Friday, March 14, 2008

हा हा...फुरसतिया, व्हाट एन एटीट्यूड ? [ बकलमखुद -4]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। इस सिलसिले की शुरुआत कर रही हैं कुछ हम कहें जैसा खिलंदड़ा ब्लाग चलाने वाली अनिता जी । बकलमखुद में अब तक आप इस सिलसिले की तीन कड़ियां पढ़ चुके हैं। देखते हैं आगे का हाल आखिरी कड़ी में -


...और हम, जैसे बच्चे के हाथ में स्लेट !


अब कभी कभी मैने लेख भी लिखने शुरु किए। हमारा बिल्कुल ऐसा हाल है जैसे बच्चे के हाथ में स्लेट पकड़ा दी जाए और वो आड़ी तिरछी लाइनें लगा कर खुश होता रहे अपनी ही कृति पर, उस पर जब लोग भी आ कर पीठ थपथपा जाएं तो सोने पर सुहागा हो जाता है। दूसरों के ब्लॉगों से टिप्पणियों की रस्सी पकड़ कर हम जब ब्लागविश्व में घूमने लगे तो पता चला कि यहां तो एक से बढ़ कर एक महारथी बैठे हैं।

ब्लाग घुमक्कड़ी में चारों खाने चित्त

जब हमने ब्लागरी या ब्लागगीरी शुरू की तो अचानक खुद को फुरसतिया पर पाया। अनूप शुक्ला जी के ब्लोग का नाम तो हमेशा जेहन में रहा पर उनका नाम मुझे बहुत बाद में पता चला। उनके ब्लॉगों का नाम देख कर ही चारों खाने चित्त हो गये…।:) "फ़ुरसतिया: हम तो लिखबें कोई हमार का करिबे"…हा हा हा, व्हाट एन एटीट्यूड ? फ़िर उनके लिखने की शैली, शब्दों का चयन भी हमें बहुत अच्छा लगा, यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इनका भी सेंस ओफ़ ह्युमर बहुत स्ट्रोंग है।

ज्ञानधाम पर फुरसतिया नोक-झोंक

ज्ञान जी के चिठ्ठे पर आलोक जी और अनूप जी की नोंक झोंक हमें बहुत भाती है। हम ज्ञान जी के लेख से ज्यादा उनको मिली टिप्पणियों का आंनद लेते हैं। वैसे ज्ञान जी की खूबी ये है कि वो साधारण से साधारण सी बात को भी बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं, प्रेजेंटेशन स्किल्स बढ़िया हैं। पकंज जी के वनस्पति ज्ञान के भी हम कायल हैं। बसंत आर्या भी बड़ा रोचक व्यंग लिखते हैं पर बहुत कम लिखते हैं या हमें पता नहीं चलता। घुघुती जी की वो पोस्ट जिसमें उन्होने व्यंग्यात्मक रूप से औरतों को नेट पर 33% आरक्षण देने की मांग की थी, मेरी सबसे पसंदीदा पोस्टों में से एक है। अब क्यूं कि हमें भाषा में भी रुचि है तो शब्दों का सफर भी पढ़ना ज़रूरी है । यूनुस जी , मनीश जी के ब्लोग से गानों का आनंद उठाते हैं।

शास्त्रीजी - रविजी के तो कहने ही क्या...

शास्त्री जेसी फ़िलिप्स जी का ब्लोग तो ज्ञान का भंडार लगता हैं। शुरु-शुरु में उनसे भी ब्लोगिग के बारे में कई प्रश्न पूछे और मुझे बहुत खुशी होती थी देख कर कि इतने वरिष्ठ चिठ्ठाकार तुंरत उत्तर देते हैं। मेरे ब्लॉग को संवारने में सागर जी ने खुशी खुशी बहुत मेहनत की। रवि रतलामी जी के ब्लॉग का तो क्या कहना, उनकी कीर्ति तो जग जाहिर है, हम भी उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सके। पुनीत का भी लिखने का अंदाज हमें अच्छा लगता है, हांलाकि वो अब कम लिखता है। किस किस की बात करे।

मुंबई की धाकड़ ब्लॉग चौकड़ी

हमारी मुंबई की धाकड़ ब्लॉग चौकड़ी यानी प्रमोदसिंह अज़दक, अभय तिवारी निर्मल आनंद, डायरी वाले अनिल हिन्दुस्तानी रघुराज और ठुमरी वाले विमल भाई के क्या कहनें। विमलजी भी संगीत धनी हैं और सुर के पूरे। उनकी गायकी तो हम अपने ब्लाग पर भी सुना चुके हैं। अभय जी संजीदगी के साथ जितना अपने आसपास नज़र रखते हैं उससे ज्यादा खुद में गहराई से उतरते हैं। अनिलजी और अज़दक को मैं गंभीरता से पढ़ती हूं। पूरे ब्लाग जगत से मुंबई गुम हो जाए अगर ये न लिखें। मेरे पसंदीदा चिठ्ठों की लिस्ट तो बहुत लंबी है।

चैटियाना और चिठियाने की जुगलबंदी

हमारी आदत ये है कि हम जिस नये चिठ्ठे पर जाते हैं और अगर वो हमको अच्छा लगता है तो फ़ौरन सबस्क्राइब कर के आ जाते हैं ताकि हमें ई-मेल में ही वो पोस्ट पढ़ने को मिल जाए। कई बार हम चैटिया भी रहे होते है और साथ में किसी न किसी चिठ्ठे की पोस्ट भी पढ़ रहे होते हैं । पोस्ट अपने ही मेल में पढ़ने के बाद जा कर टिपिया आते हैं। ब्लोगवाणी पर जाने के लिए हमें अपने ब्लॉग पर जाना पड़ता है इस लिए ऐसा करते हैं। दूसरी हमारी आदत ये है कि हमारे ब्लोग पर जो भी टिप्पणियां आती हैं हम उनका ई-मेल भेज कर धन्यवाद करते हैं इससे पर्सनल टच रहता है। हम ऐसा कर सकते हैं क्यूं कि टिप्पणियों की संख्या ज्यादा नहीं होती, दूसरों के लिए ऐसा करना शायद संभव नहीं । कभी कभी जब किसी ने टिप्पणी की हो और हमें उसका ई-मेल पता न मिले तो मन में एक फ़ांस रह जाती है कि हम ठीक से धन्यवाद नहीं कर पाए।

अब हौं लागी लगन, निसदिन ब्लागिंग गुनन

अंतत: यही कहेगें कि कुल मिला कर हमें ब्लॉगर बन कर बहुत अच्छा लग रहा है। हमें अब इसकी इतनी लत लग गयी है कि बाकि सब लतें छूट गयीं, टीवी के आगे धूनी रमाए महीनों हो गये। मेरे दक्षिण भारतीय दोस्त जिनसे मैं चैटियाती थी धीरे धीरे सब छूट गये क्यूं कि अब मुझे ब्लॉग जगत से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती। यहां भी इतना अपनापन, इतना स्नेह पाया है, इतनी मानसिक और भावनात्मक तृप्ति पायी है कि मेरी आत्मा तक रसविभोर हो उठी है। मुझे पहली बार लग रहा है कि मै समझती रही कि मुझे मनोविज्ञान विषय से ज्यादा कुछ प्यारा नहीं पर अब लगता है कि नहीं असल में हिन्दी भाषा मुझे आत्मसंतुष्टि देती है, मनोविज्ञान भी मुझे प्यारा है पर वो जीवनयापन का जरिया है असली खुशी मुझे हिन्दी से मिलती है।

इतनी दृष्टि हमें देना दाता....

ब्लॉग जगत पर मुझे रियल दुनिया और ऑर्कुट की दुनिया से भी ज्यादा अपनापन मिला है, मान सम्मान मिला है , भगवान से प्राथना करती हूँ कि जब तक जिन्दा रहूँ आंख की रोशनी इतनी बनाए रखें कि ब्लॉग दिखाई दें और उंगलियां की बोर्ड पर चलती रहें। उससे भी ज्यादा जरूरी है कि भगवान करे ब्लॉग जगत पर मेरे खूब दोस्त बनें और ये दोस्ती कालजयी हो। [समाप्त]

[ ऊपर चित्र में अनिताजी, मीनाक्षी जी और आशीष महर्षि ]

इस पोस्ट में नेट की सुस्त रफ्तार के चलते हम साथियों के हाइपरलिंक और तस्वीरें नहीं लगा पा रहे हैं। इसके लिए हमने क़रीब एक घंटा इंतजार भी किया पर बात बनी नहीं । हमें इसका अफ़सोस है । आपकी चिट्ठियों का हाल और बाकी बातें फिर...

21 कमेंट्स:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अनिता जी
बहुत बढिया रहा आपकी जीवन यात्रा के बारे में पढ़ना ..
.अजित भाई साहब का धन्यवाद जो हम आप जैसी खुले और साफ दिल की व्यक्ति से मिल पाये ..
दूर से नही...करीब से ! :-)

आगे भी जीवन , खुशहाल रहे ...यही शुभकामना सहित,
स स्नेह,

-- लावण्या

ghughutibasuti said...

आपकी सभी इच्छाएँ पूरी हों । मुझे भी याद रखने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती

अनूप शुक्ल said...

नाम देख कर ही चारों खाने चित्त हो गये…। अरे, कहूं चोट ऊट तो नहीं लगी! आलोक पुराणिक और फ़ुरसतिया ज्ञानजी के अखाड़े में मौज करते रहे। ज्ञानजी मारे जलन के अपना दुकान खोलते ही नहीं। क्या करें? वैसे आपकी ई बात काबिले अमल है कि जो टिपियाये उनको मेलियाया जाये। आपका ई सफ़र बहुत सुहाना लगा। शानदार च जानदार। वैसे आपको ई बताइये कि आपको हमारी और आलोक पुराणिक की नोक-झोंक में मजा काहे आता है? ई मजा लेना कौनो अच्छी बात है। बताइये! इसका मनोवैज्ञानिक अध्ययन करके बताइये। अजित जी बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं कि उनके प्रयास से आपका सफ़र हमे पढ़ने को मिला।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आत्म कथ्य से आप के बारे में बहुत कुछ जाना। फिर भी लगा बहुत कुछ जानना शेष रह गया।

Sanjay Karere said...

अजित भाई ये आइडिया कहां से उड़ाया? अब हमने तो लिखना बंद कर दिया है क्‍योंकि सब तो यहीं आकर पढ़ने में लगे रहते हैं...हमें कौन पढ़ेगा.. बु हू हू :(

पर है बहुत ही उम्‍दा पहल... आपका शुक्रिया

Dr. Chandra Kumar Jain said...

anita ji,
SARJAK KI RACHNA,GAHE-BAGAHE RACHNE WALE KO BHI RACHTI CHALTI HAI.
SVAYAM KO SIRAJNE KA YAH SUKH HI RACHNATMAK HONE KA ANIVARYA PRATIFAL HAI.
IS CREATIVE SAMVAD-SAHBHAGITA NE BLOGGING-WORLD KO NITAANT NAYAA AAYAM DIYA HAI.
PRASTUTI KE LIYE AAPKO AUR IDEA...IMAGINATION...INSPIRATION KE LIYE ...AJIT JI KI KHAATIR ABHINANDAN SE BADE SHABDA KI TALASH KAR RAHA HUN !

Yunus Khan said...

एक सुंदर श्रृंखला । एक सार्थक सिलसिला । आनंद आया ।

Anita kumar said...

फ़ुरसतिया जी आप के सवालों का मनोवेज्ञानिक विश्लेष्ण चल रहा है जल्दी ही बतायेगे कि हमें आप की नोक झोंक काहे भाती है।

Sanjeet Tripathi said...

मस्त!!
उपरवाला अनीता जी की मनोकामना पूर्ण करें।

बहुत बढ़िया रही यह जीवन-शब्द-यात्रा॰

anuradha srivastav said...

अनिता जी जैसे-जैसे आपको जान रहें हैं आत्मीयता बढती जा रही है।

ALOK PURANIK said...

जमाये रहियेजी।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सर्जक की रचना गाहे-बगाहे
रचने वाले को भी रचती चलती है .
अजीत जी ,
आपकी इस नई डगर ने सफ़र के सहयात्रियों को
रचनात्मकता की नितांत अनूठी अनुभूति प्रदान की है .
इस सुंदर ,सार्थक,सधी हुई प्रस्तुति की
संस्तुति ही पर्याप्त नहीं है ,
बल्कि समकालीन ब्लॉग -लेखन को
एक नया आयाम देने के लिए
शब्दों के सफ़र के हमराही हमेशा आपके आभारी रहेंगे ..

डॉ. अजीत कुमार said...

जब मैनें इस पूरी श्रृंखला को पढ लिया है तब अपनी अनीता आंटी को तहे दिल से धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने अपनी ब्लॉग यात्रा का विवरण क्या खूब किया है.
पूरे वृत्तांत में मैं खुद भी खॊ गया था और खुद को खुश्किस्मत समझता हूं. एक इतनी बडी शख्शियत से हर रोज chat जो करता रहता हूं.

Sajeev said...

अनिता जी आपके बारे में इतना कुछ जान कर बेहद अच्छा लगा, इस शुरुवात के लिए अजित जी बधाई के पात्र हैं, .... बढ़ते चलिए...

fursat-ke-kalam said...

Anitaji aapki ye kahani padh ke bada maja aaya. muze kafi khushi ho rahi hai ke aapne bahoot jald hi ek acchi se blog ka badhiya sa blog mein ruparntaran kiya. Muze ye padhkar bilkul javed akhtar sahab ke apni taruf ki style yaad aa gaye. aap ke blog sachmuch sab ko bhata hain.

fursat-ke-kalam said...

Anitaji aapki ye kahani padh ke bada maja aaya. muze kafi khushi ho rahi hai ke aapne bahoot jald hi ek acchi se blog ka badhiya sa blog mein ruparntaran kiya. Muze ye padhkar bilkul javed akhtar sahab ke apni taruf ki style yaad aa gaye. aap ke blog sachmuch sab ko bhata hain.

Pankaj Oudhia said...

अरे ये क्या? अचानक से समाप्ति की घोषणा कर दी!! अभी लिखते रहिये, मै आश्वस्त करता हूँ अजीत जी कुछ नही कहेंगे। :)

Poonam Misra said...

अनीताजी का यह आत्मकथ्य पढकर आनंद आया.अजितजी बधाई के पात्र हैं ऐसी श्रृंखला शुरू करने के लिये.

Arvind Mishra said...

तो एक रोचक आत्मकथ्य का मेरे द्वारा सिंहावलोकन रहा ...मुझे याद है कि मैंने अनिताकुमार जी का दूसरे क्रम वाला संस्मरण पढा था .....तब लगा तो था कि किसी लीक से अलग महिला का आत्म कथ्य है और जो बहुत खुले दिमाग वाली है -पर फिर बात आयी गयी हो गयी और आज एक सिंहावलोकन ...... पहले से आंशिक रूप से पढी खुली किताब का .........लेकिन मुझे लगता है बहुत कुछ अनकहा रह गया है और अनिता जी ने शील संकोचबस कई ब्लॉगर बंधुओं का हवाला देते देते ही आधी पोस्ट पूरी कर ली ...पर आश्चर्यजनक रूप से कई स्वनामधन्य महिला ब्लागरों का उल्लेख तक नही हुआ है -सब पुरूष दोस्त, कोई उल्लेखनीय महिला नहीं -या उनमे से कोई नही जो आज ब्लॉग जगत में चर्चित हैं -एक मनोविज्ञान के प्रोफेसर के मन में क्या छुपा है -कौन जान सकता है ?
अनिताकुमार जी शायद एक आधुनिक स्फिंक्स है सहजता सरलता में भी एक भेदिया छुपा है -
राम झरोखे बैठ कर सब का मुजरा लेत..........

Dr.Dinesh pathak shashi said...

वह अनीता जी , आपके द्वारा लिखी सभी कड़ियाँ पढ़ी , बहुत अच्छा और बेवाक लिखा है आपने. साधुवाद.
डॉ दिनेश पाठक शशि
मथुरा

Dr Dinesh Pathak Shashi said...

वाह अनीता जी , आपके द्वारा लिखी सभी कड़ियाँ पढ़ी , बहुत अच्छा और बेवाक लिखा है आपने. साधुवाद.
डॉ दिनेश पाठक शशि
मथुरा

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