Sunday, September 14, 2008
समूह से समझदारी की उम्मीदें...
पेड़ों ने भी अब बोलना बंद कर दिया है, क्योंकि उनके समूह बचे कहा ? मगर संवादहीनता का अंत हमेशा पश्चाताप ही होता है , इस कठोर सच्चाई का भयावह रूप अभी समाज को देखना बाकी है।
लोगों की भीड़, वस्तुओं का संग्रह , जानवरों का रेवड़ तथा इसी तरह के अन्य जमाव या समष्टिबोधक शब्दों के लिए हिन्दी का एक आम शब्द है समूह । सभा, गोष्ठियों या अन्य किसी जमावड़े के संदर्भ में इस शब्द का प्रयोग होता है। इस तरह एक समूह गोष्ठी भी है और परिवार भी। फौज भी है और राष्ट्र भी । तारामंडल भी है और देवगण भी।
जन-समूह एक ऐसा शब्द है जो अक्सर चुनावी रैलियों में लोगों की संख्या का आकलन करते समय कहा-सुना जाता है। समूह बना है संस्कृत की ऊह धातु से जिसमें चर्चा, तर्क-वितर्क, अटकलबाजी आदि भाव शामिल हैं। गौर करें कि भीड़ का स्वभाव होता है हलचल करना। यह हलचल शारीरिक भी होती है और वाचिक भी । अगर कहीं भी चंद लोग इकट्ठा है तो यह तय है कि किसी भी विषय पर वार्तालाप या बहस शुरू होगी ही। चर्चा, तर्क-वितर्क-कुतर्क सब कुछ होगा। विचार-विमर्श भी होगा और परामर्श भी। समूह के साथ चाहे सोच-विचार , चर्चा जैसे शब्द जुड़े हैं मगर हर समूह समझदार हो ,यह ज़रूरी नहीं। खासतौर पर लोकतंत्र जो खुद समूहवाची है , उसके अस्तित्व के लिए समूह से हमेशा समझदारी की उम्मीद होनी चाहिए।
किसी भी मुद्दे पर अटकलबाजी से लेकर रायशुमारी का दौर तक चल सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समूह का चरित्र ही यह है। हालांकि समूह शब्द में यह बात आवश्यक नहीं है कि समुच्चय सिर्फ मनुश्यों का ही हो। जड़ वस्तुओं का समूह भी हो सकता है और और पशु-पक्षियों का भी । मगर चर्चा, शब्द आदि वहां भी होते हैं। बर्तनों के समूह के लिए मनुश्य ने खुद ही मुहावरा गढ़ लिया कि जहां चार बर्तन होंगे तो खड़खड़ाएंगे ही । यानी बरतन भी बातें करते हैं। वृक्ष-समूह में भी चर्चाएं होती हैं। आम के पेड़ों का समूह अमराई कहलाता है। अक्सर अमराई में पंचायत हो जाती है, चौपाल सजती है और दुनिया जहान की चर्चा होती है। यूं भी वृक्ष-समूह में पंछियों के कलरव से गुंजार होता है। और रात्रि में सचमुच वृक्ष आपस में बातें करते हैं और हवा उन्हें वाणी देती है। ये अलग बात है कि मानव-मन में बैठा दुभाषिया जो पहले वृक्ष-वाणी समझता था, अब उसका अनुवाद करना भूल चुका है । पेड़ों ने भी अब बोलना बंद कर दिया है, क्योंकि उनके समूह बचे कहा ? मगर संवादहीनता की परिणति हमेशा पश्चाताप ही है , इस कठोर सच्चाई का भयावह रूप अभी समाज को देखना बाकी है।
संस्कृत की ऊह् धातु में शामिल विचार-विमर्श, चिन्तन, अनुमान लगाना आदि भाव सीधे-सीधे लोगों के आपसी संवाद को जाहिर कर रहे हैं। संवाद किन्हीं दो या उससे ज्यादा व्यक्तियों में होता है इसलिए यहां समूह या समष्टि का अर्थ भी निहित है। ऊह में सम उपसर्ग लगने से बना समूह । हिन्दी का एक और आम शब्द है ऊहापोह जो ऊह+अपोहः से बना है। अपोह का अर्थ होता है तार्किक आधार पर समस्या का निराकरण। ऊहापोह का हिन्दीवाले अक्सर गलत प्रयोग करते हैं। आमतौर पर इसका प्रयोग असमंजस, अधरझूल या निष्कर्ष तक न पहुंचने की स्थिति से लगाया जाता है जबकि इसका सही अर्थ है किसी विषय पर सम्यक तार्किक चर्चा । ऊहापोह का मुहावरे की तरह जब प्रयोग होता है तो उसका अभिप्राय यही होता है कि सोच-विचार में पड़ना।
ऊह शब्द से बना एक और महत्वपूर्ण शब्द है व्यूह । इस कड़ी का चक्रव्यूह शब्द व्यूह की तुलना में हिन्दी में कही अधिक प्रयोग होता है। ऊह में वि उपसर्ग लगने से बनता है व्यूह जिसका अर्थ है युद्ध के मद्देनजर सैन्य-रचना। कोई भी योजना अथवा व्यूह रचना बिन तार्किक आधार और चिंतन मनन के नहीं बनाई जाती । ऊह् मे निहित ये अर्थ व्यूह में स्पष्ट हैं। फौज, टुकड़ी, सैन्यदल को भी व्यूह कहा जाता है और शरीर, संरचना, निर्माण भी व्यूह ही कहा जाता है। यहां भी भाव समुच्चय से ही है। सेना भी फौजियों का समूह है और शरीर इन्द्रियों-अंगों का समूह है। चक्रव्यूह प्राचीनकाल का बेहद महत्वपूर्ण सैन्यविन्यास था जिसे भेदना मुश्किल होता था। आज इस शब्द का अर्थ भी मुहावरे के तौर पर होता है जिसका मतलब विरोधी पक्ष की मारक रणनीति से है।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:57 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
14 कमेंट्स:
jankari ke liye aabhar.
रोचक जानकारी...जो हम रोज बोलते हैं..लिखते हैं, लेकिन इन शब्दों के बारे में इतनी गहराई से कभी नहीं सोचा..जिनसे अक्सर आप हमें वाकिफ करवाते हैं। धन्यवाद........
असमंजस,किंकर्तव्यविमूढ़ता,उधेड़बुन,सशोपंज,दुविधा, अंतर्द्वंद्व, उहापोह...कितने सारे शब्द हैं उस भाव को व्यक्त करने के लिए जिससे हम रोज़ दो-चार होते हैं.
भाई क्या कहें, आप हमें रोज, आपको पढ़ने के बाद, अपने आपको और अधिक ज्ञानी समझ लेने के लिए मजबूर ही कर देते हैं. बहुत आभार आपका.
हिन्दी में नियमित लिखें और हिन्दी को समृद्ध बनायें.
हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
भीड़ से समझदारी की उम्मीद बेमानी है..
उह! पोस्ट तो बढ़िया है। बहुत बढ़िया।
उह का महत्व आज पहली बार जाना। जब उहापोह से निर्णय की दूरी हो जाती है रास्ता नहीं मिलता तो वह असमंजस हो जाता है।
उसने क्या कहा?
अभी असमंजस में है।
नजदीकी शब्द हैं।
आप हिन्दी की बेहतरीन सेवा कर रहे हैं, जिसका लाभ अन्तर्जाल से हम सबको मिल रहा है। इलाहाबाद स्थित हिदुस्तानी एकेडेमी इसी कार्य के लिए २०वीं सदी के प्रारम्भ में स्थापित की गयी थी। इसका इतिहास अत्यन्त गौरवशाली रहा है, किन्तु कदाचित् समय की रफ़्तार में यह पीछे छूट गयी है।
मेरी इच्छा है कि आप इससे जुड़ें और अपने शोधपरक आलेख इसअ मंच के माध्यम से भी प्रकाशित कराएं। अभी हाल ही में एकेडेमी ने इंटरनेट का दरवाजा खटखटाया है।
रोचक ..हिन्दी दिवस की बधाई
ऊह...समूह...व्यूह...चक्रव्यूह !
...और उस पर ये ऊहापोह की बातें !
.....आपके सफर में समूह की संवेदना समृद्द हो रही है
========================================
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हिंदी दिवस पर हिंदी के सच्चे सिपाही को सलाम। आप जैसी ऊर्जा हिंदी के सौ विद्यार्थियों, शिक्षकों या संस्थाओं में भी होती, तो ऐसी हीनभावना न पसरी होती।
ऊह से चक्रव्यूह तक सफर अच्छा रहा.
रोचक जानकारी है। आभार,
रजनी
Very interesting as always ! Thank you ~~
( sorry for this comment in English.
I'm away from my PC )
Post a Comment