किसी बात का ज्ञान करने या कराने के अर्थ में हिन्दी में बड़ा आम शब्द है - समझ। बातचीत के दौरान इसके समझना, समझाना, समझाया जैसे क्रिया रूप बनते हैं। इस समझ को समझने का जतन करें तो इसके पीछे न सिर्फ संस्कृत का बुद्ध नज़र आता है बल्कि इसकी छाया रूसी, जर्मेनिक, स्लोवानी, लिथुआनी, फारसी जैसी भाषाओं में भी नज़र आती है।
संस्कृत की एक धातु है बुद् जिसका अर्थ है किसी बात का ज्ञान होना, जागना । इससे बने बुद्ध , बुध , बुद्धि, और बोधि जैसे शब्द जिनके भीतर भी समझना, जानना, प्रकाशमान और जागा हुआ जैसे भावार्थ छुपे हैं। हिन्दी का एक उपसर्ग है सम् जिसका अर्थ है समान या से मिलकर। सम् + बुद्ध मिलकर बना सम्बुद्ध यानी जान लेना । इसका देशी रूप बना समुझ और फिर बना हिन्दी का शब्द समझ । क्रम कुछ यूं रहा-सम्बुद्ध >सम्बुज्झ >सम्मुज्झ >समुझ >समझ। बाद में समझ शब्द उर्दू में भी चला गया और इसमें दार प्रत्यय लग कर एक और आम शब्द बना समझदार यानी सयाना।
संस्कृत की मूल धातु बुद् यानी रूसी भाषा का बुदीत् अर्थात जागना । संस्कृत का एक शब्द है प्रबुद्ध अर्थात् जागा हुआ, ज्ञानी, जागरूक और समझदार। बुद्ध में प्र उपसर्ग लगने से इस शब्द का निर्माण हुआ है। गौर करें कि रूसी में भी इसी के समकक्ष एक शब्द है प्रबुज्देनिये । अर्थ वही है जो संस्कृत हिन्दी में है । इसी तरह लिथुआनी में बुदति (जानना, समझना) स्लोवानी में बुदिति, चेक और क्रोशियाई में ब्दीम, अवेस्ता में बोदयति जैसे शब्द भी हैं ।
इसी बुद् से बौद्धधर्म और उसके संस्थापक महात्मा बुद्ध का नाम भी जन्मा है। यही नहीं बौद्धधर्म का प्रचार जब फारस में हुआ और वहां बुद्ध की मूर्तियां बनने लगीं तो लोगों ने उसका उच्चारण बुत यानी बुद्ध किया । बाद में प्रतिमा के अर्थ में ही फारसी में बुत शब्द का प्रचलन हो गया। खुद में खोए रहने वाले, चिंतनशील व्यक्ति के लिए भी प्राचीनकाल में बुद्ध शब्द का चलन रहा और बाद में इसकी इतनी दुर्गति हुई कि भोंदू , जड़ बैठे रहने वालों और कुछ भी न समझने वालों यानी मूर्ख के अर्थ में एक नया शब्द चल पड़ा बुद्धू । ज़ाहिर सी बात है कि यूं बुद्धिमान किसी बुद्धू को पास नहीं फटकने देता है मगर शब्दों के सफर में ये दोनों एक ही कतार में खड़े हैं।
बुद्, बोध, बुध, बुद्ध, प्रबुद्ध, सम्बुद्ध, समझ, समझदार
5 कमेंट्स:
अजितभाई;
शब्दावली पर आकर धन्य हो गया...समझदार भी हो जाऊंगा आपकी कृपा से.एक अदभुत काम है आपका ..कारनामा कहना बेहतर होगा.ऐसा लग रहा है कि आज से ही आपका गंडाबंद शाग़िर्द हो जाऊं..कितना कुछ जानना शेष है ! लगता है एक पूरी ज़िन्दगी कम है.अपने कई मित्रों को इन्दौर में आपके इस चिठ्ठे के बारे में बाख़बर कर रहा हूँ...अशेष बधाइयाँ.
टीप:आपका काम विश्व हिन्दी सम्मेलन से बड़ा नज़र आता है
संजय
098268-26881
जब किसी वस्तु या दर्शन को नष्ट करना हो या उससे भय हो तब उससे जुड़े शब्दों को बदलाअ जाता है।शंकराचार्य के आगमन के बाद बुद्ध से से बुद्धू,लुन्च मुनि से लुच्चा आदि बना -यह एक विद्वान के मुँह से सुना था।वस्तु को नष्ट करने के लिए पहले उसके नाम को बदलने का हालिया उदाहरण है-बाबरी मस्जिद को लगातार विवादित ढ़ाँचा कहना,फिर उसे तोड़ देना।
होली की गालियों में 'कबीरा सरररर' जोड़ना भी कबीर की बातों से हड़क कर किया गया होगा।
बुद्ध को बुद्धू सनातनियों ने बौद्धों के उपहास में बनाया!
@अरविन्द मिश्रा
ये एक लोकप्रिय मान्यता ज़रूर है जो बौद्ध और हिन्दुत्व के द्वैत और दुविधा को जताती है । मगर सौ टके का सवाल यह है कि मूर्ख के अर्थ में जो बुद्धू है उसका अस्तित्व पहले से रहा होगा तभी बुद्ध को बुद्धू कहने की परपीड़नरति हिन्दू समाज ले सकता था । मूर्ख वाले बुद्धू की व्युत्पत्ति क्या है ?
ज़ाहिर है बुद्धू की व्युत्पत्ति बुद्ध के प्रति उपहास दृष्टि के चलते विकसित हुई है । बुद्ध प्रतिमाएँ इतनी तादाद में बनी कि अति हो गई । उन्हें बुत अर्थात प्रतिमा कहा जाने लगा । इसका दूसरा रूपान्तर बुद्धू हुआ । शिलावत बैठने की मुद्रा से ही जड़ शब्द भी मूर्ख के अर्थ में स्थापित हुआ । इसी तरह वज्र से बज्जर भी चला । मुग्ध में निहित आपा खोने का भाव स्पष्ट है और इसीलिए मुग्ध से मूढ़़ > मूर्ख हुआ । जड़ता, स्थिरता, अगतिशीलता ही मूर्खता है । बुद्धि गतिशील होती है ।
लोगों को उलाहना स्वरूप कहा जाता कि ये तो बुद्ध हैं अर्थात जड़ हैं, सिर्फ़ बुत हैं । यहाँ बुद्ध घिस कर बुद्धू हुआ ।
अनेक भाषाओं में शब्दों के भ्रमण को आकलित कर सब के ज्ञानवर्धन हेतु प्रस्तुत करना, दुरूह कार्य सर जी!
Post a Comment