भू ख मिटाना मनुष्य की आदिम चिन्ता रही है । उसका आहार चाहे आग पर पका हो या न पका हो, मगर पेट की आग मिटाने के लिए, उदरपूर्ति यानी पेट भरना ज़रूरी है । गौर करें कि पेट भरना भी मुहावरा है । इसमें कलेवा, ब्यालू, जेवनार, ब्रेकफ़ास्ट, लंच, डिनर, सपर, ठण्डा, मीठा, छप्पनभोग, रूखा, सूखा, तर, शाकाहार, मांसाहार, सादा, तामसिक, कच्चा, पक्का, लवणीय, अलवणीय, शुद्ध, अशुद्ध जैसा कोई भेद नहीं है । ‘पेट भरना’ यानी पेट की आग को शान्त करने के लिए उसमें कुछ न कुछ डालना ज़रूरी है । यानी भूख मिटाने के लिए कुछ भी खा लेना मनुष्य का आदिम स्वभाव रहा है । भोजन के सम्बन्ध में उपरोक्त भेद तो सभ्यता के विकास के साथ साथ सामने आए मगर उदरपूर्ति के विभिन्न आयामों से हमारे समाज-व्यवहार के सन्दर्भ में कई कहावतें और मुहावरे सामने आए हैं । उदरपूर्ति के लिए पेट में कुछ भी भर लेना अलग बात है और उसका पचना अलग बात है । कई लोगों में ऐसी कूवत होती है कि जो चाहें हजम कर जाएँ । ‘पचाना’ या ‘हजम होना’ जैसे मुहावरे इसी कड़ी में आते हैं जिनमें किसी अन्य व्यक्ति का माल हड़पना का जैसा भाव है जैसे उसने सारा माल पचा लिया या सब कुछ हजम कर लिया ।
हिन्दी में पचाने के सन्दर्भ में हजम शब्द का प्रयोग बेहद आम है । मूलतः यह अरबी भाषा का शब्द है और भारतीय भाषाओं में फ़ारसी के ज़रिए आया है । इसका शुद्ध अरबी रूप हस्ज़्म है और यह हिन्दी में हज़्म के रूप में नज़र आता है । हजम करना का अर्थ जहाँ खाई हुई चीज़ का बहुत अच्छी तरह पाचन हो जाना है वहीं उसमें किसी की वस्तु हड़पना, अमानत में ख़यानत करना, ग़बन करना जैसे भाव भी हैं । हजम की कड़ी में ही आता है हाजमा जिसका अर्थ है पाचनशक्ति या पाचनक्रिया । हाजमा खराब होना का सीधा अर्थ है, पेट में गड़बड़ी होना यानी पाचन ठीक से न होना , मगर किसी तथ्य या बात को गोपनीय न रख पाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है जैसे- “उसे कुछ मत बताना, उसका हाज़मा ख़राब है ।” इसका अर्थ हुआ उसके पेट में बात नहीं पचती । पेट में बात न पचना भी प्रसिद्ध मुहावरा है ।
गर्मियों में होने वाली एक सामान्य बीमारी हैजा है । चिकित्सा भाषा में इसे कालरा कहा जाता है । यह एक बैक्टीरिया जनित रोग है । आयुर्वेद के अनुसार सर्दियों के मौसम में पाचन क्षमता बेहतर रहती है जबकि गर्मियों में यह कम हो जाती है । इसीलिए गर्मी के मौसम में पेट सम्बन्धी रोग बढ़ने लगते हैं । हैजा अरबी शब्द है और हैज़ह धातु से बना है जिसका अर्थ है अपच । आन्ड्रास रज़्की के अरबी कोश के मुताबिक इसका शुद्ध अरबी रूप हैस्ज़्जा है । इसका हिन्दीकरण बतौर हैजा हुआ । यह भी हस्ज़्म और हस्ज्ज में सिर्फ़ ज़ और म का अन्तर है । इन दोनों शब्दों में निकट सम्बन्ध है और इनका व्युत्पत्तिक आधार भी समान है । हिन्दी शब्दसागर में हैजा की प्रविष्टि में उल्टी, दस्त की बीमारी के साथ इसका अर्थ युद्ध अथवा जंग भी बताया गया है । हालाँकि मद्दाह का हिन्दी-उर्दू कोश और रज़्की के अरबी कोश देखने के बाद शब्दसागर की प्रविष्टि त्रुटिपूर्ण लगती है । मद्धाह और रज़्की दोनों के कोश में युद्ध अथवा जंग के संदर्भ में हजा अथवा हजामा जैसे शब्द हैं । हजा और हजामा की हैजा और हजम से ध्वन्यात्मक समानता ज़रूर है पर इनमें व्युत्पत्तिक रिश्तेदारी नहीं है ।
इस सन्दर्भ में हाजत को भी याद कर लिया जाए । उर्दू में हाजत आना या हाजत जाना का अर्थ दीर्घशंका या टॉयलेट जाने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । शुद्ध रूप में यह हाजत रफ़ा करना है । हाजत भी अरबी भाषा का शब्द है जो सेमिटिक धातु हाजा से बना है जिसमें आवश्यकता, ज़रूरत, प्रार्थना जैसे भाव हैं । हिन्दी में जिस तरह शंका निवारण पद बनाया गया उसी तरह अरबी में हाज़त रफ़ा करना पद है । दोनों में समान भाव है । यूँ हाज़त शब्द का प्रयोग ‘हाज़तमन्द’ यानी इच्छुक, अभिलाषी, ‘हाजतरवाँ’ यानी इच्छापूर्ति करनेवाला, ‘हाजत में रखना’ का एक अर्थ हिरासत या हवालात मे रहना भी होता है ।
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आपने यहां जो भी परोसा... सब हजम कर लिया
ReplyDeleteसब हजम, सब हाजमा,
ReplyDeleteदाल, रोटी, राजमा,
क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आया लगता है दुबारा आना होगा आपकी पोस्ट पर तब तक केलिए आज्ञा दीजिये....
ReplyDeleteयूं तो करने को 'हज़म' कोयला कर लेते है,
ReplyDeleteलूट कर अपनों को वो जेब भी भर लेते है,
अब निगहबानो की करनी है निगाह बानी हमें,
क़ोम गाफिल हो तो वो होसला कर लेते है.
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"फिक्सिंग" पर.....
पंद्रह सालो में पचा 'काम्बली' पाए न जिसे,
'खा-पचा' "पड़ोसीयों" ने, रफा, हाजत कर ली..
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'पल्लवी जी' को भी ये लेख हज़म हो जाता,
'हाज़मोला' की जो तस्वीर लगा दी होती.
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http://aatm-manthan.com
ह्ज़्म, हाजमा, हैज़ा और हाजत भी , आवश्यकता की पूर्ती होना तो जरूरी है ।
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