हिम्मतवर और दिलेर को हिन्दी में साहसी कहते हैं और पराक्रम दिखाने का यह गुण साहस कहलाता है। साहस का रिश्ता है संस्कृत की सह् धातु से जिसमें चेष्टा, प्रयास, आगे बढ़ना, जीतना जैसे भाव हैं अलबत्ता इस सह् का रिश्ता संस्कृत के प्रसिद्ध उपसर्ग सह् से नहीं है जिसमें साथ-साथ, मिलकर, सहित जैसे भाव हैं और इससे मिलकर बहुत से शब्द बने हैं जो हिन्दी में आमतौर पर प्रचलित हैं जैसे सहयोग, सहकार आदि। सह् धातु का संबंध सह्यति अर्थात झेलने, निर्वाह करने से है। आमतौर पर इस्तेमाल होनेवाले सहन, सहना जैसे शब्दों का इससे रिश्ता है। इस धातु की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। यह दिलचस्प है कि जिस शब्द से हिन्दी में सकारात्मक अर्थ ध्वनित हो रहा है, उसके संस्कृत रूपों में अधिकांश नकारात्मक व्यंजना उजागर हो रही है।
अचानक, अकस्मात के अर्थ में सहसा शब्द का इस्तेमाल होता है। आपटे कोश के अनुसार यह सह्+सो+डा से मिलकर बना है जिसमें बलपूर्वक, जबर्दस्ती, उतावली, बिना विचारे का भाव है। सह् में निहित चेष्टा, प्रयास जैसे भावों के साथ अविवेक
का भाव कहीं सूक्ष्म रूप में जुड़ा है जो यहां बड़ा होकर उद्घाटित हो रहा है। मोनियर विलियम्स के कोश में भी यही अर्थ बताया गया है। साहस शब्द के मूल में यही सहसा है जिससे संस्कृत में साहसम् शब्द बनता है जिसका मतलब है प्रचण्डता, लूट खसोट, बल प्रयोग, कोई भी घोर अपराध जैसे डाका, चोरी, बलात्कार आदि। क्रूरता, अत्याचार जैसे कार्य भी साहस के दायरे में आते हैं। अभिप्राय यही कि जितने भी तात्कालिक, उद्धतता से उपजे और बिना सोचे विचारे किए गए कार्य हो सकते हैं, वे सब साहस की श्रेणी में आते हैं। साहसिक का अर्थ होता है हिम्मतवर, पराक्रमी। मगर इसके पूर्व अर्थ हैं लुटेरा, आततायी, भीषण, भयंकर आदि। वाणिज्यिक शब्दावली में एंटरप्रिन्योर को साहसिक या साहसी कहा जाता है क्योंकि उसमें उद्यशीलता, जोखिम लेने की हिम्मत होती है। इसीलिए साहसिक का अर्थ उद्यमी भी होता है। यह अलग बात है कि उद्यमी का देशज रूप हुआ उधमी जिसकी हिन्दी में नकारात्मक अर्थवत्ता है और शरारती, शैतान बच्चों को उधमी की संज्ञा दी जाती है।
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बहुत उम्दा जानकारी!!
ReplyDeleteदुस्साहसी क्षितिज पे गुम्बद को धा गए,
ReplyDeleteकुछ ताज* पर चढ़े कोई टाँवर* को खा गए,
साहस था जिसमे पार क्षितिज के निकल गया,
उद्यम से काम ले के वो आकाश पा गए.
*ताज=होटल, *टाँवर =twin tower
साहसी उद्य्मी के साथ बलात्कार जुड गया साहस का का कितना बडा अपमान है तब भी इन्सान समझता नहीं। बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteइसका भारोपी मूल 'segh' है जिसका मतलब धारण करना,शक्तिवर होना है. अंग्रेजी स्कीम(scheme) इससे बना और स्कूल(school) भी इसका दूर का सुजाति है. नाज़ी सलाम करते वक्त 'Sieg Heil'(विजय की जयकार)कहते थे इसमें 'Sieg' (विजय) भी इसका सुजाति है. अवेस्ता का 'हाज़ा'(शक्ति, विजय) इसका सुजाति है.
ReplyDelete'सांसी' की व्युत्पति भी इसी साहस से बताई जाती है. पर कई स्रोत इसको भारतपुर के 'साहसी राव'से जोड़ते हैं. 'स्वास' के साथ भी जोड़ा जाता है.
सांसी जाती के लोगों को अंग्रेजों ने जरायम-पेशा करार दिया था. कहते हैं यह लोग लूट-पाट, पशु चोरी, नाजाइज शराब निकालना आदि धंदा करते थे.यह लोग सब तरह के जानवर खा जाते हैं. बड़ी जद्दो जहिद के बाद १९५२ में जरायम-पेशा सूचि से निकाला गया था. आज कल भी इनके बारे में ऐसी ख़बरें मिलती हैं. यह लोग राजस्थान से और जगह पंजाब, हिमाचल, यूपी, गुजरात, की ओर गए. इनकी भाषा 'सान्सिबोली' में पंजाबी, हिंदी, गुजराती, उर्दू के शब्द मिले हुए हैं. कई जट्टों(जाटों) में घुल मिल गए. 'सांसी' एक जट्टों का गोत भी है. महाराजा रणजीत सिंह सांसी थे. अमृतसर का हवाई अड्डा 'राजा सांसी' में है और इस नगर का नाम भी इस शब्द से जुड़ा है, यह जगह शाही सांसी खानदान की थी.
बड़े मार्के की बात कही आपने...अधिकांश ही हिंदी के सकारात्मक शब्द संस्कृत में नकारात्मक अर्थ व्यंजित करते हैं...
ReplyDeleteहर सकारात्मक शब्द के साथ ही नकारात्मकता भी जुड़ी होती है। हमारे यहाँ एक विमल नाम का तंबाकू गुटखा बहुत बिकता है। मैं खरीदने और खाने वालों से अक्सर पूछता हूँ। यह विमल बनता किस से है? जवाब आता है, पता नहीं किस से बनता है। मैं कहता हूँ यह मल से बनता है।
ReplyDeleteशुक्रिया बलजीत भाई,
ReplyDeleteस्कीम, स्कूल आदि पर अलग से पोस्ट बनाने का इरादा था। सांसी शब्द की व्युत्पत्ति पर स्थिर नहीं हूं। इसके कई संदर्भ बहुत दिनों से देख रहा हूं। इसकी अनुनासिकता से कुछ शंका है जिस पर काम कर रहा हूं। वर्ना ध्वनिसाम्य-अर्थसाम्य के पैमाने पर तो यह व्युत्पत्ति खरी है। जनजातियों में आमतौर पर अपने जातिनाम को पूर्वपुरुष या आदिपुरुष से जोड़ने की परम्परा रही है। अधिकांश लोकप्रिय आख्यानों से उपजती हैं जो कभी सही होती हैं, कभी नहीं भी। सांसी से साहसी का आधार अगर माना जाए तो ज्यादातर मार्शल कौमों का जातिनाम भी सांसी सही, क्योंकि बहादुरी, लड़ाकापन, पराक्रम उनका मूल गुण रहा है।
खैर, यह बहस का बिन्दु नहीं है। इस पर पहले से काम कर रहा हूं। जैसे ही पाया मिलेगा, लिखूंगा ही।
विविध संदर्भों के लिए आभार
अजित भाई
ReplyDeleteयहां बस्तर में , इलेक्शन ड्यूटी के बाद , सकुशल घर वापसी , जश्न का कारण हुआ करती है ! देखिये ना , थककर चूर हूँ पर नेट पर हाजिर हूँ !
मैंने आपके आलेख पढ़ लिए हैं 'बोलके' मेरी उपस्थिति दर्ज कर लीजियेगा :) :)
बहुत बढिया जानकारी के लिये धन्यवाद। बलजीत जी का भी धन्यवाद। आपकी पोस्ट तो मनपसंद होती ही है। की गई टिप्पणियां भी उपयोगी होती है।
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