Wednesday, January 20, 2010

इसलिए नंगा है सच...

khali
लील जिब्रान ने कभी लिखा था कि एक बार सच और झूठ नदी में स्नान करने पहुंचे। दोनो ने अपने-अपने कपड़े उतार कर नदी के तट पर रख दिए और झट-पट नदी में कूद पड़े। सबसे पहले झूठ नहाकर नदी से बाहर आया और सच के कपड़े पहनकर चला गया। सच अभी भी नहा रहा था। जब वह स्नान कर बाहर निकला तो उसके कपड़े गायब थे। वहां तो झूठ के कपड़े पड़े थे। भला सच उसके कपड़े कैसे पहनता? कहते हैं तब से सच नंगा है और झूठ सच के कपड़े पहनकर सच के रूप में प्रतिष्ठित है।

[आज एक भरी-पूरी पोस्ट का ज्यादातर हिस्सा उड़ गया। कांप कर रह गया। दोबारा लिखने की हिम्मत नहीं हुई। सीधे लाइव राईटर में लिखने का यही परिणाम होना था। लाईव राईटर में एमएस वर्ड की तरह अपने आप मैटर सेव होने की सुविधा क्यों नहीं है? खैर, यह बोधकथा पढ़ें जिसे आज दोपहर ही मैंने “ऋग्वैदिक असुर और आर्य” पुस्तक में पढ़ा j मुमकिन हुआ तो इस रविवारी पुस्तक चर्चा में इस पर बात होगी.]

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23 comments:

  1. सच काहे नंगा होता है, यह आज जाना!

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  2. जो आपने बतलाया है
    वो तकनीक का सच है
    और सच का सच
    बिल्‍कुल नंगा है।

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  3. ओह सच बेचारा उस समय . आज तो सच को जबरिया बीच बाज़ार नंगा कर दिया जाता है

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  4. बोध कथा से ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल गए ....“ऋग्वैदिक असुर और आर्य” की आतुर प्रतीक्षा है .

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  5. खलील जिब्रान साब के लेखन के क्या कहने... उनके तो हम दीवाने हैं..
    वसंत पंचमी की शुभकामनायें
    जय हिंद...

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  6. भाऊ लोगों को कैसे हड़काया जाता है? अगली कड़ी में अवश्य बताइए। लाइव राइटर में लोकल हार्ड डिस्क पर ड्राफ्ट सेव करने की सुविधा है भाऊ।
    ये लापरवाही ठीक नहीं है [:) अटल बिहारी मार्का]

    खलील जिब्रान के तो बहुत दीवाने मिलेंगे। आप ने 'पैगम्बर' तो पढ़ी ही होगी। उसमें भी कई सूत्र मिलते हैं।
    वैसे अपने कृष्ण कन्हैया ने सच को झूठ के कपड़े पहनाए थे, एक व्यापक उद्देश्य पूर्ति हेतु।

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  7. पहली बार सफर में ’व्यवधान’ दिखा !

    खलील जिब्रान की इस बोध कथा का आभार ।

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  8. ...और फिर कुछ भले इंसान सभ्यता का तकाज़ा मानकर "नग्नता" से मुंह मोड़ लेते हैं !

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  9. किसी शायर का यह शेर याद आ गया आज की पोस्ट पढ़ कर:-

    सच के सहराओं में हम ढूँढ के थक हार गए,
    झूठ के शहर में यारों का बसेरा निकला.

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  10. इस तरह की दुर्घटना एकदम हताश करती है जब श्रम व्यर्थ चला जाता है। ब्लोगर के ब्लोगर इन ड्राफ्ट में हर पल आप का लिखा सेव होता चला जाता है। आप उस का प्रयोग क्यों नहीं करते?

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  11. नंगे सच के सामने झूठा सच भी पेश करदू?

    झूठा सच [http://mansooralihashmi.blogspot.com/search/label/Changing%20Values]

    False ceiling लगाना ज़रूरी है अब,
    फ़र्श के साथ छत भी सजा लीजिये,
    अब जो उल्टे चलन का ज़माना है यह,
    पांव छत पर भी रख कर चला कीजिये ।
    -मंसूर अली हाशमी

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  12. भाऊ ,
    सो तो ठीक है सच नंगा होता है . पर कडुआ क्यों होता है ?

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  13. बसंत पंचमी की शुभकामनाएं

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  14. Arrre..yah to bahut dukhad hai....

    Lekin yah bodh katha bhi kam shikshaprad aur rochak nahi.....

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  15. ये तो आज जाना ।

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  16. शानदार सच ...अजित भैय्या

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  17. बसंत पंचमी की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं

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  18. सच नंगा क्यों है सचमुच ही आज जाना , गज़ब है । मैं भी एक बार लाईव राईटर में ये कमाल कर चुका हूं , अपन ने तो तभी से तौबा कर ली
    अजय कुमार झा

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  19. सच के साथ बहुत बुरा हुआ.......
    और आज दिन तक हो रहा है.........

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  20. इससे आगे का किस्सा यह कि नंगा सच शहर में जहाँ से भी गुज़रा लोगों ने उसे पत्थरों जूते डंडों से पीटा.

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल

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  21. प्रभावशाली रचना ।

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  22. “ऋग्वैदिक असुर और आर्य" पर विस्तृत चर्चा का इंतज़ार है. आपकी पिंडारी कड़ी पर भी काफी कुछ कहना है - व्यस्तता कम होते ही चर्चा शुरू करेंगे.

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  23. एक नया ग्यान हुया आज बोध कथा बहुत अच्छी लगी धन्यवाद्

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