किसी चीज़ को विभाजित करने या हिस्से करने के लिए उसे काटा जाता है। अनगढ़ को आकार देने , तराशने के लिए काट-छांट करनी पड़ती है। इससे मूल रूप में की तुलना में आकार ज़रूर छोटा हो जाता है, मगर उसमें निखार आ जाता है।
यह काट-छांट जीवन के हर पहलू में नज़र आती है। आध्यात्मिक रूप को निखारने के लिए चित्त–वृत्तियों की काट–छांट से लेकर भौतिक रूप को संवारने के लिए की जाने वाली कास्मेटिक सर्जरी तक इसे देख सकते हैं। शिल्प की हर विधा में यह नज़र आती है।
प्राचीन इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की धातु ker बड़ी महत्वपूर्ण है। संस्कृत की कृ धातु इसी श्रंखला की कड़ी है। किसी कार्य के होने में ‘करने’ का भाव प्रमुख होता है। हिन्दी के कई शब्द इसी कृ धातु से बने हैं जिनमें करना, कार्य , कारण , कृति , प्रकृति ,आकृतिजैसे कई शब्द शामिल हैं। कृ के अंदर करने,होने का जो भाव है उसके कई अर्थ हैं जैसे प्रहार करना, टुकड़े टुकड़े करना, विभक्त करना आदि। इससे ही बने कृत् का अर्थ होता है काटना, विभक्त करना , नष्ट करना आदि। इसी का दूसरा अर्थ होता है निर्माण करना , बनाना, उत्पन्न करना इत्यादि। गौर करें कि वृक्ष की कटाई में उसे नष्ट करने का भाव है मगर जब उसकी लकड़ी को तराश कर, छील कर खिलौने या कलाकृति बनाई जाती है तो वह कृत् की श्रेणी में आ जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि निर्माण और विनाश एक श्रंखला से बंधे प्रकृति के दो आयाम हैं। किये जा सकने वाले उचित मंतव्य को ही कर्त्तव्य कहते हैं जो कृ से ही बना है।
बहरहाल, कृ से ही बनी है कतरनी अर्थात कैंची । संस्कृत में इसके लिए कर्तनी और कर्त्री जैसे शब्द हैं। हिन्दी का कतरनी संस्कृत के कर्तनी का ही वर्ण विपर्यय है। मराठी में कैंची को कातरी कहते हैं। कृ में निहित विभक्त करने के भाव से ही बना है कटना, काट, काटना जैसे शब्द। अंग्रेजी में कैंची को कहते हैं सीज़र । हिन्दी की कतरनी और अंग्रेजी की सीज़र आपस में मौसेरी बहने हैं। प्राचीन भारोपीय धातु ker का ओल्ड जर्मनिक में रूप हुआ sker जिसका मतलब होता है काटना, बांटना। अंग्रेजी के शेअर यानी अंश , टुकड़े, हिस्से आदि और शीअर यानी काटना इससे ही बने हैं और इसका ही बदला हुआ रूप है सीज़र यानी कैंची। हिन्दी के कटार , कटारी जैसे हथियारों के नामकरण के पीछे भी यही है। कटुआ, कटौती, कटखना जैसे अनेक शब्दों के मूल में भी यही कृ धातु है। Ker और कृ में मौजूद क ध्वनि और उसमें निहित विभक्त करने
, नष्ट करने के भावों का विस्तार न सिर्फ प्राचीन भारोपीय परिवार में नज़र आता है बल्कि सेमेटिक परिवार की हिब्रू और अरबी जैसी भाषाओं में भी है। गौर करें अरबी लफ्ज़ क़त पर जिसका मतलब होता है काटना। क़त्ल (qatl)का मतलब होता है हिंसा, हनन, जान से मारना, हत्या वगैरह। यह शब्द फारसी, उर्दू और हिन्दी में भी खूब प्रचलित है। इससे बने कातिल (हत्यारा), कत्लगाह , मक़तल (वधस्थल), क़त्लेआम (नरसंहार) और क़तील (जिसे मार डाला गया हो) जैसे शब्द खूब प्रचलित हैं। अंग्रेजी के कट – cut पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
Friday, March 21, 2008
कटखना क़ातिल और कतरनी
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:21 AM
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8 कमेंट्स:
सही है। कृ धातु इतनी कारसाज है!
शायद इसी लिये कृ से कृपण भी बना होगा, मेल खाता है ना स्वभाव में
कृ बहुत मायामय है। आप कृति, कृतित्व, कृतिकार को विस्मृत कर गए। हम कॉपीराइट में इस का बहुत इस्तेमाल कर रहे हैं।
पत्थर मिला जो राह में,पाषाण कह दिया
गर नींव से जोड़ा गया निर्माण कह दिया
जो काट-छाँट सह गया शिल्पी के हाथों की
इंसान ने पाषाण को भगवान कह दिया !
बधाई.......यह पोस्ट भी उपयोगी और सारगर्भ है.
आपको होली की बधाई अजित जी .
कमाल है कहाँ कहाँ से चुन कर लाते हैं ये मोती आप ? एक कृ और उसके हजार रूप । बधाई आपको लिखते रहिये और हमारा ज्ञान वर्धन करते रहिये ।
कारीगरी जारी रखें - थोड़ी बहुत कतरब्योंत भी चलेगी [:-)] - किताब के मसले पर भी थोड़ा ध्यान दें - और समय भी - बहुत अच्छा दस्तावेज बनेगा हमारे समय के - होली की शुभकामनाएँ - कृतज्ञ - मनीष
कमाल है जी. पहले जेबों की विस्तृत जानकारी दी, अब कतरना सिखा रहे हैं. ;-)
वैसे ऐसे कुकृत्य करने पर कुटाई होना एक कटु सत्य है. इसके चलते हम इस कुटिल विचार को कभी क्रियान्वित नहीं करेंगे.
होली की कोटि-कोटि शुभकामनाएँ
'कवि'शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई है और किस धातु से हुई है? कृपया इस पर प्रकाश डालें।-डॉ.दीनानाथ सिंह,चेन्नई।
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