Tuesday, March 11, 2008

आर्कुट वाली अनिता जी[ बकलमखुद-2 ]....

अभी का अभी बताओ, क्या होता है चैट !
ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। इस सिलसिले की शुरुआत कर रही हैं कुछ हम कहें जैसा खिलंदड़ा ब्लाग चलाने वाली अनिता जी । बकलमखुद में कल आपने पढ़ी इस सिलसिले की पहली कड़ी। देखते हैं आगे का हाल-

वे शरारती आंखें और हमारी जिद

हमारा घर है तो फ़्लैट पर बंगलो शैली का, जिसे यहां पेंट हाउस कहा जाता है। मेरे लड़के का कमरा ऊपर है और हम नीचे के
माले पर अक्सर रहते हैं और ऊपर बार बार जाने से कतराते हैं, हमने उससे शिकायत की कि उसे बुलाने के लिए हमें अपना गला फ़ाड़ना पड़ता है और फ़िर भी उसके कानों में जूं नहीं रेंगती, रेंगेगी कैसे, ये तो कानों में हेड सेट लगा कर लैप टॉप पर गाने सुनते, क्रिकेट खेलते और न जाने क्या क्या करते हमारी आवाज कहां सुनेगें। ये जानते हुए भी कि हमें कंप्यूटर का ज्यादा ज्ञान नहीं है उसने हमारी चुटकी काटते हुए शरारती आखों से कहा कि इसमें कौन बड़ी बात है। हमारे नीचे के कमरे में डेस्क टॉप है और उसके कमरे में लैप टॉप, हम अगर उसे चैट पर मैसेज दे दें तो वो उसे पता चल जाएगा कि हम बुला रहे हैं। उसकी शरारती आखों को देख हमारा गुस्सा और ऊपर चढ़ गया, हमने कहा चलो अभी का अभी बताओ ये चैट क्या होती है। उसने मजाक मजाक में ऑर्कुट पर हमारा प्रोफ़ाइल बना दिया और फ़िर जीमेल का पन्ना खोल कर कैसे उसको कोन्टेकट में देखा जा सकता है बता दिया। थोड़ा समझ आया, थोड़ा नहीं।

दोस्ती उम्र नहीं देखती...

हमने सुन रखा था कि ऑर्कुट युवा पीढ़ी का एक दूसरे के साथ संबध रखने की साइट है, तो हमें लग रहा था कि अगर कोई हमारा प्रोफ़ाइल उधर देखेगा तो क्या कहेगा, हमने प्रोफ़ाइल बनते वक्त अपनी सही उम्र ही डलवायी थी, पूरे 52 साल। दूसरे दिन हमें जिज्ञासा हुई कि क्या किसी ने हमारा प्रोफ़ाइल देखा या हमसे कुछ कहा। ऑर्कुट पर कैसे जाएं, वो लिखा के गया था। वो पन्ना निकाला और अपने प्रोफ़ाइल पर पहुंचे। हम देख कर हैरान थे कि इतने सारे लोगों ने हमसे दोस्ती करने की इच्छा जाहिर की है। खास बात ये थी कि ये सब की सब दरखास्त दक्षिण भारत के शहरों से थी और उसमें ज्यादातर युवा वर्ग के लोग थे ( सब लड़के)। ग़ज़ब ! हमने तो अपने प्रोफ़ाइल में साफ़ साफ़ अपनी उम्र और पेशे के बारे में लिखा था, फ़िर ये लड़कों को हमसे बात करने में क्या दिलचस्पी हो सकती है। इनमें से कई लड़के चैट पर मिले। हमारे पूछने क्या सचमुच वो मुझ जैसी बुढ़िया से दोस्ती करना चाहते हैं सबका एक ही जवाब था कि हां, दोस्ती उम्र नहीं देखती।

और मैं बन गई ई-मदर ...

इन दोस्तों को मेरी उम्र, मेरे रुतबे, मेरी भाषा, मेरे लिंग से कोई मतलब नही था, बातें अंग्रेजी में ही होती थीं। ये दुनिया भर की बातें करते और कोई कोई तो खेलने की भी जिद्द करता ऑनलाइन गेम्स हैं जैसे पोलो, चैस वगैरह्। हम कहते कि भैया हमें ये गेम्स खेलना नहीं आता तो सिखाने के लिए तैयार्। हम तो एक बार फ़िर अपने कॉलेज के दिनों में पहुंच गये। इन बच्चों के साथ खूब मजे रहते। जब हम कोई गेम सीखने में वक्त लगाते तो हमें चिढ़ाने के लिए कहते आखिर हो न दादी की दादी, हम झूठ मूठ का रूठ जाते तो मनाने की हजार कोशिशें करते। अपनी गर्ल फ़्रेडस से हुए झगड़ों को ले कर दुखी होते तो हमसे सलाह मागंते। मजा तब रहता जब एक लड़का अपनी गर्ल फ़्रेड के साथ हुए झगड़े की व्यथा सुना रहा होता और दूसरी खिड़की में उसकी गर्ल फ़्रेंड अपना रोना रो रही होती और हम उनके झगड़े निपटा रहे होते, लगता मानो मेरे ही कॉलेज के स्टुडेंट्स हैं। कई युवाओं की मैं इस तरह ई-मदर बनी। जो बातें वो अपने परिसर में किसी से नहीं कह पाते थे हमसे कह जाते और सलाह ले जाते।

युवाओं के लिए काउंसिलिंग सेल

मुझे लगा कि एक काउंसलिग सेल मैने यहां नेट पर खोला हुआ है। वाकई ओन लाइन कांउसलिंग की बहुत जरुरत है इस युवाओं में अब लड़के लड़कियां सब थे। दो किस्से मुझे खास इस समय याद आते हैं। एक मेरी ही एम ए की छात्रा जब मुझे ऑर्कुट पर देख पुलकित हुई और फ़िर बाद में चैट पर अपनी जिन्दगी की कई बातें करती रही, यहां तक की अपने भावी पति से भी (चैट पर) पहले मुझे मिलवाया और जब मैने सहमती जताई तब अपने माता पिता से मिलवाया। दूसरा याद आता है एक दक्षिण भारतीय लड़की जो केनेडा में थी और जिसकी माता का उसके बचपन में ही देहांत हो गया था वो मुझसे बतियाते बतियाते इतना जुड़ गयी थी कि अगर मैं एक दिन चैट पर न मिलूं तो उसका फ़ोन आ जाता था। हम कहते काहे नाहक पैसा बर्बाद करती हो पर वो मानती ही नहीं थी, बाद में उसने अपनी बुआ से भी नेट पर हमारी मुलाकात करायी। बुआ हमारी उम्र की थी।

इंशाजी यह और नगर है, इस बस्ती की रीत यही...

धीरे धीरे हमें पता लगने लगा कि ऑर्कुट सिर्फ़ युवाओं की बस्ती नहीं यहां हम जैसे और भी कई और हैं हमने 40+ रॉकर कम्युनटी जाइन कर ली, अब हमारे अपनी उम्र और अपने से बड़ी उम्र के भी कई मित्र और सहेलियां बनीं। यहां तक की अब इस कम्युनटी के लोग अक्सर मिलते हैं और पार्टियां करते हैं। कई महिलाएं हमारी अंतरंग सहेलियां भी बन गयी और हमारा दायरा कॉलेज के परिसर से निकल कर और बड़ा हो लिया। कहने का तात्पर्य ये कि नेट का संसार असली संसार से कुछ ज्यादा अलग न था। अब हम रोज ऑर्कुट पर जा कर अपनी स्क्रेप बुक चैक करते थे। धीरे धीरे आत्मविश्वास बढ़ रहा था, ऑर्कुट की दुनिया को एक्सप्लोर करना शुरु किया तो कुछ हिन्दी कविताओं की साइटस मिलीं, हमारी तो बाछें खिल गयीं फ़ौरन उनको जॉइन कर लिया, कुछ अपनी कविताएं भी वहां भेजीं। उन्हें वहां प्रकाशित देख बहुत आंनद आया।

अपनी कविताई - हिन्दी युग्म से परिचय

हिन्दी कविताएं साइट जॉइन करते ही शैलेश भारतवासी के मैसेज आने लगे कि हम हिन्द-युग्म पर भी आयें, उधर भी चक्कर मार आए पर वहां कविता प्रकाशित करवाना बड़ी टेड़ी खीर है, उसके लिए पहले उनकी प्रतियोगिता जीतनी पड़ती है, कविता भी ऐसी हो जो पहले कहीं प्रकाशित न हुई हो, और आप जीते की नहीं वो कविता भेजने के एक महीने के बाद पता चलेगा, आदि आदि। इतने में शायर परिवार की श्रद्धा जी ने एक दिन चैट पर हमसे संपर्क किया और अपनी कविता वहां प्रकाशित करने का निमंत्रण दिया। उनकी कोई शर्त नहीं थी,कहीं और प्रकाशित की हुई है तो भी आप उनकी साइट पर डाल सकते थे। हमें बड़ा अच्छा लगा। वहां सबकी प्रतिक्रियाएं पढ़ी तो पहली बार एहसास हुआ कि इतना भी बुरा नहीं लिखते। खास कर शायर परिवार के अनिल जी काफ़ी प्रोत्साहन देते हैं नये लिखने वालों को। श्रद्धा जब पहली बार हमसे चैट पर मिलीं तो उनका मुझे दीदी कह कर पुकारना मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं वहीं पिघल गयी।

पुराणिक भी टकरा गए इस बस्ती में

हम अभी फ़िर से हिन्दी से जुड़ पाने से पुल्ल्कित हो ही रहे थे कि एक दिन आलोक पुराणिक जी के चिठ्ठे का लिंक स्क्रेप में मिला। जिज्ञासावश हमने पहले उनके प्रोफ़ाइल पर क्लिक किया, उनके बारे में पढ़ा, फ़िर उनकी स्क्रेप बुक खोली। ये हमारी आदत है कि ऑर्कुट पर जब भी किसी नये व्यक्ति से दोस्ती की दरखास्त आती है हम पहले उसका प्रोफ़ाइल, उसकी कम्युटीस और स्क्रेप चैक करते हैं। आलोक जी की तरफ़ से कोई फ़्रेंडस रिक्वेस्ट नहीं थी सिर्फ़ लिक भर था उनके चिठ्ठे का। खैर हमने जब उनका स्क्रेप बुक देखा तो लगा कोई सेलेब्रेटी हैं। लोगों ने लिखा हुआ था कि मै बचपन से आप को पढ़ता आ रहा हूँ और आप का बहुत बड़ा फ़ैन हूँ आप से एक मुलाकात कर सकूं तो अपने को धन्य समझूं और भी पता नहीं क्या क्या। उसे देख हमारी जिझासा और बढ़ गयी, दिमाग पर बहुत जोर दिया लेकिन किसी सेलेब्रेटी आलोक पुराणिक का नाम याद नहीं आया। लिंक पर किल्क कर उनके ब्लोग पर गये अगड़म बगड़म वाले पर। उनका लेख पढ़ा, हँस हँस कर लोट पोट हो गये। सेंस ओफ़ ह्युमर हमारा भी बहुत स्ट्रोंग है। फ़िर तो एक ही दिन में उनकी पुरानी सब पोस्ट भी पढ़ डालीं बहुत मजेदार लगीं। हमारा मन हुआ कि हम इन पोस्ट्स को अपने स्टुडेंटस को भी दिखाएं, और वो तभी कर सकते थे जब इनको कॉपी कर प्रिंट आउट ले कर नोटिस बॉर्ड पर लगाते।

टेंशनाइए मत,रीठेल, अनझेलेबल,टेलो

ब्लोग क्या होता है ये हमने पहली बार जाना। खैर वापस अपने स्क्रेप पर आकर आलोक जी को एक स्क्रेप लिखा कि आप के स्क्रेप से लगता है कि आप कोई सेलेब्रेटी हैं वैसे मुझे अफ़सोस है कि मै आप के बारे में कुछ नहीं जानती और न ही मीडिया में कभी सुना है शायद इस लिए कि मै हिन्दी जगत से बहुत दूर हूँ, मुझे आप के लेख अच्छे लगे और क्या आप मुझे उन्हें अपने स्टुडेंट्स के साथ बांटने की इजाजत देगें? …।:) दो दिन बाद उनका जवाब आया कि वो कोई सेलेब्रेटी नहीं हैं और मैं खुशी से उनके लेख अपने नॉटिस बोर्ड पर लगा सकती हूँ। हिन्दी दिवस पास में ही था हमने कॉलेज में हिन्दी दिवस मनाने का मन बना लिया। आलोक जी को बुलाने की इच्छा थी पर उन्हों ने कहा कि बहुत कम समय का नॉटिस है छुट्टी लेना मुमकिन न होगा, हम समझ सकते थे। उनके ब्लोग पर ही हमने पहली बार हिन्दी में ऐसे शब्द देखे जो हमारी अक्ल को गुदगुदा गये जैसे टेंशनाइए मत,रीठेल, अनझेलेबल,टेलो । हम तो ऐसे शब्दों का अच्छी हिन्दी में इस्तेमाल देख कर इतने हैरान थे कि सोचा कि इनका एक संकलन ही बना लिया जाए।बाद में हिन्दी दिवस के दिन हमने आलोक जी के लेख अपने कॉलेज में प्रदर्शित किए और ओक्सफोर्ड डिक्शनरी में कितने हिन्दी शब्द को अंग्रेजी में अपना लिया गया है वो छात्रों से निकलवाया। देख कर बहुत सुखद अनुभूती हुई कि करीब दो सौ शब्द हिन्दी के इस डिक्शनरी के नये संकलन में हैं। हमने इस बात पर जोर दिया कि आज अगर अंग्रेजी का राज है सारी दुनिया पर तो सिर्फ़ इस लिए कि ये लचीली रही और हर जगह के ज्यादातर इस्तेमाल होने वाले स्थानिय शब्दों को अपने अंदर आत्मसात करती चली गयी। इस साल का हिन्दी दिवस दूसरे सालों के मुकाबले ज्यादा सफ़ल और लोकप्रिय हुआ।

( अगली कड़ी में समाप्त )

25 कमेंट्स:

mamta said...

ये नई शुरुआत बड़ी पसंद आई।
अनिता जी के बारे मे भी जानने का मौका मिला।

कंचन सिंह चौहान said...

achchhi pahal

VIMAL VERMA said...

ब्लॉग की वजह से या यूँ कहें कि मनीष की वजह से हम पहले भी मिल चुके हैं और इसीलिये कुछ बातें हम पहले से जानते थे पर बड़ी इमानदारी से आपने बयान किया है,अच्छा लगा ...

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया!! अनीता जी से हमारा भी पहला परिचय शायरफ़ैमिली पर ही हुआ और फिर ऑर्कुट पर!!

PD said...

bahut badhiya hai ji...
achcha laga padhkar.. :)

masoomshayer said...

aap eks are lekh band lene wale hote hain. is men to mera zikr bhee hai to aur achha laga. maine aap ko prostahit nahee kiya balki maine to kewal jana ki aap men kitnee lahre chipee hain . jantee hain kitnee? itnee kee aap kos agar kah den sagar ko pranam aur meree shardhha aur shayarfamily.com kee or se dhanyavad aur shubh kamanayen

Anil masoomshayer

दिनेशराय द्विवेदी said...

मैं ने अपनी बेटी से सुना था कि अनिता जी बहुत चैट करती हैं। उस ने किस से जाना मुझे पता नहीं। पर वह सच कहती थी, इस का प्रमाण उन्हों ने खुद ही आप के जरिए दे दिया। वाकई वे लाजवाब हैं बचपन, जवानी दोनों एक साथ जीती हैं और बुढ़िया बनती हैं। मैं शर्तिया कह सकता हूँ वे कभी नहीं बुढ़ियाएंगी। अगर ऐसे ही जीती रही। वे दीर्धायु हों और नए नए बच्चों-युवाओ को मित्र बनाती रहें।

azdak said...

अच्‍छे...

Manish Kumar said...

अच्छा प्रयास अजित जी। अनीता जी ने लिखा भी रोचक अंदाज में है।

सागर नाहर said...

ई मदर.. :)
हमें तो यह शब्द बड़ा मजेदार लगा। क्यों ना आप ब्लॉग जगत की भी ई मदर बन जायें..?
पिछली पोस्ट से इस पोस्ट को पढ़ने में ज्यादा मजा आया।

मीनाक्षी said...

अजित जी, बहुत दिनों बाद नेट पर आने का मौका मिला और कई चिट्ठे एक साथ पढ़ डाले. शब्दों के सफर में इस नए पड़ाव को देखकर अच्छा लगा और अनिता दी की बकलमखुद 1 और 2 पढ़कर तो और भी अच्छा लगा.

ghughutibasuti said...

अनीता जी को और जानने का अवसर मिला। बात करने से लहजे में सब कुछ लिखना बहुत अच्छा लगा।
आभासी माँ होने पर मैंने दो कविताएँ अपने उस पुत्र के लिए लिखीं हैं जो अब स्वयं पिता बन गया है ।
http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/05/blog-post_13.html

http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/10/blog-post_14.html
घुघूती बासूती

यूनुस said...

वाह जी । इसमें से कुछ अंतर्कथाएं सुन रखी थीं स्‍वयं अनीता जी से । पर बहुत बहुत अच्‍छा सिलसिला । बधाई स्‍वीकारें ।

Anita kumar said...

मित्र 400092 आप की आभारी हूँ कि आप को मेरा लिखा अच्छा लगा, पर मित्रवर दोस्तों से क्या पर्दा, अपनी पहचान तो दिजिए

विजय गौड़ said...

anita ji maja aa gaya aapko pad kar. behatreen or bade hi sahaj dhang se aapne bhoot sari batain kah di hen.

शैलेश भारतवासी said...

चलिए यह जानकर खुशी हुई कि आपको ब्लॉग सेलीब्रिटी बनाने में मेरा और 'हिन्द-युग्म' का भी हाथ है।

अजित वडनेरकर said...

सफर के सभी सम्मान्य सहयात्रियों का आभारी हूं कि उन्हें ये सिलसिला पसंद आ रहा है। अनिताजी तो खैर ऐसी शख्सियत हैं कि उनकी संगत का एहसास उनके ब्लाग पर लिखने तक सीमित नहीं है। उनकी व्याप्ति कहां कहां है , इस पोस्ट से साफ हो चुका है।
इस सिलसिले को आगे बढ़ाने में आप सबकी बड़ी भूमिका है। मेरे आग्रह पर कृपया कोई टालमटोल वाले औजार का प्रयोग न करें।

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लगा इस सफ़र का साझीदार बनना! अनिताजी चैटिंग सच में इतना करतीं हैं क्या जितना दिनेश द्विवेदी जी ने बताया। अगर हां तो वे तो असली फ़ुरसतिया हैं। अगली किस्त का इंतजार है।

Sajeev said...

उनके देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है,
अनिता जी खेल में बावन पत्ते हैं..... यानि पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त....सुनते रहिये

रवि रतलामी said...

शब्दों के सफर का ये नया सफर चमत्कृत, आनंदित करने वाला है. अगले पड़ावों का बेसब्री से इंतजार रहेगा.

एक और घरोहर किस्म का नायाब प्रयास. साधुवाद स्वीकारें!

और, अनिता जी के दिलचस्प व्यक्तित्व के बारे में जान कर भी अच्छा लगा. लगता है मुझे भी चैट करना सीखना होगा :)

Anita kumar said...

रवि जी, फ़ुरसतिया जी
असल में हम तो हैं अति बातुनी,
बस चले तो करें बातें तब भी जब थामी हो दातुनी,
हम फ़ुरसतिया कहलाने को तैयार
गर चैट करने को आप हों तैयार

Anita kumar said...

मैं सभी दोस्तों के स्नेह के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ

ALOK PURANIK said...

अनिताजी की जय हो.
कहां बुढ़िया हैं आप।
पचास के पास तो लाइफ शुरु ही होती है।
जमाये रहिये। और जमे रहिये।

Saurabh Pandey said...

Aapne ye baate itaani saralata se likh di hai ki aap bhari prashansha ki paatr hai. Mai waise is blogger duniya ka naya chhatr hu isliye jyada kuch nahi likh sakta, aapka parichay jaan kaar kafi kushi hui.

अनुज खरे said...

gajab ajeet bhai sb,
jordar prayas.
meri bhi badhai sweekaren.
anuj khare

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