शब्दों का सफ़र की प्रस्तुत समीक्षा ख्यात कवि और वरिष्ठ पत्रकार अरुण आदित्य ने की है। अरुण जी अमर उजाला दैनिक में एडिटर मैगजींस हैं और दिल्ली में रहते हैं।
म नुष्य जब एक जगह से दूसरी जगह जाता है तो अपने साथ शब्द भी ले जाता है | इस तरह मनुष्य के साथ-साथ शब्द भी देश-काल की यात्रा करते रहते हैं | दो भिन्न समाज जब एक दूसरे के संपर्क में आते हैं, तो खान-पान, रहन-सहन के साथ-साथ भाषा के स्तर पर भी एक दूसरे को प्रभावित करते हैं | इसी के चलते विभिन्न भाषाओं में अनेक ऐसे शब्द प्रचलन में आते हैं, जो ध्वनि और अर्थ के स्तर पर एक दूसरे से काफी समानता रखते हैं | पत्रकार अजित वडनेरकर ने अपनी पुस्तक 'शब्दों का सफर' में शब्दों के जन्मसूत्र से सेकर विभिन्न भाषाओं में उनकी यात्रा को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है |
अजित बिल्कुल आम बोल चाल की भाषा में किसी एक शब्द को उठाते हैं, उसकी जन्मकथा बताते हैं| फिर अन्य भाषाओं में उस शब्द के भाव को व्यक्त करने वाले उससे मिलते-जुलते अन्य शब्द का संधान करते हैं और भाषा विज्ञान के सिद्धांतों का सहारा लेकर इन शब्दों के निर्माण की अंतर्प्रक्रिया का खुलासा करते हैं | जैसे बैंगन शब्द की यात्रा को देखिए - 'दुनिया भर की भाषाओं में बैंगन के लिए अलग-अलग रूप मिलते हैं, मगर ज्यादातर के मूल में संस्कृत शब्द वातिंगमः ही हैं संस्कृत से यह शब्द फारसी में बादिंजान बनकर पहुंचा, वहां से अरबी जुबान में इसका रूप हुआ अल-बादिंजान| अरबी के जरिए ये स्पेनी में अलबर्जेना हुआ, वहां से केटलान में ऑबरजीन और फिर अंग्रेजी में हुआ ब्रिंजल| अजित की इस किताब की एक विशिष्टता यह भी है कि वे पाठक को शब्दों के साथ सफर कराते-कराते विभिन्न संस्कृतियों की भी सैर करा देते हैं| मसलन ख्वाजा शब्द की व्याख्या करते हुए वे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और ख्वाजा नसरुद्दीन तक की अंतर्कथाएं भी बताते चलते हैं|
शब्द-दर-शब्द सफर करते हुए स्पष्ट होता है कि लेखक की दृष्टि बहुआयामी है और वह शब्दों के बहाने आपको बहुत कुछ दिखाना चाहता है | दरअसल अजित वडनेरकर इस प्रयास के जरिए दुनिया के विभिन्न मानव समूहों में सांस्कृतिक वैभिन्य के बीच एकता के सूत्रों की तलाश करते हैं | ख्यात कोशकार अरविंद कुमार ने बिल्कुल ठीक ही कहा है कि यह मानवता के विकास का महासफर है | गहन शोधपरक इस सफरनामे के पहले पडाव में ही अजित ने 52 किताबों, 49 वेब संदर्भों का हवाला दिया है | पर अजित की मेहनत इससे भी कहीं बहुत ज्यादा है | शोध और श्रम से तैयार यह किताब शोधकर्ताओं और आम पाठक के लिए समान रूप से उपयोगी है |
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बिल्कुल सही लिखा है अरुण जी ने। इस सफर को धीरे धीरे ही सही जारी रखें...
ReplyDeleteबड़ा ही आत्मीय लगता है शब्दों के साथ सफर, हमारे जीवन के अंग जो हैं, ये शब्द।
ReplyDeleteबेशक शब्दों का सफ़र संस्कृतियों का सफ़र है...पुस्तक 'शब्दों के सफ़र' की एक झलक दिखाने के लिए आदित्यजी आपका आभार
ReplyDeleteयदि समझाने का तरीका रोचक हो तो नीरस से नीरस विषय भी अच्छा लगने लगता है। अजित जी की यही खासियत है कि वह तथ्यात्मक ज्ञान भी रोचकता के साथ बांटते हैं।
ReplyDeleteविषयों के विस्तार और विविधता से युक्त पुस्तक की इतनी संक्षिप्त समीक्षा नाकाफ़ी तो लगती है फ़िरभी महत्वपूर्ण है ।
ReplyDeleteपुस्तक निश्चित रूप से ज्ञानवर्द्धक है और अत्यन्त रोचक ढंग से लिखी गयी है।
ReplyDeleteअजित जी को बारंबार बधाई।
संक्षिप्त और परिचयात्मक समीक्षा सम्यक बन पड़ी है | मूल पुस्तक को पढ़ने की उत्कंठा जगाए तो बस सार्थक है वह समीक्षा |
ReplyDeleteअजित जी ! अनेकशः बधाई |
उत्पत्ति की तलाश में निकलें तो शब्दों का बहुत दिलचस्प सफर सामने आता है। nice line..
ReplyDeleteआदित्य जी की लिखी आपकी पुस्तक की समीक्षा पढी । भाषा और संस्कृति के विकास के सम्बंध मे आपका यह शोधग्रंथ लगन और अत्यधिक परिश्रम का ़द्योतक है बधाई
ReplyDeleteमैने पुस्तक तो अभी तक नही पढी पर यदि लेखों से जाना जाय तब भी यह समीक्षा एकदम सही बैठती है । आपके सफर में आप शब्दों के साथ साथ संस्कृति दर्शन भी होते ही हैं । और आखिर दुनिया गोल हे का ज्ञान भी ।
ReplyDeleteउपयोगी और dilchasp lekh. बधाई.
ReplyDeleteउपयोगी और dilchasp lekh. बधाई.
ReplyDeleteवाह…बढ़िया…
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