Sunday, September 7, 2008

और उन्हें मुझसे प्यार हो गया...[बकलमखुद-69]

Copy of PICT4451 ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने  गौर किया है। ज्यादातर  ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल  पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रभाकर पाण्डेय को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के बारहवें पड़ाव और सढ़सठवें सोपान पर मिलते हैं अभिषेक ओझा से । पुणे में रह रहे अभिषेक प्रौद्योगिकी में उच्च स्नातक हैं और निवेश बैंकिंग से जुड़े हैं। इस नौजवान-संवेदनशील ब्लागर की मौजूदगी प्रायः सभी गंभीर चिट्ठों पर देखी जा सकती है। खुद भी अपने दो ब्लाग चलाते हैं ओझा उवाच और कुछ लोग,कुछ बातें। तो जानते हैं ओझाजी की अब तक अनकही।
...और फिर वो भी हुआ जिसकी उम्मीद ही नहीं थी (अभी भी नहीं दिखती). सिलसिला ऑरकुट से शुरू हुआ, वो नई-नई ऑरकुट पर आई थी और उन्हें हमसे दोस्ती करने का मन हुआ. फिर एक दिन उन्होंने फोन भी कर दिया. जयपुर में इंजीनियरिंग की छात्रा हैं. समस्या ये थी की मैं कुछ भी कहूं उन्हें अच्छा ही लगता, मुझे भी नहीं पता था की मैं इतना अच्छा आदमी हूँ. शायद मैं उनके सपने वाले से मिलता था... मैं अपनी बुराइयां बताता तो उन्हें मेरी इमानदारी से प्यार हो जाता. मैं उनका फोन नहीं उठाता तो उन्हें लगता कि मैं अपने दोस्तों के साथ हूँ और दोस्तों के सामने उनसे बात नहीं करता यानी उनका बहुत ख्याल करता हूँ. मैं जितना संभलता जाता, उनको मुझसे प्यार होता जाता. मैं महीने में एक भी एसेमेस नहीं भेजता उनके दिन में २५ आ जाते. और वैलेंटाइन दिन की पूर्व संध्या पर उन्होंने इजहार भी कर दिया. कमाल की बात की ये सब फ़ोन पर ही हो गया. वो पहले भी नहीं समझती अब भी नहीं. फिर बड़ी मशक्कत से समझाया-बुझाया, वो रोती रही मैं समझाता रहा. मैं कहता की मैं इतना अच्छा आदमी नहीं हूँ तो वो कहती की उन्हें अच्छा आदमी चाहिए ही नहीं. अंततः किसी तरह समझाया और बोल दिया की अब आगे से बात नहीं होगी. कई लोगों ने गालियाँ दी, लेकिन मुझे लगा की यही ठीक रहेगा. मुझे उनसे प्यार नहीं हो पाया था... और मुझे पता था की मेरी तरफ़ से कोई भविष्य नहीं इस रिश्ते का... तो तोड़ देना ही बेहतर समझा. उनके लिए बुरा तो बहुत लगा, भगवान् उनको अच्छा साथी दें... पर इस बात की खुशी हुई की चलो किसी लड़की को मुझसे प्यार तो हुआ :-)
वो ८००० रुपये:
बंगलोर में जब इन्टर्न किया तो २५ दिन के काम के ८००० रुपये मिले. उस समय रिसर्च असिस्टैंट को वही मिलता था. इतने पैसे मिलने कि आशा नहीं थी. प्रोफेसर साहब ने कहा था कि अच्छा काम करोगे तो खर्चा लौटाया  जायेगा. और यहाँ बिना किसी खर्च को देखे पैसे दे दिए... काम से खुश थे ये भी जाहिर था. उन दिनों उस पैसे कि जो कीमत थी आज ८ लाख की भी नहीं. पैसों के मामले में उस दिन जीतनी खुशी हुई थी शायद कभी न हो. उन पैसों से जितना काम किया अब उतना संसार की सारी दौलत भी नहीं कर सकती. शायद आप नहीं समझ सकते, कुछ ऐसी बातें हैं जो आज तक मैंने किसी को नहीं बताई, कोई दोस्त नहीं जानता आज यहाँ सबसे ज्यादा लिख गया. किसी को ना बताने का कारण एक ही है... किसी की नज़रों में अपने लिए सहानुभूति नहीं देखना चाहता था. आज तक इसमें सफल रहा... और अब इसके लिए कुछ करने की जरुरत नहीं.
ब्लागिंग
ब्लॉग्गिंग शुरू की समय काटने के लिए. डायरी में कुछ लाइने पड़ी थी उनसे शुरू किया, अपनी सीनियर जया झा का ब्लॉग देखता तो हमेशा मन करता कुछ लिखने का. हिन्दी से शुरू से प्रेम था तो हिन्दी में ही लिखना चालु कर दिया. एक भी टिपण्णी नहीं आती थी, एक दिन ऐसे ही भटकते हुए नारद का पता चला उसपे जोड़ दिया. फिर पता चला की हिन्दी में तो बहुत लोग लिखते हैं. गंगा किनारे की तस्वीर वाली पोस्ट पर पहली बार कुछ अनजान लोगों की टिपण्णी आई, फिर चिट्ठी वाली पोस्ट पर . कुछ दिनों बाद ब्लोग्वानी पर जोड़ दिया और तब से कुछ-कुछ लिखते रहता हूँ. बहुत कम लिखता हूँ लेकिन इधर गणित पर लिखने लगा तबसे थोड़ा गति में सुधार हुआ है. अब तो कई साथी मिल गए हैं, बिना मिले ही लगता है की सबको सदियों से जानता हूँ. आशा है ऐसा ही साथ मिलता रहेगा और सफर जारी रहेगा. [ समाप्त ]
शुक्रिया अभिषेक...हमें आपके फ्लैश बैक में खूब आनंद मिला । आपके पास अब तक जो कुछ है उससे भी बेहतर मिलता जाए । .....शुभकामनाएं हम सब सहयात्रियों की

18 कमेंट्स:

Tarun said...

अभिषेक, बहुत कुछ पता चला तुम्हारे बारे में और अंत में ये प्यार का किस्सा जैसे सोने पर सुहागा। बहुत बहुत शुभकामनायें आगे आने वाले समय के लिये।

Anonymous said...

अभिषेक की बकलमखुद की सभी कड़ियों को पढ़कर आनन्द लिया लेकिन टिप्पणी शायद 2-3 बार ही दे पाए...आशीर्वाद और शुभकामनाएँ देते हैं कि जीवन सफल और समृद्ध हो...
मीनाक्षी

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत स्नेह अभिषेक।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अभिषेक जी के बारे में बकलम से बहुत कुछ जानकारी मिली। वे हिन्दी ब्लागिंग के हमारे स्थाई साथी हैं। इसे समृद्ध बनाने में उन का योगदान कम नहीं रहेगा।

Udan Tashtari said...

चलिये, बहुत बेहतरीन रही अभिषेक से मुलाकात. आजकल फोन से बात हो रही है. कल फिर करुंगा. :)

आपका बहुत आभार अजित भाई.


एक सार्वजनिक निवेदन आपके मंच से बिना पूछे अधिकारपूर्वक:

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निवेदन

आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

ऐसा ही सब चाहते हैं.

कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

रंजन (Ranjan) said...

क्या बात है अभीषेक जी

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया रहा है यह सफर ..ढेर सारी शुभ कामनाये आपको अभिषेक

महेन said...

यार जाते-जाते कन्या का दिल तोड़ दिया ये अच्छा नहीं किया। कुल मिलाकर रोचक सफ़र रहा आपका। आगे भी रोचकता बनी रहे। शुभकामनाएँ।

Smart Indian said...

अभिषेक भाई, आपका यह सफर तो बहुत सुंदर रहा! बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं!

कामोद Kaamod said...

बहुत बढ़िया रहा यह सफर .
शुभ कामनाये अभिषेक..

Dr. Chandra Kumar Jain said...

प्रिय अभिषेक ! आपका कर्म पथ
निरंतर प्रशस्त हो, यही मंगल कामना है.
खूब पढिए...दूसरों से सतत सीखिए और
जो सर्वोत्तम हो उसे सहर्ष ग्रहण कर
अपने सर्वोत्तम को बाँटते चलिए....ज़िंदगी
अपनी खुशी से खुश होने और
सबकी खुशी पर
झूम उठने का नाम है ...! है न ....?
पर शायद इसकी
कीमत भी अदा करनी होगी.
==============================
सस्नेह
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Manish Kumar said...

apni aap beeti sunane ke liye dhanyawaad. Jab sirf roman mein blog likhte the to jaya ke blog par pahunche he Win 98 mein Hindi likhne ka upaay poochne. Aapne unka jikra kiya to yaad aaya.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अभिषेक भाई,
आपका लिखा आपकी सत्यवादीता और साफदिल इन्सान की छवि को पुन: पुन: सिध्ध करता रहा है,
आगे का सफर भी सुहाना रहे
यही ईश्वर से प्रार्थना है ~~
( Great series Ajit bhai )
स स्नेह,
- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

http://wadnerkar.ajit.googlepages.com/Hindustan.jpg
Heartiest congratulations to you on this News Paper report Ajit bhai
& well done Ravish ji !!
Warm regards,
L

Anita kumar said...

आभिषेक आप के बारे में जानना बहुत अच्छा ल्गा। आप ने सही निर्णय लिया जिस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं उसे एक खूबसूरत मोड़ पर छोड़ना अच्छा। आशा करते हैं कि ज्ल्द ही आप हमें उसके किस्से सुनायेगे जिसके साथ भविष्य बनाना है। सस्नेह, मे ग़ॉड ब्लेस यू

डॉ .अनुराग said...

ईमानदार लेखन ओर जज्बाती इन्सान...... पर साथ में प्रैक्टिकल भी.....आप यही है अभिषेक जी.....एक धाँसू इंसान ....

mamta said...

अभिषेक आप वाकई मे बहुत ईमानदार इंसान है। बहुत पसंद आई आपकी साफगोई।

जीवन मे आपको वो सब कुछ मिले जिसकी आपको चाह हो। बस यही दुआ है।

गौतम राजऋषि said...

पढ़ लिया अभिषेक की दास्तान...बहुत ही अच्छा लगा।

अभिषेक की आनेवाली जिंदगी के लिये समस्त शुभकामनायें!!!

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