Friday, May 24, 2013

गाछ और पेड़

mango-tree 
पे ड़ के अर्थ में पूर्वी भारतीय बोलियों में ‘गाछ’ शब्द बहुत आम है। बांग्ला में भी ‘गाछ’ का अर्थ वृक्ष ही है। पूर्वी बोलियों में ‘गाछी’ शब्द का अभिप्राय वृक्षवाटिका भी होता है और आम्रकुंज भी। खासतौर पर आम, कटहल, पीपल जैसे पेड़ों के समूह के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। रतीनाथ की चाची उपन्यास में बाबा नागार्जुन ने बीजू आमों के बगीचे को गाछी कहा है। ‘बीजू’ यानी आम का वह पेड़ जिसे बीज बो कर लगाया गया हो। ‘कलमी’ आमों का बगीचा कलमी बाग कहलाता है। ‘गाछी’ का अर्थ छोटा पेड़ या पौधा भी होता है। इसी तरह ‘बाड़ी’ यानी छोटे बगीचे के लिए भी गाछी का प्रयोग देखा जाता है। कहीं कहीं गाछी और भी लघुता के चलते ‘गछिया’ हो जाती है। हिन्दी शब्दसागर में गाछ शब्द की प्रविष्टि में- “खजूर की नरम कोंपल जिसे लोग पेड़ कट जाने पर सुखाकर रख छोड़ते हैं और तरकारी के काम में लाते हैं । बोरा जो बैल आदि पशुओं की पीठ पर बोझ लादने के लिये रखा जाता है।” वैसे हिन्दी में पेड़ के लिए कई शब्द हैं जैसे अग, अगम, विटप, वृक्ष, द्रुम, अद्रि, कुट, जर्ण, झाड़, तरु, तरुवर, दरख़्त, पादप, भूजात या कुठारू आदि।
वृक्ष शब्द से कुछ नए नाम भी जन्मे हैं। वृक्ष से ‘व’ का लोप हुआ और रह गया ‘रूक्ष’। अब रूक्ष से मालवी-राजस्थानी में रूँख, रूँखड़ा जैसे कुछ नए नाम भी चल पड़े। इसी तरह वृक्ष से बिरछ, बिरिख या बिरिछ जैसे नाम भी चलन में हैं और लालित्यपूर्ण लेखन या देशी तड़का लगाने के लिए इनका प्रयोग सृजनधर्मी करते रहते हैं। वैसे वृक्ष के लिए ‘पेड़’ शब्द सर्वाधिक प्रचलित है। इसकी व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों में दो तरह के मत हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पेड़ का जन्म प्राकृत के ‘पट्टी’ की कोख से हुआ है। ‘पट्टी’ के मूल में ‘पत्री’ है जिसका रिश्ता संस्कृत के ‘पत्र’ से है। पत्र यानी पत्ता। जॉन प्लैट्स इसी मत के हैं। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मानना है कि पेड़ दरअसल ‘पिण्ड’ से आ रहा है। पिण्ड से पेड़ के उपजने की बात तार्किक भी है क्योंकि संस्कृत वाङ्मय के अनेक संदर्भों में पिण्ड का आशय वृक्ष से जुड़ता रहा है। कई तरह के वृक्षों के साथ ‘पिण्ड’ शब्द प्रत्यय या उपसर्ग की तरह लगा दिखाई देता है जिसमें ‘पिण्ड’ का अर्थ वृक्ष ही है जैसे पिण्ड खजूर। पिण्ड शब्द का अर्थ ताड़ जाति का वृक्ष, अशोक वृक्ष आदि भी है। इसी तरह आयुर्वैदिक गुणों वाले बेर जाति के एक कँटीले वृक्ष विकंकत का नाम पिण्डारा है जिसमें पिण्ड साफ़ नज़र आ रहा है। पिण्ड से पेंड और पेड़ का रूपान्तर होता चला गया। इसके विपरीत पत्र से पेड़ के रूपान्तर की कल्पना नहीं की जा सकती।
गाछ की बात। ‘गाछ’ अर्थात वृक्ष के मूल में संस्कृत शब्द ‘गच्छ’ है जिसका अर्थ है जाना, चलना, बढ़ना, गति करना। बतौर वृक्ष, गच्छ में लगातार बढ़ना, गति करना, वृद्धि करना जैसे भाव है। यूँ देखा जाए तो गति न करना भी वृक्ष की खासियत है और इस वजह से ही ‘अगम’ या ‘अग’ अर्थात जो चलते-फिरते नहीं, जैसे नाम भी उसे मिले हैं। यह दिलचस्प है कि निरन्तर ऊर्ध्वाधर गति और वर्ष में कई रूप बदलने वाले अनूठे-अपूर्व गुण के चलते ही एक ही स्थान पर बने रहने के बावजूद पेड़ों में लगातार गति करने का लक्षण भी देखा गया और इसीलिए उसे ‘गच्छ’ कहा गया और फिर उससे गाछ, गाछी जैसे शब्द बने हैं। पेड़ की व्युत्पत्ति पिण्ड से होने का एक मज़बूत आधार ‘गच्छ’ से बने एक समास में छुपा है।
गौतम बुद्ध के जीवन पर आधारित प्रख्यात बौद्ध ग्रन्थ महावस्तु में ‘गच्छ-पिण्ड’ शब्द आया है। मूलतः यह समास है। डॉ सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या इसे विचित्र समास मानते हुए इसके लिए अनुवादात्मक समास पद निर्धारित करते हैं। वैसे यह द्वन्द्व समास का उदाहरण है। ‘गच्छ’ यानी पेड़, पौधा आदि। गच्छ में निहित बढ़ने के भाव से गच्छ में वृक्ष का संकेत भी शामिल हुआ जिससे गाछ, गाछी आदि बने। पिण्ड किसी ढेर, अचल, ठोस, घन जैसा पदार्थ ही पिण्ड है। इसी तरह बढ़ने के अर्थ से ही गच्छ में परिवार, कुल या कुटुम्ब का भाव भी आया। इसी तरह पिण्ड में भी परिवार या कुल का भाव है। पश्चिमोत्तर भारत की बोलियों में मनुष्यों के आबाद समूह को पिण्ड भी कहा जाता है। गाँव के अर्थ में भी पिण्ड का प्रयोग होता है। अब जब पिण्ड का अर्थ भी वृक्ष है और गच्छ में भी पेड़ का ही भाव है तब ‘गच्छ-पिण्ड’ यानी ‘पेड़-पेड़’ जैसे समास से क्या अर्थसिद्धि हो सकती है? ज़ाहिर है जिस तरह ‘अच्छा-भला’ ‘ऋषि-मुनि’, ‘भाई-बंध’ या ‘कंकर-पत्थर’ आदि द्वद्व समास के उदाहरण हैं वैसा ही ‘गच्छ-पिण्ड’ के साथ भी है। मगर बात इतनी आसान नहीं है।
मेरे विचार में ‘गच्छ’ में वृद्धि का जो भाव है उससे ही ‘गच्छ-पिण्ड’ की अलग अर्थवत्ता स्थापित होती है। कुल, परिवार का महत्व उसके बढ़ते जाने के गुण से ही है। बाँस शब्द वंश से बना है। पूर्ववैदिक युग में वंश शब्द का अर्थ बांस ही रहा होगा। प्राचीन समाज में लक्षणों के आधार पर ही भाषा में अर्थवत्ता विकसित होती चली गई। स्वतः फलने फूलने के बाँस के नैसर्गिक गुणों ने वंश शब्द को और भी प्रभावी बना दिया और एक वनस्पति की वंश-परंपरा ने मनुष्यों के कुल, कुटुंब से रिश्तेदारी स्थापित कर ली। सो ‘गच्छ’ में निहित परिवार, कुल, कुटुम्ब के अर्थ में ही अगर वृद्धि का अर्थ वंश-परम्परा से लगाया जाए तो ‘गच्छ-पिण्ड’ का सीधा सा अर्थ वंश-वृक्ष निकलता है। बौद्धग्रन्थ महावस्तुअवदानम् में बुद्ध के जातक रूपों का उल्लेख है। स्पष्ट है कि यहाँ गच्छ-पिण्ड से तात्पर्य वंश-वृक्ष से ही होगा।

ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

12 comments:

  1. 'गच्छ' ने 'पाक' से छुड़वा दिया 'पिंड'
    'बंग' आज़ाद हुआ; बोल उठे सब 'जयहिंद' .

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा. बधाई हो. पहली बार गच्छ के इतने नामों की जानकारी हुई, लेकिन गच्छ का ध्यान मानव मन से नहीं कर रहा है. यह घातक है. पांच जून को पर्यावरण दिवस है. हम सभी एक-एक गच्छ लगाये तब बात बनेगी.
    अखिलेश ठाकुर

    ReplyDelete
  3. iż blіżеj nіe określony ze

    pоωiernikóω pοtknął ѕіę
    o sznurek, achtergrond
    zaś сhωіlοwo pаtrzy nіedobrze i wewnątrz chwilę bluźnіе nіezrozumiałym pгzekleństwеm.


    Dalеј rzygnie ωłasną ѕulicę, sκгzyκnie zwolenników οгаz podczas gdy.

    ReplyDelete
  4. іοne

    ostrzа, ktoś zaklął plugаωo,
    nie zdążywszy się Whatiscommunitycollege.com w poгę
    odwołać. Pіsκi paniеnek zaԁośćuczyniły
    szczyt, całą parą przypominaјący

    οrgazm. Ustępliωi niemieccу mieszczanie w pаradnych stroј.

    ReplyDelete
  5. नया शब्द पता चला, गच्छ के बारे में सोचा ही न था।

    ReplyDelete
  6. hindi me ek word ata hai 'NISHAD'. mai iska shabdik arth nahi jaan pa raha hoon kya aap bata sakte hain.

    ReplyDelete
  7. अगच्छ हो गया गाछ
    वृक्ष बना रूखा
    पिण्ड जो था टुकडा
    बना बिरवा हरूखा ।

    अच्छा लगा ये भी सफर ।

    ReplyDelete
  8. गच्छ का अर्थ गमन है। इस भाव के २ अर्थ हैं-पेड़ सदा बढ़ता रहता है, अतः गच्छ है। बीजगणित में अनन्त श्रेणी भी सदा आगे बढ़ती रहती है अतः वह भी गच्छ है-भास्कराचार्य का लीलावती और बीजगणित। पेड़ बढ़ते हुये अपने स्थान पर स्थिर भी रहता है। दोनों को मिला कर भी दो अर्थ हैं-बहुत चर्चा के बाद किसी निष्कर्ष को दो पक्षों द्वारा स्वीकार करना भी गच्छ है। साधना में अग्रगति करते हुये उच्च स्थिति पर पहुंचना भी गच्छ है-गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येवप्रमादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः।

    ReplyDelete
  9. अपने जो बताया बहुत ज्ञान बाला है मुझे आपकी पोस्ट पड़ना बहुत अच्छी लगती है और आप बहुत अच्छा लिखते हो.
    mind blowing written.
    love vashikaran

    ReplyDelete
  10. शब्दों की बेहतरीन जानकारी दी है | ज्ञानवर्धन के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद |

    ReplyDelete
  11. शब्दों की बेहतरीन जानकारी दी है | ज्ञानवर्धन के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद |

    ReplyDelete
  12. शब्दों की बेहतरीन जानकारी है | ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद |

    ReplyDelete