Friday, May 30, 2008

बिना पंगे का पंगा [बकलमखुद-45]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और पैंतालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।


नौकरी से व्यापार


ज्यादा वक्त नही बीता ,कुल जमा 13 साल लगे हमे व्यापारी बनने की कोशिश मे लगे हुये पर आज तक हम किसी भी माने मे बन नही पाये . लेकिन हमे एक बात तो समझ मे खूब आ गई है चाहे नौकरी हो या व्यापार आपका काम कुछ नही बोलता ,बोलते है संबंध. सन 1992 मे (पिछली शताब्दी के) शादी होते ही हमने नौकरी को लात मार दी.गाजियाबाद चले आये .कुछ बैंक से जुगाड किया. कुछ बापू से लिया कुछ पीएफ़ का पैसा . कुल मिलाकर एक अदद कमरे जैसी जगह किराये पर ली और एक प्लास्टिक मोल्डिंग यूनिट लगा ली.प्लास्टिक मोल्डिंग के लिये डाईयां बनाने वालों ने सिखाया कि सच बोलना पाप होता है. अगर किसी का काम वक्त पर करदो तो वो बद् दुआ देगा . दिन मे काम मांगने के लिये धक्के खाते थे , रात को डाई मेकरो के हाथ पैर जोडते थे,(ये पैसे एडवांस देने के अलावा अति आवश्यक काम है जी).


नरसिंहाराव ने मारा धक्का...


मने कुछ काम पकड़ लिया था सी डाट का . तो जब डाई बनाने वालो ने हमे बता दिया कि उनके होते हम सिर्फ़ डूब ही सकते है तो हमने इस और ध्यान दिया और खुद ही डाईया बनानी शुरू करदी (आखिर घंटो डाईवालो के साथ बिताने का कुछ तो फ़ायदा हुआ). काम चल निकला लेकिन हमारे प्रधान मंत्री श्री पामुलपर्ती वेंकटेश नरसिंहा राव जी को ना जाने कहां से खबर लग गई कि हम उन्नति की और अग्रसर हैं,बस जी उन्होने आव देखा ना ताव खटाक से सी डाट के बजाय विदेशी कम्पनियो को छोटे टेलेफ़ोन एक्सचेंज लगाने के लिये आमंत्रित कर दिया. अगले दो तीन दिनो मे हमारी आने वाले दिनों की गाडी खरीदने की योजना स्कूटर बिकने से बचाओ मे बदल गई. अब हमे गिनती एक से दुबारा शुरु करनी थी.दुबारा की कोशिशे फ़िर रंग लाई हमे सेल के लिये एक काम मिला . एक मिला सैमटेल के लिये पिक्चर ट्यूब चैक करने के लिये जिग बनाने काम. सेल के लिये बीड्स स्क्रू बनाने का .
गाडी फ़िर से चल निकली स्कूटर और पेट मे ईंधन डलनेका जुगाड़ फ़िर से होता दिख रहा था,तभी एक दिन हमने स्कूटर का अगला ब्रेक लगाया और कोमा मे चले गये. वक्त लगा होश आया आपरेशन हुआ , लेकिन जिंदगी की गाड़ी फ़िर डिरेल हो गई थी.


कुछ दिन अस्पताल के


पंगेबाजी का हमे शुरू से शौक रहा है. स्कूल के दिनो मे हमेशा स्टेज कार्यक्रम कभी हमारी टोली के बिना पूरा नही माना जाता था,वहा पर हम हर दो क्रायक्रमों के बीच अपने छोटे छोटे आईटम पेश करने के लिये जाने जाते थे.
घर मे शुरु से सरिता ,मुक्ता चंपक चंदामामा ,नंदन पराग,लौटपोट, मधुमुस्कान कंट्रोल के साथ पढने की छूट थी. लिहाजा हम कह सकते है कि हमे भी डाक्टर झटका की तरह पंगे लेने का 20 साल का तजुर्बा है .लेकिन इन सारी किताबो के बीच अगर मै यादगार किताब को गिनू.तो सर्वोत्तम रीडर्स डाईजेस्ट को 100 मे से 100 नंबर दूगा जिसके एक लेख ने मेरी दुनिया मे बदलाव ला दिया.
सन चौरानबे का सितंबर था,हल्की हलकी सर्दी पडने लगी थी. मै उस दिन साहिबाबाद के राजेंद्रनगर इंड्रस्टियल एरिया मे अपनी कार्यशाला मे एक डाई ठीक करने मे लगा था ,अचानक मुझे एक निडिल फ़ाईल ( छोटी सी रेती) की जरूरत पडी.मै उसे लेने के लिये राजेंद्रनगर मे ही स्थित गाजियाबाद दिल्ली रोड पर स्थित एक दुकान से स्कूटर से लेने पहुच गया, यूं मै अक्सर शिरस्त्राण (हेलमेट) का प्रयोग करता था,लेकिन इतनी दूर के लिये कौन पहनता है ?
रेती लेने के बाद मैने आगे रोड पर बने कट से घूम कर वापस जाने के बजाय वही से वापस मुड कर थोडी दूर अगले कट तक रोड पर बने डिवाईडर के साथ साथ चलने का फ़ैसला किया,सामने से ट्रैफ़िक लगातार आ रहा था, मै धीरे धीरे 30/40की रफ़तार पर डिवाईडर के साथ चले जा रहा था. मुझे अभी भी याद है सामने से ट्रक आ रहा था जो मुझे देखकर दाये हो गया था,पर तभी एक सज्जन डिवाडर से अचानक मेरे ठीक सामने सडक पर उतर गये, मैने तुरंत अगला पिछला दोनो ब्रेक लगा दिये, मुझे इतना आज भी याद है कि मै हवा मे था.
फ़िर ये काफ़ी बाद मे पता चला कि उन सज्जन को जो जल्दी मे थे ,ट्रक वाले ने बडी मेहनत से बचाया था.और मुझे वहां डिवाईडर से उठा कर जिस सज्जन ने पहुंचाया,आज भी मै उन्हे नही जानता (*कृपया इस बारे मे यहां देखे. )
जब मेरा आपरेशन हो चुका और मुझे होश आया. तब मै जान चुका था कि मामला उतना आसान नही था ,ये मेरा दूसरा जनम है शायद उपर वाले के पास अभी मेरे लिये जगह नही थी.या मेरे परिवार को मेरी ज्यादा जरूरत थी.सारा सिर टाको से भरा पडा था,सिर की हड्डिया दुर्घटना मे नही टूटी तो डाकटरो ने हथोडे आरी ,जो मिला उससे तोड डाली,आज भी सिर मे पडें गड्ढे दर्द दे जाते है. जारी

अगली कड़ी में पंगेबाज की जिदगी के रंग न्यारे

24 कमेंट्स:

मीनाक्षी said...

arun ji, aapke vayktitva ka yeh bhaavatamak gun man ko jeetne vala hain. jeevan daan dene vaale farishteh ko khojne ke chakkar main aap khud doosrion ke liye farishta ban gaye. aise hi rahiyega.. shubhkamanayain

Udan Tashtari said...

आपकी दुर्घटना की विस्तृत जानकारी आज लगी. हल्का फुल्का तो आपने बताया था. इश्वर की बहुत मेहरबानी कि आप इससे उबर पाये.

बस, इश्वर में विश्वास बनाये रखें, कभी गलत नहीं होगा. जारी रहिये आगे. शुभकामनाऐं.

मैथिली गुप्त said...

यही जिन्दगी है मेरे प्यारे भाई

Gyan Dutt Pandey said...

आपकी दुर्घटना का पक्ष मुझे ज्ञात था और उसमें हम बराबर की संवेदना रखते हैं। आप उबर पाये, ईश्वर का बहुत धन्यवाद।
पर यह जो बिजनेस करने का विवरण दिया है - उससे नौकरी छोड़ चटपट अमीर होने की हमारी हसरतों पर कुठाराघात हो गया है। क्या बोलें?! :)

Rajesh Roshan said...

दुर्घटना से आप उबर गए यही ज्यादा जरुरी चीज है. लगाये रखे अपनी पंगेबाजी...

दिनेशराय द्विवेदी said...

लम्बा रास्ता छोड़ निकट का रास्ता चुनना बड़ा पंगा लेना है। स्थिति ऐसी कि आप कुछ नहीं कर सकते। आप बच गए, फिर से काम पर लगे ठीक है।
व्यवसाय बहुत कठिन है जगत में सांप सीढ़ी की तरह कोई कोई है जो सीढ़ियाँ चढ़ता है, और सब ले लम्बा वाला सांप जो ऊपर की लाइन से सीधे नीचे की लाइन में पहुँचा देता है।
ज्ञान भाई जरा संभल कर। धंधा/प्रोफेशन बहुत मुश्किल हैं।

Anonymous said...

अपनी परेशानियों पर हंसना भी माद्दे का काम है. ऐसा ही attitude बनायें रखें.

Unknown said...

यूँ ही नहीं कहते कि आप पसंदीदा ब्लॉगर्स में है....आखिर लगभग रोज़ सिखाते हैं जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आपकी सचमुच ज़रूरत है...
सफ़र को भी ...हमें भी !
मंगल कामना कि आपको
अपने दर्द से छुटकारा मिले.
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आपकी चुटकियाँ .....
अनायास बड़ी बाते कह देती हैं.
मसलन डाई और डूब जैसा प्रयोग ....!
डू ऑर डाई की याद आ गई जी !
पूरी पोस्ट रोचक है और संदेश परक भी कि
एक पत्रिका का कोई अंश ज़िंदगी बदल सकता है.
शब्दों के सफ़र में यह बयान मील का पत्थर है.
शब्दों पर आस्था का उद्घोष भी है यह !
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धन्यवाद
डा.चंद्रकुमार जैन

संजय बेंगाणी said...

उस दूर्घटना के बारे में आज विस्तार से जाना.

क्या कहें...दीर्घायू की कामना करता हूँ, ताकि आपके पंगो का मजा ले सकें. मै ही नहीं जी. मेरे परपोते भी :)

Shiv Kumar Mishra said...

शानदार जी शानदार. बहुत कुछ सिखा देते हैं आप, अरुण भाई.
पंगे से सीखने को मिलता है, ये मुझे बहुत पहले से पता था. लेकिन आज तक हम तो जेरी माऊस के पंगों से सीखते थे जी. आज से आपके पंगों से सीखने को मिला. अरुण भाई, कामना है कि आप अब स्वस्थ रहे, ऐसे ही पंगे लेते हुए ज़िंदगी इसी तरह से गुजारें.

नीरज गोस्वामी said...

अरुण जी
"हिम्मत एय मर्दां मददे खुदा" की इस से बेहतर मिसाल क्या हो सकती है? हँसते हँसते ज़िंदगी की विषमताओं का बखान करना इतना आसन नहीं होता जितना आप ने कर दिखाया है. आप के हौसले की जितनी चाहे दाद दूँ कम ही पड़ेगी. आप की कथा बहुत आनंद से पढ़ रहा हूँ जो मनोरंजक के साथ साथ बहुत अधिक प्रेरक भी है. इश्वर से प्रार्थना है की वो आप को सदा खुश और स्वस्थ रखे.

नीरज

बालकिशन said...

भाई पूरा का पूरा जीवन ही पंगो से भरा जान पड़ता है.
बहुत ही साहसी व्यक्तित्व के स्वामी हैं आप.
हम आपकी इन पंगे भरी बातों को बड़े चाव से पढ़ रहे है.
शुभकामनाये.

डॉ .अनुराग said...

दूसरे जन्म मे पंगे जरा कम ले ओर खास तौर से डीवाईडरो से ....यही हमारी सलाह है....

PD said...

achchha laga padhna..
aapke har post me kuchh na kuchh comment kar jata hun magar aaj man bahut udas hai so aaj kuch bhi nahi chidhaunga.. kal aa kar chidhaa jaaunga.. :)

Ghost Buster said...

आपके साथ घटी दुर्घटना के बारे में पहली बार जाना. आपकी हिम्मत की दाद देते हैं. और ऐसा जबरदस्त लिखना तो बस पंगेबाज का पेटेंटेड स्टायल है.

Sanjeet Tripathi said...

घोस्ट बस्टर जी ने सही कहा!
सलाम आपको!

mamta said...

भगवान आपको दीर्घायु दे .
और आप इसी तरह पंगे लेते रहे। :)

अफ़लातून said...

ऐसी दुर्घटना के बाद बिड़ले ही वाहन चलाते होंगे। मुझे ऐसे दमदार व्यक्तित्व के साथ मोटर पर घूमने पर इस बात का कत्तई अन्दाज नहीं लगा था । हाँलाकि मैं चार चकिया पर घूमा था !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ओहो ..
ऐसे वाहनोँ के ऐक्सीडन्ट
बडे भयानक होते हैँ ! :-(
खुदा का शुक्र है
जो आप इस तरह लिख रहे हैँ
..हँस बोल रहे हैँ.

ज़िँदगी आसाँ नहीँ ...
किसी भी समय.
हाँ सँजोग से लडना ही,
हमारी फितरत होनी चाहीये.
आगे की कथा सुनाइये..
.- लावण्या

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

पसंद में आज आप बोधि के बराबर हो गए ! बधाई!

pallavi trivedi said...

आपकी जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है..सलाम आपके जज्बे को!हाँ...readers digest आज भी मेरी पसंदीदा किताब है!

Neeraj Rohilla said...

अरूणजी का कर्जा चुकाने का अन्दाज दिल को छू गया । इस कडी को तो कई बार पढा है, बहुत अच्छा लगा ।

आगे की कडी का इन्तजार रहेगा ।

Anita kumar said...

भारत के असली एन्त्रपयुनर्…

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