Tuesday, May 31, 2011

शब्दों के साथ संस्कृतियों का सफर

शब्दों का सफ़र की प्रस्तुत समीक्षा ख्यात कवि और वरिष्ठ पत्रकार अरुण आदित्य ने की है। अरुण जी अमर उजाला दैनिक में एडिटर मैगजींस हैं और दिल्ली में रहते हैं।
नुष्य जब एक जगह से दूसरी जगह जाता है तो अपने साथ शब्द भी ले जाता है | इस तरह मनुष्य के साथ-साथ शब्द भी देश-काल की यात्रा करते रहते हैं | दो भिन्न समाज जब एक दूसरे के संपर्क में आते हैं, तो खान-पान, रहन-सहन के साथ-साथ भाषा के स्तर पर भी एक दूसरे को प्रभावित करते हैं | इसी के चलते विभिन्न भाषाओं में अनेक ऐसे शब्द प्रचलन में आते हैं, जो ध्वनि और अर्थ के स्तर पर एक दूसरे से काफी समानता रखते हैं | पत्रकार अजित वडनेरकर ने अपनी पुस्तक 'शब्दों का सफर' में शब्दों के जन्मसूत्र से सेकर विभिन्न भाषाओं में उनकी यात्रा को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है |
जित बिल्कुल आम बोल चाल की भाषा में किसी एक शब्द को उठाते हैं, उसकी जन्मकथा बताते हैं| फिर अन्य भाषाओं में उस शब्द के भाव को व्यक्त करने वाले उससे मिलते-जुलते अन्य शब्द का संधान करते हैं और भाषा विज्ञान के सिद्धांतों का सहारा लेकर इन शब्दों के निर्माण की अंतर्प्रक्रिया का खुलासा करते हैं | जैसे बैंगन शब्द की यात्रा को देखिए - 'दुनिया भर की भाषाओं में बैंगन के लिए अलग-अलग रूप मिलते हैं, मगर ज्यादातर के मूल में संस्कृत शब्द वातिंगमः ही हैं संस्कृत से यह शब्द फारसी में बादिंजान बनकर पहुंचा, वहां से अरबी जुबान में इसका रूप हुआ अल-बादिंजान| अरबी के जरिए ये स्पेनी में अलबर्जेना हुआ, वहां से केटलान में ऑबरजीन और फिर अंग्रेजी में हुआ ब्रिंजल| अजित की इस किताब की एक विशिष्टता यह भी है कि वे पाठक को शब्दों के साथ सफर कराते-कराते विभिन्न संस्कृतियों की भी सैर करा देते हैं| मसलन ख्वाजा शब्द की व्याख्या करते हुए वे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और ख्वाजा नसरुद्दीन तक की अंतर्कथाएं भी बताते चलते हैं|
viewerविभिन्न भाषाओं के बीच एक्य की तलाश करते हुए वे बताते हैं कि संस्कृत का ऋषि किस तरह फारसी के रशद या रुश्द (जिसका अर्थ है सन्मार्ग, दीक्षा या गुरु की सीख) का भाईबंद है| रुश्द से ही बना है रशीद जिसका मतलब है ज्ञान पाने वाला | यही शब्द अरबी में जाकर मुर्शिद का रूप ले लेता है| शब्दों के जन्मसूत्र की तलाश मुख्यतः व्युत्पत्ति विज्ञान का विषय है, लेकिन अजित न सिर्फ भाषाविज्ञान की अन्य प्रशाखाओं को हिलाते-डुलाते हैं, बल्कि बात को सिरे चढाने के लिए अन्य विषयों का भी दरवाजा खटखटाने से गुरेज नहीं करते हैं | यही वजह है कि यह किताब आपको भाषाविज्ञान, समाजविज्ञान, भूगोल और इतिहास जैसे विविध विषयों से रूबरू कराती है | शाबाश की चर्चा करते हुए वे इतिहासकार की तरह ईरान के शाह अब्बास तक पहुंचते हैं, तो महिला और मेहतर जैसे शब्दों की व्याख्या करते हुए उनका समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण प्रमुखता से नजर आता है कि किस तरह एक ही धातु से बने ये दोनो शब्द कालांतर में अपनी महत्ता खो बैठे| दोनो ही शब्द मह धातु से बने हैं, जिसमें गुरुता का भाव हैं | एक ही धातु से उपजे ये दोनो महान शब्द विषमतामूलक-समाज व्यवस्था में इतने अवनत हुए कि अपना मूल अर्थ ही खो बैठे |
ब्द-दर-शब्द सफर करते हुए स्पष्ट होता है कि लेखक की दृष्टि बहुआयामी है और वह शब्दों के बहाने आपको बहुत कुछ दिखाना चाहता है | दरअसल अजित वडनेरकर इस प्रयास के जरिए दुनिया के विभिन्न मानव समूहों में सांस्कृतिक वैभिन्य के बीच एकता के सूत्रों की तलाश करते हैं | ख्यात कोशकार अरविंद कुमार ने बिल्कुल ठीक ही कहा है कि यह मानवता के विकास का महासफर है | गहन शोधपरक इस सफरनामे के पहले पडाव में ही अजित ने 52 किताबों, 49 वेब संदर्भों का हवाला दिया है | पर अजित की मेहनत इससे भी कहीं बहुत ज्यादा है | शोध और श्रम से तैयार यह किताब शोधकर्ताओं और आम पाठक के लिए समान रूप से उपयोगी है |

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13 comments:

  1. बिल्‍कुल सही लिखा है अरुण जी ने। इस सफर को धीरे धीरे ही सही जारी रखें...

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  2. बड़ा ही आत्मीय लगता है शब्दों के साथ सफर, हमारे जीवन के अंग जो हैं, ये शब्द।

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  3. बेशक शब्दों का सफ़र संस्कृतियों का सफ़र है...पुस्तक 'शब्दों के सफ़र' की एक झलक दिखाने के लिए आदित्यजी आपका आभार

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  4. यदि समझाने का तरीका रोचक हो तो नीरस से नीरस विषय भी अच्‍छा लगने लगता है। अजित जी की यही खासियत है कि वह तथ्‍यात्‍मक ज्ञान भी रोचकता के साथ बांटते हैं।

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  5. विषयों के विस्तार और विविधता से युक्त पुस्तक की इतनी संक्षिप्त समीक्षा नाकाफ़ी तो लगती है फ़िरभी महत्वपूर्ण है ।

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  6. पुस्तक निश्चित रूप से ज्ञानवर्द्धक है और अत्यन्त रोचक ढंग से लिखी गयी है।

    अजित जी को बारंबार बधाई।

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  7. संक्षिप्त और परिचयात्मक समीक्षा सम्यक बन पड़ी है | मूल पुस्तक को पढ़ने की उत्कंठा जगाए तो बस सार्थक है वह समीक्षा |
    अजित जी ! अनेकशः बधाई |

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  8. उत्पत्ति की तलाश में निकलें तो शब्दों का बहुत दिलचस्प सफर सामने आता है। nice line..

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  9. आदित्य जी की लिखी आपकी पुस्तक की समीक्षा पढी । भाषा और संस्कृति के विकास के सम्बंध मे आपका यह शोधग्रंथ लगन और अत्यधिक परिश्रम का ़द्योतक है बधाई

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  10. मैने पुस्तक तो अभी तक नही पढी पर यदि लेखों से जाना जाय तब भी यह समीक्षा एकदम सही बैठती है । आपके सफर में आप शब्दों के साथ साथ संस्कृति दर्शन भी होते ही हैं । और आखिर दुनिया गोल हे का ज्ञान भी ।

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  11. उपयोगी और dilchasp lekh. बधाई.

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  12. उपयोगी और dilchasp lekh. बधाई.

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