Saturday, February 25, 2012

काफ़ी नहीं किफ़ायती होना

वश्यकता के मुताबिक उपलब्धता के भाव को अभिव्यक्त करने के लिए हिन्दी में ‘यथेष्ट’ और ‘पर्याप्त’ शब्दों का प्रयोग होता है । ‘यथेष्ट’ की तुलना में पर्याप्त का प्रयोग ज्यादा है मगर इन दोनों की तुलना में हिन्दी में ‘काफ़ी’ शब्द का इस्तेमाल आम है । ‘काफ़ी’ सर्वाधिक बोले जाने वाले शब्दों में शामिल है । इन तीनों ही शब्दों में मात्रा या परिमाण का बोध होता है । काफ़ी लोग, पर्याप्त धन या यथेष्ट अनुभव जैसे पदों से यह ज़ाहिर भी होता है । ‘काफ़ी’ सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है मगर बोलचाल में यूँ रचाबसा है जैसे हिन्दी मूल का ही हो । फ़ारसी के रास्ते ‘काफ़ी’ शब्द हिन्दी में दाखिल हुआ । मूलतः यह अरबी भाषा का शब्द है । ‘किफ़ायत’ भी इसी शब्द-शृंखला का हिस्सा है । ‘किफ़ायत’ का मूलार्थ है पर्याप्त, यथेष्ट मगर इसकी अर्थवत्ता में आमतौर पर बचत, मितव्ययिता या कमखर्च का भाव देखा जाता है ।
रबी में ‘काफ़ी’ के मायने हैं पर्याप्त, यथेष्ट, समुचित, यथोचित, योग्य आदि । यूँ ‘काफ़ी’ का प्रयोग अधिक, बहुत या ज़्यादा की तरह भी होता है जो कि ग़लत है । ‘काफ़ी’ में निहित यथेष्ट या ज़रूरत के मुताबिक वाला भाव ही पकड़ना चाहिए । ‘काफ़ी’ बना है अरबी के ‘काफ़’ से जिसमें यही सारे भाव हैं । काफ़ की मूल धातु है k-f-y जिसमें पर्याप्तता के भाव के साथ साथ रोज़गार, खुराक, बचत करना, सुरक्षा जैसे भावों का समावेश है । गौर करें कि आवश्कतानुरूप उपलब्धता में ही सुखमय जीवन है । साईँ इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय ।। स्पष्ट है कि पर्याप्तता में ही बचत का भी आधार है । यथेष्टता में बचत है । परिवार की क्षुधाशान्ति के बाद भी एक व्यक्ति के पेट लायक भोजन बचता ही है । ज़रूरत के मुताबिक पदार्थ होने पर ही कुछ बचाया जा सकता है । सो ‘काफी है’ वाक्य में यह बात निहित है कि कुछ न कुछ बच ही जाएगा । k-f-y में यही भाव है । इससे बने ‘काफ़ी’ शब्द में प्रकारान्तर से सन्तोष का भाव महत्वपूर्ण है । ‘काफ़ी’ शब्द का इस्तेमाल कई तरह से होता है जैसे- “इतना काफी है”, “काफ़ी-कुछ ठीक हो गया” , “काफ़ी से ज्यादा है”, “काफ़ी से कम है”, “काफ़ी ज्यादा है” इत्यादि । फ़ारसी का ‘ना’ उपसर्ग लगा कर ‘नाकाफ़ी’ शब्द बनता है जिसका अर्थ होता है अपर्याप्त ।
किफ़ायत शब्द अरबी के ‘किफ़ायाह’ से बना है जिसके मूल में भी सेमिटिक धातु k-f-y है । किफ़ायत को हिन्दी में बचत के अर्थ में ही लिया जाता है पर इसके मूलभाव को पकड़ें तो इसमें भी पर्याप्तता और प्रचुरता ही खास है । अधिक अंश को ही बचत कहा जाता है सो ‘किफ़ायत’ से बने किफ़ायती में मूल्य से कम अर्थात सस्तेपन का भाव है । किफ़ायती का अर्थ मितव्ययी भी होता है । कमखर्च वाला सामान भी ‘किफ़ायती’ कहलाता है । किफ़ायतशार उस व्यक्ति को कहते हैं जो गुणा-भाग लगा कर खर्च करता है, हिसाबी-किताबी है । किफ़ायतशारी का मतलब है बचत करना, कम खर्च करना या मितव्ययिता दिखाना । किफ़ायती व्यक्ति भी हो सकता है और वस्तु भी । ऐसी वस्तु जो कम मूल्य पर खरीदी जाए, किफ़ायती दाम वाली कहलाएगी । कम खर्च पर संचालित होने वाली व्यवस्था या वस्तुएँ भी किफ़ायती कहलाती हैं जैसे बिजली बचाने वाला उपकरण भी किफ़ायती कहलाएगा ।
काफ़ी के अर्थ में ‘पर्याप्त’ शब्द का प्रयोग भी खूब होता है । हिन्दी शब्दसागर के मुताबिक ‘पर्याप्त’ के प्रचलित मायने हैं- पूरा, काफी, यथेष्ट मगर इसमें प्राप्त, मिला हुआ जैसे अर्थ भी निहित हैं । इसके साथ ही जिसमें शक्ति हो, शक्तिसंपन्न, जिसमें सामर्थ्य हो जैसे भाव भी हैं । ‘पर्याप्त’ बना है परि (पर्य) + आप्त से जिससे इसका अर्थ निकलता है जो पूरी या अच्छी तरह से प्राप्त हो । ‘परि’ उपसर्ग में समग्रता का भाव है और ‘आप्त’ का अर्थ है पाना, मिलना, प्रदत्त आदि । बाद में ‘काफी’ या ‘यथेष्ट’ के अर्थ में ऐसी मात्रा या परिमाण जिससे ज़रूरत पूरी हो रही हो, के आशय में पर्याप्त शब्द हिन्दी में रूढ़ हो गया । अब इसी रूप में में हिन्दी में इसका प्रयोग होता है । पर्याप्त में आवश्यकता और उसकी पूर्ति का भाव ही प्रमुख है अर्थात आवश्यकता के अनुरूप प्राप्ति ही पर्याप्तता है ।
र्याप्त के अर्थ में ‘यथेष्ट’ शब्द परिनिष्ठित हिन्दी में प्रयोग होता है । बोली-भाषा में इसका प्रयोग कम है मगर लेखन में यह नज़र आता है । ‘यथेष्ट’ बना है ‘यथा + इष्ट’ से । अर्थात इच्छा के अनुरूप । ‘यथा’ यानी जितना और ‘इष्ट’ यानी जिसकी कामना की जाए । इस तरह यथेष्ट में इच्छापूर्ति की बात उभर रही है । ‘यथेष्ट’ का प्रयोग देखिए- “नौकरी मिलने के बाद उसने यथेष्ट साधन जुटा लिए ।” पर यथेष्ट के साथ भी अधिकता या प्रचुरता वाली अर्थवत्ता जुड़ी हुई है जैसे- “उनके पास यथेष्ट संसाधन थे फिर भी कई काम अधूरे रह गए ।” यहाँ मनमाफिक साधनों के साथ प्रचुर साधनों की बात भी उभर रही है ।

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10 comments:

  1. ACHCHHI JANKARI DEE HAI AAPNE.
    UDAY TAMHANE
    B.L.O.
    BHOPAL.

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  2. अजित भाई, बहुत सुंदर। मुझे लगता है अब शब्दों का सफर नियमित होना चाहिए। सप्ताह में कम से कम तीन पोस्टें तो होनी ही चाहिए।

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  3. Bahut hi behtreen jaabkaari di hai Ajit ji...

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  4. किफायत से चलने वाले के लिये कम ही काफी है...

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  5. वैसे अक्‍सर किफायत काम कर ही जाती है। जानकारी के लिए शुक्रिया।

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    ..की-बोर्ड वाली औरतें।

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  6. सार्थक पोस्ट, आभार.

    मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर आप सादर आमंत्रित हैं.

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  7. किफायत करते रहें तो सब सदा पर्याप्त ही होगा ।

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  8. काफी पर आपने काफी किफायत बरती। दिनेशजी द्विवेदी के अनुरोध को मेरा भी अनुरोध मानिएगा।

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  9. Mansoor Ali said...
    'Coffee' नही यथेष्ठ, कुछ 'काजू' भी लाईये,
    "जल-पान" ! करने आये है, आँखे बिछाईये,
    'पर्याप्त' है निकट ये तो 'आला-कमान' से,
    होकर 'किफायती' न ये मौक़ा गंवाईये.
    -------------------------------------------------
    # "साई इतना दीजिये 'स्विस' तलक भी जाए,
    'कुटुम' म्हारो संतुष्ट रहे,बाकी सब भाड़ में जाए."

    http://aatm-manthan.com

    FEBRUARY 26, 2012 10:01 AM

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