Saturday, March 8, 2008

टेंट भी ढीली और खीसा भी खाली...[ जेब- 2 ]

जेब के अर्थ में हिन्दी में एक और शब्द प्रचलित है वह है खीसा । इस शब्द का प्रयोग हिन्दी के अलावा गुजराती और मराठी में भी होता है। मराठी में खीसा की जगह खिसा का प्रचलन है। मज़ेदार बात ये कि मराठी में कई बार खिसा-पाकिट एक साथ भी बोलने का प्रचलन है। ये ठीक वैसा ही है जैसे ढोर-डंगर या बाल-बच्चे का प्रयोग । बहरहाल, इस शब्द की पैदाइश भी सेमेटिक मूल की धातु की-स से ही हुई है। अरबी भाषा में इसका रूप है कीसः या कीसा जिसका मतलब होता है एक छोटी थैली या जेब। मज़ेदार बात ये है कि अरबी में इसका उच्चारण किसा की जगह साख ही बोला जाता है। अरब हमलावरों के इसी उच्चारण के चलते हिन्दी में भी खीसा शब्द बोला जाने लगा होगा। हिब्रू में इसका रूप है किस्स, सीरियाई में केसा, फारसी में किसे और आरमेइक में किस है। जाहिर है कि उर्दू – हिन्दी में इसका उच्चारण कीसा या खीसा हुआ। जेब की तुलना में हालांकि खीसा शब्द हिन्दी में कम बोला जाता है मगर इसे अप्रचलित शब्द नहीं कहा जा सकता है।

खीसे के ही अर्थ में एक और शब्द मशहूर है वह है टेंट । कहानी-किस्सों में और बोलचाल की भाषा में अक्सर एक मुहावरे के रूप में इस शब्द को सुना-बोला जाता रहा है टेंट खाली होना(करना), टेंट ढीली करना (कराना) या टेंट में कुछ न होना। गौरतलब है कि ये सभी मुहावरे ठन-ठन गोपाल की ओर ही इशारा कर रहे हैं और जता रहे हैं कि भरी जेब हमेशा खाली होती जाती है। टेंट का मतलब भी वस्त्र के साथ बांध कर रखी जाने वाली कपड़े की थैली से है। गौरतलब है कि यह उस शब्द उस काल से संबंधित है जब पतलून का चलन नहीं था और आमतौर पर पुरुष धोती ही बांधते थे। टेंट की व्युत्पत्ति हुई है संस्कृत के तन्त्रकः से जिसका अर्थ है सूत से बना कोरा कपड़ा, या सिला हुआ कपड़ा। तन्त्रकः की मूल धातु है तन् जिसमें ढकने, फैलाने, छुपाने के भाव निहित हैं।

[ ज्यादा जानकारी के लिए यहां देखें। ]

तन्तु या रेशा भी इससे ही बने हैं। जाहिर है तन्तु से ही बनता है कपड़ा। गौरतलब है कि टेंट में अर्थात जेब में रुपए छुपाए ही जाते हैं। जेब से टेंट का अंतर इतना ही है कि यह एक ऐसी थैली है जिसका मुंह एक धागे की सहायता से आसानी से बंद किया जा सके। प्राचीनकाल में इस थैली को वस्त्र के अंदर खोंस लिया जाता था या कमर से बांधा जाता था । कालांतर में इसका प्रयोग जेब के अर्थ में आम हो गया ।
इस कड़ी के तीसरे पड़ाव में मिलते हैं इसी सिलसिले वाले कुछ और शब्दों से। ये पड़ाव कैसा लगा , ज़रूर बताएं।

आपकी चिट्ठियां -

सफर के पिछले तीन पड़ावों- पॉकेटमारी नहीं जेब गरम करवाना, बुरी बात नहीं शक्कर में मिलावट और विमर्श में घुमक्कड़ी भी है ज़रूरी पर सर्वश्री पंकज अवधिया ,संजय, दिनेशराया द्विवेदी, जोशिम(मनीष),तरुण, प्रमोदसिंह, माला तैलंग, डॉ चंद्रकुमार जैन, संजीत त्रिपाठी, अनूप शुक्ल, चंद्रभूषण, अनिताकुमार, सुजाता , उड़नतश्तरी, आशा जोगलेकर और सुईतुर की टिप्पणियां मिलीं। आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया।

@दिनेशराय द्विवेदी,संजीत त्रिपाठी ,तरुण -
आप सबकी काव्यात्मक टिप्पणी ने समा बांध दिया। मगर पाजेब का ताल्लुक फिर भी जेब से नहीं हो सका :-)
@चंद्रभूषण-
नायाब जानकारी के लिए धन्यवाद चंदूभाई। अलजेब्रा भी अरबी के अल-जब्र से ही बना है।

5 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

तो अगले पड़ाव पर अंटी का नम्बर है?

Dr. Chandra Kumar Jain said...

AJIT JI,
KHEESE PAR KHAASI
JANKARI DEE AAPNE.
KHEESA KHAALI HO TO
AADMI KHISIYA JATA HAI.
KHEESA BHARA RAHE
TO VAH KHAAS KAHLATA HAI.
KHEESE KE KISSE KO
KHOOB BATAYA AAPNE.
KUCH BATUAE KI BAAT BHI KIJIYE,
SAFAR KE IS PADAV PAR BHI
DIL SE BADHAI LIJIYE.

दिवाकर प्रताप सिंह said...

श्रीमान् अजित जी ,

पत्र हेतु आपका आभारी हूँ। प्रतिक्रिया वाले पृष्ठ पर ब्लॉगर नाम में सूटर दिखता है, वैसे यदि आप तनिक-भी चाहते तो मेरे ब्लॉग या प्रोफाइल से मेरा नाम पढ़ सकते थे। कदाचित् पढ़ भी चुकें हों अब तक ! सूटर के तारतम्य में मिलते-जुलते कुछ शब्द लिख दिये थे जिसके लिये आपको अन्यथा नहीं लेना चाहिये था पुनरपि आपको अगर ठेस लगा तो मुझे खेद है क्योंकि मेरा ध्येय आपको या किसी अन्य को क्लेश पहुँचाना नहीं है।

मेरी दूसरी प्रतिक्रिया का मतलब आप जानना चाहते हैं तो आपको बता दूं कि खींस निपोरने का मतलब है हँसना ! खीसा शब्द का अर्थ है जेब तो उसी से मिलते-जुलते शब्द-युग्म "खींस निपोरना" में खींस का शब्दार्थ दाँत है तथा निपोरने का तात्पर्य है दिखाना ! दाँत दिखाना अर्थात् हँसना ! आशा है कि अब संतुष्ट हो गये होंगे। यदि अभी भी आपको कोई कमी प्रतीत हो तो आप मुझे पत्र (ई-मेल) लिख सकते हैं।
श्रीमदीय
suitur अर्थात्
दिवाकर प्रताप सिंह
( suitur@gmail.com )

अजित वडनेरकर said...

प्रियवर,
पत्र के लिए धन्यवाद। निश्चित ही मुझे आपकी प्रतिक्रिया में उपालम्भ का संकेत मिला था। आपने स्पष्ट कर दिया तो अब कोई शिकायत नहीं है। खीसे निपोरने का अर्थ तो जानता हूं, उस पूरी प्रतिक्रिया का संदर्भ समझना चाहता था। किसी की खाली जेब के बारे में जो खीसे निपोरने वाली बात आपने कही उसमें मेरा संदर्भ ले आना आपको भी अजीब ही लगेगा । बहरहाल, मैने आपकी प्रतिक्रियाएं डिलीट कर दी थीं, उसके लिए क्षमा चाहता हूं। मेरे बेटे ने भी सुईतुर ही पढ़ा था और पत्नी ने भी। अलग अलग। आपके ब्लागर प्रोफाइल में गया था मगर वहां सूटर नहीं देखा,अलबत्ता आपका नाम ज़रूर देखा था । मगर कल की प्रतिक्रिया का संदर्भ देते हुए जो नाम सामने आया वह यही था। बहरहाल, विनम्रता से यही कहना चाहता हूं ये सब हुआ इसलिए क्योंकि बजाय मुझे निजी तौर पर सम्पर्क कर सही करने की जगह आपने उस स्थान पर यह सब लिखा जहां सिर्फ पोस्ट के गुण-दोष पर बात होनी थी।
आपका ईमेल तलाशने के लिए मैं ब्लाग पर गया था मगर मिला नहीं। फिर ब्लाग पर ही जवाब लिख दिया। मगर फिर लगा कि यह ठीक नहीं,इसलिए पूरा सिलसिले का ही विलोप कर दिया । और अब अपने दिमाग़ से भी इसे निकाल रहा हूं। आप से भी यही अपेक्षा है।
कई बार रिश्तों की शुरुआत यूं भी होती है । सफर के साथ बने रहें।
शुभकामनाओं सहित

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अजीत जी, देर से आ पाने के लिए क्षमा करें। ये सूटर जी का मामला समझ नहीं सका। इतना अच्छा भला नाम है इनका, (दिवाकर)फिर भी जाने क्या गड़बड़ हो गयी। खैर...

वैसे आपकी श्रृंखला की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम ही है। आपका यह परीश्रम वाकई प्रशंसनीय है। एक और संग्रहणीय पोस्ट की बधाई।

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