मीन-मेख का अर्थ समझने के लिए राशिचक्र को समझना जरूरी है। राशिचक्र की बारह राशियों के नाम इस प्रकार हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुंभ और मीन। राशि का अर्थ है पुंज, समूह, ढेर आदि। राशि का प्रयोग वस्तुओं के ढेर के लिए होता है, अंकों के समूह के रूप में भी होता है और मुद्रा के समुच्चय को भी राशि कहते हैं। इसी लिए तारामंडल या तारों का समुच्चय भी राशि कहलताता है। मोटे तौर पर राशि का अर्थ आज मौद्रिक सम्पदा के रूप में स्थिर हो गया है। राशि शब्द के बारे में वाशि आप्टे के कोश में लिखा है- अश्नुते व्याप्नोति-अश्+इञ्, धातोरुडागमश्च। राशि की व्युत्पत्ति अश् धातु से हुई है जिसमें व्याप्त होने, समाने, भरने, प्रविष्ट होने का भाव है। अश् धातु का एक अन्य अर्थ खाना, स्वाद लेना, उपभोग करना आदि भी है। दूसरा अर्थ अश् धातु के पहले अर्थ का ही विस्तार है। उपभोग सुख प्राप्ति के लिए होता है। पदार्थों का उपभोग जब इन्द्रियों में व्याप्त हो जाता है उसे सुख कहते हैं। खाने की क्रिया दरअसल मुंह के जरिये उदर में भोजन की व्याप्ति ही है। अशनम् का अर्थ भी खाना ही होता है। अशनम् में जब अन् उपसर्ग लगता है तो बनता है अनअशनम् जिसका हिन्दी रूप हुआ अनशन यानि निराहार रहना। भूख हड़ताल करना। अनशन आज की हिन्दी के सर्वाधिक प्रयुक्त शब्दों में शामिल है। राशिचक्र में शामिल राशियां दरअसल विशिष्ट तारों का समूह है जिनसे होकर सूर्य परिक्रमा करता है। वैज्ञानिक रूप में सूर्य का स्थान स्थिर है। पृथ्वी से देखने पर सूर्य और तारों की स्थिति बदलती नजर आती है क्योंकि पृथ्वी
गतिमान है। मनीषियों ने इसी रूप में विभिन्न तारा-पथों से सूर्य के परिभ्रमण की कल्पना की। पृथ्वी से देखने पर प्रत्येक तारासमूह में जो आकृति नजर आई, वही उसका नाम हो गया जैसे मेष यानी मेढ़े की आकृति का तारासमूह मकर राशि कहलाया अथवा जिस तारासमूह में मनीषियों को कुंभ का आकार नजर आया उसका नामकरण कुंभ स्थिर हुआ।
राशिचक्र की पहली राशि मेष और अंतिम मीन। किसी चक्र या अध्याय के पूरा होने को हम इतिवृत्त कहते हैं। इस संदर्भ में आदि से अंत अथवा शुरु से आखिर तक जैसा मुहावरा भी प्रयोग किया जाता है। मीन-मेख में भी समूचे राशिचक्र का भाव है अर्थात मेष से मीन तक समस्त राशियां। मीन-मेख निकालना मुहावरा आज चाहे नकारात्मक अभियक्ति लिए हुए है अर्थात किसी बात में कमियां ढूंढना मगर इसका सही अर्थ है गुण-दोष निकालना। बहुत ज्यादा सोच-विचार करना। सीधी सी बात है, मध्यकालीन रूढिवादी समाज में धर्मकर्म, ज्योतिष-तंत्र और झाड़-फूंक का बोलबाला था। पंडितों-पुरोहितों ने इस भाव को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अपनी महत्ता साबित करने के लिए वे हर काम में शुभ-अशुभ विचार करने पर जोर देते थे। चूंकि ज्योतिष और पौरोहित्य विशिष्ट विद्याएं थीं जिन पर ब्राह्मणों का एकाधिपत्य सा था, इसलिए लोगों के भविष्य बांचने से लेकर मुहूर्त और शगुन-विचार के लिए लोग उन्हीं पर आश्रित थे। किसी कार्य में सफलता के लिए उसका शुभ मुहूर्त में सम्पन्न होना आवश्यक होता है सो ज्योतिषी पोथी-पत्रा-जंत्री लेकर राशियों के गुण-भाग में जुटे रहते थे। बहुत ज्यादा सोच-विचार, गवेषणा या तर्क-कुतर्क को गुणा-भाग, जोड़-घटाव, हिसाब-किताब करना जैसे मुहावरों में अभिव्यक्त किया जाता है। इसी तरह मेष राशि से मीन राशि तक शुभ-अशुभ और गुण-दोष विचार की प्रक्रिया को मुख-सुख में मेष-मीन न कह कर मीन-मेष कहा गया। भाव यही था कि किसी कार्य के सभी पहलुओं पर विचार करना। क्ष, ष और श ध्वनियों का उच्चारण लोकबोलियो में अक्सर ख ध्वनि में बदलता है। बाद में मीन-मेख निकालने का अर्थ सिर्फ कमियां तलाशना या आलोचना के बिंदुओं की खोज भर रह गया।
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मीन मेष और मीन मेख...हम्म!! आभार इस ज्ञानवर्धन का!!
ReplyDeleteइस में तो कोई मीन मेख नहीं हो सकती. अच्छा होता हाथ लगते रेख में मेख डालना की भी व्याख्या कर देते.
ReplyDeleteवाह अजित भाई, मीन मेख की व्याख्या और सन्दर्भ पढ़कर आनंद आ गया.
ReplyDeleteमीन मेख ....... मुहावरो के अर्थ शब्दो के अर्थ से कितने बदल जाते है
ReplyDeleteएक बात बताऊँ अजित जी -जरा मीन का सीधा अर्थ मछली समझ लें फिर पुनः इस पोस्ट का पुनर्लेखन करना चाहें !
ReplyDeleteअभी जरा जल्दी में हूँ विस्तृत बात होगी !
आपकी प्रत्येक पोस्ट शब्द सम्पदा में वृध्दि करती है। आप अपने इस परिश्रम को पुस्तकाकार देने पर विचार अवश्य करें।
ReplyDeleteआ गया फिर -आपकी विवेचना के तो क्या कहने ! मगर मैं मत्स्य विभाग में होने के नाते अपने अर्थबोध को भी स्पष्ट करना चाहूँगा -
ReplyDeleteमीन का मतलब मछली और मेख का अर्थ हड्डी ( मेखला ) -दरअसल बहुत सी मछलियों की हड्डियां इतनी महीन होती हैं कि उनके संजाल को ढूँढने में बहुत ध्यान और सूक्ष्मता के साथ प्रेक्षण करना पड़ता है -अर्थ निकला -सूक्ष्म विवेचन ! तो सामान्य मामलों में भी मीन मेख निकालने के प्रवृत्ति का स्वभावतः निषेध किया जाता है -क्या फालतू मीन मेख निकाल रहे हो ?-(मतलब इसकी आवश्यकता ही नहीं है )
एक बात और अपने मकर का अर्थ मगर लिखा है मगर चित्र में कहीं मगर नहीं है -इसे भी क्या व्याख्यायित करेगें? मैं फिर लौटता हूँ तब तक ....
मीन-मेख निकालने का अर्थ था किसी भी कार्य या उस के प्रारूप को अंतिम बार जाँच लेना। लेकिन हमारे यहाँ तो जैसे हर कोई वैद्य है वैसे ही हर कोई ज्योतिषी भी है। मीन-मेख निकाल कर अपनी महत्ता स्थापित करना चाहता है। तो अब इस ने मुहावरे का रूप ग्रहण कर लिया है।
ReplyDeleteओह ...बेहतरीन.....मन मुग्ध हो गया मेरा...अपने आस-पास के बिखरे शब्दों मे इतना कुछ छिपा होता है जानकार बेहद ही अच्छा लगता है...आपका हृदय से आभारी हूँ...!
ReplyDeleteok, thanks
ReplyDelete@अरविंद मिश्र
ReplyDeleteअरविंद भाई,
शुक्रिया। आपकी बताई व्याख्या भी तार्किक है , मगर बचपन से सुना यह अर्थ ही सही लग रहा है। मेख या मेखला का हड्डी के तौर पर अर्थ संस्कृत-हिन्दी के किसी कोश में नहीं दिखा। अगर इसके आसपास की ध्वनियां भी इस अर्थ में होतीं तो भी काम चल जाता। फारसी में जरूर मेख शब्द होता है कील, कांटे के अर्थ में। मगर मीन जैसे तत्सम और मेख जैसे फारसी शब्द के मेल से इस मुहावरे की व्युत्पत्ति की तुलना में देशज शब्दों वाली और सामाजिक परम्परा से मेल खाती व्याख्या मुझे ठीक लगी। इसके साथ ही यह व्याख्या अपने बुजुर्गों से मैने सुनी भी है। जो अर्थ-संदर्भ हमारी स्मृतियों में दर्ज उससे भी व्युत्पत्ति और विवेचना प्रभावित होती है। हालांकि यह भी सही है कि आपकी व्याख्या वाला संदर्भ भी इसमें ज़रूर जाना चाहिए। दिलचस्प और वजनदार है। सही कहा, पुनर्लेखन ज़रूरी है:)
मेखला का हड्डी वाला संदर्भ कहीं मिले तो ज़रूर बताइये।
बलजीत भाई,
ReplyDeleteयह मुहावरा पंजाबी में होगा। वैसे जहां तक समझ रहा हूं इस मेख का रिश्ता उससे नहीं है।
वह मेख लकीर डालने, बनाने, छेदने, तराशने वाले मेख से आ रहा है। फारसी का शब्द है। संस्कृत मेखला यानी श्रंखला।
शायद, छिन्द्रान्वेषण की जगह छिद्रान्वेषण होना चाहिए।
ReplyDeleteमहाठगनी लुटेरे ठग वाली पोस्ट भी आज पढी अब मीन मेख क्या निकालूँ दोनो पोस्ट बहुत ही अच्छी हैं दोनो शब्द अक्सर ही बोले जाते हैं धन्यवाद मकर संक्राँति की शुभकामनायें
ReplyDeleteमैं तो हर पोस्ट आपकी पढता हूं और पुस्तिका पर कुछ शब्दों को , उनकी व्याख्या को नोट करता हूं ।इसका आनंद ही अलग होता है
ReplyDeleteअजय कुमार झा
अजित भैय्या की जय हो...शानदार जानकारी
ReplyDeleteमीन मेख की व्याख्या अपने बुजुर्गों से मैं ने भी आप जैसी ही सुनी थी. लेकिन अरविंद मिश्र की व्याख्या के साथ साथ अपना मुहावरा ' रेख में मेख डालना/ मारना' (किस्मत पलट देना) रखने से उलझन पड़ गई. इस मुहावरे में भी फारसी संस्कृत का मेल हो रहा है. वैसे आपका यह कहना कि 'मेख मीन' का 'मीन मेख' में बदलना मुख-सुख कारण है, भी क्या कुछ सरल सी व्याख्या नहीं? आप पुनर-विचार करें.
ReplyDelete@बलजीत बासी
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं। सुबह से गहराई से सोच रहा हूं इस पर। निश्चित ही किसी और ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे और फिर इसका पुनर्लेखन करेंगे। साझेदारी का यही सुख है। पंजाबी वाले मुहावरे में जो रेख है वह संस्कृत रूप में न होकर देशज रूप ही है जो पंजाबी, अवधी, बृज, हिन्दी आदि जबानों में समान रूप स एक ही है। दूसरे पंजाब में बरास्ता उर्दू फारसी लफ्जों का प्रयोग दीगर इलाकों की तुलना में कुछ अधिक है और हिन्दी शब्दों के साथ उसके युग्मों के और उदाहरण भी हो सकते हैं। मगर मीन तत्सम रूप में ही है। इसीलिए उसके साथ मेख अटपटा लगता है।
दूसरा तर्क स्मृति का है। अलग अलग क्षेत्रों में मीन-मेख से जुड़े स्मृतिसंदर्भ एक ही तरफ इशारा कर रहे हैं, जिसकी अनदेखी सिर्फ इसलिए की जाए क्योंकि एक अन्य तार्किक आधार मौजूद है, ठीक नही होगा।
इस पर विचार करना चाहिए।
@मकर का अर्थ मगर लिखा है मगर चित्र में कहीं मगर नहीं है -इसे भी क्या व्याख्यायित करेगें?
ReplyDeleteअजित जी, मीन के मामले में तो मैं भी अरविन्द जी से सहमत हूँ। लेकिन मेख से मेखला का सम्बन्ध जोड़ना उचित नहीं लगता। मीन-मेष की आपने जो ज्योतिषीय व्याख्या आपने की है वही मुझे भी ज्ञात थी। राशि चक्र के यही नाम रोमन/ग्रीक ज्योतिष में भी मिलते हैं। आप मिलान करेके देख सकते हैं। मीन का समानार्थक pieces है। अनसन से सम्बंधित जानकारी के लिये आभार।
ReplyDelete@अरविंद मिश्र
ReplyDeleteनहीं साहेब। इसकी मुझे जानकारी आपने ही कराई। देखा तो चौंका। तस्वीर भी इसीलिए हटा दी। इस पर आप प्रकाश डालें कि मकर का जलचर से रिश्ता ज्योतिष में है या नहीं। दोनो हथिलियों को मिलाने से जो चिन्ह बनता है उसे भी मकर-मुद्रा कहा गया है। पर मकर का चिह्न बारह राशियों में वैसा कोई चिह्न क्यों नहीं है। जानना चाहता हूं।
वाह, सुन्दर जानकारी. कमाल कर रहे हो भी..हम लोग ग्यानी होते जा रहे है फ़ोकट में. बधाई..लगे रहे. बड़ा कम हो रहा है यह.
ReplyDeleteदरअसल १२ राशियाँ हमारी देशज मूल की नहीं हैं .वैदिक मूल के २७ नक्षत्र हैं (एक और बाद में जुड़ा अभिजित ) -राशियाँ बाद में यूनान /अरबी मूल से आयी और प्रक्षिप्त हईं ! कैप्रिकार्न दरअसल एक मिथकीय पशु है जिसका मुंह बकरे का और पूंछ मछली की है -यह एक मिथकीय समुद्री प्राणी है जिसका मेल मानव पूर्वजों ने एक आकाशीय तारक युति /रचना से जोड़ दिया -मेष एक आक्रामक भेड़ा है -मकर राशि में इस तरह मगरमच्छ का चित्रांकन नहीं है !
ReplyDeleteअरविंदजी,
ReplyDeleteमैं इस विषय का जानकार नहीं हूं मगर पढ़ा है कि भारतीयों को नक्षत्र ज्ञान था और राशि ज्ञान उन्हें अरबों-यूनानियों से मिला, इस धारणा का महामहोपाध्याय पाण्डुरंग वामन काले ने पुरजोर विरोध किया है और विद्वत्तापूर्वक उन्हें भारतीय मूल का सिद्ध किया भी है। धर्मशास्त्र का इतिहास नामक ग्रंथ श्रंखला के चौथे खण्ड में इसकी विवेचना भी है। कभी देखियेगा। अवसर मिला तो यहां देने का प्रयास करूंगा।
देखिये ! विद्वतापूर्ण टिप्पणियों-प्रतिटिप्पणियों को संयुक्त कर आलेख पढ़ना कितना आह्लादकारी है ।
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्द्धन हुआ ! आभार ।