"जागीरदारियां तो खत्म हो गईं, पर लोकतंत्र में ये अभी कायम है। बस, जागीरों की परिभाषा बदल गई है." |
स्था न के विकल्प रूप में जगह शब्द का इस्तेमाल सर्वाधिक होता रहा है। यह मूलतः फारसी का शब्द है और उर्दू, हिन्दी के अलावा भारत की ज्यादातर क्षेत्रीय भाषाओं में इस्तेमाल होता है। जगह शब्द में स्थान के अलावा कई अन्य निहितार्थ भी हैं जिनके प्रयोग से मुहावरे का असर पैदा हो जाता है जैसे, जगह निकालना या जगह बनाना यानी अपने लिए अनुकूल परिस्थिति पैदा करना, अवसर मिलना या बनाना। बोलचाल की हिन्दी में जगह का अर्थ नौकरी, पद या ओहदा भी होता है। दरअसल स्थान विशेष किसी वस्तु या व्यक्ति की स्थिति को बताता है। यही जगह है। अब ओहदा या पद भी स्थिति को ही दर्शाता है सो उसी अर्थ में जगह का इस्तेमाल भी होता है जैसे अक्सर नौकरी की सिफ़ारिश के संदर्भ में सुनने को मिलता है कि अच्छी जगह सेट करा दीजिए...
जगह फारसी शब्द है। फारसी में जा का मतलब होता है स्थान। समझ जा सकता है कि यह जा+गाह के मेल से बना होगा। जा यानी स्थान और गाह यानी निवास, आवास, खेमा आदि। इस तरह जगह में किसी वस्तु या व्यक्ति के नियत स्थान का भाव है। उर्दू में जगह का उच्चारण जगा की तरह होता है। अक्सर लोग अपने नियत स्थान को जागीर भी मान लेते हैं। जागीर शब्द भी इसी मूल से उपजा है। यहां भी जा अर्थात स्थान या जगह की महिमा नजर आ रही है। फारसी के जा में गीर (जा+गीर) प्रत्यय लगने से बना है जागीर। जा यानी स्थान और गीर यानी रखना, ग्रहण करना या धारण करना, अर्थात जागीर वह भूसम्पत्ति है जो शासन या राज्य की ओर से किसी व्यक्ति को राजस्व वसूली के उद्धेश्य या ईनाम के तौर पर दी गई हो। ऐसी भूमि के मालिक को जागीरदार का रुतबा मिलता था। जागीरदार दरअसल कोई पद नहीं होता था, बल्कि परिस्थिति से पैदा रुतबा था, मगर अक्सर जागीरदार बनने के बाद लिप्सा बढ़ती थी और जागीरदार फिर जमींदार बनने के खेल में लग जाते थे। बादशाहों से गांव के गांव और रियासतें भी जागीर में मिलती थीं, सो ऐसे जागीरदार खुद को राजा से कम नहीं समझते थे। अंग्रेजों ने अपना काम निकालने के लिए ऐसे लोगों को ही राजा की उपाधि से भी नवाजा था। ऐसे लोगों के हक वाला इलाका जागीरदारी कहलाता था।
जागीरदार से काफी ऊंचा होता था जमींदार का। जमींदार बना है जमीन+दार से जिसका अर्थ है भमिपति, भूस्वामी, जमीन का मालिक आदि। जागीरदार तो राज्य की कृपा पर निर्भर व्यक्ति था जबकि जमींदार राज्य के लिए काम करनेवाला, मगर खुदमुख्तार हैसियत वाला रुतबेदार व्यक्ति होता था। जमींदार प्रथा मुस्लिम शासकों के दौर में शुरु हुई थी जिसके जरिये राजस्व वसूली के लिए रुतबे और हैसियतवालों को शासन की ओर से बड़े क्षेत्र दे दिये जाते थे ताकि वे वहां से लगान वसूल कर राजा के खजाने को भर सकें। इस प्रथा से इन जमींदारों को प्रजा पर अत्याचार करने की छूट मिल जाती थी। अय्याश राजा इनसे आंखें मूंदे रहते थे, क्योंकि लगान वसूली के बूते ही उनकी ऐश टिकी हुई थी।
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जागीर, जगह और जागीरदार से पर्दा उठाने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteहर रोज नई जानकारियाँ सम्मलित हो जाती है बुद्धिकोश में आपके चलते. बहुत आभार.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteआज के जागीरदार तो शहीदों के कफ़न तक को नहीं छोड़ते...
ReplyDeleteजय हिंद...
अल्पज्ञानियों के लिए बहुत काम की जानकारी ....आभार ...!!
ReplyDeleteशानदार ब्लॉग, बधाई।
ReplyDeleteनियमित पढ़ता रहूंगा
सादर
एकदम सटीक व्युत्पत्ति। स्थान रिक्त भी हो सकता है लेकिन जगह पर किसी का आधिपत्य अवश्य होगा।
ReplyDeleteहमेशा की तरह अच्छी जानकारी। बहुत से शब्दों के बारे मे कभी सोचा ही नहीं था आपके ब्लाग से वो जहन मे एक दम फिट हो गये हैं धन्यवाद्
ReplyDeleteजमींदार आज तो जमीन्द्राज हो गए और नए शासको ने नई नई पदवी देनी शुरू कर दी है आज कल
ReplyDeleteसटीक जानकारी.
ReplyDeleteइसी प्रकार बड़े बादशाहों को जहाँगीर का दर्जा दिया जाता था. जिसका मतलब है - दुनिया जहान का मालिक.
अच्छी जानकारी। आभार
ReplyDeleteमेरे मन की शंका को दूर करने के लिए धन्यवाद
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