Wednesday, November 12, 2008

पल्लवी ने चलाया तांगा !! [बकलमखुद-76]

pnesbee

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने  गौर किया है। ज्यादातर  ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल  पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं।   बकलमखुद के पंद्रहवे पड़ाव और चौहत्तरवें सोपान पर मिलते हैं पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-

ठी क्लास से हम शिवपुरी आ कर रहने लगे! पूरे पांच साल हम मम्मी के साथ शिवपुरी में रहे!पापा ट्रांसफर पर जावरा,रतलाम,नीमच घूमते रहे!यहाँ हमारा एडमिशन सरस्वती शिशु मंदिर में हुआ...उस गुंडे माहौल से निकल कर सीधे गुरुकुल वाले माहौल में आगये!फिर आगे के दिनों में थोडा हम शरीफ बने,थोडा स्कूल के बच्चे गुंडे बने! कुल मिलाकर हम सब एक दूसरे के साथ ढल गए! वो दिन जिंदगी के सबसे बेहतरीन दिन थे!
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र में चाचा की एक जेंट्स साइकल थी..पैर नहीं पहुंचते थे पैडल तक, तो कैंची चला चला कर पूरा शहर नापते फिरते थे! स्कूल की दो बिल्डिंग थी..एक पास और एक बहुत दूर! जब दूर वाली बिल्डिंग में थे तो ताँगे से स्कूल जाते थे! दो ताँगे थे...एक को खयाली चलाता था ,एक को चैपू! खयाली हमें फूटी आँख नहीं सुहाता था,बच्चों के बैठने के बाद पीछे एक रस्सा बाँध देता था जिससे कोई बच्चा गिर न जाए! बंधे से बैठे रहते!मगर चैपू बहुत क्यूट था...उसके राज में हम कभी सीट पर नहीं बैठे...हमेशा पैर रखने वाली जगह पर लटक कर जाते थे या घोडे के ठीक पीछे उसकी काठी पर बैठते थे! जब खाली रोड आ जाती तो जिद करके लगाम अपने हाथ में ले लेते और मजे से तांगा चलाते! सच तांगा चलाने में जो मज़ा आया वो कभी किसी गाडी को चलाने में नहीं आया!
ब स्कूल पास होता था तो हमें पैदल ही स्कूल भेजा जाता! मैं और गड्डू जरा सी दूर पैदल चलते फिर अनाज मंडी आ जाती जहां से कई बैलगाडियां अनाज की बोरियां लादकर स्कूल के रास्ते से ही आगे जाती थीं! बस लपक कर किसी भी बैलगाडी पर पीछे लद जाते हम भी! बेचारा गाडीवाला गाली बकता पीछे आता...हम भाग जाते! जैसे ही वो आगे जाता , हम वापस गाडी पर! आखिर बाद में वो भी शायद सोच लेता कि दो बोरियां और सही! मम्मी स्कूल से कभी बंक नहीं मारने देतीं ,पेट दर्द से लेकर सर दर्द, दस्त सब बहाने फेल थे! कई बार तेज़ बारिश में स्कूल में केवल दो तीन ही बच्चे आते थे और उनमे हम दोनों बहने ज़रूर होते थे! स्कूल में प्रार्थना के समय सभी बच्चों से आँख बंद रख्ने को कहा जाता....मगर मैं कभी दो मिनिट के मौन धारण में आँख बंद नही रख पाती थी तो उस एक घंटे की प्रार्थना में तो क्या ही रखती! खूब डांट पड़ती...एक आचार्यजी पूरे टाइम मेरी आँखें बंद करवाने के लिए मुझे आँखें दिखाते रहते!लेकिन आँख खोलने का एक बहुत बड़ा फायदा था....

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"मैं पढाई में हमेशा अच्छी रही इसलिए सारी शैतानियाँ धक जाती थीं! ."

मारे स्कूल से लगा हुआ एक नाला था जिसमे से होकर सूअर बेखौफ हमारे स्कूल में प्रार्थना में शामिल होने चले आया करते थे....बाकि बच्चों को तब पता पड़ता जब कोई सूअर अनुशासन को तोड़ते हुए सीधे बच्चों की लाइन में घुस जाता था...और चारों तरफ़ अफरा तफरी मच जाती!लेकिन हम आँखें खुली रखते थे और सूअर को देखकर पहले ही दांये बांये हो जाते थे! उन दिनों खूब बेशरम की संटियाँ भी खाईं....! मैं पढाई में हमेशा अच्छी रही इसलिए सारी शैतानियाँ धक जाती थीं! पढाई के अलावा खोखो, कबड्डी,रेस, डांस,गाना,नाटक,वादविवाद,एकल अभिनय,भाषण.....सभी चीज़ों में भाग लेती थी! उस समय पुरस्कार के रूप में स्टील के बर्तन मिलते थे! घर में बर्तनों का ढेर लग गया था! स्कूल से वापस आकर सीधे खेलने चले जाना! उस समय साइकल का टायर चलाना, सितोलिया,गिल्ली डंडा बहुत खेलते थे! अगर रात को कभी लाईट चली जाती तो एक ख़ुशी का शोर उठता कॉलोनी में और पलक झपकते सारे बच्चे घर के बाहर! ठंडी रेत पर खेलना खूब भाता था!
पापा साथ में नहीं रहते थे और कोई भाई भी नहीं था तो घर के बाहर के सारे काम हम ही करते थे!,सब्जी लाना,आटा पिसवाना,बैंक के काम करना सब कुछ आता था! और घर के काम भी बाँट रखे थे मम्मी ने, तो खाना बनाना,झाडू पोंछा वगेरह घर के सारे काम भी आते थे! हांलाकि मुझे घर के कामों में कभी मज़ा नहीं आया! उस वक्त ये सोचकर बड़ा गर्व होता था कि बाकी सहेलियों को कहीं भी जाना हो तो उनके भाई छोड़ने जाते थे...हम हर जगह अकेले जाते थे!अपने आप को बड़ा बहादुर समझते थे!अब सोचती हूँ बहुत अच्छा किया मम्मी ने हर काम सिखाया! बाद में ये! चीज़ें बहुत काम आयीं! जब ग्यारहवी क्लास में आई तो पापा का ट्रांसफर मंडला हो गया...हम सब वहाँ चले गए! ग्रेजुएशन वहीं से किया! वहाँ
म भी जाने लगे! कमर पर केरोसिन की कट्टी बांधकर तैरना सीखा!जिस दिन ऊपर से नदी में बिना कट्टी के कूदी थी उस दिन मेरी ख़ुशी का पारावार न था! आखिर हमने अच्छे से तैरना सीख लिया! इसके बाद नयी नयी चीज़ें सीखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सिलाई,कढाई, केक बनाना,आइसक्रीम बनाना, टायपिंग सीखी! फिर शास्त्रीय संगीत सीखने जाने लगे! बाद में टेबल टेनिस,बेडमिन्टन ,होंर्स राइडिंग सीखी! एक बार घोडे ने ऐसा पटका कि सचमुच तारे दिख गए! हेलमेट न लगाने के बावजूद कहीं ज्यादा चोट नहीं आई!पिछले एक साल से गिटार सीख रही हूँ....और बहुत सी चीज़ें to-do लिस्ट में हैं! जिन्हें करने के लिए बहुत बड़ी जिंदगी पड़ी है! अब आगे कॉलेज के किस्से....

22 कमेंट्स:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पल्लवीजी
" होनहार बिरवान के होत चिकने पात "
खुली आँखोँ से सब कुछ परखना और बहादुरी की नीँव बचपन मेँ पडी थी जिसे हम खूब आनँद लेकर पढ रहे हैँ ..
आगे की कडी का इँतज़ार रहेगा ..
स स्नेह,
--लावण्या

Dr. Chandra Kumar Jain said...

"मैं पढाई में हमेशा अच्छी रही इसलिए सारी शैतानियाँ धक जाती थीं!"

ये तो बड़ी बात है
और प्रेरणा भी.
=================
शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

बहुत अच्छा चल रहा है. बचपन हो तो ऐसा !
बस ११ वीं से सीधे ग्रेजुएशन... बीच में लगा कि आप छलाँग मार गई. लग रहा है की जल्दी ख़त्म ना हो जाए ! रोचकता लालची बना रही है :-)

जितेन्द़ भगत said...

टायर चलाना, सितोलिया,गिल्ली डंडा- आपने तो बचपन के सारे मजे लि‍ए हैं। मॉं ने भी आपको काफी सपोर्ट कि‍या हर तरह से। आगे की आत्‍मकथा का इंतजार रहेगा।

Udan Tashtari said...

हा हा, मजेदार.. बच ही गई पढ़ाई में ठीक थी इसलिये..वरना तो सोचो.. :)

आगे कालेज जीवन का इन्तजार है..रोचक ही होगा. कौन से कॉलेज से पढ़ी हो जबलपुर में. :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

दो दिन कोटा से बाहर रहने का नुकसान+पल्लवी त्रिवेदी का पहला बकलम खुद नहीं पढ़ पाए थे आज फीड रीडर से पढ़ा। उन के बारे में जानना रोचक लगा। मुरैना और शिवपुरी दोनों बारां जिले से लगे हुए मध्यप्रदेश के क्षेत्र हैं। मुरैना कभी नहीं देखा। लेकिन शिवपुरी अपने छोटे भाई के लिए दुलहिन देखने गया था। बाद में उसे ब्याहने भी गया। और फिर एक दो बार और। यादें ताजा हो गई। 74 में जब वे जनमी मैं बीएससी का विद्यार्थी था। लेकिन पल्लवी जी का विद्यार्थी जीवन हमारे जीवन से बहुत भिन्न नहीं था। अच्छा लगा पढ़ कर।

विष्णु बैरागी said...

ऐसी बातों पर आश्‍चर्य करने वालों को, ग्रामीण पृष्‍ठभूमि वाले असश्‍चर्य से देखें किन्‍तु अपने बचपन को जिस मुग्‍धता से यहां प्रस्‍तुत किया गया है वह अनूठा है । 'कण्‍टेण्‍ट' पर 'कहन' भारी है - खूब, खूब भारी । मानो सरपट दौडती नदी के साथ दौड रहे हों ।

Gyan Dutt Pandey said...

पर्सनालिटी में इतनी विविधता!
चलें, अब ईर्ष्या करें!

रंजू भाटिया said...

बहुत रोचक लग रहा है आपके बारे में जानना ..

Alpana Verma said...

आप के बारे में जानकर अच्छा लगा..खूब एन्जॉय किया आपने ११विन तक सफर --अब आगे की दास्ताँ भी पढने के इच्छुक हैं--जल्दी लिखियेगा---'टॉम बॉय 'जैसी रही होंगी आप ! :)-सही profession चुना है आप ने--:)

कुश said...

आप तो खींच के बचपन में ले गई...

Sanjeet Tripathi said...

वाकई बचपन हो तो ऐसा!

ज्ञानदत्त जी से सौ फीसदी सहमत!

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन। इत्ते सारे गुण! शानदार। इनके उपयोग होते रहें! आगे की किस्त का इंतजार है।

डॉ .अनुराग said...

अपने बारे में लिखना जैसे कई चीजों को खंगालना है....निर्ममता से .तटस्थता से ....मुश्किल काम है न !पर तुम्हे जितना जाना है उतना गर्व हुआ है दोस्ती पर........
एक तांगा उसमे ओर जोड़ लेते है.....

Shastri JC Philip said...

बहुत खूब!! ग्वालियर से लगभ 120 किलोमीटर दूर शिवपुरी मैं अकसर जाता था. वे यादें ताजी हो गईं!!

रंजना said...

लावण्या दी की बात से सहमत हूँ.....होनहार बिरवान के होत चीकने पात...

आनद आ गया पढ़कर .अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.

Shiv said...

बहुत खूब!
पढ़कर लगा जैसे किसी बच्ची को वो सब कुछ करते हुए देख रहे हैं, जो आपने लिखा है. आपके लेखन का जवाब नहीं. आगे की कड़ी का इंतजार है.

Neelima said...

पल्लवी जी , आनंद आया पढकर ! टु डू लिस्ट जल्द पूरी कर लेने के लिए शुभकामनाऎं ! अच्छा लगा पढकर 1

Anonymous said...

बहुत दिन बाद आपने गिल्‍ली-डंडे, कंचे और पतंग की याद दिलाई। बेशरम की डंडी याद करके खूब हंसा लेकिन ये नहीं मालूम कि सितोलिया क्‍या होता है। जानने की उत्‍सुकता है। शायद मैं किसी और नाम से जानता हूं। अगर समय मिले तो ज्ञान दीजिएगा।

कंचन सिंह चौहान said...

वाह जी..! आप तो सर्वगुण सम्पन्न हो गईं..स्तरियोचित एवं पुरुषोचित सारे गुण डेवलप कर लिये आपने तो...!

ami said...

hello

Unknown said...

महोदय नमस्कार इस ब्लॉग के रूप में आप का प्रयास सराहनीय है मुझे आपके इस ब्लॉग का अध्ययन करके अत्यंत प्रसन्नता हुई रब से दोआ है कि आप इसी प्रकार हिंदी की सेवा करते रहें /

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