Thursday, March 1, 2012

विमोचन समारोह की झलकियाँ

दि ल्ली के इंडिया इंटरनैशनल सेन्टर में मंगलवार, 28 फरवरी को शब्दों का सफ़र के दूसरे खण्ड का विमोचन हुआ । राजकमल प्रकाशन के 63 वर्ष पूरे होने के मौके पर इस कृति के विमोचन में वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी और गीतकार जावेद अख्तर मौजूद थे । गौरतलब है कि शब्दों का सफर को पिछले साल राजकमल कृति पाण्डुलिपि सम्मान के लिए चुना गया था । ख़ाकसार इस मौके पर औरंगाबाद में ही था । वहाँ पहुँचने की ज़िम्मेदारी हमने श्रीमतीजी को सौपी थी । फिलहाल जो खबरें मिलीं, उनके मुताबिक कार्यक्रम बहुत भव्य और शानदार हुआ । इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता अमरेंद्र किशोर की पांडुलिपि “बादलों के रंग, हवाओं के संग” को लोकायत-देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय पुरस्कार और, लेखिका महुआ माज़ी के उपन्यास “मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ” को एक लाख रुपए की सम्मान राशि के साथ कृति पाण्डुलिपि सम्मान प्रदान किया गया । वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी की चर्चित किताब “व्योमकेश दरवेश” को पहले राजकमल सृजनतात्मक गद्य सम्मान से भी नवाजा गया । समारोह में वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी, वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, लेखिका कृष्णा सोबती समेत कई नामी पत्रकार और साहित्यकार मौजूद थे । हमारे पास कुछ तस्वीरें हैं जो इस कार्यक्रम का हाल बयान करती हैं ।
प्रगति मैदान में शब्दों का सफ़र के बैनर
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इंडिया इंटरनैशनल सेन्टर में ….मंच को मेहमानों का इंतजार…009 मुब्तिला गपशप में. अशोक वाजपेयी, कुलदीप नैयर और जावेद अख़्तर 008
नामवरसिंह, जावेद अख़्तर और अशोक माहेश्वरी (राजकमल प्रकाशन)010 करकस्मिता वडनेरकर, जावेद अख़्तर महुआ माजी, विश्वनाथ त्रिपाठी, नामवरसिहं और अशोक माहेश्वरी016_ok
महुआ माजी को कृति सम्मान दिया गया…020 अमरेन्द्र किशोर को भी कृति सम्मान दिया गया…021
राजकमल के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी के साथ स्मिता वडनेरकर022 सफ़र के खूबसूरत को डिजाइन किया अंशुल शर्मा (आर्ट डायरेक्टर आऊटलुक ग्रुप )  ने…023
प्रकाशन के सात माह के भीतर इस पुस्तक का दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हुआ । वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह ने शब्दों का सफर के बारे में पुस्तक के आवरण पर दर्ज अपनी टिप्पणी में कहा है- “ आदमी की जन्मकुंडली बनाना तो सरल है शब्दों की जन्मकुंडली बनाना बड़ा कठिन है, कैसे पैदा हुए, कब पैदा हुए, यह जानना, खोजना बड़ा मुश्किल काम है। धुन के पक्के हैं वडनेरकर। मुझे खुशी है कि एक मराठी भाषी आदमी ने यह कोश तैयार किया है । “ नामवरजी ने इस मौके पर कहा कि पुरस्कार वगैरह तो हमारे शिष्टाचार में शामिल है, मगर अब बड़े संस्थानों, संगठनों को सोचना चाहिए उन साहित्यकारों के बारे में जिन्होंने सारी उम्र साहित्य सृजन में बिताई मगर अर्थाभाव आज भी जीवन को कठिन बना रहा है ।
सबको सादर नमन्
किताब की सज्जा इस बार और भी बेहतर है । कवर डिज़ाइन बनाया है आऊटलुक समूह के आर्ट डायरेक्टर अंशुल शर्मा ने । नई नवेली किताब के फ़िलहाल हमें भी दर्शन नहीं हुए हैं । कुछ दिनों बाद भोपाल जाएँगे तो यह सुख पाएँगे । पिछली बार की तरह ही किताब में अपने ब्लॉगर मित्रों का उल्लेख है, कुछ की टिप्पणियाँ भी इस बार शामिल की हैं । साझेदारी का सफ़र है । उम्मीद है सफ़र के साथियों के बुकशेल्फ़ में दूसरा खण्ड भी देखने को मिलेगा । अमेरिका में बसीं हिन्दी-मराठी की लेखिका-ब्लॉगर आशा जोगलेकर ने हमें लिखा था - "आखिर आपकी पुस्तक मैने खरीद ही ली । उपहार में देने के लिये यह अनुपम है । " और अभी फिर उन्होंने लिखा- "बहुत बधाई । जल्दी ही ऑर्डर करेंगे । " एक बार फिर सफर के साथियों, मित्रों का आभार कि सतत उत्साहवर्धन से यह सफर अपनी तयशुदा मंज़िल की ओर बढ़ रहा है । सफर के पहले खण्ड की काफी पत्र-पत्रिकाओं में चर्चा हुई । समीक्षकों ने इसके बारे में अच्छी बातें कहीं, सुझाव-समझाइश भी दी । सबको सादर नमन् । जै हो ।

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15 comments:

  1. Badhiya jaankaaree dee hai aapne!

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  2. बधाई, जारी रहे यह सफर.

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  3. बधाई बहुत-बहुत !यह आपके परिश्रम , लगन और समर्पित भाव से भाषा-गत अध्ययन-अनुसंधान का सुफल है !

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  4. हार्दिक बधाई स्वीकारे. दिल खुश होता है, आपकी उपलब्धियां देख कर.

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  5. बहुत बहुत बधाई अजित जी!!
    सफ़र का एक और यादगार क्षण

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  6. आपकी मेहनत और लगन देख कर,पढ़ कर और सुन कर बहुत अच्छा लगता है,नामवर सिंह जी ने आपकी तारीफ़ में सही कहा है...'आदमी की जन्म कुंडली बनाना तो सरल है, शब्दों की जन्म कुंडली बनाना बड़ा कठिन है।'आपकी इस सुखद उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई अजित भाई! आपके शब्दों का सफ़र शुरु से पढ़ती आ रही हूँ।हमारी शुभकामनाएं हैं,आपकी खोज जारी रहे,ये सफ़र निरंतर चलता रहे..।

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  7. बहुत बधाई हुक्म . अख़बार में ये खबर पढकर बहुत अच्छा लगा .
    खासकर किताब के कवर पर उटो का काफिला . इससे राजस्थान का गहरा नाता है और आपका भी ?

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  8. ढेरों बधाईयाँ, हम भी लाइन में खड़े हो किताब लेना चाहते हैं..

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  9. बधाई स्वीकार करे
    सादर
    रचना

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  10. बधाई! फोटो और साफ़ वालों का इंतजार है। किताबें अब दोनों एक साथ मंगाते हैं राजकमल से।

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  11. बधाई स्वीकारें भाई साहब।

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  12. आपको कितनी ही बधाइयॉं दें, कम ही होंगी। न हमारा मन भरेगा और न ही आपका पेट। (प्रशंसा किसे अच्‍छी नहीं लगती?, इससे तो देवता भी नहीं बच पाए!) इसलिए, इस सबसे बाहर आइए और तीसरे खण्‍ड की तैयारियों में लग जाइए। आपको तो भोजन करने, सोने का अधिकार भी नहीं रहा अब। अब आपको अपने लिए नहीं, 'सफर' के तीसरे पडाव के लिए जीना है।
    शुभ-कामनाऍं और अग्रिम बधाइयॉं।

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  13. बहुत बधाई । इसी बहाने स्मिता जी को भी देख लिया । राजकमल से ही ऑर्डर करूंगी पुस्तक ।

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  14. बहुत बधाई । इसी बहाने स्मिता जी को भी देख लिया । राजकमल से ही ऑर्डर करूंगी पुस्तक ।

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  15. बहुत बधाई । इसी बहाने स्मिता जी को भी देख लिया । राजकमल से ही ऑर्डर करूंगी पुस्तक ।

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