Friday, September 19, 2008
विधवा-बेवा-विडो
भारतीय समाज में खासतौर पर हिन्दी क्षेत्र में जिस महिला के पति का निधन हो जाए उसका उल्लेख अखबारों और सरकारी दस्तावेजों में बेहद शर्मनाक तरीके से किया जाता है
क्या आप जानते हैं कि बोलचाल की हिन्दी के कुछ शब्द ऐसे हैं जिनके इस्तेमाल के तरीके पर आपत्ति जताते हुए इन पर रोक लगाने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सभी राज्य सरकारों को निर्देश दे चुका है। ये शब्द हैं विधवा, बेवा और विडो । विधवा हिन्दी-संस्कृत का है, बेवा उर्दू-फारसी का और विडो अंग्रेजी का , मगर तीनों ही शब्द हिन्दी में इस्तेमाल होते हैं। दिलचस्प यह भी कि इन तीनों में रिश्तेदारी है और ये एक ही मूल से जन्मे हैं।
भारतीय समाज में खासतौर पर हिन्दी क्षेत्र में जिस महिला के पति का निधन हो जाए उसका उल्लेख अखबारों और सरकारी दस्तावेजों में बेहद शर्मनाक तरीके से किया जाता है मसलन अमर शहीद....की विधवा या बेवा , जो बहुत आपत्तिजनक है। एक संस्कारी समाज द्वारा किसी विधवा स्त्री के लिए इस तरह का उल्लेख अच्छा नहीं कहा जा सकता । हद से हद यह कहा जा सकता है कि अमर शहीद ...की पत्नी....मानवाधिकार आयोग ने उक्त उदाहरणों पर ही आपत्ति जताई थी । संस्कृत में एक शब्द है धवः जिसका मतलब होता पति, परमेश्वर, मालिक आदि। धवः बना है संस्कृत धातु धू या धु ले जिसमें छोड़ा हुआ , परित्यक्त , एकांतिक, अकेला आदि। गौरतलब है जिसे त्याग दिया जाए वह अकेला ही होगा। हालांकि पति, मालिक या परमेश्वर के अर्थ में इसकी व्याख्या अकेले से न होकर एकमात्र के रूप में होगी। ईश्वर , पति या स्वामी एक ही होता है दो नहीं। महाभारत के पांच पतियों वाला प्रसंग अपवाद है। आप्टे के संस्कृत कोश के मुताबिक विधवा यानी-विगतो धवो यस्याः सा जिसका अर्थ हुआ जिसने अपने पति को खो दिया है । है।
भाषाविज्ञानियों ने अंग्रेजी के विडो के मूल में भी यही शब्द माना है। रूसी में इसका रूप है व्दोवा, ग्रीक में इदेओस, लैटिन में विदु, अवेस्ता में विथवा और फारसी में बेवा के रूप में यह मौजूद है। जिसकी पत्नी जीवित न हो उसके लिए हिन्दी में विधुर भी शब्द प्रचलित है जो इसी मूल से जन्मा है। यूं आपटे कोश में इसके कुछ अन्य भाव भी बताए गए है जैसे जिससे प्रेम करनेवाला कोई न हो, वंचित, विरह पीड़ा भोगनेवाला या वाली आदि। हिन्दी का अवधू या अवधूत भी इसी मूल का है। यह शब्द बना है धूत से जिसका मतलब भी परित्यक्त , त्यागा हुआ ही होता है अर्थात वह सन्यासी जिसने सांसारिक बंधनों तथा विषयवासनाओं का त्याग कर दिया हो ।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:11 AM
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9 कमेंट्स:
बहुत अच्छा विश्लेषण रहा. आभार इस जानकारी का.
इस्तेमाल से शब्द सामाजिक रूप से गंदे हो जाते हैं। बाद में किसी नए शब्द से प्रतिस्थापित कर दिये जाते हैं। यह विधवा और विदुर के साथ भी हो रहा है।
आप शब्दों के कुशल चितेरे हैं। ...बढ़िया पोस्ट। विधवा की स्थिति सभी भाषाओं (और संस्कृतियों में)एक सी लगती है।
आभार!
इस शब्द के भी सही अर्थ यही जाने ..शुक्रिया
शब्दों के सफर में हर बार एक नया पड़ाव...आज भी नए अर्थ समझने को मिले.. आभार
आभार !
ज्ञान वर्धन के लिए
इस बार भी आभार.
...हमारे निराला जी ने तो उन्हें
'इष्ट देव के मन्दिर की पूजा'
के रूप में भी देखा है....!
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
देखिये ना,
कहाँ कहाँ से शब्द जुडते जाते हैँ !
- लावण्या
मित्र, मेरा ब्लाग पर टहल करने के लिए शुक्रिया। मैं हिन्दी कुछ ख़ास नहीं जानता, लेकिन पढ़ सकता हूँ। मैं ने भी टहल करने के वक्त आपका ब्लाग देखा। आपका ब्लागको भी ब्लागरोल में रख दिया। मुझे उम्मीद है की आगे भी बढ़ेंगे मित्रों की तरह। ग़लतियां के लिए माफ़ी मांगता हूँ॥ -- अबू ज़र मुहम्मद अक्कास (बंगला में आबु जार मोहाम्मद आककास)
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