उम्मा, उम्मत, अवाम से आम तक
ऐसा कुछ, जो ख़ास न हो
बोलचाल की भाषा में मुहावरों से रवानी आ जाती है। भाषा ख़ूबसूरत लगने लगती है। दिलचस्प मानी पैदा हो जाते हैं। लय में आ जाती है। हिन्दी में एक मुहावरा हर किसी की ज़बान पर रहता है- ‘आमतौर से’ या ‘आमतौर पर’। यह बताने की ज़रूरत नहीं कि आम व तौर अलग अलग शब्द हैं। दोनों ने ही अरब से चल कर फ़ारसी की सवारी करते हुए हिन्दी की राह पकड़ी है। हिन्दी वाले दोनों को अलग अलग भी बरतते हैं और साथ साथ भी जैसे- ‘आम दिनों में’, ‘आम बात है’ आदि। या ‘मोटे तौर पर’, ‘किसी तौर पर’ वग़ैरह। मगर जब साथ साथ बरतते हैं तो मुहावरा बनता है जिसका आशय होता है साधारणया, सामान्यतया अथवा बहुधा।
‘आम’ और ‘तौर’
यूँ तो बात यहाँ से भी शुरू की जा सकती है कि ‘आमतौर’ को मिला कर समास की तरह लिखना ठीक है या अलग अलग करते हुए। जैसे आम-तौर अथवा आम तौर। हिन्दी के अनेक जानकार भी ‘आमतौर’ लिखते रहे हैं। मैं स्वयं मिला कर ही लिखता हूँ। शुद्धतावादी विवाद भी इस पर नहीं है। वैसे कोशों में ‘आम’ और ‘तौर’ यथास्थान सामान्य शब्द की तरह अलग अलग दर्ज़ हैं। बतौर मुहावरा, इसकी युग्मपदी अथवा वाक्यपदी विवेचना भी नहीं मिलती। थोड़े में कहें तो अलग-अलग लिखें या मिला कर, ‘आमतौर’ के मायने वही रहते हैं। भाषा प्रचलन और अभिव्यक्ति से चलती है। अधिकांश बरताव ‘आमतौर’ का ही है, मगर रूढ़ि की तरह। यूँ अलग अलग लिखा जाना ही सिद्ध है, मगर ‘ब’तौर की मिसाल भी सामने है।
नियम या रीति का संकेत
‘आमतौर’ में बहुधा और साधारणता का आशय है। जो ख़ास न हो, विशेष न हो, प्रचलित हो, सामान्य हो हो, उसके बारे में कुछ कहते हुए इस पद का प्रयोग कर लिया जाता है। जेनरली, नॉर्मली, कॉमनली जैसे सन्दर्भों में इसे बरता जाता है। इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए कि ‘आमतौर’ में रूढ़ि, रीति या ढर्रे पर चलने वाली बात भी गहराई तक धँसी हुई है। हम जिसे सामान्य समझते हैं, दरअसल वहाँ से पुरानी राह-बाट निकलती है। उस हवाले से भी आमतौर पर बरत लिया जाता है। इसमें अलिखित संविधान, नियम का संकेत होता है किसी पुरातन सूत्र का हवाला होता है। किसी नुस्ख़े, प्रणाली या जुगाड़ पर ज़ोर होता है। किसी सिद्धान्त या मर्यादा का स्मरण होता है। यह सब ‘आमतौर’ के हवाले से कहा, सुना और याद किया जाता है।
तरीका, ढंग, प्रकार
तो पहले बात ‘तौर’ की। तौर का प्रयोग आमतौर में जितना आम है, उतना ही तौर-तरीक़ा युग्म में भी दिखाई पड़ता है। तौर का मूल है त्रिवर्णी क्रिया तूर (ط و ر यानी ता-वाओ-रा) से, जिसमें गोल मँडराना, घूमना, रास्ता, अवस्था, तरीका, ढंग, भाँति, प्रकार जैसे आशय हैं। तूर अरब क्षेत्रों में प्रसिद्ध हुए यहूदी, ईसाई और इस्लाम पन्थ में प्रचलित कथाओं में अलग अलग पहाड़ों का नाम भी है जैसे तूरी-मूसा, तूरी-जिबा या जबल-तूर। कहीं उसे जॉर्डन में बताया जाता है, कहीं मिस्र में, कहीं सीरिया में तो कहीं इस्राइल में। अक्कद से होते हुए हिब्रू तक इसके सूत्र मिलते हैं। तौर, तरीका, तरह, तौरात (तौराह) जैसे शब्दों के हिब्रू-अरबी भाषायी सूत्र एक दूसरे से सम्बद्ध हैं, इस पर विस्तार से अलग से लिखा था। जल्दी ही उसे भी पेश किया जाएगा।
ढंग या बरताव की बात
‘तौर’ का प्रयोग करते हुए हम ढंग या बरताव के बारे में बात कर रहे होते हैं। इस तौर, उस तौर का आशय इस प्रकार या उस प्रकार होता है। समझा जा सकता है कि तौर प्राचीन यहूदी, इस्लामी धार्मिक शब्दावली से निकला हुआ शब्द होगा जिसमें ज्ञानार्जन, सिद्धि, पाना जैसे आशय हैं। अक्कद में तारु है जिसमें लौटाना, उत्तराधिकार, देना जैसे आशय हैं वहीं सीरिया की लुप्त उगारतिक ज़बान के तॉर को इसी कड़ी का माना गया है। इसमें आना, घूमना जैसे आशय हैं। ग़ौर करें, घूमने में चक्रगति है जिसमें प्रतिक्षण दोहराव होता है। यानी फिर फिर लौटना होता है। मूल आशय अथवा प्रसंग किसी मनीषी बोधिज्ञान प्राप्त करने है।
दार्शनिक आयाम
आज से हज़ारों साल पहले मानवता के विकासक्रम में किन्हीं सुधारकों की दी गई नसीहतों, सीखों पर अमल करने, उनकी बताए रास्तों पर चलने के अभ्यास से तूर, तॉर, तौर, तरीका, तरह, तौरात जैसे शब्दों के दार्शनिक आयाम प्रकट हुए। संकेत मूसा, हारुन आदि को ज्ञान प्राप्ति से जुड़े हैं। इस सन्दर्भ में तौरात को भी याद कर सकते हैं जो यहूदियों का धर्मग्रन्थ है। माना जाता है कि यह ईश्वर द्वारा मूसा को दिया गया था। ‘तौर’ के विभिन्न अर्थायाम है जैसे- आचरण, चाल, चलन, चाल-ढाल, बरताव, ढंग, व्यवहार, तरह, तरीक़ा, प्रणाली, भांति, रंग, रूप, रीति, शिष्टता, शैली, सूरत, भाँति, वज़ा, अंदाज़, आचरण, किस्म, अवस्था, गुण, प्रकार, स्तर, आचार आदि।
अब बात आम की।
ज्यादातर लोग आम को सिर्फ़ साधारण तक सीमित मानते हैं। दरअसल यह सेमिटिक भाषा परिवार का इतना महत्वपूर्ण शब्द है कि आम की अर्थवत्ता के एक छोर पर माँ है, दूसरे पर अवाम है तो तीसरे पर मुल्क। यही नहीं, इस शब्द से आर्य भाषा परिवार और सामी भाषा परिवार की रिश्तेदारी पता चलती है । ‘आम्’ का मूल आज से साढ़े चार हज़ाल साल पहले दजला-फ़रात के मैदानों में पसरी सुमेर सभ्यता में समूहवाची अम्मु में मूलतः सुरक्षा, संरक्षण का भाव है। अर्थ हुआ राष्ट्र या अवाम। अम्मु शब्द है यह समूहवाची शब्द है जिसमें सुरक्षा और संरक्षण का भाव भी है। ‘अम्मु’ का अर्थ है राष्ट्र या अवाम।
उम्मा, उम्मत, अवाम
ग़ौर करें, सियासी या मज़हबी सन्दर्भों में अक्सर उम्मा, उम्मत का उल्लेख आता है आशय समूहवाची ही होता है, लोग, जनता, राष्ट्र जैसे अभिप्राय ही मूल हैं। मगर भारत में ग़ैरमुस्लिम इसे नहीं बरतते। इसलिए उम्मा का आशय मुस्लिम समुदाय ही लगाया जाता है। साढ़े चार हज़ार साल पहले के अरब समाज में सुमेर संस्कृति के उम्मतु से यह शब्द पहुँचा था। अर्थ था आकार, आयतन, परिमाण, तादाद आदि। स्पष्ट है कि समुदाय, जाति, वर्ग या राष्ट्र का आधार क्षेत्र नहीं, जन होता है और उम्मतु इसी की अभिव्यक्ति थी। बाद में अरबी के उम्मत, उम्मा तक पहुँचते पहुँचते इसमें जन कुल वर्ग जाति पन्थ राष्ट्र अनुयायी अनुगामी जैसे अर्थायाम भी उभरते चले गए।
बात आश्रय की
यह भी महत्वपूर्ण है कि सेमिटिक भाषा परिवार की कई भाषाओं में अम्मु से माँ के आशय वाले विपर्ययी रूप बने हैं जैसे अक्कद में ‘उम्मु’, अरबी में ‘उम्म’, हिब्रू में ‘एम’, सीरियाई में ‘एमा’ आदि। ध्यान रहे कि प्रकृति में, पृथ्वी में मातृभाव है क्योंकि ये हमें संरक्षण देते हैं, हमारा पालन-पोषण करते हैं। अक्कद भाषा के ‘अम्मु’ और ‘उम्मु’ दरअसल पालन-पोषण वाले भावों को ही व्यक्त कर रहे हैं। राष्ट्र के रूप में ‘अम्मु’ समूहवाची है, अवाम यानी जनता तो अपने आप में समूह ही है। किसी भी विचार सरणी, धर्म, पन्थ का मूल आधार या आश्रय समूह ही होता है। आम लोगों वाला अवाम। बेहद सामान्य, साधारणत्व का विशेषीकृत समूह।
तो कुल मिला कर...
आमतौर के पहले सर्ग में साधारणता और दूसरे में ढंग, अवस्था, स्तर, आचरण जैसी बात है। ईश्वर और इन्सान की बनाई दुनिया में जो कुछ भी सहज, सामान्य, आमफ़हम, हस्बे-मामूल है, आमतौर के दायरे में आता है। वह सब जो ‘ख़ासतौर पर’ नहीं होता, ‘आमतौर पर’ होता है।
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