Friday, July 29, 2016

'कमाल' की बात



ज देखते हैं कमाल की कुण्डली। हम सब अधूरे हैं। आम आदमी इस अधूरेपन को पूरा करने के चक्कर में ईश्वर का आविष्कार कर बैठा। ज्ञानमार्गियों ने पूर्णता की व्याख्या अनेक तरीकों से करते हुए अध्यात्म और दर्शन का घनघोर संसार रच दिया। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकला कि हर कोई अगर अपना अपना काम सही ढंग से करता चला जाए तो बात पूरी हो जाती है।

पूर्णता में ही 'कमाल'
यह जो पूर्णता है बड़ी चमत्कारी है। किसी चीज़ के पूरा होने का अहसास हमें गहरी शान्ति से भर देता है। पूर्णता सुख का सर्जन करती है और आगे बढ़ने का रास्ता खोलती है। हमारे हाथों उस चमत्कारी भविष्य की नींव रखी जाती है जिसके लिए हमने ईश्वर का आविष्कार किया था। ज्ञानियों ने इस कर्मयोग को ही ईश्वरोपासना कह दिया। बहरहाल पूर्णता में ही ‘कमाल’ है।

उपज्यो पूत 'कमाल'
अरबी से फ़ारसी होते हुए हिन्दी में आए कमाल के डीएनए में इसी पूर्णता का भाव है। कबीर ताउम्र इन्सानियत की बात करते रहे। वे सन्त थे। ज्ञानमार्गी थे जिसका मक़सद सम्पूर्णता की खोज था। आख़िर क्यों न वे अपने पुत्र का नाम कमाल रखते ! कमाल अपने पूरे कुनबे के साथ उर्दू में है और कुछ संगी साथी हिन्दी में भी नज़र आते हैं। कमाल کمال बना है अरबी की मूलक्रिया कमल کمل से जो मूलतः क-म-ल है, अर्थात काफ़(ک) मीम( م ) लाम (ل) से जिसमें पूर्ण होने, पूर्ण करने का भाव है।

'कमाल' का चमत्कार
इस तरह कमाल में परम, सम्पूर्णता, सिद्धि, पराकाष्ठा, सर्वोत्कृष्टता जैसे भाव स्थापित हुए हिन्दी में कमाल का बर्ताव चमत्कारी, अद्भुत या आश्चर्यजनक के अर्थ में ज्यादा होता है। जबकि इसका मूल भाव Completion, perfection या entire है। जब कोई चीज़ अपनी सम्पूर्णता में रची जाती है या घटित होती है तब सामान्य मनुष्य के लिए वह आश्चर्य ही होता है। इसीलिए सम्पूर्ण उपलब्धि को हम अनोखापन मानते हैं।

'कमाल' के मुहावरे
हिन्दी में कमाल दिखाना, कमाल करना, कमाल है जैसे मुहावरे हमारी रोज़मर्रा की अभिव्यक्ति का हिस्सा हैं। इनके बिना काम नहीं चलता। कमाल शब्द ग्रामीण बोली से लेकर शहरी ज़बान में छाया हुआ है। “कमाल की चीज़’, ‘कमाल की बात”, “कमाल की एक्टिंग”, “कमाल की सोच”, “कमाल की तकनीक”, “कमाल का हुनर”, “कमाल का आदमी”, “कमाल की औरत” जैसे दर्जनों पद हम रोज़ इस्तेमाल करते हैं जिसमें कमाल का अर्थ या तो प्रवीणता, पराकाष्ठा है अन्यथा आश्चर्य का भाव है।

'कमाल' का कुटुम्ब
कमाल-कुटुम्ब का ही एक अन्य शब्द है जो सम्पूर्णता के अर्थ में हिन्दी में प्रतिष्ठित है वह है مکمل मुकम्मल। कुछ लोग मुकम्मिल भी लिखते हैं। अनेक लोग मुक्कमल लिख देते हैं। सही मुकम्मल है अर्थात मीम काफ मीम लाम। मुकम्मल बना है कमाल से पहले ‘मु’ उपसर्ग लगने से जो मूलतः सम्बन्धकारक है।

'कमाल' यानी सम्पूर्णता

जिसमें सम्पूर्णता का गुण है उसका अर्थ होगा सम्पूर्ण। सो मुकम्मल में सम्पूर्ण, सर्वोत्कृष्टता जैसे भाव हैं। मुकम्मल वह है जो परिपूर्ण है, निर्मित है, बना हुआ है। वह जिसमें कुछ भी करने को शेष न रह गया हो। इसी कड़ी में आता है कामिल کامل इसमें भी यही सारे भाव समाहित हैं। कामिल अरबी की प्रसिद्ध और लोकप्रिय पुरुषवाची संज्ञा भी है। अखिल,योग्य, परिपूर्ण, सम्पूर्ण, सक्षम जैसी अर्थवत्ता इसमें है।

नामों में 'कमाल'
इसी तरह ताकमाल, मुकतामिल, ताकमुल, ताकमिल, कमालान जैसे पुरुषवाची नाम हैं तो कामिलात, कामिलिया, कमिल्ला जैसे स्त्रीवाची नाम भी इसी मूल से निकले हैं जिनमें उपरोक्त भाव ही हैं। इस कड़ी के ये सभी शब्त अरबी, फ़ारसी, हिन्दी, तुर्की, अज़रबैजानी, स्वाहिली, इंडोनेशियाई आदि अनेक भाषाओं में इस्तेमाल होते हैं। हिन्दी के अलावा अनेक भारतीय भाषाओं में भी इस शृंखला के शब्द हैं।

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Thursday, July 21, 2016

मोरचा सम्भाले...


हि हिन्दी में दो तरह का मोरचा प्रचलित है। एक मोरचा वह है जो लोहे को ख़राब कर देता है। धार कुंद कर देता है। जिसे ज़ंग लगना कहते हैं। संयोग से दूसरा मोर्चा भी जंग से ही जुड़ा है, बस नुक़ते का फ़र्क़ है। उसे जंग का मोरचा कहते हैं। दोनो ही मोरचे फ़ारसी से आयातित हैं। ग़ौर करें कि हिन्दी में युद्धस्थल पर तैनाती की जगह वाला मोरचा ज़्यादा प्रचलित है। ज़ंग के अर्थ वाला मोरचा अब हिन्दी में कम प्रयोग होता है। हाँ आंचलिक बोलियों में बना हुआ है। मोरचा मूलतः مورچال है यानी मोरचाल जो मीम वाव रे चे अलिफ़ लाम से मिलकर बनता है। पर हिन्दी में मोरचा ही प्रचलित हुआ।


अनेक लोग इसकी वर्तनी ‘मोर्चा’ भी लिखते हैं। मूलतः मोरचा में "अंकन करना" जैसे भाव हैं जिनका आशय था सीमा या सरहद का निर्धारण। इसके साथ ही इसमें निशान लगाना, धार करना, कगार, किनारा जैसे आशय भी शामिल हुए। भारत और यूरोप की भाषाओं में इसी अर्थशृंखला से विकसित होकर अनेक शब्द बने हैं। वक़्त के साथ-साथ इसमें चौहद्दी बनाना, क़िला बनाना भी शामिल हो गया।

कोई भी चौहद्दी से घिरी जगह दरअसल अधिकार क्षेत्र का प्रतीक होती है। रक्षा प्रणालियों का जब विकास हुआ तो क़िला या गढ़ी के इर्दगिर्द खाई खोदना भी प्रमुख रणनीति बनी बाद में खाई क़िला निर्माण का अनिवार्य हिस्सा हो गई। खाई दरअसल सैनिको के छुपने के लिए भी खोदी जाती थी और दुश्मन के लिए रोक का काम भी करती थी। कभी इसमें पानी भरा जाता था तो कभी कांटे बिछाए जाते थे।

इसी तरह खुदाई कर खोहनुमा जगह बनाना जिसमें छुप कर एक या दो फौजी छुप कर वार कर सकें, खंदक कहलाती है। दरअसल इन्हीं सारी क्रियाओं को मोर्चाबंदी कहा जाता है अर्थात सुरक्षा के सारे उपाय करना। इस तरह देखें तो खंदक का अर्थ ही मोर्चा हुआ जहाँ पर स्थित फ़ौजी दुश्मन पर तक तक कर वार करता है। मोरचे पर जाना यानी कर्तव्य स्थल पर जाना। मोरचा सम्भालना यानी जिम्मेदारी सम्भालना। मोरचा मारना यानी लक्ष्य पर पहुँचना, जीत जाना आदि।

यूरोप की अनेक भाषाओं की रिश्तेदारी संस्कृत, अवेस्ता से रही है। इसे आर्यभाषा परिवार के नाम से भी समझा जाता है और भारत-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार के नाम से भी। भाषा विज्ञानियों ने मोर्चा श्रृंखला के शब्दों का मूल जानने के लिए प्रोटो भारोपीय धातु मर्ग / मर्ज की कल्पना की है जिसमें सीमा, चिह्नांकन या मोर्चाबंदी करना जैसे भाव हैं।

अवेस्ता और वैदिक भाषा में काफी समानता रही है। वैदिकी के मर्ग, मर्क जैसे शब्दों में गति, गमन, निरीक्षण, आक्रमण जैसे भाव है। इन्ही क्रियाओं से मानव अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ाता चलता था। फ़ारसी का मोरचा अवेस्ता के मारेज़ा से विकसित हुआ है जिसका अर्थ है सीमान्त या सरहद।

सीमा का निर्धारण निरन्तर चलते जाने की प्रक्रिया है। चलते हुए चिह्न बनाना इसमें प्रमुख है। अंग्रेजी का मार्जिन शब्द भी इसी मूल से आ रहा है जिसका अर्थ है सीमान्त, हाशिया, किनारा आदि। ये सब विकसित होती एक ही अर्थशृंखला की कड़ियाँ हैं। इसी तरह अंग्रेजी का मार्क शब्द है जिसका अर्थ भी निशान, चिह्न, ठप्पा, अंकन, मुहर, छाप, अंक आदि ही है।

अंग्रेजी के इसी मार्क से हिन्दी में ‘मार्का’ मुहावरा चल पड़ा था ठीक वैसे ही जैसे पिछले कुछ दशकों से ‘टाइप’ चल पड़ा हैं। जिसका आशय सादृश्यता सम्बन्धी है यानी “...किसी के जैसा”। सरकारी मार्का, फर्जी मार्का आदि। इसका अर्थ चिह्न से है पर भाव सादृष्यता का है। “यूपी टाइप,” “मूर्खटाइप” जैसे वाक्य प्रयोग भी यही कहते नज़र आते हैं।

हिन्दीमें रास्ते के अर्थ वाला मार्ग इसी कड़ी का शब्द है। कश्मीरी में मर्ग़ घास के विशाल चारागाह भी हैं। बाद में इनका अर्थ घाटी, रास्ता, मैदान भी हो गया। टंगमर्ग, गुलमर्ग, सोनमर्ग जैसे स्थान नामों में यही मर्ग है।
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