
नौकरी से व्यापार
ज्यादा वक्त नही बीता ,कुल जमा 13 साल लगे हमे व्यापारी बनने की कोशिश मे लगे हुये पर आज तक हम किसी भी माने मे बन नही पाये . लेकिन हमे एक बात तो समझ मे खूब आ गई है चाहे नौकरी हो या व्यापार आपका काम कुछ नही बोलता ,बोलते है संबंध. सन 1992 मे (पिछली शताब्दी के) शादी होते ही हमने नौकरी को लात मार दी.गाजियाबाद चले आये .कुछ बैंक से जुगाड किया. कुछ बापू से लिया कुछ पीएफ़ का पैसा . कुल मिलाकर एक अदद कमरे जैसी जगह किराये पर ली और एक प्लास्टिक मोल्डिंग यूनिट लगा ली.प्लास्टिक मोल्डिंग के लिये डाईयां बनाने वालों ने सिखाया कि सच बोलना पाप होता है. अगर किसी का काम वक्त पर करदो तो वो बद् दुआ देगा . दिन मे काम मांगने के लिये धक्के खाते थे , रात को डाई मेकरो के हाथ पैर जोडते थे,(ये पैसे एडवांस देने के अलावा अति आवश्यक काम है जी).
नरसिंहाराव ने मारा धक्का...
हमने कुछ काम पकड़ लिया था सी डाट का . तो जब डाई बनाने वालो ने हमे बता दिया कि उनके होते हम सिर्फ़ डूब ही सकते है तो हमने इस और ध्यान दिया और खुद ही डाईया बनानी शुरू करदी (आखिर घंटो डाईवालो के साथ बिताने का कुछ तो फ़ायदा हुआ). काम चल निकला लेकिन हमारे प्रधान मंत्री श्री पामुलपर्ती वेंकटेश नरसिंहा राव जी को ना जाने कहां से खबर लग गई कि हम उन्नति की और अग्रसर हैं,बस जी उन्होने आव देखा ना ताव खटाक से सी डाट के बजाय विदेशी कम्पनियो को छोटे टेलेफ़ोन एक्सचेंज लगाने के लिये आमंत्रित कर दिया. अगले दो तीन दिनो मे हमारी आने वाले दिनों की गाडी खरीदने की योजना स्कूटर बिकने से बचाओ मे बदल गई. अब हमे गिनती एक से दुबारा शुरु करनी थी.दुबारा की कोशिशे फ़िर रंग लाई हमे सेल के लिये एक काम मिला . एक मिला सैमटेल के लिये पिक्चर ट्यूब चैक करने के लिये जिग बनाने काम. सेल के लिये बीड्स स्क्रू बनाने का .
गाडी फ़िर से चल निकली स्कूटर और पेट मे ईंधन डलनेका जुगाड़ फ़िर से होता दिख रहा था,तभी एक दिन हमने स्कूटर का अगला ब्रेक लगाया और कोमा मे चले गये. वक्त लगा होश आया आपरेशन हुआ , लेकिन जिंदगी की गाड़ी फ़िर डिरेल हो गई थी.
कुछ दिन अस्पताल के
पंगेबाजी का हमे शुरू से शौक रहा है. स्कूल के दिनो मे हमेशा स्टेज कार्यक्रम कभी हमारी टोली के बिना पूरा नही माना जाता था,वहा पर हम हर दो क्रायक्रमों के बीच अपने छोटे छोटे आईटम पेश करने के लिये जाने जाते थे.
घर मे शुरु से सरिता ,मुक्ता चंपक चंदामामा ,नंदन पराग,लौटपोट, मधुमुस्कान कंट्रोल के साथ पढने की छूट थी. लिहाजा हम कह सकते है कि हमे भी डाक्टर झटका की तरह पंगे लेने का 20 साल का तजुर्बा है .लेकिन इन सारी किताबो के बीच अगर मै यादगार किताब को गिनू.तो सर्वोत्तम रीडर्स डाईजेस्ट को 100 मे से 100 नंबर दूगा जिसके एक लेख ने मेरी दुनिया मे बदलाव ला दिया.
सन चौरानबे का सितंबर था,हल्की हलकी सर्दी पडने लगी थी. मै उस दिन साहिबाबाद के राजेंद्रनगर इंड्रस्टियल एरिया मे अपनी कार्यशाला मे एक डाई ठीक करने मे लगा था ,अचानक मुझे एक निडिल फ़ाईल ( छोटी सी रेती) की जरूरत पडी.मै उसे लेने के लिये राजेंद्रनगर मे ही स्थित गाजियाबाद दिल्ली रोड पर स्थित एक दुकान से स्कूटर से लेने पहुच गया, यूं मै अक्सर शिरस्त्राण (हेलमेट) का प्रयोग करता था,लेकिन इतनी दूर के लिये कौन पहनता है ?
रेती लेने के बाद मैने आगे रोड पर बने कट से घूम कर वापस जाने के बजाय वही से वापस मुड कर थोडी दूर अगले कट तक रोड पर बने डिवाईडर के साथ साथ चलने का फ़ैसला किया,सामने से ट्रैफ़िक लगातार आ रहा था, मै धीरे धीरे 30/40की रफ़तार पर डिवाईडर के साथ चले जा रहा था. मुझे अभी भी याद है सामने से ट्रक आ रहा था जो मुझे देखकर दाये हो गया था,पर तभी एक सज्जन डिवाडर से अचानक मेरे ठीक सामने सडक पर उतर गये, मैने तुरंत अगला पिछला दोनो ब्रेक लगा दिये, मुझे इतना आज भी याद है कि मै हवा मे था.
फ़िर ये काफ़ी बाद मे पता चला कि उन सज्जन को जो जल्दी मे थे ,ट्रक वाले ने बडी मेहनत से बचाया था.और मुझे वहां डिवाईडर से उठा कर जिस सज्जन ने पहुंचाया,आज भी मै उन्हे नही जानता (*कृपया इस बारे मे यहां देखे. )
जब मेरा आपरेशन हो चुका और मुझे होश आया. तब मै जान चुका था कि मामला उतना आसान नही था ,ये मेरा दूसरा जनम है शायद उपर वाले के पास अभी मेरे लिये जगह नही थी.या मेरे परिवार को मेरी ज्यादा जरूरत थी.सारा सिर टाको से भरा पडा था,सिर की हड्डिया दुर्घटना मे नही टूटी तो डाकटरो ने हथोडे आरी ,जो मिला उससे तोड डाली,आज भी सिर मे पडें गड्ढे दर्द दे जाते है. जारी
अगली कड़ी में पंगेबाज की जिदगी के रंग न्यारे