हि न्दी में कांड (काण्ड) शब्द खूब प्रचलित है। कांड का अर्थ है कोई घटना। आमतौर पर इसके साथ अप्रिय, अशुभ प्रसंग का संदर्भ जुड़ा है। कांड से काणा की भी रिश्तेदारी है। ऐसा कोई प्रकरण जो अतीत से चला आ रहा है, कांड के दायरे में आता है। मीडिया का भी यह प्रिय शब्द है। खबरों की दुनिया में जब तक कांड न हो, अखबार नीरस लगते हैं। रिश्वत कांड, घूस कांड, हथियार कांड, बलात्कारकांड, आंख फोड़ो कांड आदि। पड़ोसी के घर से ऊंचे सुर में चिल्लाने या रोने की आवाज आते ही लगता है, जरूर कोई कांड हुआ है यानी बड़ी घटना हुई है। जिस तरह किसी भी कांड यानी प्रकरण की कई परतें होती हैं उसी तरह ‘कांड’ बहुआयामी अर्थवत्तावाला शब्द है और इसकी रिश्तेदारियां बोलचाल के कई आमफहम शब्दों से है। मूलतः कांड शब्द का अर्थ अनुभाग, अंश, हिस्सा या खंड होता है। प्रसंग, अध्याय या विभाग भी इसकी अर्थवत्ता में शामिल हैं। किसी पुस्तक के अलग अलग अध्यायों को भी कांड कहा जाता है। रामचरित मानस ग्रंथ के अध्याय कांड कहलाते हैं जैसे अयोध्या कांड, लंका कांड आदि। धार्मिक ग्रंथों के कांड या प्रसंगों का आकार चाहे जितना सीमित रहा हो परंतु उनकी विवेचना इतनी विस्तृत होती चली गई कि कांड शब्द में विस्तार शब्द समा गया। इसीलिए कालांतर में बड़ी घटना या अप्रिय अंतहीन प्रसंग के रूप में ही कांड शब्द रूढ़ हो गया।
कांड शब्द बना है संस्कृत की कण् धातु से जिसमें क्षीण, सूक्ष्म और छोटे होते जाने का भाव है। कण् से ही बना है संस्कृत का कणः और हिन्दी का कण शब्द जिसका अर्थ है अनाज का दाना, अणु, जर्रा, बूंद या सूक्ष्मतम परिमाण आदि।कण अर्थात सूक्ष्मतम अंश या परिमाण की निर्मिति के पीछे उसका लघुतम होते जाना ही है। कण् में पीसना, चूरना, चूर्ण जैसा भाव भी है। चूर्ण करने या पीसने की क्रिया किसी वस्तु या पदार्थ को लगातार तोड़ना या विभाजित करना ही है। इसके लिए
कांड का अर्थ लकड़ी, लाठी या बेंत भी होता है। कांड में निहित अनुच्छेद या अनुभाग का भाव बांस के तने की बनावट पर ध्यान देने से स्पष्ट होता है।
खंड से पहले का रूप कण्ड है जिसमें फटकने, पके हुए अनाज से भूसी और दाने अलग करने का भाव है। यहां विभाजन का भाव स्पष्ट है। धार्मिक ग्रंथों के अनुच्छेद को भी कंडिका कहा जाता है। यह कांड का ही छोटा रूप है। कांड का अर्थ लकड़ी, लाठी या बेंत भी होता है। कांड में निहित अनुच्छेद या अनुभाग का भाव बांस के तने की बनावट पर ध्यान देने से स्पष्ट होता है। बांस में थोड़ी थोड़ी दूरी पर जोड़ या गठान जैसे उभार होते हैं। इस उभार को संस्कृत में पर्व कहा जाता है। हिन्दी का पोर शब्द इसी मूल से आ रहा है। पोर पोर में दर्द जैसी अभिव्यक्ति के पीछे जोड़ों के दर्द की बात ही आ रही है। जाहिर है शरीर में जहां जोड़ होता है, वहां उठान भी होती है। इसे पर्व या पोर कहते हैं। उभार या उठान का का आकार ही पहाड़ में भी होता है, इसीलिए पर्व् से ही पर्वत शब्द बना। किन्ही सौर तिथियों के मेल को मांगलिक माना जाता है इसे भी पर्व कहते हैं। रामगोपाल सोनी की शब्द संस्कृति में वेद के तीन विभागों कर्मकांड, उपासना कांड और ज्ञानकांड का उल्लेख है। वेद के किसी विशिष्ट कांड या विभाग की विवेचना करनेवाले ऋषि को कांडर्षि भी कहा जाता है। [-जारी]
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जन्मपत्री को कांडी बोलते हैं:
ReplyDeleteगणि गणि जोतकु कांडी कीनी - गुरु ग्रन्थ
गिन गिन कर ज्योत्षी जन्मपत्री बनाता है.
आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !
ReplyDeleteआचार्य जी
हमें तो सुन्दर काणड ही ज्यादा अच्छा लगता है!
ReplyDeleteवैसे आपने काण्ड पर बहुत ही बढ़िया प्रकाण्ड्य प्रस्तुत किया है!
कांड के भेद ठीक स्पष्ट किये।
ReplyDeleteकाण्ड शब्द की सुन्दर और खोज-परख विवेचना !मैंने तो जब से इस हिंदी ब्लॉग जगत में पदार्पण किया , काण्ड ही काण्ड देख रहा हूँ ! एक सवाल जो शुरू से खाए जाता है वह यह कि ये ब्लोगर मीट स्वादिष्ट क्यों नहीं बनती?
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबधाई आप को इस के लिए
इन कांडों ने कांड शब्द का कांड कर के रख दिया है ।
ReplyDelete'काण्ड' सुंदर दिखे 'उभार' के साथ,
ReplyDeleteजैसे धरती सजे 'पठार' के साथ,
तरुनाई के संग चंचलता,
जैसे बादे सबा बहार के साथ.
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'बांस' चढ़ता है 'पर्व' आता है,
मन को मीठा सा दर्द भाता है,
'पौर' पुलकित हुए से जाते है,
आईना देख गर्व आता है.
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@मंसूर अली
ReplyDeleteपर्व और कांड पर आज तो सचमुच आपकी टिप्पणी में कविताई पूरे उत्कर्ष पर है। 'जैसे धरती सजे पठार के साथ' बहुत मौलिक सी बात कही है। दोनों बंद जबर्दस्त शृंगार-कांड रच रहे हैं:)
हम जारी के इंतजार में थे , इधर मंसूर साहब 'पठार काण्ड' रच के चल दिये :)
ReplyDeleteअजित भाई , ज़रा 'प्रकांड' और घर की छत पर लगने वाले 'कांड' ( कांडा/ बल्ली में से ) पर भी रौशनी डालिए !