दु निया में शायद ही कोई होगा जिसे खुशबू नापसन्द होगी । सुवास से न सिर्फ़ तन-मन बल्कि आसपास का माहौल भी महक उठता है । सुगन्धित पदार्थ की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है और इसमें लोबान का नाम भी शामिल है । अगरबत्ती, धूप और हवन सामग्री के निर्माण में लोबान का प्रयोग होता है । लोबान का प्रयोग दवा के रूप में भी होता है । इसे सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है । इसका धुआँ सुगन्धित होता है । लोबान दरअसल एक क़िस्म की राल या वृक्ष से निकलने वाला पारदर्शी स्राव है जो सूख कर सफेद या पीली आभा वाले छोटे छोटे पिण्डों में रूपान्तरित हो जाता है । इसे हवन, पूजन के दौरान या अन्य आयोजनों में सुगन्धित वातावरण बनाने के लिए जलाया जाता है । इसके धुएँ से माहौल महक उठता है ।
लोबान या लुबान दरअसल असल भारत में फ़ारसी के ज़रिये आया है मूलतः यह सेमिटिक भाषा परिवार की धातु ल-ब-न ( l-b-n ) से बना अरबी शब्द है । यह एक अनोखा शब्द है जिसके भीतर बहुत सारे आशय छुपे हैं । इसके मूल में एक देश का नाम है । श्वेत अर्थात सफेदी के विविध आयाम इसमें नज़र आते हैं । इसमें एक विशिष्ट वृक्ष का स्पर्श भी है । देखतें है लोबान के वंशवृक्ष को । अधिकांश राल आधारित सुगन्धित पदार्थों की तरह ही लोबान भी एक विशिष्ट पेड़ बोसवेलिया सेरेटा Boswellia serrata से निकलने वाला दूध है । सेमिटिक धातु ल-ब-न में सफेदी या दुग्ध जैसे स्राव का भाव है । इससे बने अल-लुबान में भी दूध या सफेद पदार्थ का आशय है जिसमें वृक्ष से निकली सुगन्धित राल का अर्थ ही उभरता है । लुबान या लोबान का रिश्ता हिब्रू से भी है । ए जनरल सिस्टम ऑफ़ बॉटनी एंड गार्डनिंग में जॉर्ज डॉन अरेबिक al-luban के हिब्रू सजातीय lebonah का उल्लेख करते हैं । लेबोनाह का अर्थ होता है श्वेतकण या सफेदी का ढेर । इससे ही ग्रीक भाषा में लिबेनोस libanos बना, जिसका आशय भी लोबान ही है । ओलिबेनम का इतालवी रूप ओलिबेनो है ।
इसी तरह लैटिन का ओलिबेनम olibanumशब्द ओषधिविज्ञान का जाना पहचाना पदार्थ है जिसका उपयोग प्रायः सिरदर्द की दवा बनाने में होता रहा है । इसका आशय भी गोंद, राल या लोबान से ही है । कई संदर्भ इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि लैटिन का ओलिबेनम दरअसल अरबी के अल-लुबान al-luban का सीधा सीधा लिप्यंतरण है जिसमें उच्चारण भिन्नता की वजह से हलका बदलाव आया । लोबान या ओलिबेनम का रिश्ता कई तरह से एशिया के सुदूर पश्चिमी छोर पर स्थित लेबनान से भी जुड़ता है । ऑक्सफोर्ड इन्साक्लोपीडिया के अनुसार ओलिबेनम दरअसल “ऑइल ऑफ़ लेबेनोज” या लेबेनान टर्म का संक्षेप है जिसका अर्थ है “लेबनान का तेल” । मगर यह बहुत पुख्ता आधार नहीं है । कुछ भाषाविदों का मानना है कि प्राचीनकाल से ही लेबनान में पाए जाने वाले ख़ास देवदार से निकलने वाले सुगन्धित पदार्थ की माँग भूमध्यसागरीय क्षेत्रों के बाज़ार में खूब रही है । इसीलिए लेबनान से आने वाले राल को लोबान नाम मिला । कुछ हद तक स्वीकार्य होते हुए भी यह व्युत्पत्ति सही नही है ।
दरअसल लेबनान lebanon शब्द भी सेमिटिक मूल का ही है और इसा जन्म भी ल-ब-न से हुआ है । पश्चिमी एशिया के इस पहाड़ी प्रान्त में बर्फ़ से लदी चोटियाँ हैं । शुष्क अरब क्षेत्र में बर्फीली चोटियों वाले लेबनान को ल-ब-न में निहित सफेदी, शुभ्रता की वजह से ही पहचान मिली । लेबनान यानी लुब + नान अर्थात सफेद धरती । तात्पर्य बर्फ़ से ढकी चोटियों से ही है । यहाँ का सबसे ऊँची चोटी का नाम भी माऊंट लेबनान ही है । स्पष्ट है कि लेबनान से ‘लोबान’ नहीं बना है बल्कि ल-ब-न से ही लेबनान और लोबान बने हैं । दोनों में खास बात सफेदी है । प्राचीन अरब के सौदागरों का दूर दराज़ तक व्यापार करने में कोई सानी नहीं था । दरअसल अफ्रीका और पूर्वी एशिया के देशों से भारी मात्रा में अरब के सौदागर लोबान loban खरीदते थे और उसे लेबनान में साफ़ किया जाता था । वहाँ से उसे फिर दुनियाभर के बाज़ारों में बेचा जाता था । लेबनान से लोबान का रिश्ता इसलिए है क्योंकि वह लोबान की बड़ी मण्डी थी ।
इस संदर्भ में अल्बानिया, एल्प्स जैसे क्षेत्रों को भी याद कर लेना चाहिए । सेमिटिक धातु ल-ब-न से मिलती जुलती धातु है a-l-b ( कुछ लोग इसे गैर भारोपीय धातु भी मानते हैं)। एल्ब *alb- का अर्थ है श्वेत, सफेद, धवल, पहाड़, पर्वत । इससे मिलती जुलती प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा परिवार की एक धातु है *albho-जिसमें भी यही भाव है और माना जाता है कि इसका विकास *alb-से हुआ है । पूर्व से पश्चिम तक फैली यूरोप की प्रसिद्ध पर्वत शृंखला का नाम एल्प्स है । यह नाम इसी मूल से आ रहा है । ध्यान रहे आल्प्स के न सिर्फ उच्च शिखरों पर हमेशा बर्फ जमी रहती है । alps में alb धातु साफ दिखाई पड़ रही है । पर्वतीय या पहाड़ी के अर्थ में एल्पाईन शब्द भी इसी मूल से आ रहा है ।
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सफेद धरती है लेबनान, हमारे मन में तो रक्त का लाल रंग बसा है उस धरती के लिये।
ReplyDelete'बदबू' भ्रष्टाचार की फैली हुई है इस क़दर,
ReplyDeleteदूर करने के लिए 'लोबान' जलना चाहिए,
आत्म-शुद्धि के 'हवन' में अन्ना-बाबा सब जुड़े,
दूसरो से पहले अब ख़ुद को बदलना चाहिए.
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बहुत ही बढ़िया , ज्ञान-वर्धन के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteमहोदय, मेरा एक संदेहा आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ। हमारे पाठ्य पुस्तक में है- 'हट्टा-कट्टा शरीर। कमर में भगवा। कंधे पर हल'। इसमें भगवा शब्द का मतलब क्या है? शब्दार्थ दिया है- काषाय रंग का। लेकिन वह तो एक विशेषण मात्र रह गया। किसी वस्त्र के बारे में बताता होगा। लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया है। यदि आपको मालूम है तो मुझे बता दिजिएगा। धन्यवाद। रवि.
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