हि न्दी के बुनियादी शब्दभंडार में तीन तरह के “हर” हैं । पहला ‘हर’ वह है जो संस्कृत की ‘हृ’ धातु से आ रहा है जिसमें ले जाने, दूर करने, पहुँचाने, खींचने, लाने जैसे भाव हैं । इससे बने ‘हर’ में भी यही भाव हैं । अक्सर इसका प्रयोग प्रत्यय की तरह होता है जैसे मराठी का वार्ताहर यानी समाचार लाने वाला, कब्ज़हर यानी कब्ज़ियत दूर करनेवाला । दुखहर यानी दुख दूर करने वाला । ‘हृ’ से ही हरण जैसा शब्द भी बना है । दूसरा ‘हर’ वह है जिसका अर्थ शिव है । हर-हर महादेव में यही हर है । इसका अर्थ विभाजन करना भी होता है । भारतीय अंक गणित में हर उस संख्या को कहते हैं जिससे दूसरी संख्या विभाजित होती है । तीसरा ‘हर’ वह है जिसका बोली-भाषा में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है । ‘हर’ यानी प्रत्येक...एक-एक । यही इसका सबसे लोकप्रिय अर्थ है । वैसे ‘हर’ में सब कोई, सर्वसाधारण या सर्व का भाव भी है । हिन्दी का ‘हर’ फ़ारसी की देन होते हुए भी नितांत भारतीय है ।
फ़ारसी ज़बान आर्यभाषा परिवार की है और आधुनिक वर्गीकरण में इसे इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार के इंडो-ईरानी उपवर्ग में रखा जाता है । फ़ारसी भाषा के विकास में इरानी के मध्ययुगीन समाज की पहलवी भाषा और उससे भी प्राचीन अवेस्ता का योग रहा है । अवेस्ता और वैदिक संस्कृत में काफ़ी समानता है । इसके बावजूद कुछ प्रमुख फ़र्क़ भी हैं जैसे वैदिक ‘स’ ध्वनि ईरानी परिवार की भाषाओं में जाकर ‘ह’ में बदलती है । सर्वप्रिय उदाहरण ‘सप्त’ का ‘हप्त’ और ‘सिन्धु’ के ‘हिन्दू’ में बदलाव के हैं । भाषाविदों के मुताबिक वैदिक ‘सर्व’ का रूपान्तर ज़ेन्दावेस्ता में ‘हौर्व’ (haurva) होता है । मेकेन्जी के पहलवी कोश में इसका अर्थ all, each, every बताया गया है । इससे ही बना है पहलवी का ‘हरवीन’ जिसमें यही सब भाव हैं । मोहम्मद हैदरी मल्येरी के कोश में पूर्ण, समग्र के अर्थ वाले ग्रीक भाषा के होलोस ( holos ) की इससे रिश्तेदारी है । लैटिन भाषा में इन्ही भावों के लिए साल्वस salvus शब्द है । प्रोटो भारोपीय भाषा परिवार में इसके लिए *sol- धातु की कल्पना की गई है ।
हिन्दी में ‘हर’ शब्द की व्यापक मौजूदगी है । आम बोलचाल में इसका प्रयोग खूब होता है । हर रोज़, हर कोई, हर बार, हर तरफ़, हरसू, हर एक, हर दम, हर हाल में जैसे प्रयोग जाने पहचाने हैं और हिन्दी को मुहावरेदार अभिव्यक्ति देने में ये वाक्य खासे लोकप्रिय हैं । ‘हर’ से बनी कुछ संज्ञाएँ भी लोकप्रिय हैं जैसे ‘हर फ़न मौला’ । हिन्दी में अब इसे हरफ़नमौला की तरह ही लिखा जाता है जिसका अर्थ है किसी भी काम को कुशलतापूर्वक करने वाला । मराठी में इसे ‘हरहुन्नरी’ कहा जाता है । फ़ारसी-उर्दू में ‘हरबाबी’ शब्द भी इसी अर्थ में है । अभिहित करना ऐसा ही शब्द है ‘हर दिल अज़ीज़’ यानी सबका प्यारा । एक अन्य शब्द है ‘हरजाई’ जो स्त्रीवाची भी है और पुरुषवाची भी । ‘हरजाई’ का प्रयोग शायरी में बेवफ़ा प्रेमी, धोखेबाज प्रेमी के लिए खूब होता है । हरजाई के ‘जाई’ में ‘जाना’ क्रिया को पहचानने से हसका अर्थ स्पष्ट होता है अर्थात कहीं भी, किधर भी घूमने वाला अर्थात आवारा, टहलुआ, भटकैंया, बेठिकाना आदि । मगर इसमें भाव स्थिर हुआ बेईमान, बेवफ़ा, धोखेबाज का । स्पष्ट है कि कहीं एक जगह स्थिर न होने वाला व्यक्ति ही आवारा होता है । ऐसा अस्थिरचित्त व्यक्ति ही होता है । मनचला इसी को कहते हैं । जिधर मन के, चल पड़े । स्त्रीवाची रूप में हिन्दी शब्दसागर कोश इसका अर्थ व्यभिचारिणी, कुलटा, वेश्या, रंडी जैसे अर्थ बताता है । स्त्री के लिए तो सभी समाजों का रवैया एक जैसा रहा है । जहाँ उसके लिए घर की देहरी लाँघना निषिद्ध हो वहाँ डोलने, फिरने वाली, मनचली प्रवृत्ति की स्त्री के लिए हरजाई शब्द में कुलटा वेश्या जैसे भाव समाहित होने ही थे ।
संदेशवाहक के अर्थ में भारतीय ज़बानों में ‘हरकारा’ शब्द भी खूब प्रचलित है । यह भी फ़ारसी से हिन्दी में आया है । पुराने ज़माने में जब यातायात के साधन सुगम नहीं थे, दूर-दराज़ ठिकानों तक निरन्तर घुड़सवारों के ज़रिये संदेश पहुँचाए जाते थे । यह काम हरकारे करते थे । यूँ देखा जाए तो हरकारा शब्द ‘हर’ + ‘कारा’ से बना है । ‘हर’ यानी ‘सब’, ‘सर्वसाधारण’, ‘सभी तरह’, ‘सभी का’ आदि और ‘कारा’ यानी ‘काम करने वाला’ । ‘कारा’ बना है ‘कार’ से जिसके मूल में वैदिक ‘कार’ ही है जिसके मूल में ‘कृ’ धातु है जिसमें करने का भाव है । अवेस्ता, पहलवी और फ़ारसी में भी ‘कार’ रूप सुरक्षित है जिसमें बनाना, करना, प्रयास आदि भाव हैं । फ़ारसी, उर्दू हिन्दी में यह ‘कार’ प्रत्यय की तरह करने वाले के अर्थ में खूब प्रयोग होता है जैसे सरकार, पत्रकार, स्वर्णकार, ताम्रकार आदि । ‘कार’ की मौजूदगी कारकून, कार्रवाई, कार्यवाह, कारखाना, कारसाज़ आदि कई शब्दों में देखी जा सकती है । ‘हरकारा’ का अर्थ हुआ सब तरह के काम करने वाला । पुराने दौर में घर से बाहर के कामों को अंजाम देने के लिए अलग सेवक होते थे जो अन्य कामों के साथ साथ चिट्ठीरसाँ यानी डाकिये की भूमिका भी निभाते थे ।
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हमेशा की तरह ज्ञानवर्द्धक।
ReplyDeleteहर में हर को देखा देखा...
ReplyDelete'हर' भी तो हरजाई है, कभी भी कहीं भी किसी शब्द के साथ घुल मिल जाता है। हर बार की तरह हरमन प्रिय पोव्स्ट। शुभकामनायें।
ReplyDeleteShaandaar....
ReplyDelete............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteसंग उसके 'सफ़र' में चला,
ReplyDeleteउसके 'शब्दों' ने मन 'हर' लिया.
ऊँगली उसने थमाई थी बस*,
हमने देखो तो 'कर' ले लिया. *[वडनेरकर]
* कोई ऊँगली दे तो पहुंचा [wrist] पकड़ लेना !
---------------------------------------------------------------
'हर' की महिमा:
---------------
कब्ज़ 'हरता' जो चूरण बने,
'अंक' को ये करे विभाजित है,
दुःख को हरता कि 'शिव' भी यही,
'हरजाई' बने तो लांछित है.
मन को 'हरता' है ये पिया बनकर, *[मनहर]
'फ़ारसी' हो के भी 'सुभाषित' है.
http://aatm-manthan.com
संग उसके 'सफ़र' में चला,
ReplyDeleteउसके 'शब्दों' ने मन 'हर' लिया.
ऊँगली उसने थमाई थी बस*,
हमने देखो तो 'कर' ले लिया. *[वडनेरकर]
* कोई ऊँगली दे तो पहुंचा [wrist] पकड़ लेना !
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'हर' की महिमा:
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कब्ज़ 'हरता' जो चूरण बने,
'अंक' को ये करे विभाजित है,
दुःख को हरता कि 'शिव' भी यही,
'हरजाई' बने तो लांछित है.
मन को 'हरता' है ये पिया बनकर, *[मनहर]
'फ़ारसी' हो के भी 'सुभाषित' है.
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वाकई 'हर' शब्द एकदम 'हरफनमौला' है ! अपनी उपस्थिति हर जगह दर्ज करा ही देता है ! बहुत खूब !
ReplyDeleteहिन्दी का ‘हर’ फ़ारसी की देन होते हुए भी नितांत भारतीय है ।
ReplyDeleteहर तरफ है हर ज्ञान वर्धक !!
हर तरह से मन-हर पोस्ट ।
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