श ब्दों की दुनिया बहुत दिलचस्प है। अपने मूल रूप में जिस भाव के साथ किसी शब्द की अर्थवत्ता का विकास होता है वह वक़्त के साथ अपने मूल से इतना दूर चला जाता है कि उस शब्द में एक विपरीत अर्थ समा जाता है। कठिनाई, परेशानी या मुश्किल के लिए हिन्दी में दिक्कत शब्द बहुत आम है। अरबी फ़ारसी से हिन्दी में आए शब्दों में दिक्कत का भी शुमार है जिसके इस्तेमाल के साथ हमारे दिन की शुरुआत होती है। दिक्कत शब्द की रिश्तेदारी वाला एक और जो शब्द हिन्दी में प्रचलित है वह है तपेदिक जिसका अर्थ होता है टीबी की बीमारी। टीबी के लिए हिन्दी में राजयक्ष्मा शब्द भी है। सरकारी हिन्दी में टीबी के लिए क्षयरोग शब्द प्रचलित है। यूँ तो हर बीमारी अपने आप में दिक्कत है मगर दिक्कत से तपेदिक की रिश्तेदारी का आधार भाववाची न होकर व्युत्पत्ति आधारित है।
सबसे पहले बात दिक़्कत की। यह सेमिटिक मूल का शब्द है जिसमें क के साथ नुक़ता लगता है और इसे दिक्क़त लिखा जाता है। दिक्क़त बना है अरबी की d-q-q धातु से जिसका अर्थ है सूक्ष्म, क्षीण, पतला, दुबला, महीन, संकरा, कमी, तंग और छरहरा। अरबी की दिक् धातु में अत प्रत्यय लगने से बनता है दिक्क़त जिसमें कठिनाई या परेशानी का भाव है। मूलतः दिक्क़त में परेशानी का जो भाव है वह किसी और कठिनाई की तुलना में तंगहाली से उत्पन्न परेशानी का ज्यादा है। गौरतलब है कि दिक् धातु में अपने आप में गरीबी या निर्धनता का अर्थ द्योतन भी होता है। ज़ाहिर है दिक्क़त का मतलब हुआ ग़रीबी या ग़ुरबत के हालात। हालाँकि हिन्दी-उर्दू में सिर्फ़ इसी अर्थ में अब दिक्क़त का प्रयोग नहीं होता बल्कि किसी भी किस्म के मुश्किल हालात का रिश्ता दिक्क़त से जोड़ा जा सकता है।
दिक्क़त के साथ जुड़े महीन, क्षीण या सूक्ष्मता के भावों पर गौर करें। किसी चीज़ का लगातार क्षीण होते जाना, घटते जाना सचमुच परेशानी की बात हो सकती है। गृहस्थी में अड़चन आना, रूपए पैसे की कमी होना ही तंगी है और इसका लगातार बने रहना गुरबत का कारण बन सकता है। इसी तरह किसी वज़ह से शरीर का दुबला होना, कमज़ोर होना भी किसी ख़ास बीमारी का लक्षण हो सकता है। खान-पान और प्रदूषित परिवेश के चलते पुराने ज़माने में लोगों को अक़्सर टीबी की बीमारी होती थी और इसे असाध्य रोग समझा जाता था। हलके बुखार से शुरू होकर लगातार हरारत रहने और खांसी इसके प्रमुख लक्षण थे जिसकी वजह से शरीर क्षीण होता चला जाता था इसी लिए प्राचीनकाल में क्षय अर्थात हानि, ह्रास, घटाव, छीजना आदि। संस्कृत की क्षि धातु से बना है क्षय जिसमें नाश, अन्तर्धान या हानि होने का भाव है। यक्ष्मा का अर्थ होता है फेंफड़ों का रोग। आधुनिक चिकित्सा की भाषा में इसे टीबी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे फैलानेवाले रोगाणु की पहचान ट्यूबरकुलोसिस बैसिलस के रूप में हुई और इसके संक्षेपीकरण से ही बीमारी को भी टीबी नाम मिला। क्षय की चपेट में अमीर से ग़रीब तक आते थे मगर इसे राजरोग का दर्ज़ा सिर्फ़ इस वजह से मिला क्योंकि अमीर लोग इसका चंगुल में फंसने पर इलाज के लिए पानी की तरह पैसा बहाते थे और ग़रीब पर इसका साया पड़ते ही चटपट ज़िंदगी से निज़ात मिल जाती थी। टीबी की बीमारी में शरीर क्षीण होता चला जाता है इसीलिए दिक् शब्द का एक अर्थ टीबी या क्षय रोग भी हुआ। ज्यादातर कोशों में दिक् का अर्थ क्षय रोग भी दिया हुआ है।
टीबी के लिए हिन्दी में प्रचलित
... दिक् में एक अन्य भाव भी निहित है। गौर करना चाहिए इसके सूक्ष्म और महीन जैसे अर्थों पर। सूक्ष्मता और महीनता में नकारात्मक भाव नहीं हैं बल्कि इसका अर्थ एक किस्म का परिष्कार भी है।...
तपेदिक दरअसल फ़ारसी के तप और अरबी के दिक् से मिल कर बना है। तप ऐ दिक् > तपे दिक > तपेदिक। गौरतलब है कि संस्कृत मे जो तप का अर्थ ज्वाला, चमक, रश्मि, गरमी होता है। मूल आशय सूर्य की रोशनी और उसकी ऊर्जा से है। तप से ही बना ताप जिसका अर्थ है तपना, जलना। बरास्ता अवेस्ता, तप फ़ारसी में भी इसी रूप और अर्थ में दाखिल हुआ। तप का एक अर्थ बुखार भी हुआ क्योंकि बुखार में भी शरीर तपता है। मराठी, हिन्दी सहित ज्यादातर बोलियों में बुखार आने के लिए तपना, ताप आना भी कहा जाता है। चमक के अर्थ में फ़ारसी का ताब, तैश में आने के लिए ताव और रोटी सेंकने के लिए मोटे पेंदे वाली तश्तरी के लिए तवा जैसा शब्द इसी तप् से आ रहा है। किसी मनोरथ की पूर्ती के लिए की जानेवाली साधना को तप कहते हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में शरीर कृशकाय हो जाता है। यही साधना तपस्या है और इसे करनेवाला तपस्वी। ऐसे बुखार के लिए, जिसकी वजह से मनुष्य कृशकाय हो जाता हो, तपेदिक शब्द एकदम तार्किक है।पूर्वी बोलियों में परेशान करने के लिए दिक करना मुहावरा भी प्रचलित है। यह दिक् इसी मूल से आ रहा है। तंग करना मुहावरा पर गौर करें जिसकी भावभूमि भी दिक करना जैसी ही है। दिक् में एक अन्य भाव भी निहित है। गौर करना चाहिए इसके सूक्ष्म और महीन जैसे अर्थों पर। सूक्ष्मता और महीनता में नकारात्मक भाव नहीं हैं बल्कि इसका अर्थ एक किस्म का परिष्कार भी है। फ्रांसिस जोसेफ़ स्टेंगस की अरबी-फ़ारसी-इंग्लिश डिक्शनरी में इसकी पुष्टि होती है जिसमें इसका अर्थ निर्मल, परिष्कृत, उत्तम, शुद्ध, उम्दा और बारीक बतलाया गया है। जाहिर सी बात है कि परिष्करण की प्रक्रिया में अशुद्धियों की छंटनी होती जाती है और मूल के आकार में कमी भी आती है। यह कमी नकारात्मक नहीं बल्कि उसका मूल्य बढ़ानेवाली होती है। अनगढ़ हीरे की कटाई से उसका परिष्करण हो जाता है और वह बेशकीमती हो जाता है। स्पष्ट है कि दिक् में निहित सूक्ष्मता, क्षीणता या महीनता के भावों से इसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की अर्थवत्ताएं समा गई हैं। दिक्क़त का प्रयोग भाषा को मुहावरेदार बनाने में भी होता है। दिक्क़त में आना हिन्दी का एक मुहावरा है। इसके अलावा इससे जुड़े कुछ और शब्द भी हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे दिक्क़ततलब यानी ऐसा काम जिसमें कठिनाई सम्भावित हो, कष्टसाध्य या दुष्कर कार्य। दिक्क़तपसंद यानी जिसे कठिनाई का सामना करने में मज़ा आता हो, डूब कर काम करनेवाला आदि। दिक्क़त शब्द का इस्तेमाल अरबी, फ़ारसी, तुर्की, हिन्दी, मराठी, गुजराती समेत कई एशियाई भाषाओं में होता है।
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