Tuesday, September 30, 2008

प्रेमगली से खाला के घर तक...

kabir
संसार भर के संत और धर्मग्रन्थ एक बात खास तौर पर कहते आए हैं कि प्रेम से बड़ी कोई नीति नहीं मगर लोभ-लालसा छोड़कर ही प्रेममार्गी हुआ जा सकता है। यानी लालच और प्रेम साथ-साथ नहीं चल सकते। कबीरदास भी एक साखी में कहते हैं- प्रेमगली अति सांकरी, या में दुई न समाय। एक अन्य दोहे में वे कहते हैं-कबीर यहु घर प्रेम का खाला का घर नाहीं। इसी तरह हिन्दी के मशहूर कवि गीतकार कुंवर बेचैन भी अपने एक दोहे में यही कहते नज़र आते हैं कि प्रेम लोभ का साथ नहीं-
जहाँ काम है, लोभ है, और मोह की मार
वहाँ भला कैसे रहे, निर्मल पावन प्यार.

र्म और नीतिशास्त्र चाहे प्रेम की राह में लोभ - लालच की रंचमात्र भी जगह नहीं देखते हैं। गर भाषाशास्त्र के चौड़े रास्ते पर जब शब्दों का सफर शुरू होता है तो प्रेम यानी अंग्रेजी के love और संस्कृत-हिन्दी के लोभ, लालच, लालसा और लोलुपता जैसे विपरीतार्थी लफ्ज हेल-मेल करते नजर आते है। भाषाविज्ञानियों के मुताबिक संस्कृत मूल के लुभ् में ही अंग्रेजी के लव के जन्म का आधार छुपा है। लुभ् यानी यानी रिझाना, बहलाना, आकृष्ट करना, ललचाना,लालायित होना आदि। जाहिर है कि प्रेम में ये तमाम क्रियाएं शामिल हैं। मगर साथ ही इससे बने लोभ शब्द में लोलुपता, लालसा, लालच, तृष्णा, इच्छा जैसे अर्थ नज़र आते है।  लुब्ध, लुभना, लुभाना, लुभाया, लुभावना, लोभ, लोभी, लोभनीय, लोभित जैसे शब्द इसी लुभ् से बने हैं। 
लुभ् का ही एक रूप नजर आता है इंडो-यूरोपीय शब्द लुभ् यानी leubh में जिसका मतलब भी ललचाना, रिझाना, चाहना था। प्राचीन जर्मन भाषा ने इससे जो शब्द बनाया वह था lieb. प्राचीन अंग्रेजी में इससे बना lufu. बाद में इसने luba का रूप ले लिया। लैटिन में भी यह libere बनकर विराजमान है। बाद में आधुनिक अंग्रेजी में इसने love के रूप में अपनी जगह बनाई और प्रेम, स्नेह लगाव और मैत्रीभाव जैसे व्यापक अर्थ ग्रहण किए। यही नहीं, अंग्रेजी में बिलीफ और बिलीव जैसे शब्द भी इसी लुभ् की देन हैं जिनका लगातार अर्थ विस्तार होता चला गया। जाहिर है भाषा विज्ञान के आईने में कबीर की संकरी सी प्रेमगली ऐसा हाईवे नजर आता है जो सीधा खाला के घर तक जाता है।
...जहां काम है, लोभ है,और मोह की मार । वहां भला कैसे रहेनिर्मल पावन प्यार ।।
सी कड़ी में संस्कृत की एक अन्य धातु लल् भी है जिसमें अभिलाषी, इच्छुक, क्रीड़ा- विनोद का भाव आता है। जीभ लपलपाना भी इसमें ही शामिल है। लालायित शब्द इससे ही बना है जिसका मतलब होता है इच्छुक, उत्साहित आदि। हिन्दी का लार शब्द बना है संस्कृत के लाला से । प्यार और प्रेम की भावना का आर्द्रता से रिश्ता होता है। आकर्षण हो या अन्य खिंचाव , परिणति आर्द्रता ही है।
दुलार, दुलारना जैसे शब्द इसी कड़ी से बंधे हैं। दुलारा या दुलारी वही है जो स्नेहसिक्त है, जिसे प्यार किया गया है। पालन के साथ जो लालन शब्द जुड़ा है उसमें भी यही लाड़-प्यार का भाव है । जिसे प्यार किया जाता है वही है लाल । प्रिय, सुंदर, मनोहर , मधुर, आकर्षक, वैविध्यपूर्ण और क्रीड़ाप्रिय ही ललित है। देवी दुर्गा का भी एक नाम ललिता इन्ही भावों की वजह से है। लालित्य भी इससे ही बना है। आर्द्रता वाले भाव को और भी स्पष्ट करने वाला एक शब्द है लालस । यह बन है लस् धातु से जिसमें चमक , उद्दीपन, जगमग, शोभायित होना, किलोल आदि भाव शामिल हैं। हिन्दी का लालच इसी का रूप है। लालसा में एक किस्म की प्यास है। प्यास के साथ तरलता का रिश्ता है। लालसा के साथ इसीलिए तृप्त होने का संबंध है।  गौर करें कि लोभी के चेहरे पर लालच की चमक होती है। लालच के मारे लार टपकने जैसा मुहावरा भी इन्ही भावों के अंतर्संबंध को स्पष्ट कर रहा है।  

11 कमेंट्स:

Asha Joglekar said...

संकरी प्रेम गली से लोभ के हायवे तक का सफर बहुत बढिया लगा .
आपको पता ही होगा कि हम लोग मराठी में चिटठी के अंत में

कळावे, लोभ असावा ही विनंती
आपला या आपली

ऐसा लिखा करते थे । मतलब ये वाला लोभ तो अच्छा ही हुआ ।

Anonymous said...

अति सुंदर. हम जिनसे लभ करते हैं उनको नहीं बताएँगे, लाभ या लोभ के बारे में...आपके पोस्ट बहुत लाभदायक, लभप्रद, लाभदेह, लाभफ़हम हैं...

अलाभदास

दिनेशराय द्विवेदी said...

प्रसिद्ध ज्योतिर्विद भास्कराचार्य की पुस्तक लीलावती का मंगलाचरण स्मरण हो आया। उस में ल की बहुतायत है।

Arvind Mishra said...

लुब्धक एक तारा है ! मतलब हुआ प्रिय लगने वाला -बढियां जानकारी

Ghost Buster said...

ललिता का उद्गम और सम्बन्ध प्रिय, सुंदर, मनोहर, मधुर, आकर्षक, वैविध्यपूर्ण और क्रीड़ाप्रिय से है? आपने तो ललिता पवार जी की पूरी इमेज ही ख़राब कर दी. :-)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

इस लुभावनी पोस्ट के लिए बधाई। हम आगे भी लालायित रहेंगे इस शोध-श्रृंखला के लिए।

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्रारम्भ पर हार्दिक शुभकामनाएं!
(सत्यार्थमित्र)

Dr. Chandra Kumar Jain said...

वाह !
बहुत खूब पोस्ट है भाई.
लालसा...प्यास...तृप्ति पर
आपकी शब्द सम्पदा रास आई.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

कुश said...

कुछ दिनो से कक्षा में उपस्थिति दर्ज़ नही करा पाया.. अब आता रहूँगा..

रंजू भाटिया said...

बेहद रुचिकर जानकारी लगी यह ..शुक्रिया

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ललिता लालित्य, लवली सगे सँबँधी हैँ :)
लुब्धक तारा हमारे सूर्य का पिता है
उससे बडा और उसका अपना
सौरमँडल है ऐसा सुना है
अच्छी पोस्ट !
- लावण्या

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