फा सिज्म शब्द दुनियाभर की भाषाओं में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली राजनीतिक शब्दावली की चर्चित टर्म है। हिन्दी में इसका रूप फासीवाद है। हालांकि अंग्रेजी, इतालवी में इसका उच्चारण फैशिज़म होता है मगर हिन्दी में फासिज्म उच्चारण प्रचलित है। फासीवादी विचारधारा को माननेवाला फासिस्ट कहलाता है। राजनीतिक दायरों में फासिस्ट कहलाने से लोग बचते हैं। आज की राजनीति में फासिस्ट या फासिज्म शब्द के साथ मनमाना बर्ताव होता है। अतिवादी विचारधारा से जुड़े लोग एक दूसरे को फासिस्ट कह कर गरियाते हैं। खुद को नायक समझनेवाला कभी नहीं चाहेगा कि उसे खलनायक की तरह देखा जाए। धर्म और नैतिकता की दुनिया में तो हमेशा नायक सत्य की तरह एक ही होता है और पूरी प्रखरता से उभरता है, मगर राजनीति के मैदान में सभी खिलाड़ी खुद को नायक समझते हैं। नायक और नेता का अर्थ यूं तो एक ही है अर्थात समूह का नेतृत्व करना, उसे राह दिखाना, मगर नेता शब्द ने अपनी अर्थवत्ता खो दी है। अब नेता का अर्थ जबर्दस्ती खुद को समूह पर थोपनेवाला, बाहुबली, दबंग आदि हो गया है। नेतागीरी शब्द की नकारात्मक अर्थवत्ता से यह स्पष्ट हो रहा है। इसके बावजूद ये सभी लोग समाज में स्वीकार्य होने के लिए पहले खुद को नेताजी कहलवाते हैं, फिर नायक होने की चाह पालने लगते हैं, मगर जनसंचार माध्यमों के जरिये आज सबकी असली तस्वीर दुनिया के सामने किसी न किसी रूप में आ ही जाती है।
यूरोप की राजनीति में फासिज्म fascism शब्द का प्रयोग प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ज्यादा सुनाई पड़ने लगा। यह इतालवी भाषा से जन्मा है। फासिज्म लैटिन भाषा के फैसेस या फासिस fasces शब्द से बना है। फैसेस दरअसल एक प्राचीन रोमन प्रतीक है जिसमें कटी हुई लकड़ियों के बंडल के साथ एक कुल्हाडी होती है। दरअसल यह सर्वाधिकार का प्रतीक था। रोमन परम्परा के मुताबिक प्राचीनकाल में रोमन लोग इंसाफ के लिए अदालत जाते समय अपने साथ लकड़ियों का छोटा बंडल और कुल्हाड़ी साथ रखते थे। एक साथ बंधी हुई कटी टहनियां दरअसल दंडविधान का प्रतीक थीं और कुल्हाड़ी न्याय के अधिकार का प्रतीक। इसका निहितार्थ था शिरच्छेद अर्थात सजा के बतौर कलम किया
हुआ सिर। राजनीतिक विचार के रूप में बाद में इन प्रतीकों की व्याख्या कुछ और हो गई। लकड़ी का बंडल बाद में संगठन, शक्ति, एकता जैसे भावों से व्याख्यायित किया जाने लगा और राजनीतिक उद्धेश्य के लिए संगठित समूह के तौर पर इसका अर्थ निकाला जाने लगा। इतालवी भाषा में फासी शब्द फाशी की तरह उच्चरित होता है।
राजनीतिक शब्द के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय इटली के तानाशाह बैनिटो मुसोलिनी को जाता है। मुसोलिनी ने इटली में “राज्य के सर्वाधिकार” की जो शासन प्रणाली चलाई उसे ही फासिज्म कहा गया। मुसोलिनी ने 1915 में फासिस्ट नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की थी। फासिज्म की कई तरह से व्याख्या की जाती है। इसे बड़ी आसानी से साम्यवाद या समाजवाद के विरुद्ध पैदा आंदोलन समझा जाता है। हालांकि मूल रूप में यह साम्राज्यवाद, बाजारवाद, उदारतावाद जैसी प्रवृत्तियों के खिलाफ था। यह विरोधाभास है कि इनमें से कई बुराइयां खुद फासिज्म के साथ जुड़ गई। विभिन्न विकृतियों के चलते फासिज्म कभी एक स्वस्थ और मज़बूत राजनीतिक विचार नहीं बन सका। बाद में पूंजीपतियों के एजेंटों, दलालों और गुंडों को फासिस्ट कहा जाने लगा था। आजादी से पहले भारत में कांग्रेसी नेता अपने समान ही स्वतंत्रता संघर्ष कर रहे उग्र विचारधारा वाले क्रान्तिकारी नेताओं जैसे भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद को फासिस्ट कहते थे।प्रसिद्ध क्रान्तिकारी, लेखक मन्मथनाथ गुप्त ने अपने संस्मरणों में एकाधिक बार इसका उल्लेख किया है। फासिस्ट शब्द को दिलचस्प ढंग से परिभाषित करते हुए गुप्तजी लिखते हैं कि जब पूंजीवाद लोकतंत्र के जरिये अपना मतलब सिद्ध करने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपने उग्र नंगे रूप में यानी फासिस्ट रूप में प्रकट होता है। फासिज्म के साथ उलटबांसियां हैं। इसके साथ साम्यवादी विचारधारा के विरोध की बात जुड़ी है। जवाहरलाल नेहरू वामपंथियों को फासिस्ट कह कर गरियाते थे और अब वामपंथी, हिन्दू (अतिवादी) विचारधारा से जुड़े लोगों को फासिस्ट कहते हैं। जो भी हो, यह तय है कि शुरू से ही किसी भी किस्म की चरमपंथी या अतिवादी विचाराधारा को फासिज्म के दायरे में समझा जाता रहा है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौर में फासीवादी ताकतों की भूमिका के मद्देनजर इसकी एक खास तस्वीर बनी। यह एक सिद्धांतहीन विचारधारा है। इसकी कोई सर्वस्वीकार्य कार्यप्रणाली नहीं है। मूलतः किसी न किसी तरह सत्ता और शक्ति हथियाना इसका लक्ष्य होता है। सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट जैसे आदिम और प्रकृतिसिद्ध नीति का ये समर्थन करते हैं अर्थात शक्तिशाली निर्बलों पर शासन करते हैं। दृढ़ता, आक्रामकता और साहस (प्रकारांतर से बलप्रयोग) जैसे प्रबोधनों से ये अपने वर्ग के लोगों को उत्साहित करते हैं और सीमित सफलता अर्जित करते हैं। शांति, सौहार्द, लोकतंत्र, उदारता, नैतिकता जैसे गुणों को इस विचारधारा के तहत अपने लक्ष्य से भटकानेवाले तत्व के रूप में देखा जाता है। फासिज्म चाहे आज सर्वमान्य राजनीतिक सिद्धांत न हो मगर इसका प्रेत अभी भी विभिन्न अतिवादी, चरमपंथी और उग्र विचारधाराओं में नज़र आता है।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
जानकारियों से भरा खुबसूरत आलेख! शब्दों की गूढ़ रचनाओं और मान्यताओं की सफल और विश्लेषक व्याख्या के लिए धन्यवाद! लगातार फायदा मिल रहा है
ReplyDeletethanks a lot for this information.
ReplyDeleteइसके साथ साम्यवादी विचारधारा के विरोध की बात जुड़ी है। जवाहरलाल नेहरू वामपंथियों को फासिस्ट कह कर गरियाते थे
ReplyDelete----------
महान थे नेहरू जी!
ज्ञानवर्धक...फासिस्ट पर यह पोस्ट और खुलासा मांगता है.
ReplyDeleteकोई फासिस्ट को गाली न समझ ले यारों,
ReplyDeleteये उपाधि भी सभी को नहीं मिल पाती है,
दायों-बायों* में हुआ करता है 'लेना -देना'**,
बीच वालो के सरो से तो गुज़र जाती है.
*Leftist-Rightist
** आदान-प्रदान
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
आप ने फासिस्ट शब्द का परिचय अच्छे से कराया। भूतकाल में इस शब्द के उपयोग की जानकारी भी मिली। वास्तव में इस शब्द की व्याख्या और आवश्यक है। परंतु शायद वह शब्दों के सफर की परिधि से बाहर की बात है।
ReplyDeleteअगर फासिस्ट डिक्टेटर के साथ न जुड़े तो फासिस्ट होने में कोई बुराई नहीं लगती
ReplyDeleteहूं....बहुत बढिया विश्लेषण. बधाई.
ReplyDeleteजानकारी देने का शुक्रिया.. मै तो इस शब्द के बारे मे सोचता हू कि इसे कैसा लगता होगा कि इससे कोई जुडना ही नही चाहता..
ReplyDeleteमेरे मन मे एक सवाल है - fascism और nazism मे क्या फ़र्क है?
एक जरूरी लेख।
ReplyDeleteआभार।
फासीजिम केवल बूरा ही नहीं होता. यह पता चला.
ReplyDelete1. मुसोलिनी ने इटली में “राज्य के सर्वाधिकार” की जो शासन प्रणाली चलाई उसे ही फासिज्म कहा गया।
ReplyDelete2. जवाहरलाल नेहरू वामपंथियों को फासिस्ट कह कर गरियाते थे
फासिज्म की उक्त परिभाषा से तो नेहरु जी की बात सही सिद्ध होती है.
@Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
fascism और nazism मे क्या फ़र्क है?
फासिज्म में सिर्फ "राज्य का सर्वाधिकार" है जबकि नाज़िज्म में "राज्य का सर्वाधिकार" के साथ समाजवाद भी है.