Monday, September 17, 2007

कप्तान की खोपड़ी जो ठहरी !!

मतौर पर खोपड़ी फिरना , खोपड़ी घूमना, उलटी खोपड़ी या खोपड़ी चटकना आदि मुहावरे ऐसे शख्स के बारे में कहे जाते हैं जो सही ढंग से काम न करे या जिसके तौर-तरीकों में बेतुकापन हो। सीधी सी बात है कि खोपड़ी का रिश्ता अक्ल, बुद्धि से है इसीलिए जब बुद्धि उलटे-सीधे काम करवाने लगे तो समझो उसकी उलटी खोपड़ी !
अब अगर हम कहें कि खोपड़ी की कप्तान से रिश्तेदारी है तो आप कहेंगे इसमे ताज्जुब क्या ? कप्तान के पास खोपड़ी यानी दिमाग तो होता ही है। दरअसल खोपड़ी और कप्तान दोनों लफ्जों का मूल एक ही ही है । इसके लिए भाषा विज्ञानियों ने प्रोटो इंडो यूरोपीय भाषा समूह का एक शब्द ढूंढा है - kauput जिसका मतलब होता है सिर । लैटिन में इसका रूप हुआ caput , प्राचीन जर्मन में हुआ khaubuthan ,जर्मन में हुआ Haupt और पुरानी अंग्रेजी में heafod होते हुए यह आज की अंग्रेजी के head में ढल गया । इन सभी शब्दों का अर्थ है सिर, सर्वोच्च शिखर अथवा मुखिया। गौरतलब है कि संस्कृत में भी इसके दो रूप प्रचलित हैं कपाल और खर्परः जिनका अभिप्राय भी मस्तक, भाल आदि है। इसी का अपभ्रंश रूप है खोपड़ी, खप्पर, खुपड़िया, खोपड़ा आदि। दिलचस्प बात यह कि नारियल के लिए हिन्दी में खोपरा शब्द चलता है जिसे मराठी में खोबरं कह कर उच्चारित किया जाता है और ये दोनों भी कपाल, खर्परः या हेड वाली शब्द श्रंखला से निकले है। संस्कृत के कपाल से ही यौगिक क्रिया कपालभाति, तांत्रिक के लिए कापालिक और दुर्गा के लिए कपालिनी जैसे शब्द भी बने।
अब बात कप्तान की । कप्तान भी इसी शब्द समूह का हिस्सा है । आमतौर पर हिन्दी में इसकी आमद पुर्तगाली से मानी जाती है जहां ये पुरानी फ्रेंच के capitaine से गया । फ्रेंच में इसकी लैटिन के capitaneus से मानी जाती है और इसका मतलब होता है नेता या प्रमुख और अंग्रेजी में यह हो गया कैप्टन। यह शब्द लेटिन के ही caput से बना जिसका मतलब होता है सिर । कैप्टन ने पूरे यूरोप में कई रूप बदले मगर ध्वनि और अर्थसाम्य बना रहा। यूरोप के धुर दक्षिण - पश्चिम में इसका रूप हुआ कप्तान और वाया तुर्की होता हुआ यह अंग्रेजी के कैप्टन से भी पहले आ पहुंचा हिन्दुस्तान ।
अंग्रेजी का कैप शब्द भी हिन्दी में टोपी के अर्थ में ही इस्तेमाल होता है यह भी इसी शब्द श्रंखला का हिस्सा है कहने की ज़रूरत नहीं की कैप और कैप्टन की रिश्तेदारी क्या है।

2 comments:

  1. अजित भाऊ,
    आपण खूपच छान लिहिता, शब्दांबद्दल जे काही आपण विलेखित करता ते अप्रतिम आहे. मराठी में टिप्पणी करना भी अच्छा लगता है... खैर... आपने ब्लॉग में सबसे नीचे "लोकल" मुहावरे भेजने को कहा है तो फ़िलहाल मैं दो का उल्लेख करना चाहूँगा, हो सकता है कि आपको पुराने लगें... पहला है "सिर में चुपड़ने को तेल नहीं और चले भजिये तलने", दूसरा आमतौर पर हम व्यवसायी लोग उपयोग करते हैं कि "शाणा कौआ हमेशा गू पर ही बैठता है".. अब इन दोनों की व्याख्या आप पर छोड़ता हूँ...

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  2. "शाणा कौआ हमेशा गू पर ही बैठता है"..
    अजीत जी इस मुहावरे का अर्थ क्या है, प्लीज बताये

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