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![]() | ये तमाम फोटो स्वित्जर्लैंड में प्रोफेसर के घर की रसोई के हैं। उनके शाकाहारी बनने के दौरान की. |
![]() | ये तमाम फोटो स्वित्जर्लैंड में प्रोफेसर के घर की रसोई के हैं। उनके शाकाहारी बनने के दौरान की. |
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
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11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
10 कमेंट्स:
जिस के पास सपने हैं वही आगे जाता है। जिस के पास सपने नहीं वह अपने लिए स्थान तलाश करता रह जाता है। ज्ञान और कर्म का सामंजस्य सब स्थानों पर आवश्यक है।
बोरिस स्कूल से यहाँ तक की यात्रा .बहुत बढ़िया :)
यार बाकी पता नही तुम कहा कहा पंगे लेने के चक्कर मे लगे रहे पर हमे दिख रहा है कि तुम रसोईये जरूर धांसू च फ़ासू हो, कभी हमे भी बुलाओ ना या फ़िर हमारे यहा आ जाओ आजकल वैसे भी तुम्हारी भाभी घर गई हुई है. हम भी शाकाहारी बन जायेगे :)
ये बड़े सपने वाले अभिषेक
बड़े अपने-से लगते है भाई,
इनके ज़ज्बे में हमने
सफल जीवन की छवि पाई.
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बधाई...बधाई...बधाई !
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
एक बार पहले भी हमने इस रसोई की झलक आपके ब्लॉग पर देखी थी ....गणित से आपकी मुहब्बत जग जाहिर है ...पर आपके दोस्त देखकर भी अब इत्मीनान है की खूब गुजारी जिंदगी आपने........ कोई कहे न कहे हम सच्चे दिल से मानते है....."हीरा है हीरा...
waah kya khana banaten hain aap!!
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एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
........दिलचस्प। सुनाते रहें हम सुन रहे हैं।
पिछली कुछ कडियां छूट गयी थीं, उन्हें भी पढ़ा। मजा आया। बिहार की बाढ़ की त्रासदी और धर्म को लेकर चल रही नफरत की हवा के बीच प्रोफेसर ब्राइट के बारे में जानना बहुत ही रुचिकर रहा।
aap ko dekh kar lagta nahi hai ki aap khana bhi khaate hai....shayad sirf soongh kar hi apne aap ko itna fit bana rakha hai...achhha aur kya kya chupa rakha hai apne baare me ?....
अरे पण्डित; तोहके ई सब बनऊब आवथ का हो!
जो किसी के पेट को पटा सके वह कभी असफल नहीं हो सकता! :-)
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