प्राचीनकाल से ही मनुश्य ने मौसम की मार से शरीर को बचाने के लिए पहले पेड़ों की छाल को जरिया बनाया। सदियों तक यह सिलसिला चला। बाद में पशुओं के साथ सह-जीवन के दौरान उसे मृत जीवों की खाल को पहनने का विचार आया।
भारतीय भाषाओं का आमफहम शब्द ऊन बना है संस्कृत के ऊर्ण से जिसका अर्थ भी ऊन ही है। संस्कृत में इसके अलावा उरा (भेड़), उरण (भेड़),ऊर्ण (ऊन) ऊर्णायु (ऊनी या भेड़) और ऊर्णु (ढकना ,छिपाना ) तथा ऊर्णम् ( नर्म, ऊन) वगैरह। इन तमाम शब्दो का अर्थ है ढांकना या छिपा कर रखना। एक भेड़ जिस तरह अपने ही बालों से ढकी-छुपी रहती है , उसी तरह अपने शरीर को छुपाना या ढकना। जाहिर सी बात है लाक्षणिक आधार पर शब्दों का निर्माण करनेवाले समाज ने ये तमाम शब्द बनाए होंगे। बाद में भेड़ के अर्थ में उरा या उरण जैसे शब्द सामने आए। गौर करें कि संस्कृत की वस् धातु से बने वास, निवास, या आवास जैसे शब्दों के साथ ही वस्त्र जैसा शब्द भी बना। इसमें भी लक्षण ही प्रधान है अर्थात शरीर जिसमें वास करे वही है वस्त्र । फिलहाल बात ऊन की हो रही है। फारसी में भी इससे मिलता-जुलता शब्द है ऊस जिसका अर्थ है बकरी की एक जाति। निश्चित ही भेड़ के रोंएदार नर्म बालों से ढके शरीर को देखकर ही मनुष्य ने पहले उसकी खाल को धारण किया होगा बाद में सिर्फ उसके बालों का वस्त्र की तरह उपयोग करने का विचार आया होगा।
खास बात यह भी है कि न सिर्फ संस्कृत बल्कि द्रविड़ भाषाओं में भी ढाकना, छुपाना जैसे अर्थ वाले कई शब्द मिल जाएंगे। मिसाल के तौर पर तलवार म्यान में छुपी रहती है इसलिए तमिल में म्यान के लिए उरई शब्द मिलता है। तमिल का ही आळी (छुपना) , आळियल (खाल) जैसे शब्द यही जाहिर करते हैं। इसके अलावा ग्रीक के अरेप्सो जैसा शब्द भी है जिसका मतलब है ढांकना या छत डालना।
Sunday, October 28, 2007
भेड़ जो बन गई ऊन
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:57 AM
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2 कमेंट्स:
ऊन की गरमी भी देख ली.
वैसे
ऊन की गरमी,जून की गरमी,खून की गरमी,जुनून की गरमी में क्या कोई संबंध है.
गुरुदेव आपने तो आनन्द ला दिया है....
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