Saturday, November 1, 2008

मुंबइया श्याने की डेढ़ अकल...[सयाना-1]

Diviner2
reaper
क विरोधाभास देखिये...विज्ञान और अंधविश्वास एक ही मूल से जन्मे हैं। तर्क से ही दोनों में फर्क होता है।
याना एक ऐसा लफ्ज है जिसे बचपन से जवानी तक हम अपने लिए सुनना ज़रूर चाहते हैं मगर सयानेपन की सिफत पैदा करते करते करते बुढ़ापा आ जाता है। दुनिया सिर्फ इस बुढ़ापे पर तरस खाकर हमें सयाना मान लेती है और हम दुनिया के इस सयानेपन को कभी नहीं समझ पाते और हमेशा उसे कोसते रहते हैं। बहरहाल, सयाना शब्द कहां से आया?
याना हिन्दी में भी है और उर्दू में भी। यह शब्द उपजा है संस्कृत के ज्ञान में सं उपसर्ग के मेल से। संज्ञान का अर्थ हुआ अच्छी तरह जाना हुआ, समझा हुआ। जिसे दुनिया का सम्यक बोध हो, जिसकी अनुभूतियां सचेत हों वह । इससे बना हिन्दी का सयान शब्द जिसका मतलब भी समझदारी, बुद्धिमानी और चतुराई है और फिर बुद्धिमान और चतुर के अर्थ में बना सयाना । आमतौर पर वयस्क अवस्था होने पर भी मनुश्य को सयाना कहा जाता है । जाहिर है समाज ने अनुभव से यह जाना है कि वयस्क होने पर बुद्धि आ ही जाती है। शादी के संदर्भ में आमतौर पर कहा जाता है- बेटी सयानी हो गई है ....अभिप्राय उसके  विवाहयोग्य होने से ही होता है। इसी तरह गांवों में आमतौर पर प्रौढ़ अथवा बुजुर्गों को सयाना कहा जाता है । वजह वही है -एक खास उम्र के बाद यह मान लिया जाता है कि इसकी बुद्धि विकसित हो चुकी है और व्यावहारिक अनुभवों से भी उसने काफी ज्ञान जुटा लिया होगा।
59896-004-BCC12A62 बदलते वक्त में ये पुरोहित ही तंत्र-मंत्र के जरिये समाज के अंधविश्वास का फायदा उठाने के लिए टोना-टोटका करने लगे
गांव - देहात में झाड़-फूंक करने वाले के लिए भी सयाना शब्द खूब प्रचलित है। गोंडी समेत कई जनजातीय भाषाए आर्यभाषा परिवार की नहीं हैं इसके बावजूद यह शब्द इन भाषाओं में है। साफ है कि सदियों पूर्व आर्यों और जनजातियों के बीच भाषायी संपर्क ज़रूर होगा। गोंडी में ही सयाने अर्थात झाड़फूंक करनेवाले के लिए एक और शब्द है बैगा । मेरे विचार में यह शब्द भी आर्य भाषा परिवार से गोंडी बोली में गया होगा। मूल रूप में यह शब्द है विज्ञ अर्थात् विद्वान, बुद्धिमान, चतुर, चालाक आदि । आदिवासी गोंड समाज में बैगा का बहुत मान सम्मान है। बैगा शब्द झाड़फूंक करनेवाले के अर्थ में रूढ़ हो गया मगर मूल रूप में समाज के सर्वाधिक अक्लमंद, बुद्धिमान और विचारवान व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता रहा होगा । कालांतर में आदिवासी समाज के कर्मकांड करानेवाले के लिए बैगा शब्द प्रयोग हुआ क्योंकि साधारण व्यक्ति को रीति-संस्कारों की जानकारी नहीं होती इसीलिए पुरोहित का सम्मान होता है। बदलते वक्त में ये पुरोहित ही तंत्र-मंत्र के जरिये समाज के अंधविश्वास का फायदा उठाने के लिए टोना-टोटका करने लगे । इस किस्म के चतुराईपूर्ण कर्म के लिए भी विज्ञ से बना बैगा शब्द बहुत सटीक था। आदिवासियों में एक जाति का नाम ही बैगा है जो मूलतः पुरोहित ही होते हैं।
क विरोधाभास देखिये , जिस ज्ञा धातु में निहित जानकारी, समझ, बोध आदि अर्थ विज्ञान जैसे शब्द में एकाकार हो रहे हैं जो इसी ज्ञा से जन्मा है। उसी  धातुमूल से बने विज्ञ से बना है बैगा जिसके एक छोर पर चाहे समझदारी जुड़ी हो मगर दूसरा छोर अंधविश्वास की गर्त में जाता नज़र आता है। यह विज्ञ की अवनति है। विज्ञान और अंधविश्वास एक ही मूल से जन्मे हैं। तर्क से ही दोनों में फर्क होता है। शब्दों की अवनति के संदर्भ में इस सयाना शब्द पर गौर करे। हिन्दी में आजकल ज्यादा अक्लमंदी या चालाकी दिखाने के संदर्भ में स्यानपंथी शब्द चलता है । बुंदेली-मालवी के बिगड़े उच्चारणों में इसे अब स्यानपत या स्यानपती भी कहा जाता है यानी ज्यादा चालाकी दिखाने की राह पर चलना। नेपाली उच्चारण की तर्ज पर मुंबईया ज़बान में श्याना, श्याणा, श्याने शब्द है। इसका मतलब भी चालाक व्यक्ति से ही है। मराठी में सयाना शब्द का रूप है शहाणा। एक उपनाम भी है शहाणें। ज़रूरत से ज्यादा समझदारी दिखानेवाले के लिए हिन्दी उर्दू मे डेढ़अक्ल शब्द चलता है, उसी तर्ज पर मराठी में भी दीड़शहाणा शब्द प्रचलित है। हिन्दी में भी डेढ़ सयाना जैसा मुहावरा प्रचलित है जिसका अर्थ है बहुत चालाक बनना।                                                     -संशोधित पुनर्प्रस्तुति 

आपका शुक्रिया-
सफर की पिछली श्रंखला [क्षुद्रः1-5] पर जिन साथियों की चिट्ठियां मिलीं उनमें सर्वश्री दिनेशराय द्विवेदी, समीरलाल, लावण्या शाह, आशा जोगलेकर, ज्ञानद्त्त पांडेय,डॉ चंद्रकुमार जैन, डॉ शैलेष ज़ैदी, अनूप शुक्ल, विष्णु बैरागी, अभिषेक ओझा, विजय गौर, नारदमुनि, सतीश सक्सेना ,अशोक पांडेय , सीमा गुप्ता, धीरेश सैनी, एसबी सिंह, संगीत टिकरिहा, सुमंत मिश्र , मनीष गुप्ता,संजीत त्रिपाठी, अविनाश वाचस्पति,अरुण आदित्य , अरविंद मिश्रा, गगन शर्मा, पल्लव बुधकर, अनिल यादव, पंकज श्रीवास्तव, सिद्धेश्वर और अनिल पुसदकर हैं।
आप सबका शुक्रिया । बने  रहें सफर में
@पंकज श्रीवास्तव,सिद्धेश्वर, अनिल यादव
मित्रों , ज्ञान की साझा संस्कृति से ही हम आगे बढ़ रहे हैं। अगर आपको आनंद आ रहा है तो मेरी मेहनत सफल है। बने रहिए।


21 कमेंट्स:

संगीता पुरी said...

अच्‍छा चा रहा है। लिखते रहें। ज्ञान बढाते रहें।

Anonymous said...

आपके श्याणापट्टी वाले बोलबचन पसंद आए.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप सही कह रहे हैं। कुछ शब्दों का व्यंग्यात्मक प्रयोग बढ़ जाता है तो धीरे धीरे वे विपरीत अर्थ देने लगते हैं। अनेक बार उपयोग से भी अर्थ बदल जाते हैं। जैसे आज कल अगला और पिछला शब्दों का प्रयोग अनेक स्थान पर उलट गया है।

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छा! स्यान/श्यान में विस्कासिटी ज्यादा होती है! चतुर ज्यादा गाढ़ा होता है!

अविनाश वाचस्पति said...

एक सयाना

दो सयाना

तीन सयाना

साढ़े तीन सयाना



नहीं समझ आये
जिनको

वे याना हो जायें

समझ आ जायेगा

याना का अर्थ

वायुयान में विचरना



वो याना याना हो गया

दिल याना याना हो गया

मन याना याना हो गया

याना कब यानी हो गया

जिसने समझ लिया वो

सबसे सयाना हो गया।

युग-विमर्श said...

आपके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि आप बड़े ही धैर्य के साथ अपनी पूरी बात कहते हैं. ईश्वर आपके ज्ञान में नित्य प्रति समृद्धि करता रहे.

art said...

आपआपकी shaili बहुत ही naveen लगती है मुझे .....बहुत ही namrata और विनय jhalakta है aalekh men .....

Batangad said...

बहुत दिनों बाद आज सयाना बनने का मौका लगा। आपने तो ब्लॉग का कलेवर ही बदल दिया है। बढ़िया

Vivek Gupta said...

अत्यन्त सुंदर

मीनाक्षी said...

बहुत दिनों की गैरहाज़िरी के बाद सफ़र में फिर से शामिल होने आए हैं...हमेशा की तरह नई जानकारी मिली...सयाने शब्द से जुड़े कई अर्थ जानने को मिले...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सफ़र के ज्ञान से हम भी सयाने हो गए
कभी थे लफ्ज़ अब लफ्ज़ों के माने हो गए
================================
आपको पढ़ना निरंतर मूल्य के नए शिखर
हासिल करने के समान है....शुक्रिया अजित जी.
=====================================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

समीर यादव said...

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई इलाकों में अभी भी जो झांड़ - फूंक और मंत्रोच्चार कर इलाज करते हैं उन्हें बैगा, गुनिया कहा जाता है. बैगा अपने आप में एक सम्पूर्ण अर्थ लिए शब्द है, यह जानकर प्रसन्नता हुई. ज्ञान की गंगा बहाते रहिये.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

स्याने बॅँबइया बोली मेँ
गुस्सा और अचरज भी
प्रदर्शित किया जाता है !
वैसे ही यहाँ कुल = COOL
को कई तरह से प्रोयोग करते हैँ :)
- लावण्या

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! सयानी पोस्ट!

Abhishek Ojha said...

नई तस्वीर आज ही देखी बड़े सयाने लग रहे हैं !

Udan Tashtari said...

भई जितना बढ़िया ज्ञान देते हैं, उतनी ही उम्दा अपनी तस्वीर भी लगा है आपने प्रोफाईल में.

हमने तो आपको हँसते हुए साक्षात देखा है फिर इसमें आप मुस्करा क्यूँ रहे हैं?? किसी ने कुछ कहा क्या?? हा हा!!

वाकई, बहुत जानदर पोस्ट!!!

Smart Indian said...

कुछ दिन व्यस्त क्या रहा, आपने तो नयी पोस्ट्स की झाडी ही लगा दी. खैर, क्षुद्र से सयाने होने तक पढता रहा. धन्यवाद!

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेशक
बिल्कुल ठीक
पूरी स्याणपत की नब्ज टटोलली है आपने
बधाई

Asha Joglekar said...

शहाणपण देगा देवा
रोज सफर वाचावा ।

Baljit Basi said...

१ पंजाबी में सयाना की इतनी दुर्गत नहीं हुई. सयाना का एक रूप सुजान भी है. सयाना का किर्या रूप 'स्यानना' भी बन गिया जिस का मतलब पहचनाना है. पहचान को 'सयान' बोलते हैं.
२.सयाना का विपरीत 'निआना' भी है जिस का मतलब बचा है . कम अक्ल वाले को भी कह दिया जाता है.

अजित वडनेरकर said...

बलजीत भाई,
खूब सफर हो रहा है आपका। सुजान पंजाबी ही नहीं अवधी, मालवी, बृज, राजस्थानी में भी खूब प्यार से इस्तेमाल होता है। बृजभाषा के प्रसिद्ध कवि, जो रीतिमुक्त धारा के अनूठे कवि थे, की प्रेमिका का नाम सुजान था, जो खुद भी कविता करती थी। यह संज्ञान का नहीं सु-ज्ञान का अपभ्रंश रूप है। संज्ञान का सयानापन इसी बात का सबूत है। सुज्ञान से बने सुजान में बुद्धिमान मनुष्य का भाव है।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

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