरह जैसे संस्कृत के वास् का अर्थ सुगन्धित करना होता है मगर उसका हिन्दी रूप बना बास जिसे बदबू समझा जाता है। गन्ध् में सु और दुर् विशेषण लगने से क्रमशः सुगन्ध और दुर्गन्ध बनते हैं। संस्कृत में सुगन्ध का का एक अन्य रूप सौगन्ध भी है। मगर हिन्दी में सौगन्ध का अर्थ शपथ होता है। गन्ध का फारसी रूप गंद व्यापक अर्थवत्ता रखता है और इसमें मलिनता, गलीजपन, घिनौनापन, निर्लज्जता या व्यवहारगत अनैतिककर्म, प्रदूषित अथवा लज्जास्पद शब्द भी शामिल हैं। इसका प्रयोग व्ययक्तियों के साथ, जैसे गंदा आदमी, गंदी औरत या गंदे लोग की तरह भी होता है। व्यवहार या वार्ता भी गंदी हो सकती है। गंदी-बस्ती जैसा पद भी प्रचलित है जिसका प्रयोग झुग्गी बस्ती या स्लम एरिया के लिए होता है। गंदा माहौल भी एक आम प्रचलित टर्म है जिसका आए दिन हम करते हैं। इसका प्रयोग आमतौर पर सामाजिक परिवेश में व्याप्त अनैतिकता या व्यवहारगत प्रदूषण के संदर्भ में होता है।

हिन्दी का एक अन्य शब्द है बिसायंध जिसका मतलब होता है सड़े हुए मांस या मछली की गंध। हिन्दी में इसके बिसैंधा, बिसायँध, बिसाइंध या बिसाइन जैसे रूप भी मिलते हैं। मूलतः इसका मतलब होता है सड़े हुए मांस जैसी गंध या दुर्गंध। गौर करें कि मांस, चर्बी आदि को वसा कहते हैं। बिसायंध वसा+गंध से मिलकर ही बना है। वसा+गंध>वसागंध>बसाअंध>बिसायंध के क्रम में इसका रुपांतर हुआ। वसा शब्द बना है वस् धातु से जिसका अर्थ है वास करना यानी रहना, निवास करना, विद्यमान रहना आदि। वसा के मांस या चमड़ी के भावार्थ पर गौर करें। शरीर इसी पदार्थ से बनता है, जिसमें आत्मा निवास करती है। अर्थात देह, मज्जा या वसातत्व से निर्मित है। शरीर जहां रहता है उसे वस्त्र कहते हैं जो इसी धातुमूल से निकला शब्द है। वस् धातु से ही बना है slum लिबास अर्थात परिधान, अरबी का शब्द है और फारसी के जरिये हिन्दी में आया। इसी तरह चिरायंध या चिरांध शब्द भी है जिसका अर्थ है चमड़े जैसी गंध। यह चर्म+गंध से बना है।
संस्कृत के गन्धिकः का अर्थ होता है खुशबुओं का व्यापारी अथवा गंधजीवी। इसका हिन्दी रूप हुआ गंधिक जिससे बना है गांधी। गुजराती वणिकों की यह एक उपजाति है। इन्हें गंध-वेणे भी कहते थे। गांधी उपनाम गुजराती के अतिरिक्त बंगाली और पंजाबियों में भी होता है। उड़िया में इसका उच्चारण घेंडी या घांडी होता है। इत्र यानी सुगंधित पदार्थों का कारोबार करने की वजह से इनका गांधी उपनाम प्रचलित हुआ। ठीक वैसे ही जैसे इत्र का काम करनेवाले को इत्रफ़रोश या अत्तार कहतेहैं। महात्मा गांधी भी वणिक समाज के थे और उनके पुरखे गंधों का व्यापार करते होंगे। प्रतीकात्मक रूप से देखें तो गांधीजी जीवनभर सामाजिक गंदगी के खिलाफ संघर्ष करते रहे। गन्ध से ही गन्धर्व शब्द भी जन्मा है। गन्धर्व शब्द मूलतः देवलोक में गायकवर्ग के लिए प्रयोग होता रहा है। गन्धर्वों की व्युत्पत्ति कश्यप ऋषि और अरिष्ठा से मानी जाती है। गन्धर्वों की स्त्रियां अप्सराएं थी। संस्कृत में पृथ्वी को गन्धवती कहा गया है क्योंकि सभी पदार्थों का जन्म इससे ही हुआ है। मदिरा को भी गन्धवती कहते हैं। संगीत विद्या को गन्धर्व-विद्या कहा जाता है। विवाह के आठ प्रकारों में गन्धर्व-विवाह भी है जिसे आज के अर्थ में प्रेम विवाह भी कहा जा सकता है। यह सिर्फ युवक-युवती की पारस्परिक रुचि और लगाव के चलते बिना किसी रस्मो-रिवाज़ के सम्पन्न हो जाता है। सामवेद का एक उपवेद भी गन्धर्ववेद कहलाता है। पुराणों में एक गन्धमादन पर्वत का उल्लेख है जो चंदन के वृक्षों की बहुलता है और उसकी महक से यह सुवासित रहता है। गन्धमादन का एक अर्थ भौंरा भी होता है। जाहिर है सुगंध और वनस्पति जहां होगी, वहां भ्रमर तो होंगे ही। मदिरा का एक नाम गन्धमादिनी भी है। चंदन का एक नाम गन्धराज भी है क्योंकि इसकी खुशबू सबसे अनोखी होती है। चमेली की बेल को गन्धलता कहते हैं। नाक के लिए गन्धवाहिका या गन्धनाल शब्द भी संस्कृत में मिलता है। एक प्रसिद्ध रसायन गन्धक का नामकरण भी इसी धातुमूल से हुआ है। अत्यंत तीक्ष्ण गंध वाले इस पदार्थ को अंग्रेजी में सल्फर कहते हैं। इसके औद्योगिक और ओषधीय उपयोग हैं। एक पाचक दवा को गंधवटी भी कहते हैं।  [-अगली कड़ी में सौगन्ध ]
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

19 comments:

  1. बहुत खूब अजीत जी ! गंदगी से इस मुलाकात का शुक्रिया और् खुशबू का सफर तरो ताज़ा कर गया. धन्यवाद.

    ReplyDelete
  2. सुंदर प्रस्तुति। शब्दों का यह सफऱ भी सुंदर रहा। आप ने गंधी चाचा की याद दिला दी।

    ReplyDelete
  3. वाह!! गन्दगी से शुरु हुआ सफ़र इतना सुगन्धित कर गया...सोचा न था..

    ReplyDelete
  4. अच्छा लाभप्रद और पसंद आने वाला लेख.

    ReplyDelete
  5. गंदा है पर धंधा है ये...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  6. वाह....!
    गन्ध में सुगन्ध!
    जैसे पंक में पंकज!
    बहुत करीने से गन्दगी को परोसा है जी!

    ReplyDelete
  7. कहाँ से कहाँ तक..बेहतरीन सफर रहा!!

    ReplyDelete
  8. बढ़िया शब्द चर्चा.एक दोहा भी इस बहाने याद आया.'रे गन्धी मति अंध तू ...'

    ReplyDelete
  9. बहुत सरल रोचक और ज्ञानवर्धक. धन्यवाद!
    दो शब्द कहता हूँ -

    गन्दगी, गंद से गन्धर्व वास तक का ये सफ़र
    सबको सुवासित करता रहे सुगंधित ये सफ़र


    - Sulabh Jaiswal

    ReplyDelete
  10. गंद , गंध , गांधी ,गंधर्व!!!!!!
    बहुत रोचक यात्रा है।
    गंद जैसे शब्द से गंधर्व का निकलना वाकई में अनोखा है।

    ReplyDelete
  11. बहुत खूब मुझे पहले उसका अर्थ नहीं पता था । धन्यवाद और शुभकामनायें

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छी और रोचक जानकारी मिली

    ReplyDelete
  13. मंत्रमुग्ध यह पूरी विवेचना पढ़ गयी....बहुत बहुत बहुत ही ज्ञानवर्धक और सुन्दर...

    कृपया एक शंका समाधान करें...गन्धर्व और किन्नर में क्या भिन्नता है ?

    ReplyDelete
  14. कमाल का विश्लेषण है, भाई।

    ReplyDelete
  15. गन्धर्व विवाह शकुन्तला और दुष्यंत का ही ज्यादा चर्चित रहा है

    ReplyDelete
  16. मत्स्य गंधा का पात्र भी याद आ गया -- सुगंध सब को पसंद है
    और दुर्गन्ध से सब दूर भागे ........रोचक विवरण रहा अजित भाई

    ReplyDelete
  17. चलिये; बापू देव नहीं तो गन्धर्व तो थे ही!

    ReplyDelete
  18. शब्दों का यह सफर रोचक रहा . बहुत बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete