आज के दौर में निरुपाय लोग शत्रु के साथ सरेआम जूतमपैजार पर उतर आते हैं। अब कौटिल्य की कूटनीति तो राजा-रईसों के लिए थी, गरीब मजलूमों का उपायचतुष्टय तो हर रोज बदलता है। |
त रकीब अथवा युक्ति के अर्थ में उपाय शब्द भी हिन्दी में खूब प्रचलित है। उपाय बना है संस्कृत के उपायः से जिसमें राह, रास्ता, साधन, चातुरी, चाल, पद्धति जैसे भाव हैं। किसी कार्य को करने का उपक्रम यानी प्रयास का भाव भी इसमें निहित है। यह कर्म से जुड़ा शब्द है। उपाय बना है संस्कृत के प्रसिद्ध उपसर्ग उप में इ+घञ्च् के मेल से। संस्कृत उपसर्ग उप में चेष्टा, प्रयत्न, उपक्रम, आरम्भ जैसे भाव हैं। संस्कृत में इ क्रिया है जिसमें जाना, निकट आना, पहुंचना, पाना जैसे भाव हैं। उप+इ के मिलने से बना उपाय जिसमें ये तमाम अर्थ निहित हैं। उपाय मे निर् उपसर्ग लगने से बनता है निरुपाय जिसका अर्थ हुआ जो साधनहीन हो, जिसके पास कोई चारा न हो अर्थात बेचारा व्यक्ति ही निरुपाय है।
प्राचीन भारतीय कूटनीति उपायचतुष्टयम् पर आधारित थी अर्थात शत्रु पर विजय प्राप्त करने की चार तरकीबें। हम सब आए दिन इन्हें देखते और प्रयोग करते हैं। ग्रंथों में इन्हें कार्यसिद्धि का साधन माना गया है। धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र के अनुसार इनके नाम हैं साम, दाम (दान), भेद, दण्ड। साम का अर्थ होता है खुश करना। राजनय के नियमों के अनुसार शत्रु को हरमुमकिन तरीके खुश करना साम के अंतर्गत आता है। इसमें चापलूसी, रिश्वत, चमचागीरी से लेकर सुरा-सुंदरी का प्रलोभन तक शामिल है। दाम (दान) अर्थात द्र्व्य-पदार्थ देकर शत्रु को जीतने की कोशिश की जाए। इसी तरह शत्रु के कमजोर पक्ष, गुप्त रहस्यों अर्थात भेद जानकर भी उसे परास्त किया जाता है। ये तीनों उपाय जब निष्फल हो जाएं तब अंतिम उपाय दण्ड का बचता है अर्थात युद्ध में शक्तिप्रदर्शन के द्वारा उसे पराजित किया जाए। शास्त्रों के अनुसार इन उपायों को यं तो क्रमशः आजमाया जाना चाहिए किन्तु दुश्मन की ताकत को देख कर इन्हें एक साथ भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
संस्कृत धातु ‘यु’ की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। इसमें जोड़ना, सम्मिलित होना, बांधना, जकड़ना जैसे भाव निहित हैं। इसी ‘यु’ से भारतीय भाषाओं में दर्जनों शब्द बने हैं। किन्हीं दो चीज़ों को जोड़ना कौशल की श्रेणी में आता है इसीलिए जोड़, बंधन के अर्थ में संस्कृत में युक्त शब्द इसी मूल से बना है। इसी कड़ी में आता है कौशल, तरकीब, उपाय जैसे अर्थ में युक्ति शब्द जिसका मतलब है मिलाप या संगम। यहां अर्थ विस्तार हुआ उपाय के रूप में। गौर कि उपाय या तरकीब से
कुछ प्राप्ति होती है, दो बिन्दु जुड़ते हैं सो युक्त से बने युक्ति में तरकीब, साधन, उपाय अथवा योजना जैसे भाव सार्थक हैं। इसके देशी रूप जुगत, जुगुति या जुगुत खूब प्रचलित हैं। जूता शब्द भी इसी मूल से आ रहा है। पैरों को ढक कर रखने की युक्ति से जूता चप्पल या खड़ाऊं की तुलना में सौ फीसद सुरक्षित चरणपादुका है। जूते का नामकरण इसके आकार या ध्वनि-अनुकरण के आधार पर नहीं हुआ है बल्कि यह समुच्चयवाची शब्द है। दरअसल दो पैरों की जोड़ी के चलते पादुकाओं की जोड़ी को संस्कृत में युक्तम् या युक्तकम् कहा गया जिससे प्राकृत में जुत्तअम होते हुए जूता शब्द बन गया। हालांकि आज के दौर में निरुपाय लोग शत्रु के साथ सरेआम जूतमपैजार पर उतर आते हैं। अब कौटिल्य की कूटनीति तो राजा-रईसों के लिए थी, गरीब मजलूमों का उपायचतुष्टय तो हर रोज बदलता है। इसी तरह हल खींचने के लिए बैलों के गले में जो जुआ बांधा जाता है वह भी यु से बने युज् से ही बना है। इसमें भी युक्त होने के भाव के साथ भूमि को जोतने की युक्ति नजर आ रही है।
इसी तरह उपाय के अर्थ में तरीका शब्द हिन्दी में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है। यह सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है। अरबी के तर्क Tarq से जन्मा है यह शब्द। अरबी में तर्क का मतलब होता है त्यागना, पीछे छोड़ना। भाव यही है कि किसी वस्तु, स्थान या वृत्ति को त्याग कर आगे बढ़ना। इससे ही बना है तराका जिसका मतलब है राह, रास्ता, मार्ग, पथ, रोड आदि। मुख्य भाव है मनुष्यों और पशुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगातार विचरण करने से, पदचिह्नों के आधार पर बनी राह अर्थात पगडण्डी। पदचिह्न हमेशा मार्गदर्शक ही होते हैं। अरबी का तारिक शब्द भी इसी मूल का है जो फारसी उर्दू में भी प्रचलित है और पुरुष-नाम है। तारिक का मतलब होता है रात में सफर करने वाला। गौर करें, पुराने जमाने में अरब लोग रात में ही सफर करते थे क्योंकि दिन की तपिश सफर की इजाजत नहीं देती थी। इसी मूल से बने तरीकः या तरीका शब्द का अर्थ हुआ प्रणाली, शैली, युक्ति आदि। इसका अर्थ धार्मिक पंथ या परम्परा भी होता है। सूफी दर्शन में तरीक़त एक प्रमुख मार्ग है ईश्वर प्राप्ति का जिसका अर्थ आत्मशुद्धि या ब्रह्मज्ञान है। तरीका व्यापक अर्थवत्ता वाला शब्द है। इस कड़ी का अगला शब्द है तरकीब जो हिन्दी के सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाले शब्दों में है। भाव वही है, युक्ति या उपाय। किसी काम को करने का विशिष्ट ढंग। खास तरह कि विधि।
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शुरुआत में कुछ जटिल सा लगा ,,पर पूरा पढ़कर लगा बड़ा ही ज्ञानवर्धक है ....प्रणाम
ReplyDeleteयुक्ति, जुगत, जुगुति, जुगुत का प्रयोग कम और जूता व जुगाड़ अधिक लोकप्रिय हैं।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक!
ReplyDeleteयुक्तम ...से जुअत्तम और फिर जूतमपैजार ...ज्ञान वृद्धि हुई !
ReplyDeleteसाम, दाम, भेद , दंड चारो जिसमे समाय,
ReplyDeleteकहते है सरकारी बाबू उसको ही 'उप-आय'
mansoorali hashmi